जब कभी बोलना वक्त पर बोलना, मुद्दतों बोलना मुख्तसर बोलना--हरिहरन की आवाज़ में ये ग़ज़ल
रेडियोवाणी पर पिछले कुछ दिनों से ग़ज़लों का ख़ुमार चढ़ा है । आपको याद होगा हमने भूपेंद्र सिंह की कई ग़ज़लों आपको सुनवाईं । कुछ फिल्मी गीत भी सुनवा दिये । आज एक बहुत ही मौज़ूं/प्रासंगिक ग़ज़ल पेश है । अफसोस ये है कि मुझे इसके शायर का नाम पता नहीं चल सका । इस ग़ज़ल को हरिहरन ने अपने एक अलबम में शामिल किया था । देखिए ये रहा इस अलबम का कवर पेज ।
ग़ज़ल सुनवाने से पहले आपको हरिहरन के बारे में कुछ बता दिया जाए । हरिहरन कर्नाटक संगीत के दो महान कलाकारों श्रीमती अलमेलु और एच ए एस मणि के बेटे हैं । बचपन से ही कर्नाटक संगीत के अलावा भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनकी ट्रेनिंग हुई है । जगजीत सिंह और मेहदी हसन से प्रभावित रहे हरिहरन को सुर सिंगार प्रतियोगिता में गाते देखकर संगीतकार जयदेव ने मुजफ्फर अली की फिल्म गमन में मौका दिया । जहां उन्होंने शहरयार की एक गजल गाई--अजीब सानेहा मुझ पर गुजर गया यारो । जिसे आगे चलकर रेडियोवाणी पर प्रस्तुत किया जायेगा ।
फिल्म रोजा के बाद उनका और ए आर रहमान का साथ शुरू हुआ । और रहमान ने हरिहरन से कुछ नर्मोनाजुक गीत गवाए । हरिहन बेहद प्रयोगधर्मी और विविध रंगी हैं । एक तरफ आपको वो शॉल ओढ़े शास्त्रीयता के साथ ग़ज़लें गाते मिलेंगे तो दूसरी तरफ वो पॉप म्यूजिक में भी सक्रिय दिखेंगे और fusion में भी । आपको colonial cousins तो याद होगा ही ना । खैर चलिए फिर से लौटें इस गजल की तरफ ।
इस ग़ज़ल का एक एक शेर अनमोल है । बहुत ही गहरी बात कही गयी है इसमें । फिर संगीत संयोजन भी कमाल का है । हरिहरन ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि इसमें उन्होंने पश्चिमी संगीत वाले blues रचने की कोशिश की है । ग़ज़लों में blues. ख्याल अच्छा है । नतीजा भी अच्छा है ।
इस ग़ज़ल का ऑडियो चढ़ाने का धीरज नहीं हुआ । आगे मौका आने पर जरूर आपके लिए इसका ऑडियो भी पेश करूंगा ।
फिलहाल तो काम चलाईये इस वीडियो से । दिलचस्प बात ये है कि इसकी रचना प्रक्रिया के बारे में भी हरिहरन ने कुछ बातें कहीं हैं जो मुझे you tube पर मिल गयीं । वो भी जरूर सुनिएगा ।
जब कभी बोलना वक़्त पर बोलना
मुद्दतों बोलना मुख़्तसर बोलना
डाल देगा हलाक़त में इक दिन तुझे
ऐ परिन्दे तेरा शाख़ पर बोलना
पहले कुछ दूर तक साथ चल के परख
फिर मुझे हमसफ़र हमसफ़र बोलना
उम्र भर को मुझे बेसदा कर गया
तेरा इक बार मूँह फेर कर बोलना
मेरी ख़ानाबदोशी से पूछे कोई
कितना मुश्किल है रस्ते को घर बोलना
क्यूँ है ख़ामोश सोने की चिड़िया बता
लग गई तुझ को किस की नज़र बोलना
और यहां हरिहरन आपको बता रहे हैं इस अलबम के बारे में ।
अगर आप में से किसी को इस ग़ज़ल के शायर का नाम पता हो तो जरूर बताईये । हम ऐसे ज़हीन शायर को सलाम करते हैं । चलते चलते एक बात । राजेंद्र जी ने याद दिलाया कि कानपुर निवासी हरमंदिर सिंह हमराज का 19 नवंबर को जन्मदिन था । मुझे पता ही नहीं था । हमराज से संगीत प्रेमी अच्छी तरह परिचित हैं । उन्होंने हिंदी फिल्म गीत कोश का निर्माण किया है । जिसमें शुरूआत से लेकर अब तक की सारी फिल्मों के रिकॉर्ड नंबर, गानों की सूची, कलाकारों के नाम वगैरह सब शामिल हैं । ये बेहद श्रमसाध्य और thankless काम था । पर एक जुनून है जो उन्हें इस रास्ते पर लगाए हुए था ।
उनकी श्रृंखला इस तरह से है--
पहली वॉल्यूम-- सन 1931 से 1940 तक के गीत
दूसरी वॉल्यूम-- सन 1941 से 1950
तीसरी वॉल्यूम--सन 1951 से 1960
चौथा वॉल्यूम--सन 1961 से 1970
पांचवा वॉल्यूम--सन 1971 से 1980
इसके अलावा उनके कई अन्य पब्लिकेशन भी हैं । जिनका ताल्लुक फिल्मों के इतिहास से है ।
हमराज़ के बारे में रेडियोनामा पर जल्दी ही एक पूरी पोस्ट प्रस्तुत की जाएगी । फिलहाल ये रहा उनका पता और ई मेल संपर्क । अगर आप उनके गीत कोश मंगाना चाहते हैं तो यहां संपर्क कीजिए--
Street address :
H.I.G. - 545, Ratan Lal Nagar,
Kanpur 208 022 [U.P.] India
E-mail address :
hamraaz18@yahoo.com
रेडियोवाणी परिवार हरमंदिर सिंह हमराज को जन्मदिन की मुबारकबाद पेश करता है ।
रेडियोनामा पर उनके परिचय की पोस्ट का इंतज़ार कीजिए ।
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: जब-कभी-बोलना, हरिहरन, हरमंदिर-सिंह-हमराज, harmandir-singh-hamraz, filmi-geetkosh, colonial-cousins, hariharan, jab-kabhi-bolna,
Technorati tags:
जब कभी बोलना वक्त पर बोलना , हरिहरन ,हरमंदिर सिंह हमराज ,फिल्मी गीत कोश ,hariharan ,jab kabhie bolna waqt par bolna ,harmandir sing hamraz , filmi geet kosh READ MORE...
