संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Sunday, May 20, 2007

क्‍या आपने कभी रफी साहब को गाते हुए देखा है, उनका इंटरव्‍यू सुना है कभी, यहां देखिए

प्रिय मित्रो, विविध भारती में आने से पहले मैं बचपन से ही विविध भारती का नियमित और जुनूनी श्रोता हुआ करता था और आज भी हूं । विविध भारती के ज़रिए मुझे मदन मोहन, लता मंगेशकर, आशा भोसले, एस0डी0बर्मन, मजरूह सुलतानपुरी, मुकेश, मन्‍नाडे, हेमंत कुमार, हसरत जयपुरी, आर0डी0बर्मन, रोशन, अनिल विश्‍वास, कल्‍याणजी आनंदजी, लक्ष्‍मीकांत प्‍यारेलाल जैसी अनेक हस्तियों को सुनने का मौक़ा मिला । पर एक अफसोस हमेशा से था कि विविध भारती पर मो0 रफी, किशोर कुमार और साहिर लुधियानवी की आवाज़ें क्‍यों नहीं बजतीं । बाद में यहां उद्धोषक बनने पर पता चला कि ये कलाकार लगातार रेडियो पर आने से कतराते रहे । रफी साहब तो बेहद शर्मीले थे और इंटरव्यू देने से हमेशा हिचकते थे, किशोर दा के किस्‍से तो आप सभी ने सुन रखे होंगे । रेडियो से उनकी अच्‍छी खासी नाराजगी भी रही । खैर, रही बात साहिर लुधियानवी की, तो वो अपने जमाने के मसरूफ शायरों और गीतकारों में से थे और कभी विविध भारती के लिए समय नहीं निकाल पाए । हां पिछले दिनों बैंगलोर के मेरे मित्र शिरीष कोयल ने मुझे फोन पर साहिर साहब की आवाज़ सुनवाई और वो मेरी जिंदगी का यादगार दिन बन गया । पता नहीं उन्‍होंने कहां से इसे जुटाया होगा ।

बहरहाल चूंकि ये लोग अब इस संसार में नहीं हैं, इसलिये इन्‍हें देखने का मौक़ा मिलना नामुमकिन ही लगता था ।
पर you tube पर थोड़ी मशक्‍कत के बाद मैंने कई कलाकारों को लाईव गाते या इंटरव्यू देते खोज ही लिया है ।
थोड़े दिन पहले मैंने हेमंत कुमार के एक पुराने कंसर्ट की रिकॉर्डिंग अपने ब्‍लॉग पर लगाई थी, आज पेश हैं रफी साहब के कंसर्ट और इंटरव्यू की झलकियां ।

जैसा कि मैंने कहा कि रफी साहब बेहद शर्मीले थे और अकसर कहा करते थे कि मुझसे गाने चाहे जितने गवा लीजिये पर बातें मत करवाईये । इंटरव्यू तो बिल्‍कुल नहीं । पर ये रहा रफी साहब का एक दुर्लभ वीडियो इंटरव्यू । आप खुद ही देखिये कि किस कदर शर्मा शर्मा के रफी साहब जवाब दे रहे हैं । इस वीडियो को देखकर मैं अपने आप को इतना खुशनसीब समझ रहा हूं कि पूछिये मत । ये रहा वो इंटरव्‍यू । इसके बाद आपको दिखायेंगे रफी साहब के कंसर्ट की कुछ झलकियां ।




अब देखिये किस तरह नौशाद साहब रफी को मंच पर पेश कर रहे हैं । ये गीत है मन तरपत हरि दरसन को आज, देखिये रफी साहब बिल्‍कुल देवदूत की तरह लग रहे हैं ये भजन गाते हुए । इस गाने में आपको नौशाद साहब नजर आयेंगे ऑकेस्‍ट्रा कंडक्‍ट करते हुए




अब जरा फिल्‍म प्रिंस का गीत गाते हुए देखिए रफी साहब को । इस गाने में आपको कडियल चेहरे वाले जयकिशन और एकदम सौम्‍य चेहरे और घुंघराले बालों वाले शंकर नजर आयेंगे । ये भी किसी कंसर्ट का ही अंश है । यहां एक बेहद शोख गाने को रफी साहब किस सादगी के साथ गा रहे हैं देखिए-



और अब देखिए ‘मधुबन में राधिका नाचे’ इस गाने की उद्घोषणा भी नौशाद साहब की कर रहे हैं ।



और अब जरा देखिए किस तरह रफी साहब के एक तरफ हास्‍य अभिनेता मेहमूद और दूसरी तरफ गायिका शारदा मौजूद हैं, और बदकम्‍मा बदकम्‍मा जैसा तूफानी गाना रफी साहब किस तरह गा रहे हैं, वो भी बिल्‍कुल लाईव
इसका एम्‍बेडिंग कोड उपलब्‍ध नहीं है, इस वीडियो को आप इस लिंक के ज़रिए देख सकते हैं ।

http://youtube.com/watch?v=XTfDOWcpijA

और आखिर में देखिये नौशाद साहब रफी को किस तरह आवाज़ दे रहे हैं—दुलारी फिल्‍म का ये गाना गाने के लिये,
सुहानी रात ढल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे ।





प्रिय मित्रो, इन वीडियो क्लिक को आपके लिए पेश करते हुए मैं बहुत ही रोमांचित हूं, बरसों पुरानी मेरी मुराद पूरी हुई तो सोचा कि रफी साहब के तमाम दीवानों तक ये वीडियोज़ पहुंचने ही चाहिये । टेक्‍नॉलॉजी एक मोड़ पर आकर कितनी मानवीय, कितनी मददगार और कितनी चमत्‍कारिक लगने लगती है ना, वरना हम रफी साहब को कैसे देखते और कैसे सुनते ।

13 comments:

Pramendra Pratap Singh May 20, 2007 at 5:16 PM  

बहुत ही अच्छे युनूस भाई आपके द्वारा तो फिल्‍मी दुनिया की नई नई जानकारी पढ़ने को मिल रही है।

azdak May 20, 2007 at 6:22 PM  

बहुत खूब, भइया.. क्‍या दस्‍तरखान सजाया है!

रवि रतलामी May 20, 2007 at 6:33 PM  

सुंदर संकलन, सुंदर आनंददायी प्रस्तुति.

Udan Tashtari May 20, 2007 at 7:17 PM  

बढ़िया प्रस्तुति. आनन्द आया.

mamta May 20, 2007 at 7:35 PM  

वाकई पुरानी यादें ताजा हो गयी जब रात मे विविध भारती पर छायागीत सुना करते थे. यूनुस भाई आप बहुत अच्छे गानों का चयन करते है।

Sagar Chand Nahar May 20, 2007 at 8:09 PM  

रफी साहब को गाते देखना तो आनन्ददायी है ही पर आज उन्हें बोलते हुए पहली बार सुना, बहुत अच्छा लगा था। रफी साहब के बारे में बहुत सुना था कि बेहद शर्मीले इन्सान है, आज उनके इस साक्षात्कार से साफ पता चल रहा है कि रफी साहब वाकई शर्मीले और साफ दिल इन्सान थे।
आपके लेख की अन्तिम पंक्तियाँ भी अच्छी है, कि टेक्‍नॉलॉजी एक मोड़ पर आकर कितनी मानवीय, कितनी मददगार और कितनी चमत्‍कारिक लगने लगती है ना, वरना हम रफी साहब को कैसे देखते और कैसे सुनते ।

Anonymous,  May 21, 2007 at 11:06 AM  

Batkamma ek jangali phool hai jo Hydearabad, Telangana (A.P) main hota hai.

Dashara festival per Telangana ki mahilaaye in phulo ko Deepak ke saath kalash main sajaye parikrama karte huye geeti hai -

Batkamma Batkamma ooiyalo

yeh ek lok geet hai. Ooiyalo ka arth hai jhumanaa, jhulana khushi se.

isi lok sanskruti ko banaye rakte huve masti main gaaye gaye geet ka arth hai

Batkamma Batkamma Ekkada (Kahan) potao ra (jaa rahi ho)

Ekkada (yaha) Ekadda raa (Aa)

Batkamma yaha Bajara jaati main bahut si mahilaon ka naam hota hai

Annapurna

Yunus Khan May 22, 2007 at 8:56 AM  

बहुत बहुत शुक्रिया अन्‍नपूर्णा जी, इस गाने को सुनकर मैं अकसर सोचा करता था कि ये बतकम्‍मा क्‍या होता है, आपने तो इसकी पूरी पृष्‍ठभूमि ही बता दी । अच्‍छा लगा, अब ये बात रेडियो पर गाना बजाते हुए सभी श्रोताओं को बताऊंगा, मौक़ा आने दीजिये ।

टिप्‍पणी के लिए बाकी मित्रों का भी शुक्रिया ।

Srijan Shilpi May 22, 2007 at 2:11 PM  

सुन्दर और दुर्लभ प्रस्तुति ! शुक्रिया।

Manish Kumar May 22, 2007 at 2:52 PM  

सबसे ज्यादा मजा आया मुझे उनका इंटरव्यू वाला वीडियो देखने में :) बिलकुल सही कहा आपने उनके शर्मीलेपन के बारे में ।

sanjay patel May 22, 2007 at 8:47 PM  

युनूस भाई आदाब...रफ़ी साहब मेरे पी.सी पर क्या नज़र आए आपके चिट्ठे के ज़रिये)ऐसा लगा मानो मन जन्नत की सैर कर आया.साल था ८० का और पौने नौ के समाचार बुलेटिन में इंन्दु वाही ने ख़बर पढी...रफ़ी साहब नहीं रहे..मै १९ बरस का था ..तक़्ररीबन रात ग्यारह बजे सायकल पर हांफ़ता हुआ इन्दौर के एक जानेमाने अख़बार के दफ़्तर में मशहूर फ़िल्म पत्रकार श्रीराम ताम्रकर को रफ़ी साहब पर बतौर ख़िराजे अकी़दत एक आर्टिकल सौंप आया और पहली बार किसी रिसाले में इतनी भव्यता से छपा.यानी एक तरह से रफ़ी साहब के नाम से ही इब्तेदा हुई मेरी..आप सोच सकते हैं कि आपके ब्लाग पर रफ़ी साहब को देख-सुन कर और मेरे महबूब गुलूकार को अपने सामने पाकर कितना रोमांचित हूं . हां एक और फ़िलिंग आपके साथ बांटना चाहुंगा..रफ़ी साहब रमज़ान के महीने में हमसे जुदा हुए.मेरा किशोर मन उन दिनों रफ़ी साहब के जाने से इतना आहत हुआ कि बाद के कई बरसों तक मै ३१ जुलाई को उपवास (आप इसे रोज़ा ही समझें)रखने लगा.रफ़ी साहब एक बार अपने साहबज़ादे का रिश्ता लेकर इन्दौर भी आए थे.औरे मैने उन्हें यहां के प्रतिष्ठित ख़ान परिवार(सलीम ख़ान साहब वाला) के आंगन मे टेरिलीन की बुशर्ट पहने एक कुर्सी पर एक साधारण से शख़्स के रूप में देखा भी था...चेहरे पर एक शालीन,शफ़्फ़ाक मुस्कराहट आज भी मेरे मन-मस्तिष्क में जस की तस है.तब कहां था मीडिया का जमावड़ा,आज का तथाकथित ग्लैमर,और व्यवहार में बनावट..रफ़ी साहब क्या गये..संगीत से भद्रता का दौर चला गया.वीडियो में जब उन्हें मालकौंस गाते सुना तो लगा जैसे सादगी इश्वर के दरबार में आ बिराजी है..किसी सूफ़ी ने इबादत का तरन्नुम छेड़ दिया.आपने इस अज़ीम फ़नकार को हमारी आंखों के सामने गुनगुनाते हुए दिखाकर आज रफ़ी साहब को फ़िर ज़िंदा कर दिया है युनूस भाई..मोहम्मद रफ़ी ज़िन्दाबाद.

Abhishek May 23, 2007 at 11:48 PM  

यूनुस भाई,
मै विविध भारती का नियमित श्रोता हूँ, ख़ासकर रात ९ से ११ बजे तक का । आपको भी बहुत बार सुना है । आज आपसे सीधे कुछ कहने का मौका मिल रहा है तो बड़ी खुशी हो रही है । पहली बात तो ये कि आपकी आवाज़ बड़े कमाल की है । और दूसरी बात ये आपने ये जो संग्रहण अपलोड किया है, उसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद । एकदम दुर्लभ लगते हैं ये सारे विडीयोज़ ।

सधन्यवाद
-- अभिषेक पाण्डेय

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` May 28, 2007 at 1:15 AM  

युनूस भाई !
नमस्ते !
जितनी लत्ता दीदी की आवाज़ मेरी प्रिय है उसी तरह रफी साहब की आवाज़ की भी मैँ बहोत नडी फेन हूँ
आपकी आवाज़ की तारीफ सुनी हैँ ~~~ उसका लिन्क भी दीजियेगा.
अभी तो, रफी सा'ब की आवाज़ की सुनहली,रुपहली, झिलमिलाती सैरगाह मेँ,
दिल सैर कर रहा है ..जिसके लिये आपका बहोत सारा शुक्रिया अदा करती हूँ
ऐसे ही गीतोँ के खजाने पेश करते रहियेगा,
स स्नेह,
लावण्या

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http://www.google.com/transliterate/indic/

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