महानगरों में रहते बच्चे
महानगरों में रहते बच्चे
अकबकाये से पहुंचते हैं अपने छोटे शहरों में
भयभीत करते हैं उन्हें बुजुर्गों के चेहरों पर बने उम्र के निशान
आतंकित करती है संबंधों के बीच पसरी शुष्कता
उनके शहर भूल चुके हैं पुराना अपनापन
छा गया है कोहरा निर्लिप्तता का
बस आधे घंटे में खत्म हो जाती हैं पिता की बातें
मां खुद कुछ नहीं कहतीं पर बहुत कुछ कहती हैं उनकी आंखें
एक कुशल गृहिणी की औपचारिकता ओढ़ ली है बहनों ने
और भाई भी अब भूल गये हैं शरारतें
मिलने के बाद भी दोस्त लगते हैं इतनी दूर कि उनकी आवाज भी सुनाई नहीं देती
छोटा सुस्त शहर पसर रहा है तेजी से,
सीख चुका है संबंधों की बदमाशियां, हिसाब किताब और चालाकियां
बहुत सारी फुरसत वाला ये शहर अब नहीं मिलता पुरानी शिद्दत से
पहुंचते तो हैं अकबकाये से महानगरों में रहने वाले बच्चे, अपने छोटे शहरों में
पर लौटना पड़ता है उन्हें घबराकर, सिर्फ दो ही दिनों में
17 comments:
वाह ।
शायद यही है जिन्दगी !
घुघूती बासूती
अदाएं यह भी है आपके पास मुझे मालुम थोड़ा देर से पड़ा मगर जब शुरु किया यह भी पढ़ना कुछ सोंचने को बचा ही नहीं बस मूक पाठक हो रमता गया…।
पर यही छोोटे शहरों के बच्चे
जब लौटते है वापिस महानगरों में
पसरीी दूरी उन्हें तड़पाती है
माँ की थपकी की याद सताती है
कानों में गूंजती हैै बहन की मनुहार
पिता की प्यार भरी डांट-औ-फटकार
यादों की इन उभरती आवाज़ो को वो
महानगरों के कोलाहल तलेे दबाते है
तभी शायद अपने फुुरसत के पलों को
सिनेमा हाल,डिस्को और बार में बितााते है।
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
वाह वाह
वाह वाह
महानगरीय जिंदगी जी रहे बच्चों का अच्छा खाका खींचा है आपने इन पंक्तियों में !
बहुत खूब!
आप काम के मनई लगते हैं. वैसे भी टीवी हे अपन को एलर्जी है. रेडियो अच्छा लगता है. आप से जमेगी.
और ये बच्चों वाली बात में आप भी सही हैं और रसोई वाली रत्ना जी भी. जो जहां है वो वहां के अलावा असहज है.
बस आधे घंटे में खत्म हो जाती हैं पिता की बातें
bahut achi kavita hai....
यूनुस भाई .... बहुत सुन्दर और मार्मिक कविता लिखी है आपने ... बहुत बहुत बधाई ..
बहुत ही अच्छी रचना है
बढि़यॉं कविता बधाई
यूनुस भाई, बहुत बहुत हृदयस्पर्शी लिखा है.
bahut khoob yunus khan jee.
Akhir aapne manvaa liya ki bahut acchhe kavi bhi hai aap.
Annapurna
wah-wah yunus ji.....ek kavi ka hi jaadu hai jo aapke kai programs mein sar chadhkar bolta hai...ras bhi gholta hai.......ek samvedansheel vyakti ko dusre samvedansheeel ka salaam......
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