चौदहवीं रात के इस चांद तले--गुलज़ार की एक क्रांतिकारी नज़्म
फिर मुझे भूपेंद्र/भूपिंदर सिंह की आवाज़ का हैंगओवर हो गया है । बरसों पहले जब मध्यप्रदेश में एक छोटे-से रेडियो-स्टेशन पर युववाणी किया करता था तो भी यही हुआ था । वो कॉलेज के दिन थे । एक तो ग़ज़लों का शौक़ । दूसरे ताज़ा ताज़ा रेडियो शुरू किया था । उन दिनों जिस तरह का ज़ेहन था, ग़ज़लें दिल में गूंजती रहती थीं । बेवजह अच्छी लगती थीं । उन दिनों अपन मेहदी हसन की अनसुनी रचनाएं सुनने के लिए रेडियो पाकिस्तान ट्यून करते थे । उर्दू सर्विस सुनते ताकि उर्दू से अच्छा-सा परिचय हो जाये । बाक़ायदा उर्दू की तालीम विज्ञान की पढ़ाई की वजह से मिली नहीं ।
बहरहाल जगजीत-चित्रा के बाद भूपिंदर-मिताली की जोड़ी के कुछ अलबम उन दिनों दिल पर छाये रहे थे । फिर कुछ और गहराई में उतरे तो भूपिंदर के कुछ experimental एलबम मिल गये । उनमें से एक था वो एलबम जिसका एक क्रांतिकारी गीत मैं आपको सुनवा रहा हूं । जैसे ही ये गीत मुझे मिला है मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा । आप समझ नहीं सकते कि कितने अरसे से मैं इस गीत की तलाश में था ।
भूपिंदर की आवाज़ में भावुक रचनाएं बहुत प्यारी लगती हैं । उनकी आवाज़ की नरमी उनकी दौलत है । दूसरी ख़ासियत ये है कि जब ज़रूरत हो तो वो अपनी आवाज़ को बहुत ऊंचे सुरों तक ले जाने की काबलियत रखते हैं । आगे चलकर ऐसे कुछ गाने भी आपको सुनवाये जायेंगे । पर अभी ये गीत सुनिए । जिसे गुलज़ार ने लिखा है । संगीत खुद भूपिंदर का है । इस प्रायोगिक अलबम में कई पश्चिमी-शैलियों को अपनाया गया था ।
ज़रा एक शेर सुन लीजिए--
कहते हैं कि इश्क नाम के गुज़रे हैं एक बुज़ुर्ग
हम लोग भी फ़कीर उसी सिलसिले के हैं ।।
यहां 'इश्क' की जगह गुलज़ार का नाम रख दीजिए, फिर पढि़ये । जी हां हम भी गुलज़ार के शैदाईयों में से हैं । उनके लिखे को कोई भी गाये हम खोज-बीन करके जुटा लेते हैं । सुनते हैं और फिर अपनी बेबाक राय भी देते हैं । शैदाई हैं लेकिन उनकी ऐसी-वैसी रचना को खारिज करने में ज़रा भी चूक नहीं करते । तभी तो सच्चे शैदाई कहलाए ना । इस रचना के आगे गुलज़ार की सारी लेखनी को एक तरफ़ कर सकते हैं हम । जी हां । इसलिए, क्योंकि ये एक साहसी रचना है । हो सकता है कि लिखते वक्त गुलज़ार की कलम भी थरथराई होगी । लेकिन उनके भीतर का हिम्मती / हिमाकती शायर अड़ गया हो, कि जो लिख दिया सो लिख दिया । पहेली को उलझाना ठीक नहीं होगा, चलिए इस रचना के बोल पहले पढ़े जायें । ताकि आपके सामने बात साफ़ हो सके ।
चौदहवीं रात के इस चांद तले
सुरमई रात में साहिल के क़रीब *साहिल-किनारा
दूधिया जोड़े में जो आ जाये तू ।
सुरमई रात में साहिल के क़रीब
दूधिया जोड़े में जो आ जाये तू
ईसा के हाथों से गिर जाए सलीब
क़सम से, क़सम से ।
सुरमई रात में साहिल के क़रीब
दूधिया जोड़े में आ जाये जो तू
बुद्ध का ध्यान भी उखड़ जाए
क़सम से, क़सम से ।
सुरमई रात में साहिल के क़रीब
दूधिया जोड़े में आ जाये जो तू
तुझको बर्दाश्त ना कर पाए ख़ुदा
क़सम से, क़सम से ।
इस गाने में कुछ ऐसी पंक्तियां आपको मिल गयी होंगी जिन पर मज़हबी-मठाधीश हंगामा खड़ा कर सकते थे । लेकिन अच्छा हुआ कि ऐसा कुछ नहीं हो सका । उन्होंने इसे सुना ही नहीं होगा । गिटार के बेस पर इस नज़्म को पिरोया गया है । शानदार कंपोज़ीशन और उससे भी अच्छी और नशीली गायकी । सुनिए--
इस नज़्म से पहले गुलज़ार की लंबी-सी कॉमेन्ट्री है । ज़रा इसे भी सुनिएगा ध्यान से । इसमें उन नज़्मों की बात गुलज़ार कह रहे हैं जो इस अलबम का हिस्सा हैं--जैसे- आदतन तुमने कर दिये वादे, वो जो शायर था, बस एक चुप सी लगी है वग़ैरह । फिर ये नज्म आती है ।
|
बताईये कि भूपिंदर की इस महफिल का सिलसिला कैसा लग रहा है । क्या इसे जारी रखना चाहिए ।
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: गुलज़ार, भूपिंदर-सिंह, भूपेंद्र, चौदहवीं-रात-के-इस-चांद-चले, gulzar, bhupinder-singh, choudhavi-raat-ke-is-chand-tale,
Technorati tags:
गुलज़ार , भूपिंदर सिंह ,चौदहवीं रात के इस चांद तले ,वो जो शायर था , bhupinder singh ,
gulzar ,choudhvi raat ke is chand tale ,wo jo shayar tha
8 comments:
इस गाने में कुछ ऐसी पंक्तियां आपको मिल गयी होंगी जिन पर मज़हबी-मठाधीश हंगामा खड़ा कर सकते थे । लेकिन अच्छा हुआ कि ऐसा कुछ नहीं हो सका । उन्होंने इसे सुना ही नहीं होगा ।
---------------------------------
बड़ा सटीक ऑब्जर्वेशन है। मज़हबी-मठाधीश अपना दिमाग (जितना भी होता है!) पढ़ने-लिखने-सुनने में बर्बाद नहीं करते। पर गलती से उन्हे पता चल जाये तो भुनाने में पक्के उस्ताद होते हैं! :-)
आप माहौल बनायें और मज़ा न आयें .. क्या के रेहे हो म्याँ...
बहुत-बहुत शुक्रिया, इस पेशकश के लिए।
वा भई, जारी क्यूं न रखा जाये ? जरूर जारी रखो !
अरे, इतनी बेहतरीन महफिल जमाई है. जरुर जारी रखिये. शुभकामनायें.
भूपेन्द्र की गायकी अपनी ही तरह की सुन्दर है। गहरी सी आवाज़ और अलग ही तरह के गानें:बेजोड़ हैं।’वो जो शायर था’हो या ’किनारा’ या तो फिर ’फिर भी’भूपेन्द्र की आवाज़ बस सुकून ही सुकून दे जाती है।
लाजवाब. आपसे ऐसी ही उम्मीद रहती है. आभार. हम तो बस सुना किये. कहा कुछ नहीं. अब कह रहे हैं क्योंकि रहा नहीं जा रहा. एक और गीत है-सूरजमुखी तेरा प्यार अनोखा है. फ़िल्म का नाम है सूरजमुखी.
सुनाइए न.
बहुत खूब।
क्या कभी कुछ बुंदेली लोकगीत भी सुनवा सकते है आप अपने खजाने में से?
Post a Comment
if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/