संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Saturday, November 3, 2007

आदतन तुमने कर दिये वादे-फिर भूपिंदर, फिर गुलज़ार




रेडियोवाणी पर गुलज़ार और भूपिंदर की महफिल सजी है पिछले कुछ दिनों से ।

ये महफिल कोई पहले से योजना बनाकर नहीं सजाई गयी । बल्कि सजते सजते सज गयी । मिलते मिलते एक के बाद एक चीज़ें मिलती जा रही हैं । और हम पेश किये जा रहे हैं । एक शेर अर्ज़ है--चूंकि स्‍मृति के आधार पर पेश है इसलिए लफ्ज़ों का हेर-फेर मुमकिन है । अर्ज़ किया है कि--


ये जुनूं भी क्‍या जुनूं ये हाल भी क्‍या हाल है ।
सुनाए जा रहे हैं हम कोई सुनता हो या ना हो ।।

ख़ैर हमें यहां अंदाज़ा है कि कुछ सुधी श्रोता सुन और बुन रहे हैं ।
आज बहुत ही फ़लसफ़ाई और मुहब्‍बती नज़्म पेश है ।

इसकी ख़ासियत है इसका बहुत ही मुख्‍तसर या संक्षिप्‍त होना ।
लेकिन ऐसा सिर्फ अलफ़ाज़ यानी शब्‍दों के मामले में है । असर के मामले में ये बहुत ही गहरी है ।

ज्ञान जी 'मुन्‍नी पोस्‍टों' के इस फैशनेबल समय में हमने भी बहती गंगा में हाथ धोते हुए इस नज़्म को आपके शब्‍दों में कहें तो 'ठेल' दिया है ।

पता नहीं क्‍यूं मुझे ये हमेशा से पॉलिटिकल नज़्म लगती है । अजीब बात है पर ज़रा इसे वादाखिलाफ़ राजनेताओं और ऐतबार करने वाली जनता के संदर्भ में भी सुनिए । फिर देखिए कितनी पॉलिटिकल नज़्म है ।

पर रूकिये । इसे पॉलिटिकिल इंटरप्रिटेशन देने का मतलब ये नहीं कि आप इसके इश्किया मिज़ाज को नज़रअंदाज़ कर दकें । मुझे इस नज़्म की सबसे शानदार पंक्तियां ये लगती हैं --

तेरी राहों में बारहा रूककर
हमने अपना ही इंतज़ार किया ।।

जिन्‍हें जीवन में प्रेम करने का मौक़ा मिला है, वो इस शेर के मर्म को बहुत अच्‍छे से समझ सकते हैं । मुझे लगता है कि हम शायद अपने मेहबूब से प्‍यार नहीं करते । बल्कि खुद से ही करते हैं । इंसानी सेल्फि़शनेस है ये । हम अपने मेहबूब में अपना ही अक्‍स ढूंढते हैं । या फिर जाने अनजाने उसे अपने मुताबिक़ ढाल लेते हैं । यानी किसी और से प्‍यार करना बहुत व्‍यापक अर्थों में खुद से प्‍यार करना ही है । तभी आप ये कह पाते हैं कि तेरी राहों में बारहा रूककर । हमने अपना ही इंतज़ार किया ।

आप इस नज़्म को सुनिए और बुनिए ।
मैं ये चला ।

आदतन तुमने कर दिये वादे
आदतन हमने ऐतबार किया ।

तेरी राहों में बारहा रूककर
हम ने अपना ही इंतज़ार किया ।

अब ना मांगेंगे जिंदगी या रब
ये गुनाह हम ने एक बार किया ।

आदतन तुमने कर दिये वादे ।।


Get this widget Track details eSnips Social DNA



चलते चलते कह दूं कि ये ऐतबार मत रखिएगा कि कल भी भूपिंदर ही सुनने को मिलेंगे ।
आदतन तुमने कर दिये वादे । आदतन हमने ऐतबार किया ।

वैसे मिल भी सकते हैं ।


चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: भूपिंदर-सिंह, भूपेंद्र, गुलज़ार, आदतन-तुमने-कर-दिये-वादे, bhupinder-singh, gulzar, aadatan-tumne-kar-diye-vade,


Technorati tags:
, ,,,,,

2 comments:

annapurna November 3, 2007 at 11:09 AM  

आप भूपेन्द्र और गुलज़ार की ये रचनाएं भी कभी प्रस्तुत कीजिए -

दिल ढूंढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन (मौसम)

बीती न बिताई रैना (परिचय)

एक अकेला इस शहर में (घरौंदा)

Gyan Dutt Pandey November 3, 2007 at 3:09 PM  

मुझे लगता है कि हम शायद अपने मेहबूब से प्‍यार नहीं करते । बल्कि खुद से ही करते हैं ।
-------------------------

यह तो बड़ा प्रोफाउण्ड स्टेटमेण्ट है। मैने कई बार महसूस किया है। पर उस खुद से प्यार में खुद गर्जी नहीं लगती। लगता है महबूब अपने में ही हो।
पर जटिल सी बात है यह। बहुत महीन सोच रखते हो यूनुस।

Post a Comment

if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/

Blog Widget by LinkWithin
.

  © Blogger templates Psi by Ourblogtemplates.com 2008 यूनुस ख़ान द्वारा संशोधित और परिवर्तित

Back to TOP