मो.रफी की पुण्यतिथि पर ‘रेडियोवाणी’ का विशेष आयोजन:दूसरा भाग—जब रफ़ी ने किशोर कुमार के लिए ‘प्लेबैक’ किया ।
मो0 रफी की पुण्यतिथि है आज ।
बहुत मुश्किल में हूं कि आपको क्या सुनाऊं और क्या छोड़ दूं ।
दरअसल रफी साहब इतने वरसेटाईल गायक थे कि उनके गानों में से श्रेष्ठ गीत चुनना भी किसी सज़ा से कम नहीं । बड़ी मुश्किल हो जाती है । जहां तक मुझे याद आता है दो मौक़े ऐसे थे जब रफ़ी साहब ने किशोर कुमार के लिए प्लेबैक किया था । फिलहाल हम ऐसा ही एक गीत सुनेंगे और उसकी बात करेंगे ।
इसका श्रेय जाता है संगीतकार ओ.पी.नैयर को । नैयर साहब दिलदार आदमी थे । एक पंजाबी जिद उनके भीतर समाई हुई थी । जो सोच लेते वही करते । एक किस्सा आपको बताता हूं । गीतकार प्रदीप फिल्म ‘संबंध’ के गीत लिख रहे थे । याद कीजिए मुकेश का गाया गीत—‘चल अकेला’ । लेकिन प्रदीप की सूरत पसंद नहीं थी नैयर साहब को । हालांकि वो उनकी इज्जत बहुत करते थे । उनकी प्रतिभा से आतंकित भी थे । अजीब बात लगती है, पर नैयर तो नैयर थे । उन्होंने प्रदीप को अपने स्टूडियो आने से मना कर दिया था । वो फेमस स्टूडियो के बाहर अपनी गाड़ी में बैठे रहते और गाना किसी आदमी के ज़रिए स्टूडियो में नैयर को पहुंचा देते । और नैयर उसकी धुन बना
लेते । क्या गाने हैं फिल्म ‘संबंध’ के ।
बहरहाल यही नैयर साहब ही थे जिन्होंने रफ़ी की आवाज़ उस फिल्म के लिए जिसमें अभिनय कर रहे थे किशोर कुमार । ये फिल्म ‘रागिनी’ थी । सन 1958 में आई थी । प्रोड्यूसर उनके अपने भाई अशोक कुमार ।
ओ0पी0 नैयर ने खुद अपने इंटरव्यू में बताया था कि जब किशोर कुमार को पता चला कि ये गीत उनकी बजाय रफी साहब से गवाया जायेगा और फिल्माया उन्हीं पर जायेगा तो वो बहुत नाराज़ हुए और फिल्म के प्रोड्यूसर यानी अपनी बड़े भैया अशोक कुमार के पास पहुंचे । दादा मुनि ने किशोर से कहा कि देखो किशोर, संगीत के बारे में सारे फैसले संगीतकार करेगा । अगर नैयर साहब को लगता है कि इस गाने के लिए रफ़ी साहब ठीक रहेंगे तो इस बारे में मैं क्या कर सकता हूं । हारकर किशोर कुमार को राज़ी होना पड़ा । नैयर साहब का कहना था कि ये एक शास्त्रीय रचना है और इसे किशोर ठीक से नहीं गा सकेंगे । रफी साहब की शास्त्रीयता का किशोर से भला क्या मुक़ाबला । जिद्दी नैयर साहब फिल्म संसार के एकमात्र ऐसे संगीतकार रहे जिन्होंने ये करिश्मा किया । तो आईये सुनें फिल्म ‘रागिनी’ का ये गीत—जो अपने आप में पक्का शास्त्रीय गीत है । इस गाने में रफी साहब की गायकी के तो कहने ही क्या । Get this widget | Share | Track details
मन मोरा बावरा, मन मोरा बावरा
निसदिन गाये गीत मिलन के
मन मोरा बावरा ।।
आशाओं के दीप जलाके
बैठी कब से आस लगाके
आया प्रीतम प्यारा
मन मोरा बावरा ।।
मन मंदिर में श्याम बिराजे
छुनछुन मोरी पायल बाजे
कैसा जादू डारा
मन मोरा बावरा ।।
है ना कमाल की बात । फिल्म-संसार का एक ऐतिहासिक गाना बन गया है ये ।
रफ़ी की आवाज़ का सच्चाई, मासूमियत और समर्पण का शिखर है ये गीत ।
रफी साहब को गाते हुए देखने के लिए यहां पर क्लिक करें
रफी साहब के इस गीत को पूरे हुए साठ साल
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9 comments:
http://www.sawf.org/audio/marwa/lat
ये गीत भी शास्त्रीय ढँग से गाया हुआ रफी और लता जी की आवाज़ का एक बेशकीमती नगीना है
सँगीत आदी नारायण राव, स्वर्ण सुँदरी साल: १९५७
http://www.hindilyrix.com/songs/gethttp://hindilyrics.go4bollywood.com( गीत के बोल यहाँ हैँ )--
यूनुस; ब्लॉगरी लगता है पर्सनालिटी में काफी पतिवर्तन ले आयेगी. अब देखो, आपके ब्लॉग के कारण मैं गीत-संगीत के विषय में इतने चाव से पढ़ता हूं - मैने पहले कभी कल्पना भी न की थी.
रफी जी पर लेखों के लिये धन्यवाद.
वाकई जिस शास्त्रीय अंदाज़ में रफी गाते थे किशोर नहीं गा सकते।
मुझे रफी के वो गीत भी पसन्द है जो उन्होनें शम्मी कपूर के लिए गाए है - तीसरी मंज़िल, एन ईवनिंग ईन पेरिस
और खासकर चायना टाउन का ये गीत -
बार - बार देखो हज़ार बार देखो
ये देखने की चीज़ है हमारा दिल
ताली हो ओ ओ ओ ओ
ताली हो ओ ओ ओ ओ
अन्न्पूर्णा
युनूसभाई,
रफीसाबके बारेमें आपने बडेही रोचक तथ्य बताये है. कितने अचरज की बात है कि आज इतने सालोंके बादभी रफी, किशोर, मुकेश जैसे दिग्गज कलाकारोंकी जगह कोई नही ले सका.
रफी साब की चाय के बारेमें पढकर मुझे याद आया कि इस चायका लुत्फ उठाना मेरी मौसीको नसीब हुवा था. वह उन दिनों मुंबई के कामा अस्पतालमें नर्स का जॉब कर रही थी. शायद रफी साबका घर या उनका रिकार्डिंग स्टुडियो अस्पताल के पास था...क्या कारन था पता नही, लेकिन मौसी और उनकी अन्य सहेलिया रफी साबसे मिलने चली गयी. रफीसाबने इन सभी युवतियोंको बडे प्यारसे रिसिव किया था और अपनी खास चाय पिलायी थी.
मेरे बचपन में यह किस्सा मेरी मौसीसे सुनकर मै बडा जेलस हुवा था.
किशोरकुमार के लिये रफी साब ने शायद और एक गानेके लिये प्लेबॅक दिया है. उस गीतमें उन्होने 'ममता' शब्द का उच्चार 'मामता' ऐसा किया है, बस इतना ही मुझे याद आ रहा है. किशोर पियानो बजाते हुए उस गीतको गाते है ऐसा दिखाया गया है.
वाकई हमे तो इतना ज्यादा पता नही था। पर आपके ब्लॉग से रफी साब के बारे मे इतना कुछ जानने को मिला।
अह्हा, आनन्द आ गया. रफी साहब के बारे इतना कुछ नहीं जानते हैं.
" बडा बेदर्द जहाँ है ..यहाँ अब प्यार कहाँ है ..
यहाँ तो माँ की मामता ...धन से तौली जाये ..
धन से तौली जाये ..."
इस गीत मेँ हम्मरे रफी साहब ने ममता को मामता कहा है --
विकास शुक्ला जी ने जिस गीत के बारे मेँ अपनी ऊपरी टिप्पणी मेँ जिक्र किया है--
ये भी अवश्य देखेँ~~~
http://www.youtube. com/watch? v=IjPKfAfLfw4& mode=related& search=
बहुत मजेदार बातें बताईं आपने रफी साहब के बारे में। पहला भाग विशेष रूप से पसंद आया .
The other song in which Rafi has given playback for Kishore(referred to by Mr vikas Shukla )is not the one described by Lavanyam -Antarman .Instead,it is a song from film 'Shararat'- "Azab hai daastan teri ye zindagi;hansaa diyaa rulaa diyaa kabhi".
In fact there are two versions of this song and you can see both of them here on You-Tube :
http://www.youtube.com/watch?v=txsn3Y-9RIE
http://www.youtube.com/watch?v=rOUw8AnSBPo&mode=related&search=
-Dr.Neeraj Tripathi
M.S.
Consultant Surgeon
Allahabad
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