आज बिछड़े हैं तो कल का डर भी नहीं--सर्दीली आवाज़ वाले भूपेंद्र की आवाज़
सन 1980 में एक फिल्म आई थी 'थोड़ी सी बेवफाई' । इस्माईल श्रॉफ ने इसे बनाया था । अपने गानों के लिए ये फिल्म हमेशा याद की जाएगी । गुलज़ार ने इस फिल्म के गीत लिखे थे । आज मैं आपको इस फिल्म का सबसे कम सुना गया गाना सुनवा रहा हूं । भूपेंद्र ने इसे गाया था । इस गाने में एक विकलता है । एक दर्द है । एक हल्की-सी तल्ख़ी भी है । लेखनी के नज़रिए से देखा जाए तो बहुत अजीब-सा गीत है । शायद ख़ैयाम को इसे स्वरबद्ध करने में ख़ासी परेशानी हुई होगी ।
भूपेंद्र की आवाज़ के तो कहने ही क्या । उनकी सर्दीली, ज़ुकामी से आवाज़ मुझे बहुत पसंद है । आगे चलकर रेडियोवाणी पर आपको भूपेंद्र के गाये कुछ और गीत सुनवाए जायेंगे । पर फिलहाल इस गीत का मज़ा लीजिए और बताईये कि कैसा लगा ।
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आज बिछड़े हैं कल का डर भी नहीं
जिंदगी इतनी मुख्तसर भी नहीं ।।
ज़ख़्म दिखते नहीं अभी लेकिन
ठंड होगे तो दर्द निकलेगा
तैश उतरेगा वक्त का जब भी
चेहरा अंदर से ज़र्द निकलेगा
आज बिछड़े हैं ।।
कहने वालों का कुछ नहीं जाता
सहने वाले कमाल करते हैं
कौन ढूंढे जवाब दर्दों के
लोग तो बस सवाल करते हैं
आज बिछड़े हैं ।।
ज़रा इन पंक्तियों पर ध्यान दीजिएगा ख़ासतौर पर--
कहने वालों का कुछ नहीं जाता
सहने वाले कमाल करते हैं
कौन ढूंढे जवाब दर्दों के
लोग तो बस सवाल करते हैं ।
अकेली सूनी उजाड़ जिंदगी का गीत है ये । बीहड़ और खंडहर जिंदगी का गीत ।
क्या आपको नहीं लगता कि हम सबकी जिंदगी में ऐसे लम्हे ज़रूर आते हैं जब जिंदगी बीहड़-सी बन जाती है । नहीं भी आएं तो भी दुनिया में दर्द भरे गानों को पसंद करने वालों का कारवां बहुत बड़ा है । हम भी उसी में शामिल हैं ।
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6 comments:
यूनुस भाई, भूपेन्द्र जी की आवाज़ को सर्दीली, जुकामी; आप जो भी उपमा दे दें,उनकी इसी आवाज़ के तो हम और आप भी दीवाने हैं ही. भूपेन्द्र जी की आवाज़ में आपने ये गाना सुनवाकर मुझे अपने उन दिनों की याद दिला दी जब उनका एक-एक गीत मेरे दिलो दिमाग पर छाता रहता था. उनकी वो भारी सी आवाज़ में जो गहराई है जिसमें तो मैं डूब जाता हूँ. भले ही आपने लिखा कि ये कम सुना हुआ गीत है, पर भूपीजी के हम आप जैसे दीवानें हो तो उनका कोई भी गीत कम सुना कैसे हो सकता है. आशा है उनके और भी गीत जल्द सुन पाऊंगा. धन्यवाद.
मुझे भूपेन्द्र का मौसम फ़िल्म में गाया गीत अच्छा लगता है -
दिल ढूंढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन
आनन्द आ गया, बहुत आभार.
भाई, वो लोकगीतों का क्या हुआ. अब तो जबलपुर हो आये. मिर्जा के यहाँ लोकगीत नहीं मिले क्या??
कमाल के बोल हैं यूनुस..एक एक लफ़्ज दिल में उतर गया। बहुत बहुत आभार इसे यहाँ सुनाने का..
युनूसभाई,
भूपेन्द्रजीने फिल्म ऐतबार के लिये गायी हुवी दो बेहतरीन गजलोंको भला कौन भूल पायेगा ? ’किसी नजरको तेरा इंतजार आजभी है’ और "आवाज दी है आशिक नजर ने या फिर है दिल को गुमां". बप्पी लहरी, गजल और भूपेन्द्र ये समीकरण शायद पहली और आखरी बार बना था. मगर बना था लाजवाब. ये फिल्म हिचकॉककी फिल्म पर आधारित थी और डिंपल तथा डॅनी ने कमालका अभिनय किया था. इस फिल्ममें बप्पीदाने इला अरूणसे मर्दोंवाली पार्टीका (आजकी भाषामें आयटम सॉंग) एक गीत गवाया है. "ओ थानेदार चद्दर नयी बिछा". बडाही मस्तीवाला गीत है वो. खैर बात चल रही थी भूपिंदर की. वाकईमें ये गुणी गायक उपेक्षित रह गया. पंचमदा ने उनसे किनारा फिल्म के गीत गवाये थे. उनमेंसे एक गद्य गीत है "एकही ख्वाब कई बार देखा है मैने" गुलजारके बोल, हेमा और धर्मेन्द्र पर फिल्माया गया गीत. गाते वक्त खुद भूपेन्द्रजी ने गिटार बजाया है. बीच बीच में हेमा मालिनी के बोलने और हसने की आवाज. बडाही मीठा गीत है ये. कभी फुरसतसे सुनवाना हमे.
Bhupenderji ka ek aur Gaana yaad aa raha hai :
"Ek akela is shahar men,raa men aur dopahar men,
aabodana dhundhata hai, aashiyana dhundhata hai"
A very melodious,haunting & resonant voice!
Just superb!
Film: Gharonda (1977)
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