मौसा जी क्या आपके पास हिमेश रेशमिया की सी0डी0 है—मेंहदी हसन के बहाने मन की बहुत सारी बातें और तीन बेमिसाल गीत
प्रिय मित्रो पिछले कुछ दिनों से मैं अपने प्रिय गायक मेंहदी हसन पर लिख रहा हूं और उनकी कुछ रचनाएं खोजकर आपको सुनवा रहा हूं । ये सारी मशहूर रचनाएं हैं और ये तय किया है कि कुछ गुमनाम रचनाएं आगे चलकर आपको सुनवाई जायेंगी ।
हाल के दिनों की बात है । एक दिन मैं मेंहदी हसन की एक ग़ज़ल सुन रहा था, कमरे में मद्धम रोशनी थी, माहौल शायराना था । बाहर पत्नी अपनी बहन से बतिया रही थी । उसका नौ वर्षीय बेटा अचानक मेरे पास आया और बोला मौसा जी ये आप क्या आ आ आ ऊ ऊ सुनते रहते हैं । क्या आपके पास हिमेश रेशमिया के गाने नहीं हैं । क्या आप मुझे ‘आपका सुरूर’ की सी0डी0 दे सकते हैं ।
थोड़ी देर के लिए दिल धक से रह गया । झटका लगा । फिर मैंने सोचा कि जब मैं इसकी उम्र में था तो क्या सुनता था । वही डिस्को जो रेडियो पर आया करता था । उन दिनों हम भोपाल में थे । और बप्पी लहरी, लक्ष्मी-प्यारे, आर0डी0 बर्मन सब पर डिस्को का भूत सवार था । एशियाड के आसपास वाले दिनों की बात है । हरी ओम हरी और जवान जाने मन का ज़माना था । मुझे भी अच्छा लगता था । एक दिन मैं अपनी छुटकू सायकिल को साफ़ करते हुए गा रहा था-‘आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आये तो बाप बन जाये’ । मस्ती थी, मज़ा था । पीछे से एक जोर की चपत पड़ी, क्या गा रहे हो, कुछ सोच समझकर गाया करो । ये मां थीं, जो सोच रही थीं कि जिंदगी में आये और बाप बन जाये वाला मामला क्या है । फिर उन्होंने बताया कि बाप नहीं बन जाये, बात बन जाये, बात बात बात । समझे ।
यानी हम भी इस पीढ़ी से अलग नहीं थे । इस घटना के चार पांच साल बाद मुझे मेंहदी हसन, गुलाम अली, जगजीत सिंह, पंकज उधास और तलत अज़ीज़ को सुनने का शौक़ हुआ था । पर मैं उस बच्चे की मांग पर सोच रहा था कि क्या इस पीढ़ी को मेरी तरह अच्छे गंभीर संगीत को सुनने का शौक़ हो पायेगा । मुझे कुछ समझ नहीं आया । लगा शायद ना मिल पाये । एफ0एम0 सुनने के लिए हेडफोन को कान में ठूंसे ये हिप हॉप पीढ़ी आजकल वो कौन सा इग्लेसियस है उसको तो जानती है पर हिंदी सिनेमा के महान गायकों को नहीं । ना ही ये एफ0एम0चैनल पुराने गानों को कोई ख़ास जगह दे रहे हैं अपने प्राईम टाईम में । पुराने गानों के नाम पर आर0डी0बर्मन के ओरीजनल या रीमिक्स गाने सुनवाये जाते हैं इन पर ।
क्या आपको अफ़सोस नहीं होगा जब मन्ना डे या तलत महमूद या फिर पंकज मलिक को सुनने वालों को बूढ़ा और बेकार माना जाये, वो भी महज़ चौंतीस साल की उम्र में ।
चलिए इस चिंता के परे निकलकर हम खो जायें मेंहदी हसन की ग़ज़लों और गीतों में । आपको बता दूं कि मेंहदी हसन पर केंद्रित श्रृंखला की ये आखिरी कड़ी है । थोड़े दिन बाद मौक़ा मिलने पर हम फिर उनकी बात करेंगे । भाई सागर चंद नाहर की फ़रमाईश के दो गीत इसमें शामिल हैं ।
यहां सुनिए—रंजिश ही सही । शायर हैं अहमद फ़राज़ ।
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
अब तक दिल-ए-ख़ुशफ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शम्में भी बुझाने के लिए आ
एक उम्र से हूं लज़्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम
आए राहत-ए-जां मुझ को स्र्लाने के लिए आ
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ
माना कि मोहब्बत का छिपाना है मोहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ
जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ
शायद आखिरी दो शेर किसी और शायर के हैं । किन्हीं तालिब बाग़पती
के । लेकिन उन्हें इस ग़ज़ल में शामिल कर दिया गया है ।
कुछ कठिन शब्दों के मायने:
दिले खुशफ़हम—खुशफहमी का शिकार दिल
लज़्ज़ते गिरिया—रोने का मज़ा
पिन्दार ऐ मुहब्बत—मुहब्बत का गर्व
जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं ।
जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं मैं तो मरके भी मेरी जान तुझे चाहूंगा ।।
तू मिला है तो ये एहसास हुआ है मुझको
ये मेरी उम्र मुहब्बत के लिए थोड़ी है ।
इक ज़रा सा ग़मे दौरां का भी हक़ है जिस पर
मैं वो सांस तेरे लिए रख छोड़ी है
तुझ पे हो जाऊंगा गुलफाम तुझे चाहूंगा ।।
मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूंगा ।।
अपने जज्बात में नग्मात रचाने के लिए
मैंने धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे
मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूं
मैंने किस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे
प्यार का बनके निगहबान तुझे चाहूंगा ।।
मैं तो मरके भी मेरी जान तुझे चाहूंगा ।।
तेरी हर चाप से जलते हैं ख्यालों में चराग़ जब भी तू आये जगाता हुआ जादू आये तुझको छू लूं तो फिर ऐ जाने तमन्ना मुझ को देर तक अपने बदन से तेरी खुश्बू आये तू बहारों का है उन्वान तुझे चाहूंगा ।।
मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूंगा ।।
तेरी आंखों को जब देखा यहां सुनिए
तेरी आंखों को जब देखा, कंवल कहने को जी चाहा
मैं शायर तो नहीं लेकिन ग़ज़ल कहने को जी चाहा
तेरा नाज़ुक बदन छूकर हवाएं गीत गाती हैं
बहारें देखकर तुझको नया जादू जगाती हैं
तेरे होठों को कलियों का बदन कहने का जी चाहा
मैं शायर तो नहीं लेकिन ग़ज़ल कहने को जी चाहा
इजाज़त हो तो आंखों में छिपा लूं ये हसीन जलवा
तेरे रूख़सार पर कर लें मेरे लब प्यार का सज्दा
तुझे चाहत के ख्वाबों का महल कहने को जी चाहा
मैं शायर तो नहीं लेकिन ग़ज़ल कहने को जी चाहा
तेरी आंखों को जब देखा ।
प्यार भरे दो शर्मीले नैन यहां सुनिए
प्यार भरे दो शर्मीले नैन, जिनसे मिला मेरे दिल को चैन ।
कोई जाने ना, क्यूं मुझसे शर्माएं, कैसा मुझे तड़पाएं ।।
दिल ये काहे गीत मैं तेरे गाऊं, तू ही सुने और मैं गाता जाऊं
तू जो रहे साथ मेरे, दुनिया को ठुकराऊं, तेरा दिल बहलाऊं ।।
प्यार भरे दो शर्मीले नैन ।।
रूप तेरा कलियों को शरमाए, कैसे कोई अपने दिल को बचाए पास है तू फिर भी जलूं, कौन तुझे समझाए, सावन बीता जाए
प्यार भरे दो शर्मीले नैन ।।
डर है मुझे तुझसे बिछड़ ना जाऊं, खो के तुझे मिलने की राह ना पाऊं
ऐसा ना हो जब भी तेरा नाम लबों पे लाऊं, मैं आंसूं बन जाऊं ।।
प्यार भरे दो शर्मीले नैन ।।
इन्हें सुनकर आपने महसूस किया होगा कि मेंहदी हसन की आवाज़ में एक ताज़गी और सादगी है । वो कोई लटका झटका नहीं अपनाते । उनकी आवाज़ की मासूमियत ही हमारे दिल में उतर जाती है । उनकी अदायगी कमाल की है । अच्छी शायरी और अच्छी आवाज़ का अनमोल संगम हैं मेंहदी हसन । इस सबके बावजूद वो छोटा बच्चा मुझसे पूछता है—मौसा जी ये आप क्या आ आ ऊ ऊ सुनते रहते हैं, क्या आपके पास हिमेश रेशमिया के गानों की सी0डी0 नहीं है ।
आप ही बताईये मैं क्या करूं ।
हाल के दिनों की बात है । एक दिन मैं मेंहदी हसन की एक ग़ज़ल सुन रहा था, कमरे में मद्धम रोशनी थी, माहौल शायराना था । बाहर पत्नी अपनी बहन से बतिया रही थी । उसका नौ वर्षीय बेटा अचानक मेरे पास आया और बोला मौसा जी ये आप क्या आ आ आ ऊ ऊ सुनते रहते हैं । क्या आपके पास हिमेश रेशमिया के गाने नहीं हैं । क्या आप मुझे ‘आपका सुरूर’ की सी0डी0 दे सकते हैं ।
थोड़ी देर के लिए दिल धक से रह गया । झटका लगा । फिर मैंने सोचा कि जब मैं इसकी उम्र में था तो क्या सुनता था । वही डिस्को जो रेडियो पर आया करता था । उन दिनों हम भोपाल में थे । और बप्पी लहरी, लक्ष्मी-प्यारे, आर0डी0 बर्मन सब पर डिस्को का भूत सवार था । एशियाड के आसपास वाले दिनों की बात है । हरी ओम हरी और जवान जाने मन का ज़माना था । मुझे भी अच्छा लगता था । एक दिन मैं अपनी छुटकू सायकिल को साफ़ करते हुए गा रहा था-‘आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आये तो बाप बन जाये’ । मस्ती थी, मज़ा था । पीछे से एक जोर की चपत पड़ी, क्या गा रहे हो, कुछ सोच समझकर गाया करो । ये मां थीं, जो सोच रही थीं कि जिंदगी में आये और बाप बन जाये वाला मामला क्या है । फिर उन्होंने बताया कि बाप नहीं बन जाये, बात बन जाये, बात बात बात । समझे ।
यानी हम भी इस पीढ़ी से अलग नहीं थे । इस घटना के चार पांच साल बाद मुझे मेंहदी हसन, गुलाम अली, जगजीत सिंह, पंकज उधास और तलत अज़ीज़ को सुनने का शौक़ हुआ था । पर मैं उस बच्चे की मांग पर सोच रहा था कि क्या इस पीढ़ी को मेरी तरह अच्छे गंभीर संगीत को सुनने का शौक़ हो पायेगा । मुझे कुछ समझ नहीं आया । लगा शायद ना मिल पाये । एफ0एम0 सुनने के लिए हेडफोन को कान में ठूंसे ये हिप हॉप पीढ़ी आजकल वो कौन सा इग्लेसियस है उसको तो जानती है पर हिंदी सिनेमा के महान गायकों को नहीं । ना ही ये एफ0एम0चैनल पुराने गानों को कोई ख़ास जगह दे रहे हैं अपने प्राईम टाईम में । पुराने गानों के नाम पर आर0डी0बर्मन के ओरीजनल या रीमिक्स गाने सुनवाये जाते हैं इन पर ।
क्या आपको अफ़सोस नहीं होगा जब मन्ना डे या तलत महमूद या फिर पंकज मलिक को सुनने वालों को बूढ़ा और बेकार माना जाये, वो भी महज़ चौंतीस साल की उम्र में ।
चलिए इस चिंता के परे निकलकर हम खो जायें मेंहदी हसन की ग़ज़लों और गीतों में । आपको बता दूं कि मेंहदी हसन पर केंद्रित श्रृंखला की ये आखिरी कड़ी है । थोड़े दिन बाद मौक़ा मिलने पर हम फिर उनकी बात करेंगे । भाई सागर चंद नाहर की फ़रमाईश के दो गीत इसमें शामिल हैं ।
यहां सुनिए—रंजिश ही सही । शायर हैं अहमद फ़राज़ ।
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
अब तक दिल-ए-ख़ुशफ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शम्में भी बुझाने के लिए आ
एक उम्र से हूं लज़्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम
आए राहत-ए-जां मुझ को स्र्लाने के लिए आ
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ
माना कि मोहब्बत का छिपाना है मोहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ
जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ
शायद आखिरी दो शेर किसी और शायर के हैं । किन्हीं तालिब बाग़पती
के । लेकिन उन्हें इस ग़ज़ल में शामिल कर दिया गया है ।
कुछ कठिन शब्दों के मायने:
दिले खुशफ़हम—खुशफहमी का शिकार दिल
लज़्ज़ते गिरिया—रोने का मज़ा
पिन्दार ऐ मुहब्बत—मुहब्बत का गर्व
जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं ।
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जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं मैं तो मरके भी मेरी जान तुझे चाहूंगा ।।
तू मिला है तो ये एहसास हुआ है मुझको
ये मेरी उम्र मुहब्बत के लिए थोड़ी है ।
इक ज़रा सा ग़मे दौरां का भी हक़ है जिस पर
मैं वो सांस तेरे लिए रख छोड़ी है
तुझ पे हो जाऊंगा गुलफाम तुझे चाहूंगा ।।
मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूंगा ।।
अपने जज्बात में नग्मात रचाने के लिए
मैंने धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे
मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूं
मैंने किस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे
प्यार का बनके निगहबान तुझे चाहूंगा ।।
मैं तो मरके भी मेरी जान तुझे चाहूंगा ।।
तेरी हर चाप से जलते हैं ख्यालों में चराग़ जब भी तू आये जगाता हुआ जादू आये तुझको छू लूं तो फिर ऐ जाने तमन्ना मुझ को देर तक अपने बदन से तेरी खुश्बू आये तू बहारों का है उन्वान तुझे चाहूंगा ।।
मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूंगा ।।
तेरी आंखों को जब देखा यहां सुनिए
तेरी आंखों को जब देखा, कंवल कहने को जी चाहा
मैं शायर तो नहीं लेकिन ग़ज़ल कहने को जी चाहा
तेरा नाज़ुक बदन छूकर हवाएं गीत गाती हैं
बहारें देखकर तुझको नया जादू जगाती हैं
तेरे होठों को कलियों का बदन कहने का जी चाहा
मैं शायर तो नहीं लेकिन ग़ज़ल कहने को जी चाहा
इजाज़त हो तो आंखों में छिपा लूं ये हसीन जलवा
तेरे रूख़सार पर कर लें मेरे लब प्यार का सज्दा
तुझे चाहत के ख्वाबों का महल कहने को जी चाहा
मैं शायर तो नहीं लेकिन ग़ज़ल कहने को जी चाहा
तेरी आंखों को जब देखा ।
प्यार भरे दो शर्मीले नैन यहां सुनिए
प्यार भरे दो शर्मीले नैन, जिनसे मिला मेरे दिल को चैन ।
कोई जाने ना, क्यूं मुझसे शर्माएं, कैसा मुझे तड़पाएं ।।
दिल ये काहे गीत मैं तेरे गाऊं, तू ही सुने और मैं गाता जाऊं
तू जो रहे साथ मेरे, दुनिया को ठुकराऊं, तेरा दिल बहलाऊं ।।
प्यार भरे दो शर्मीले नैन ।।
रूप तेरा कलियों को शरमाए, कैसे कोई अपने दिल को बचाए पास है तू फिर भी जलूं, कौन तुझे समझाए, सावन बीता जाए
प्यार भरे दो शर्मीले नैन ।।
डर है मुझे तुझसे बिछड़ ना जाऊं, खो के तुझे मिलने की राह ना पाऊं
ऐसा ना हो जब भी तेरा नाम लबों पे लाऊं, मैं आंसूं बन जाऊं ।।
प्यार भरे दो शर्मीले नैन ।।
इन्हें सुनकर आपने महसूस किया होगा कि मेंहदी हसन की आवाज़ में एक ताज़गी और सादगी है । वो कोई लटका झटका नहीं अपनाते । उनकी आवाज़ की मासूमियत ही हमारे दिल में उतर जाती है । उनकी अदायगी कमाल की है । अच्छी शायरी और अच्छी आवाज़ का अनमोल संगम हैं मेंहदी हसन । इस सबके बावजूद वो छोटा बच्चा मुझसे पूछता है—मौसा जी ये आप क्या आ आ ऊ ऊ सुनते रहते हैं, क्या आपके पास हिमेश रेशमिया के गानों की सी0डी0 नहीं है ।
आप ही बताईये मैं क्या करूं ।
12 comments:
युनुस भाई आपकी लगभग सभी पोस्ट पढ़ता हूँ पर टिप्पनी करने से बचता हूँ ... कुछ पूछ्ने/कहने को हो तो टिप्पणी करें भी ..आप खुद ही इतनी अच्छी जानकारी दे देते हैं कि कुछ भी पूछ्ने की गुंजाइश ही नहीं रहती .. मॆंहदी साहब और गुलाम अली मेरे भी पसंदीदा कलाकारों में हैं..
युनुस भाई आपकी लगभग सभी पोस्ट पढ़ता हूँ पर टिप्पनी करने से बचता हूँ ... कुछ पूछ्ने/कहने को हो तो टिप्पणी करें भी ..आप खुद ही इतनी अच्छी जानकारी दे देते हैं कि कुछ भी पूछ्ने की गुंजाइश ही नहीं रहती .. मॆंहदी साहब और गुलाम अली मेरे भी पसंदीदा कलाकारों में हैं..
यूनुस साहब, क्या ख़ूब पोस्ट लिखी है, और मेरे मनपसन्द गुलूकार की गीतों गज़लों से भरी हुई। शुक्रिया। बस एक शिकायत है - कई लोग ग़लती से महदी हसन साहब को "मेंहदी हसन" कहते हैं; आप से यह उम्मीद नहीं थी।
रमण जी, मुझे लग रहा था कि कोई ना कोई ये बात कहेगा । दरअसल पता नहीं क्यों उन्हें मेंहदी हसन लिखा और महदी हसन पढ़ा जाता है । अंग्रेज़ी में इस स्पेलिंग में एन नहीं आना चाहिये । मैं स्वयं महदी हसन बोलता हूं । पर जहां भी लिखा देगा मेंहदी लिखा देखा इसलिये मैंने भी यही लिख दिया । पाठकों से अनुरोध है कि वो इसे महदी हसन पढ़ें । अच्छा हुआ इस टिप्पणी से कई लोगों की ग़लतियां सुधर जाएंगी । धन्यवाद
काकेश जी के कथन से सहमत हूं।
परसो रेडियो पर " मंथन" सुन रहा था, शायद आप ही प्रस्तुत करते हैं।
अच्छा लगा अंदाज़ प्रस्तुति का।
यूनुस; आप बहुत ही मधुर व्यक्तित्व होंगे - ऐसा मुझे लगता है. मैं आपकी पोस्ट देखता हूं - सुनता नहीं क्योंकि मेरे अंदर संगीत की समझ नहीं है. पर जो गज़ल/कविता लिखी रहती हैं उनके भाव ग्रहण करता हूं. उर्दू न जानने से भी कठिनाई होती है. कुल मिला कर आपके ब्लॉग पर आ कर अपनी सीमाओं का भान बहुत होता है.
इस पोस्ट की दो पंक्तियां जो गुनगुनाऊंगा, वे हैं -
जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ
ज्ञान जी, आपके नाम से मुझे इलाहाबाद के ही ज्ञानरंजन की याद आ जाती है । जबलपुर में रहता था तो अकसर उनसे मिलता था । बहरहाल, टिप्पणी के लिए
शुक्रिया । इतना ही कहूंगा कि आप इन गीतों को सुनिए, संगीत बिना किसी समझ के रूह में उतरता है । जहां तक उर्दू की समझ की बात है तो ज्यादातर मुश्किल उर्दू अलफाज़ का हिंदी अर्थ देने की कोशिश करता हूं । और हां इंसान की सीमाएं मुल्क सरहदों जैसी नहीं बल्कि लचीली होती हैं । हम उन्हें घटा बढ़ा सकते हैं ।
महदी हसन के नाम के बारे में मैंने भी ध्यान नही दिया था, शुक्रिया रमण जी ।
यूनुस इस पोस्ट के बारे में आपसे लंबी बहस हो सकती है और कभी आपसे मुलाकात होगी तो जरूर करूँगा। खासकर इस बात पर कि क्यूँ आज के युवाओं को विविध भारती से ज्यादा नए FM चैनलों से प्रीति है। इसमें कुछ हद तक विविध भारती की जिम्मेदारी बनती है। क्यूं बनती है वो फिर कभी :)
वैसे आपको बता दूँ कि १९९३ में नौकरी कि पहली कमाई से मेंने FM सहित एक Music System खरीदा था। कैसेट सुनने से ज्यादा दिल्ली से प्रसारित होने वाला टाइम्स FM को सुनने को उत्साह था। सुबह उठता तो शुरुआत पुराने गीतों और भजन से होती थी और रात गजलों से। दिन का समय पाश्चात्य और नई फिल्मों के गीतों से निकलता था। एक से एक बढ़िया प्रस्तुतकर्ता होते थे। मतलब एक संगीत प्रेमी के लिए पूरा पैकेज।
आज के FM चैनल मैं एक छोटे शहर में रहने की वजह से सुन नहीं पाता । जैसा कि आपने कहा कि जरूर वे भी व्यवसायीकरण की आँधी से प्रभवित हुए होंगे। रही युवाओं की बात तो कम से कम अपने से दस पन्द्रह वर्ष छोटे लोगों जिनमें संगीत की रुचि है को मैं बहुत जागरुक पाता हूँ अच्छे संगीत के प्रति।
इसलिए नई पीढ़ी के प्रति आपसे कुछ ज्यादा आशान्वित हूँ।
शानदार महफिल !
महदी हसन और मेहदी हसन में कोई फर्क नहीं है . दोनों तरह लिखा जा सकता है . बस यह अतिरिक्त बिन्दी/अनुस्वार नही आनी चाहिए जो अक्सर आती है . और गुड़ गोबर कर देती है .
wakai bahut hi umda gazal gayak hain mehndi hasan sahab.cycle ke puncture banane se lekar gazal ki duniya ke dhumketu banne tak ka unka safar hamare liye ek kiwdanti ban chuka hai............
एक अरसा हो गया हिमेश को सुने हुये, अब उनके बारे में कोई खबर ही नहीं आती।
यकीन मानिये अभी अभी यूट्यूब पर झलक दिखला जा सुना, अच्छा लगा। संगीत इतना विस्तॄत है कि इसमें हिमेश के लिय भी जगह है। है कि नहीं?
yunus jee...mujhe ek geet behad pasand hai..
Ek husn ki devi se mujhe pyaar hua tha..
ye geet pakistani film ka hai...video behad bakwaas hai...per is geet ke bol aur gayaki behad umda hai...
agar suna ho to zaroor bataiye is geet ke bare mein..
aapka subhchintak
jeeban mishra
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