कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता-फिर फिर भूपिंदर
ये ठीक है कि इस वक्त आप पर दीपावली की तैयारियों का खुमार चढ़ा होगा लेकिन हम क्या करें । भई हमारे ऊपर तो पिछले कई दिनों से भूपेंद्र का हैंगओवर है । ये ऐसा हैंग हो गया है कि ओवर हो ही नहीं रहा है । और सच कहें तो हम चाहते भी नहीं कि ये हैंग.......ओवर हो जाए । क्योंकि भूपिंदर की आवाज़ हमें अकेलेपन की साथी लगती है । ब्ल्यू मूड की इससे बेहतर और मुकम्मल आवाज़ शायद दूसरी मिलनी मुश्किल है ।
मुकम्मल....इसी शब्द का हाथ पकड़कर हम आज आपको निदा फ़ाज़ली की एक ग़ज़ल सुनवा रहे हैं । इस ग़ज़ल का मिसरा एक मुहावरे की तरह इस्तेमाल किया जाता है । इंजीनियरिंग एन्ट्रेन्स में कामयाबी नहीं मिली, सिर झटक कर हम इस मिसरे को कहते हुए खुद को भुलाने की कोशिश करते हैं । जब जब जो चाहा वो नहीं मिला तो ये ग़ज़ल बहुत साथ देती है । ये सच है कि फेस्टिवल सीज़न में इस ग़ज़ल को सुनवाना थोड़ा सा मिसटाईम होगा, लेकिन दिल है कि मानता नहीं ।
आईये शोर भरे इस मौसम में अपने मन के भीतर की ख़ामोश दुनिया से मुलाक़ात करें । और पढ़ें सुनें ये ग़ज़ल ।
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कभी ज़मीं तो कभी आसमां नहीं मिलता ।।
जिसे भी देखिए वो अपने आप में गुम है
ज़बां मिली है मगर हमज़बां नहीं मिलता ।।
बुझा सका है भला कौन वक्त के शोले
ये ऐसी आग है जिसमें धुंआ नहीं मिलता ।।
तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो
जहां उम्मीद हो इसकी वहां नहीं मिलता ।।
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कल भूपिंदर वाला सिलसिला नहीं होगा । बल्कि कल हम आपको दो ख़ास चीज़ें सुनवायेंगे । इंतज़ार कीजिए ।
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6 comments:
yunusbhai,
without broadcasting the Aitabar film's gazal (kisi nazar ko tera) how can you conclude this series of Bhupendra?
yunus ji diwaali ki tayaariyon me aapney ye khuubsurat gazal sunvaa kar diwaali me aur bhi char chaand laga diye hain....bahut bahut shukriyaa..aur ek guzaarish hai bhupendra ki ek gazal hai...."KAASH EK BAAR AISA HO JAAYE ,TUM SAREY RAAH MUJHKO MIL JAAO" agar sunvaa sakey to meharbaani
आह. बहुत कुछ कहना है .... इस लिए चुप हूँ. बस ......... इस एहसास के लिए शुक्रिया.
बहुत पसन्द आते हैं इस गज़ल के शब्द। यह अहसास दिलाती है कि अपनी कमियों के बावजूद जिन्दगी और जहान में कुछ ऐसा है जो हमें आगे चलाये जाता है।
अच्छा लगा जो इसकी याद कराई।
बेहतरीन मेरी मनपसंद प्रस्तुति. कैसे जान लेते हैं कि मैं क्या सुनना चाहता हूँ?? :) आभार.
ग़ज़ल का पहला मिसरा इत्तफ़ाकन भूपिंदर की ज़ाती ज़िन्दगी को भी बयान करता है....देखिये कैसा सुरीला गुलूकार...जिसे मदनमोहन जी ने खोजा...तराशा...उसे अपना ड्यू नहीं मिला. मेरी नज़रों में भूपिंदर मेरी अनसंग हीरोज़ लिस्ट शुमार किये जा सकते हैं.लेकिन एक मामले में वे सौभाग्याशाली हैं ...उनकी आवाज़ का कल्चर ऐसा है कि उनसे कोई संगीतकार कोई बुरी चीज़ गवा नहीं सकता...मैं उनसे तीन चार बार मिला हूँ जितनी मुलायम आवाज़ पाई है भूपिंदर ने उतनी ही तबियत और तासीर.
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