कुछ ऐसे भी पल होते हैं, जब रात के गहरे सन्नाटे गहरी नींद में सोते हैं : एक मई मन्ना डे के जन्मदिन पर विशेष
आज हम जिस गीत की सबसे पहले चर्चा कर रहे हैं उसके बोल हैं--
कुछ ऐसे भी पल होते हैं
यहां सुनिए
ये गीत योगेश ने लिखा है, वही योगेश, जिन्होंने फिल्म ‘आनंद’ का गीत जिंदगी कैसी तू पहेली हाय’ लिखा था । उस गीत में योगेश की इन पंक्तियों पर गौर फरमाईये—कभी देखो मन नहीं माने, पीछे पीछे सपनों के धागे, चला सपनों का राही सपनों से आगे कहां’
उफ़ क्या कशिश है योगेश जी की कलम में । क्या आपको यक़ीन होगा कि इतना शानदार गीतकार आज गोरेगांव मुंबई में एक लगभग गुमनाम जिंदगी जी रहा है । मुझे योगेश से कई बार मिलने और उनसे लंबी लंबी बातचीत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ
है । पहली बार की ही मुलाक़ात में मैंने उनसे पूछा था कि योगेश जी आप कैसे लिख लेते हैं इतने नरमो नाज़ुक बोल । कहने लगे—जब कलम चलती है ना तो होश नहीं रहता । बस जो दिल में होता है कागज पर उतर आता है । लिखने का मेरा कोई साइंस नहीं है, बस जो दिल में आया लिख दिया । आज आप लोग इतना पसंद करते हैं तो मुझे हैरत होती है कि ये सब मैंने ही लिखा है या किसी और ने मुझसे लिखवा लिया
है । बहरहाल योगेश के इस गीत की पंक्तियों को पढिये ज़रा ---
कुछ ऐसे भी पल होते हैं, जब रात के गहरे सन्नाटे गहरी सी नींद में सोते हैं
तब मुस्कानों के दर्द यहां, बच्चों की तरह से सोते हैं ।
कुछ ऐसे भी पल होते हैं ।।
जब छा जाती है खामोशी, तब शोर मचाती है धड़कन
इक मेला सा लगता है, बिखरा बिखरा सा ये सूनापन
यादों के साये ऐसे में करने लगते हैं आलिंगन
चुभने लगता है सांसों में बिखरे सपनों का हर दरपन
फिर भी जागे ये दो नैना सपनों का बोझ संजोते हैं
कुछ ऐसे भी पल होते हैं ।।
यूं ही हर रात पिघलती है, यूं ही हर दिन ढल जाता है
हर सांझ यूं ही ये बिरही मन, पतझर में फूल खिलता है
आखिर ये कैसा बंधन है, आखिर ये कैसा नाता है
जो जुड़ तो गया अनजाने में पर टूट नहीं अब पाता है
और हम उलझे इस बंधन में दिन रात ये नैन भिगोते हैं ।।
कुछ ऐसे भी पल होते हैं ।।
सबसे पहली बात तो ये कि इतना ललित गीत क्या हिंदी फिल्मों में कोई और है । चलिए अलबमों की दुनिया में ही ढूंढ निकालिए । नहीं मिलेगा । यकीन मानिए बिल्कुल नहीं मिलेगा । क्योंकि पहले कभी और ना ही बाद में कभी ऐसा लिखा गया । इसीलिए तो मन्ना डे के जन्मदिन पर मैं इस गीत को खोजकर आपके लिए लाया हूं ।
जरा इसके दोनों अंतरों को पढिये । खासकर दूसरा अंतरा, हर सांझ यूं ही ये बिरही मन, पतझर में फूल खिलाता है, आखिर ये कैसा बंधन है, आखिर ये कैसा नाता है ।
कितनी अबूझ और कितनी गहरी बात योगेश ने लिखी और मन्ना डे को आज तीस चालीस साल बाद ही सही, क्यों ना हम बधाई तो दे दें । बधाई तो योगेश जी को भी दी ही जानी चाहिये । क्या आप लोगों में कोई योगेश जी का क़द्रदान है । अगर हां तो कृपया अपनी बात कहिए । ऐसा क्यूं है कि एक समय के बाद हमारे समय के सबसे अच्छे लेखक यूं गुमनाम बना दिये जाते हैं । क्या किसी के पास कोई जवाब है ।
आज का दूसरा गीत है---नथली से टूटा मोती रे ।।
ये गीत भी मधुकर राजस्थानी का है । और इसे आप रीयल प्लेयर पर यहां सुन सकते हैं । इस गाने को सुनते हुए ज़रा इसके बोलों को भी पढिये ---
कुल मिलाकर चार मि0 बाईस सेकेन्ड का गीत है ये । बेहद भारतीय गीत है । अगर आप इसे ध्यान से सुनें और पढ़ें तो पायेंगे कि एक बेहद निषिद्ध विषय पर मधुकर राजस्थानी ने ये गीत लिखा है, जिसमें अश्लील हो जाने की पूरी संभावनाएं थीं । मगर ऐसा नहीं हुआ बल्कि जिस अंदाज़ में इसे लिखा गया है उससे गीत का लालित्य कुछ और बढ़ ही गया है । पिछले कुछ लेखों में मैंने आपको मधुकर राजस्थानी के गीतों से अवगत कराया है । इन सबको क्रम से पढ़ने के बाद आप जान चुके होंगे कि सादगी, सरलता और शिष्टता इन गीतों की सबसे बड़ी विशेषता है । गीत सितार की तान से शुरू होता है । फिर मन्ना दा की नर्म आवाज़ में ‘सजनी सजनी’ की पुकार । और फिर ‘नथली से टूटा मोती रे’ । इसी गीत में मन्ना दा जब गाते हैं ‘रूप की अगिया अंग में लागी, कैसे छिपाए लाज अभागी’ तो लाज शब्द पर मन्ना डे अपनी आवाज़ में जिस तरह का भाव लाते हैं वो अनमोल है, नये गायक अगर ये भाव व्यक्त करना सीख जाएं तो हमारा संगीत बहुत कुछ सुधर जाए ।
बहरहाल मित्रो, इन गीतों को सुनिए और मन्ना डे के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कीजिए ।





























