संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Saturday, April 28, 2007

मेरी भी इक मुमताज थी


मेरी भी इक मुमताज थी ।
मैं कोई शाहजहां नहीं, जो मुमताज की तलाश में बेक़रार हो, ये मन्‍ना डे का गाया और मधुकर राजस्‍थानी का लिखा एक और नग्‍मा है, जिसे मैं आपके लिए लेकर आया हूं ।
पहले ज़रा इसके बोल पढिये ।
ये भी अजीबोग़रीब गीत है—पहले रूबाईनुमा चार पंक्तियां आती हैं, जिन्‍हें धीमी रफ्तार में गाया गया है । इसके बाद आता है अंतरा । जो काफी तेज़ गति में गाया गया है । लेकिन मन्‍ना दा की आवाज़ के कोमल स्‍पर्श ने इन पंक्तियों को जिंदा कर दिया है ।
मेरी इल्तिजा है कि इसे सुनिए और साथ में पढिये ।
यहां सुनिए ।


सुनसान जमना का किनारा
प्‍यार का अंतिम सहारा
चांदनी का कफन ओढ़े
सो रहा किस्‍मत का मारा
किससे पूछूं मैं भला अब
देखा कहीं मुमताज को
मेरी भी इक मुमताज थी
मेरी भी इक मुमताज थी

पत्‍थरों की ओट में महकी हुई तन्‍हाईयां कुछ नहीं कहतीं
डालियों की झूलती और डोलती परछाईयां कुछ नहीं कहतीं
खेलती साहिल पे लहरें ले रही अंगड़ाईयां कुछ नहीं कहतीं
ये जान (बूझ) कर चुपचाप हैं मेरे मुकद्दर की तरह
हमने तो उनके सामने खोला है दिल के राग को
किससे पूछूं मैं भला अब देखा कहीं मुमताज को
मेरी भी इक मुमताज थी

ये जमीं की गोद में कदमों का धुंधला सा निशां, खामोश है
ये रूपहला आसमां, मद्धम सितारों का जहां, खामोश है
ये खूबसूरत रात का खिलता हुआ गुलशन जवां, खामोश है
रंगीनियां मदहोश हैं अपनी खुशी में डूबकर
किस तरह इनको सुनाऊं अब मेरी आवाज़ को
किससे पूछूं मैं भला देखा कहीं मुमताज को
मेरी भी इक मुमताज थी
मेरी भी इक मुमताज थी
मेरी भी इक मुमताज थी ।।।।

मेरा मानना ये है कि ये गीत नहीं है बल्कि एक नाटक या बैले जैसा है । यूं लगता है जैसे कोई दीवाना अपनी मेहबूबा की तलाश में शाहजहां बनकर भटक रहा है । खोज रहा है अपनी मुमताज को । यमुना का किनारा हिलोरें ले रहा है । रात खामोश है । और बाग़ में हवा की हलचल है । रेत पर क़दमों के निशां हैं । मगर कहीं मुमताज का कोई सुराग़ नहीं मिल रहा है । अपने मेहबूब से अलग होने का दर्द है शाहजहां के सीने में, जो उबल रहा है । और वो बेक़रारी से ये गीत गा रहा है ।

कहिए है ना बैले ।
अच्‍छा अब जरा गौर से पढिये ।
ये गीत है ही नहीं । मिनिमम तुकबंदियां हैं इसमें ।
यूं लगता है किसी पारसी ड्रामे के संवाद हैं ।
पर जज्‍बात के मामले में ये गाना बहुत गहरा है ।
मुझे लगता है कि आज के गीतकारों को इस तरह की रचनाओं से सबक़ लेना चाहिये ।
ये प्रयोगधर्मिता की एक और मिसाल है ।
बैंगलोर के शिरीष कोयल ने अभी अभी बताया कि मंगलवार एक मई को मन्‍ना दा की सालगिरह है । इस साल वे पूरे अठासी साल के हो जायेंगे । आईये हम चिट्ठाजगत पर एक साथ मन्‍ना दा को सालगिरह की मुबारकबाद दें । आप सब लिखें । मै भी लिखूंगा ।
हम शिरीष कोयल से अनुरोध करेंगे कि वो हमारी ओर से बैंगलोर में रह रहे मन्‍ना दा को बधाईयां और इन चिट्ठों की खबर पहुंचा दें । कहिए सही कहा ना ।

13 comments:

Anonymous,  April 28, 2007 at 1:31 PM  

Hydarabad se Annapurna

Manna da, Tum (Aap) jiyo hazaron saal aur saal ke din ho pachaas hazaar.

रंजू भाटिया April 28, 2007 at 1:41 PM  

janam din ki shubkaamnaye ..manna dey ko...:)

Pramendra Pratap Singh April 28, 2007 at 1:43 PM  

मन्‍ना डे जी को जन्‍मदिन की हार्दिक्‍ शुभकामनाऐं

Anonymous,  April 28, 2007 at 2:42 PM  

मन्ना दा कि आवाज बेजोड़ है। कोई भी गीत हो, शास्त्रीय अथवा लाइट क्लासिकल, कामेडी अथवा गमगीन, प्रेम प्यार का हो या विरह का, हर गीत को उन्होने इतनी खूबसूरती से गाया है कि लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनते रह जाते है।

संगीत के इस शहन्शाह को जन्मदिन पर बहुत बहुत बधाइया।

शैलेश भारतवासी April 28, 2007 at 4:40 PM  

यूनुस भाई,

हम भी हिन्द युग्म पर मन्ना डे के लिए शुभकामना-चित्र लगायेंगे। आपने सूचना देकर अच्छा किया।

Anup Manchalwar April 28, 2007 at 6:09 PM  

Nice to see a blog from you Younis Bhai. What a beautiful voice you have. Love the way you present the program. - Anup Manchalwar, Nagpur manchalwar@gmail.com

Anonymous,  April 28, 2007 at 7:22 PM  

युनुस मन्ना दा की आवाज के तो हम कायल हैं, क्या खूब गाते हैं। मदहोश करने वाली मधुशाला क्या जबरदस्त गायी है। जिस तरह का गीत आपने लिखा है, वैसे गीतों को गाने में इनका कोई जवाब नही।

अभय तिवारी April 28, 2007 at 8:12 PM  

बढ़िया काम कर रहे हो युनुस..लगे रहो..

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` April 28, 2007 at 9:07 PM  

मन्ना बाबु को उनके ८० वर्ष के जन्म दिवस पर ढेरोँ बधाईयाँ !!
स -स्नेह
लावण्या
& some Info : on AIR

" Prasaargeet" from Aakashvani. AIR --

http://anilbiswas.com/ RE : NAACH RE MAYURA

The Innaugeral Song for Vividh -Bharti

( AIR ) Aakashwani

Here is a little background about the song, translated from Anil Biswas'biography, written by Sharad Dutt.

Incidentally, Sunil Dutt recites thefirst two verses from "naach re mayuuraa" in Sujata (1959).

While Dr. Keskar was the minister of Information and Broadcasting, a new policy was adopted regarding the air-play of film songs. Keskar did not want Aakashvani to broadcast film songs. What was one to do ?

It was decided that "saahityik" songs written by Bhagwaticharan Verma (in Delhi) and Narendra Sharma (in Mumbai) be set to music, to take the place of film songs.

At that time Narendra Sharma had Anil Biswas compose the music fora few of his songs. These were:

( 1 ) chaumukh divaraa baar dharuu.Ngii chaubaare par aaj
jaane kaun dishaa se aa_e mere raajakumaar
( Sung by : Meena Kapoor)

( 2 ) rakh diya nabh shuunya me.n kisane tumhe.n mere hR^iday ( sung by : Meena Kapoor)

( 3 ) naach re mayuuraa ( sung by : Manna De)

( 4 ) yug kii sa.ndhyaa kriShhak-vadhu sii kisakaa pa.nth nihaar rahii hai ( sung by : Lata Mangeshker )

All Songs were composed by Sri AnilBiswas.

These songs were relayed in the course of the one and a half hour program"Prasaargeet" from Aakashvani.

It is a matter of regret that the disk of Lata Mangeshkar's last recorded song (for Anil Biswas) "yug kii sa.ndhyaa ..." was ruined after the very first play of the song; hence, a recording is not available today.

At the inauguration of Vividh Bharati service the very first song to be played was none other than "naach re mayuuraa".

Divine India April 28, 2007 at 10:37 PM  

उपर मैड्म ने काफी कुछ कह दिया है…तो ज्यादा नही कहूँगा…मन्ना डे भारतीय संगीतकारों की महान विभूतियों मेंसे एक थे…जन्मदिन की ढेरों बधाइयाँ…
लिखते रहेण युनूस भाई जानकारी महत्वपूर्ण है…।

Manish Kumar April 28, 2007 at 11:44 PM  

कई बार बिना तुकबंदियों के भी गीत अपने विचारों के काव्यात्मक प्रवाह से वही असर दे जाते हैं । आपने जिस गाने का जिक्र किया है उसके बोल पढ़ कर ही आनंद आ जाता है । आजकल ऍसे गीत एकदम नहीं बनते ऐसा तो नहीं है पर उनकी संख्या काफी कम हैं । फिलहाल नये गानों में फिर मिलेंगे ऍसा ही एक गीत याद पड़ रहा है जिस में तुकबंदियाँ काफी कम थीं...

कुछ खुशबुएँ यादों के जंगल से बह उठीं
कुछ खिड़कियाँ लमहों के दस्तक पर खुल गईं
कुछ गीत पुराने , रखे थे, सिराहने
कुछ सुर कहीं खोए थे , बंदिश मिल गई....


आज घर पर था और शकील के साथ साथ आपकी आवाज से भी रूबरू हुआ । चुन- चुन के गीत और गजलें सुनवाई आपने ।:)

Yunus Khan April 29, 2007 at 10:43 PM  

अन्‍नपूर्णा जी, रंजू, महाशक्ति, जीतू सबको धन्‍यवाद ।
शैलेश हिंद युग्‍म पर मन्‍ना डे के लिए अवश्‍य बधाईयां लिखिएगा । वो काफी ऊंचे दर्जे के गायक हैं । अनूप मंचेवार धन्‍यवाद मेरी आवाज़ की प्रशंसा के लिए । मैं इसे ऊपर वाले की कृपा मानता हूं । तरूण और अभय तिवारी आपको भी धन्‍यवाद । लावण्‍या जी आपने इतनी महत्‍त्‍वपूर्ण जानकारी दी, कैसे धन्‍यवाद कहूं । डिवाइन इंडिया को भी धन्‍यवाद । और मनीष जी जीने के इशारे मिल गये, मेरा भी पसंदीदा गीत है । रेडियोवाणी की संगतकारी के लिए धन्‍यवाद

पंकज May 2, 2007 at 8:06 PM  

थोड़ी देर से ही सही, मेरी तरफ से भी मन्ना दे जि को जन्मदिन की ढेरों बधाइयाँ।

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if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/

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