संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।
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Monday, April 7, 2008

एक कली दो पत्तियां--भूपेन हज़ारिका का एक लोकप्रिय गीत ।

रेडियोवाणी पर हम भूपेन हज़ारिका के गानों की एक श्रृंखला चला रहे हैं । bhuभूपेन दा के गानों में असम की लोक-संस्‍कृति भी नज़र आती है । वो जब गाते हैं तो केवल गाने के लिए नहीं गाते बल्कि कभी कभी जनता को जगाने के लिए भी गाते हैं । यही वजह है कि पूरे उत्‍तर भारत में हिंदी के किसी गायक के ऐसे प्रशंसक नहीं होंगे जैसे भूपेन दा के कार्यक्रमों में उत्‍तर-पूर्व के राज्‍यों में जमा होते हैं ।

आज जो गीत मैं आपको सुनवा रहा हूं, इसे बहुत बहुत पहले दूरदर्शन के ज़माने में किसी कार्यक्रम में सुना था । फिर ग़ायब हो गया ये गीत । और अब पुन: मिला है । आपकी नज़र ये गीत ।

इस गाने की कमेन्‍ट्री में गुलज़ार कहते हैं---एक तो ये है कि भूपेन दा के गीतों में वहां की तस्‍वीर नज़र आती है, एक पूरा लैन्‍डस्‍कैप है और उसमें एक अकेला नुमाइंदा मज़दूर । क्‍या ऐसा नहीं लगता कि भूपेन हज़ारिका सिर्फ कविता नहीं गा रहे, आसाम का कल्‍चर गुनगुना रहे हों ।

एक कली दो पत्तियों नाज़ुक नाजु़क उंगलियां

तोड़ रही हैं कौन ये एक कली दो पत्तियां

रतनपुर बागीचे में ।

फूल की खिलखिलाती, सावन बरसाती,

हंस रही कौन ये मोगरे जगाती

एक कली दो पत्तियां ।।

जुगनू और लक्ष्‍मी की लगन ऐसे आई

डाली डाली झूमी लेके अंगड़ाई

एक कली दो पत्तियां ।।

जुगनू और लक्ष्‍मी की प्रीत रंग लाई

नन्‍हें से एक मुन्‍ने से चुप्‍पी जगमगाई ।।

एक कली दो पत्तियां ।।

एक कली दो पत्तियां, खिलने भी ना पाई थीं

तोड़ने उस बागीचे में दानव आया रे

दानव आया रे ।

दानव की परछाईं में कांप रही थीं पत्तियां

बुझने लगी मासूम कली दानव की परछाईं में

साये से देवदारों में तांबरन सी बांहों के

ढोल मादल बजने लगे, मादल ऐसे बाजे रे

लाखों मिलके नाचे रे ।

आया एक तूफान नया, दानव डर के भाग गया

मादल ऐसे गरजा रे, दानव डर के भागा रे ।

दानव डर के भागा

एक कली दो पत्तियां ।।

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Saturday, April 5, 2008

भूपेन हज़ारिका के गीत तीसरा भाग--मैं हूं एक यायावर--अरे यायावार रहेगा याद--आवारा कहीं का ।

रेडियोवाणी पर हम भूपेन हजारिका के गीत एक श्रृंखला के रूप में सुनवा रहे हैं । यूं तो ये सिलसिला रचनाकार और रेडियोवाणी की जुगलबंदी के रूप में शुरू हुआ था । जब रवि रतलामी ने रचनाकार पर भूपेन हज़ारिका की जीवनी का हिंदी अनुवाद छापना शुरू किया था । चूंकि अब ये जीवनी पूरी हो चुकी है इसलिए जुगलबंदी अब वास्‍तविक नहीं रही । लेकिन एक तरह से जुगलबंदी तो है ही । क्‍योंकि यहां रेडियोवाणी पर आप भूपेन दा के गाने सुन सकते हैं और रचनाकार पर जाकर भूपेन हज़ारिका की जिंदगी के अनछुए पहलुओं से परिचित हो सकते हैं ।

आज मैं जो गीत आपको सुनवा रहा हूं वो मुझे बेहद पसंद रहा है ।
लंबे समय से ये गीत मेरे मन की वादियों में गूंज रहा है । मैंने पहले भी अर्ज किया कि मुझे बांगला नहीं आती । लेकिन मैं बांगला साहित्‍य और बांग्‍ला संगीता का शैदाई रहा हूं । भूपेन दा के गीतों में ना जाने कौन सा आकर्षण है कि आप उनकी ओर खिंचे चले आते हैं । चूंकि आपको सुनवाने के लिए इस गाने को कल मैं इंटरनेट पर चढ़ा रहा था और चूंकि चढ़ा रहा था तो बार-बार सुन रहा था इसलिए ज़ेहन पर ये गीत एकदम छा गया है । इस गीत के बोल हैं--'आमी एक जाजाबोर' । अगर सीधा-सीधा अर्थ लें तो इसके
मायने हैं--'मैं हूं एक यायावर' । यायावर शब्‍द जब भी आता है तो दो और लेखक याद आते हैं । एक तो राहुल सांकृत्‍यायन और दूसरे 'अज्ञेय' । दोनों ही यायावर रहे । हालांकि यायावर तो नागार्जुन और त्रिलोचन भी रहे ।

कुछ समय पहले मैंने तरंग पर एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था-
ये अधूरी तमन्‍नाएं हाय हाय । दरअसल मध्‍यवर्गीय-सोच और भीरूपन के तहत शायद हममें से बहुत लोग-- जिनमें मैं भी शामिल हूं--उस तरह से यायावर नहीं बन पाते जैसा कि हम बनना चाहते हैं । इसलिए हम घर बसाते हैं, सामान जमा करते हैं । क़र्ज़ लेते हैं, उसे चुकाते हैं, कमाते हैं, उड़ाते हैं । थोड़े-थोड़े शौक़ पूरे करते हैं और बहुत बहत आहें भरते हैं । यायावरी के लिए जिगर चाहिए । साहस चाहिए । फक्‍कड़पन चाहिए । मस्‍ती चाहिए । बेफिक्री चाहिए । शायद हम सबके भीतर थी ।
पर हमने उसका गला घोंट दिया । बहरहाल....

आज बहुत बहुत मन कर रहा है कि 'अज्ञेय' की कविता - दूर्वांचल आपके सामने रखी जाए, जो उन्‍होंने 22 सितंबर 1947 को मापलांग शिलांग में लिखी थी । ये कविता 'अज्ञेय' के संग्रह 'इंद्रधनुष रौंदे हुए ये' में संकलित है ---

पार्श्‍व-गिरि नम्र, चीड़ों में
डगर चढ़ती उमंगों सी ।

बिछी पैरों में नदी ज्‍यों दर्द की रेखा ।
विहग-शिशु मौन नीड़ों में ।

मैंने आंख भर देखा ।

दिया मन को दिलासा--पुन: आऊंगा ।

( भले ही बरस-दिन--अनगिन युगों के बाद )

क्षितिज ने पलक-सी खोली,
तमक कर दामिनी बोली---
'अरे यायावर ! रहेगा याद'

एक यायावरी तो ये हुई । ये यायावरी की एक अद्भुत कविता लगती है मुझे,
इंटरनेटी यायावरी में मुझे इस कविता का अंग्रेज़ी अनुवाद भी मिला ।
ये अनुवाद अमरीका में कंप्‍यूटर विज्ञान पर रिसर्च कर रही किन्‍हीं वर्तिका भंडारी ने किया है । और बहुत अच्‍छा किया है ।

The quiet mountain background:
amidst the pines, the trail rising exuberantly.
The river spread at my feet, as though the Earth
were lined with pain.
The fledgelings quiet in their nests.I took it all in to
my eyes' content.
Consoled myself--I would come again though it
be days-months--ages hence.
The Horizon seemed to come alivethe Lightning
said derisively:

'Oh wanderer, will you remember?'

भई इस कविता और इसके अनुवाद में आनंद आ गया । तो अब भूपेन दा के इस गीत की ओर भी चलें ज़रा ।भूपेन दा ने ये गीत कब लिखा और कब गाया, पता नहीं । उनकी जीवनी के कुछ अंश अभी मैंने भी नहीं पढ़े हैं,
शायद वहां इसका जिक्र आता हो । बहरहाल...इस गीत में यायावरी के अनूठे विचार पिरोये गये हैं ।

भूपेन दा कहते हैं---मैं एक यायावर हूं । धरती मुझे अपना बेटा मानती है । गंगा से लेकर वोल्‍गा तक, ऑस्ट्रिया से लेकर ओटावा तक, और मिसिसिपी के उद्गम तक मेरे क़दम पड़े । मैंने पेरिस तक की ख़ाक छानी । ताशकंद में गालिब के शेर सुने । मार्क ट्वेन से लेकर बोस और गोर्की तक की समाधि पर गया । जो सड़कों पर मिले वो मेरे 'अपने' हो गये । जो 'अपने' थे वो 'बेगाने' हो गये । मैं एक यायावर हूं ।
दिलचस्‍प बात ये है कि बांग्‍ला में भूपेन दा ने ये गीत बरसों पहले गाया था । बाद में उन्‍होंने इसे हिंदी में भी गाया । अगर मेरी जानकारी सही है तो गुलज़ार ने इसका हिंदी तुरजुमा किया था । और ये गीत भूपेन दा के हिंदी अलबम से लिया गया है ।

और आवारा बंजारा संजीत त्रिपाठी के सौजन्‍य से मुझे प्राप्‍त हुआ है । तो चलिए बांगला में सुनें और
फिर हिंदी में सुनें--आमि एक जाजाबोर यानी आवारा हूं ।
आमि एक जाजाबोर

आमि एक जाजाबोर का हिंदी रूपान्‍तरण-- वो भी गुलज़ार की कमेन्‍ट्री के साथ---- 'आवारा हूं ।

आमि एक जाजाबोर के बांग्‍ला बोल खोजते हुए मैं मुकुल की वेबसाईट पर जा पहुंचा जहां उसने से इस गाने के बोल और अंग्रेजी अनुवाद दोनों चढ़ा रखे हैं ।
Ami ek jajabor,

prithibi amake apon koreche bhulechi nijer ghar...
tai ami jajabor....ami ek jajabor
ami Gangar theke Mississippi hoe Volgar roop dekhechi,
Ottawar theke Austria hoe Pariser dhulo mekhechi...

ami Ellorar theke rong niye dure Chicago shahare diyechi, Galiber sher Taskhonter minarei boshe shunechi....
Mark Twain er shamadhi te bose Gorkir katha bolechi....

bare bare ami pather tanei pathke karechi ghar tai ami jajabor....
Ami ek jajabor.
Bohu jajabor okhkho bihin amar royeche pon.....

ronger khoni jekhane dekhechi rangiye niechi mon...
ami dekhechi anek gogonchumbi attalikar shari.tar chayatei dekhechi anek grihohin nara nari....
ami dekhechi anek golap ,bokul phute ache thore thore...abar dekhechi naphota phuler
kolira jhore geche anadore.....
prem hin bhalobasha deshe deshe bhengeche shukher ghar.

pather manoosh apon hoyeche apon hoyeche por....
tai ami jajabor.......
ami ek jajabor...
इस गीत का ये अंग्रेजी अनुवाद मुकुल ने ही किया है ।

I am a gypsy The Earth has called me her own

and I have forgotten my own home..
From Ganges to Volga to the very starting point of Mississippi
I have seen and then again from Austria to Ottawa
and got the dust of Paris on me..
I took colors from Ellora and gave them to the far Chicago city..
Heard the poems of Ghalib sitting on a minarette in Tashkent...
Told the tales of Gorki sitting on the tomb of Mark Twain..
Called by the road everytime, finally making the road my home,
that's why I am a gypsy, I am a gypsy..
Wherever I found colors I colored my mind with...
I have seen many skyscrapping highrises under whose shadows again I have seen many homeless people...
I have seen many Roses, Lilies blossoming around and again have seen buds,unblossomed flowers withered from neglect...
the happy homes in every country destroyed by the lack of true love...
the ones I met on the road have become my own and my own have become strangers..
thats why I am a gypsy, I am a gypsy.

भूपेन हज़ारिका के अन्‍य गीत रेडियोवाणी पर यहां हैं :

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Tuesday, April 1, 2008

रचनाकार और रेडियोवाणी की जुगलबंदी दूसरा भाग: भूपेन हज़ारिका का गाया प्रतिध्‍वनि सुनो (बांगला)' किसकी सदा है' (हिंदी)

आजकल रेडियोवाणी और रचनाकार की एक जुगलबंदी चल रही है । जिसके तहत रचनाकार पर आप भूपेन हजारिका की जीवनी पढ़ रहे हैं और रेडियोवाणी पर भूपेन हज़ारिका के गाये गीत । आज इस जुगलबंदी की दूसरी कड़ी है । लेकिन पहले एक बात । पिछली कड़ी में कुछ साथियों को ईस्निप्‍स से गाने सुनने में दिक्‍कत आई थी । आजकल ई स्निप्‍स बे-भरोसे का bhu हो गया है । इसलिए हमने वैकल्पिक व्‍यवस्‍था की है । हालांकि इसमें समय लगता है लेकिन हमारे भीतर इतना जुनून बाक़ी है कि हम इस भट्टी में अपना समय झोंकते रहें । तो रचनाकार पर जाते रहिए और वहां भूपेन दा की जीवनी पढ़ते रहिए । मेरी कोशिश ये रहेगी कि जैसे जैसे वहां गीतों का जिक्र आयेगा, इंटरनेटी यायावरी में उन गीतों को खोजकर पेश किया जाता रहेगा ।

भूपेन हजारिका की जीवनी के तीसरे खंड में रचनाकार पर जिस गाने का जिक्र आया है आज वही गीत आपकी नज़र ।

' सन् 1954 में भूपेन कृश्न चन्दर, एम. एम. हुसैन, बालचन्दर, इस्मत चुगताई, मुल्कराज आनन्द के साथ फिनलैण्ड गये। उससे पहले असम के प्रगतिशील कलाकार दिलीप शर्मा चीन गये थे, तब भूपेन ने उनके लिए एक गीत लिखा था - ‘प्रतिध्वनि शुनू, नतून चीनर प्रतिध्वनि शुनू'। इस गीत का बांग्ला अनुवाद हुआ और यह गीत बंगाल में बहुत लोकप्रिय हुआ। '

'प्रतिध्‍वनि शुनू' भूपेन दा का एक यादगार गीत है । दिलचस्‍प बात ये है कि इस गाने का हिंदी संस्‍करण मुझे आवारा बंजारा के सहयोग से प्राप्‍त हुआ है । इस श्रृंखला के शुरू होते ही मैंने पहली कड़ी में आवारा बंजारा संजीत को उनका एक भूला बिसरा वादा याद दिलाया था, इसे कहते हैं छत्‍तीसगढि़या मिज़ाज । उसी दिन महाशय ने पूरा अलबम अपलोड करके सभी को उपलब्‍ध करा दिया । तो आईये पहले बांगला संस्‍करण में पूरा गीत सुनें---प्रतिध्‍वनि शुनो ' और उसके बाद उसकी प्रेरणा लेकर बना हिंदी संस्‍करण सुना जाएगा जिसका मुखड़ा है-' गूंज रही हैं किसकी सदाएं' 

कुछ गानों को मैं infections यानी संक्रामक कहता हूं और लंबे समय से कहता रहा हूं । ये गाना भी इसी श्रेणी में आता है । मैं लंबे समय से इस गाने को सुनता रहा हूं और बार-बार दोहराता रहा हूं । एक बात साफ़ कर दूं कि मुझे बांगला ठीक से नहीं आती । लेकिन मुझे बांगला गीत सुनने में आनंद बहुत मिलता है । किसी ज़माने में 'भारतीय भाषा केंद्र मैसूर' से मैंने बांगला सीखनी शुरू की थी । लिखना तो आज तक याद है । जिंदगी के अधूरे छूटे कामों में इस काम का शुमार होता है । बहरहाल आईये अब संजीत के सौजन्‍य से प्राप्‍त ये गीत सुनें । जिसमें गुलज़ार की कमेन्‍ट्री है और फिर भूपेन दा का गाया हिंदी गीत ।

गुलज़ार कहते हैं--ये शायर जिसका नाम भूपेन हज़ारिका है कितनी आसानी से आवाम के दिलों की आहट सुन लेता है । ये रात जो लोगों के दर्द की रात है, आवाम के ग़म की रात है, जब उसके सीने में गूंजती है, तो वो तलाश करने लगता है, ये आवाज़ कहां से आ रही है । इंकलाब किस रास्‍ते से आ रहा है और दर्द किस रास्‍ते से आगे बढ़ रहा है । वो कान लगाए सुन रहा है और मुझसे पूछ रहा है ये किसकी सदा है ।

ये किसकी सदा है, किसकी सदा है

गूंज रही है किसकी सदा है

वादी की सीमा पे, पहाड़ के पार से

दर्द आज गहरा है, गूंज रहा है ।

किसकी सदा है ।।

कानों में गूंजती है जाने कौन है

गहरे अंधेरे में कोई भी नहीं

आंखों से सुनता हूं देखता भी हूं

शायद अंधेरा है, गूंज रहा है ।

किसकी सदा है ।।

नानी की कहानी में वो थी महारानी

बिरहा की मारी कोई रोती बेचारी

भूखा है कोई, प्‍यासा है शायद

जाना सा फसाना है, गूंज रहा है ।

किसकी सदा है ।।

नानी महारानी और बिरहा के बैन

सारे के सारे खामोश हो गये

दर्द को मौत की नींद आ गयी

मौत का सन्‍नाटा है, गूंज रहा है

किसकी सदा है ।।

धुंआ धुंआ कोहरे वाली चादर जला के

पर्वतों पे सूरज ने ख़ेमा लगाया

वादियों में रोशनी का लावा बहाके

अंधेरे की नींद से लोगों को जगाया

आते इतिहास की चाप सुनी है

भोर का है शोर ये गूंज रहा है ।

किसकी सदा है ।।

इस गाने की ये पंक्तियां मुझे ख़ास तौर पर पंसद हैं जिन्‍हें मैंने गुलाबी रंग से रंग दिया है । आप बताएं कैसी लग रही है आपको रचनाकार और रेडियोवाणी की ये जुगलबंदी ।

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Monday, March 31, 2008

रचनाकार और रेडियोवाणी की जुगलबंदी : भूपेन हजारिका की जीवनी और गीतों की महफिल

रवि रतलामी हमारे ब्‍लॉग गुरू हैं । हम उन्‍हीं के ज़रिए चिट्ठाजगत में आए हैं । इन दिनों रचनाकार पर रवि रतलामी इन दिनों भूपेन हजारिका की जीवनी का हिंदी अनुवाद प्रकाशित कर रहे हैं ।

भूपेन हजारिका हमारे प्रिय कलाकार हैं । रेडियोवाणी पर पहले भी उनकी चर्चा की जा चुकी है । उनके गीत रेडियोवाणी पर एक छोटी सी श्रृंखला के रूप में चढ़ाए जा चुके हैं । जिसे आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं । बहरहाल मुद्दा ये है कि जब रवि भाई भूपेन दा के जीवन के अनछुए पहलुओं से अवगत कराएंगे तो भूपेन हजारिका की आवाज़ भी तो होनी चाहिए । तकनीकी रूप से जीवनी के साथ गीत लगाना ज़रा ठीक नहीं लगेगा । इसलिए पेश है रेडियोवाणी और रचनाकार की रचनात्‍मक जुगलबंदी । रचनाकार पर पढि़ये भूपेन हजारिका की सिलसिलेवार आत्‍मकथा और रेडियोवाणी पर सुनिए भूपेनदा के गाये तमाम भाषाओं के गीत । 

शुरूआत एक अजीब गीत से ।leadbelly2

ये भूपेन हजारिका का गाया एक अंग्रेज़ी गीत है । भूपेन दा कहते हैं कि इसे पॉल रॉब्‍सन ने गाया था । पर मुझे पॉल रॉब्‍सन वाला संस्‍करण मिल नहीं रहा है । इंटरनेट पर मुझे पता चला कि इसे Huddie Ledbetter ने भी गाया था । इसे मेरी अज्ञानता ही कह लीजिए कि ये गीत पहले नहीं सुना है । इसलिए इस बारे में संशय बरक़रार है । हडी लेडबेटर को संगीत की दुनिया  “LeadBelly” के नाम से जानती है । वे American folk and blues musician माने जाते हैं । अश्‍वेत गायक “LeadBelly”  का जन्‍म जनवरी 1888 में मूरिंगस्‍पोर्ट लूसियाना में हुआ था । लेडबेली का उपनाम जेल में उनकी कडियल काया की वजह से पड़ा था । लेडबेटर क्‍यों जेल गये और उन्‍होंने कितनी बीहड़ जिंदगी ली ये जानना बेहद दिलचस्‍प है । इसलिए लेडबेटर के नाम के साथ दी गयी हायपरलिंक खोलें और विकीपीडिया पर उनके बारे में विस्‍तार से पढें । यहां भी पढ़ें ।

वैसे भूपेन दा ने पॉल रॉब्‍सन के गीत 'ओल मैन रिवर' से प्रेरणा लेकर अपना मशहूर गीत 'गंगा बहती हो क्‍यों' बनाया था ।

मुझे नहीं पता कि भूपेन हजारिका ने ये गीत क्‍यों गाया और कब गाया । लेकिन ई स्निप्‍स पर जब ये गी

त हाथ लगा तो अच्‍छा लगा । अगर आप कोशिश करें तो आपको इसका मूल संस्‍करण भी इंटरनेट पर मिल सकता है । इसलिए इच्‍छा हो तो मशक्‍कत कीजिएगा । वरना बताईयेगा हम हैं ना । गाना बड़ा ही अच्‍छा लिखा गया है । कहीं से जुगाड़ के हम अंग्रेज़ी बोल भी उपलब्‍ध करा रहे हैं ।

बहरहाल रवि भाई....आप भी सुनिए और हमारे साथ सारा संसार सुने--भूपेन हजारिका के गाये कुछ अनमोल गीत ।

इस पोस्‍ट के ज़रिए रायपुर में आवारा बंजारा- संजीत को एक वादा याद दिलाया जा रहा है । कों ख़ां याद आया ।

 

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We’re in the same boat brother,

We’re in the same boat brother,

And if you shake one end,

You gonna rock the other

It’s the same boat brother

The Lord looked down from his holy place

Said lordy me me, what a sea of space

What a spot to launch the human race

So he built him a boat for a mixed-up crew,

With eyes of Black and Brown and Blue.

So that’s how’s come that you and I Got just one world and just one sky.

We’re in the same boat brother,

We’re in the same boat brother,

And if you shake one end,

You gonna rock the other

It’s the same boat brother Through storm and grief,

Hit many a rock and many a reef,

What keep them going was a great belief.

So they had to learn to navigate.

That the human race was a special freight

If they didn’t want to be in Jonah’s shoes,

Better be mated on this here cruise.—Why—

We’re in the same boat brother,

We’re in the same boat brother,

And if you shake one end,

You gonna rock the other

It’s the same boat brother

So the boiler blew, somewhere in Spain,

All the kettle was smashed and 40 cranes.

Steam boat out from the Oregon Main.

Oh, it took some time for the crew to learn

What is bad for the bow ain’t good for the stern.

If a fire took place in China today

Pearl Harbor just gonna blaze away.

We’re in the same boat brother,

We’re in the same boat brother,

And if you shake one end,

You gonna rock the other

It’s the same boat brother

आईये भूपेन दा को एक स्‍टेज प्रोग्राम में ये गीत गाते हुए भी देख लिया जाये । उनके साथ हैं प्रतिमा पांडे । साथ में बांयी ओर हैं पंकज दत्‍ता । इस वीडियो में भूपेन दा इस गीत का बांगला अनुवाद गा रहे हैं ।

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Saturday, August 18, 2007

ज्ञान जी की फ़रमाईश पर फिल्म रूदाली के गीतों पर आधारित श्रृंखला: पहला भाग--दिल हूम हूम करे

भूपेन हज़ारिका के गीत—ओ गंगा बहती हो क्‍यों‘ के बारे में मेरी पिछली पोस्‍ट पर बहुत प्रतिक्रियाएं आईं । अज़दक ने इशारा भी किया कि ये गीत थोड़ा सा भगवा है । बाक़ी सभी को ये गीत बहुत दिनों बाद सुनकर अच्‍छा ही लगा । लेकिन ज्ञानदत्‍त जी ने कल-परसों कहा कि क्‍या मैं ( उनकी पत्‍नी की फरमाईश पर )फिल्‍म ‘रूदाली’ के गीत सुनवा सकता हूं । हालांकि ‘रूदाली’ के गीत सुनवाने का मन उसी दिन किया था जब मैंने ‘गंगा’ वाला गीत पेश किया था । लेकिन लगा कि फिर कभी सुनवाये जायेंगे । रेडियो वालों को फ़रमाईशों पूरी करने का बड़ा शग़ल होता है । सच कहें तो हमें भी है, लीजिये भूपेन हज़ारिका के गानों पर पूरी लेकिन अनियमित श्रृंखला शुरू हो रही है । ख़ासकर रूदाली पर । अनियमित इसलिए कि बीच-बीच में हम ग़ायब भी होते रहेंगे और कुछ दूसरी बातें भी करते रहेंगे ।


भूपेन हज़ारिका के संगीत के बारे में लिखने का मतलब है लोक संस्‍कृति के गहरे रंग से सराबोर हो जाना । भूपेन का के बारे में बात करने से पहले आपको ये बताना चाहता हूं कि मेरा ताल्‍लुक बुंदेलखंड से है । बचपन भोपाल में बीता, उन दिनों मैं बुंदेलखंडी बोली से पूर्णत: अनभिज्ञ था बल्कि अपने तथाकथित शहरी दंभ में बुंदेलखंडी को गांव वालों की बेकार बोली समझता था । बचपना था ना । शहरी परवरिश ने अपना असर दिखाया था । लेकिन समय का फेर देखिए, कि बचपन बीता किशोरवस्‍था के अंतिम दिन थे और पापा का ट्रांस्‍फर हो गया म.प्र. के सागर शहर में ।

समय के प्रवाह ने हमें बुंदेलखंड लाकर पटक दिया । शुरू में थोड़ा बुरा लगा लेकिन बाद में मन इतना रम गया कि पूछिये मत । बुंदेलखंड ने मुझे अपने सबसे प्‍यारे दोस्‍त दिये हैं । वो तमाम दोस्‍त, जो ज़िंदगी के हर मोड़ पर एक आवाज़ पर चले आएं । बड़े प्‍यारे और यादगार लम्‍हे हैं वो जो सागर में बीते । यहां आकर मेरी बुंदेलखंडी जड़ों ने अपना असर दिखाया । मैंने बुंदेली बोली बोलना सीखा । बुंदेली लोकगीतों से मेरा परिचय बढ़ा । आज हालत ये है कि मैं बुंदेलखंड के ठस्‍स और बिल्‍कुल लट्ठ लोगों को बहुत ‘मिस’ करता हूं ।

किसी ने एक बार कहा था कि बुंदेलखंड के किसी व्‍यक्ति से नाम पूछो---
काय भैया का नांव आय तुमाओ
जवाब मिलेगा—काय, तुमें का कन्‍ने ।

समझ तो गये ही होंगे आप । पूछने वाला पूछ रहा है, नाम क्‍या है तुम्‍हारा । जवाब देने वाला कह रहा है क्‍यों तुम्‍हें क्‍या करना मेरे नाम से ।

ऐसा है बुंदेलखंड, किसी दिन विस्‍तार से बुंदेली मिज़ाज और लोकगीतों की चर्चा की जाएगी । समीर भाई---काय बड्डे, चीन नईं रए का ।

दरअसल ये जिक्र इसलिये क्‍योंकि भूपेन की आवाज़ में मिट्टी की सोंधी खुश्‍बू है, उनके गीत‍ किसी बांग्‍ला फ़कीर के गीतों की तरह हैं, जो चिमटा बजाते हुए गांव के बीचोंबीच से गुज़र रहा है । आज से मैं जो श्रृंखला आरंभ कर रहा हूं उसमें हम भूपेन हज़ारिका के फिल्‍म रूदाली के गीत सुनेंगे । लेकिन सिर्फ सुनेंगे ही नहीं बल्कि उनका विश्‍लेषण भी करेंगे । उनकी पड़ताल भी करेंगे । और कुछ गीत तो ऐसे हैं जिनके मूल बांगला गीत भी आपको सुनवाए जाएंगे ।

फिल्‍म रूदाली महाश्‍वेता देवी की कथा पर आधारित थी । जहां तक मेरी जानकारी है बंगाल की जानी मानी रंगमंच कलाकार निर्देशिका उषा गांगुली के इसी नाम के नाटक को देखकर कल्‍पना लाजमी को रूदाली बनाने की प्रेरणा मिली थी । ये फिल्‍म सन 1993 में आई थी । गुलज़ार के गीत और भूपेन हज़ारिका का संगीत ।

इस फिल्‍म के गानों की ख़ासियत ये है कि ज्‍यादातर गीत भूपेन हज़ारिका के पुराने अलबमों से ली गयी धुनों पर आधारित हैं । ज़ाहिर है कि बांगला या असमिया भाषा में गीत उतने व्‍यापक लोकप्रिय नहीं हुए, जितने हिंदी में । तो आईये आज सुनें—दिल हूम हूम करे, घबराए ।

गाने का ओपनिंग म्‍यूजि़क ही जैसे दिल में उतर जाता है । ग्रुप वायलिन के साथ हल्‍के से नगाड़े और मेटल फ्लूट । और उसके बाद लता जी या भूपेन दा की आवाज़ । ऐसा तिलस्‍मी समां बंधता है कि क्‍या कहें । मुखड़े के बाद सारंगी की जो तान आती है, वो बड़ी ललित लगती है । ये तान पूरे गीत के इंटरल्‍यूड में बार बार आती है । मन थिरक उठता है । जिस तरह का संगीत-संयोजन रूदाली में भूपेन हजारिका ने किया है, वैसा हिंदी फिल्‍मों में बहुत कम देखा गया है । बरसों पहले भूपेन हज़ारिका ने कल्‍पना लाजमी की फिल्‍म ‘एक पल’ के लिए कुछ अद्भुत गीत दिये थे । शायद आपको याद होंगे । ‘ज़रा धीरे ज़रा धीरे लेके जैयो डोली, बड़ी नाज़ुक मेरी जाई मेरी बहना भोली’ । बहुत ही मार्मिक डोली गीत है ये । कभी मौक़ा लगा तो सुनवाऊंगा ।

फिलहाल ये गीत लता मंगेशकर और भूपेन हज़ारिका दोनों की आवाज़ में पेश है । हालांकि मुझे लगता है कि गायन की दृष्टि से ये लता मंगेशकर के श्रेष्‍ठतम गीतों में से एक है । लेकिन इस सबके बावजूद भूपेन दा की आवाज़ में गीत ज्‍यादा तरल और मार्मिक बन पड़ा है । एक अहम मुद्दा ये है कि जो गीत पुरूष और महिला स्‍वरों में अलग अलग बनाए गये हैं, यानी दोनों सोलो वर्जन । उनमें बहुधा पुरूष गायक वाला संस्‍करण ज्‍यादा लोकप्रिय हुआ है । शायद ज्‍यादा रचनात्‍मक भी । एक गाना इसका अपवाद है—‘हमें तुमसे प्‍यार कितना’ । कुदरत फिल्‍म का ये गीत परवीन सुल्‍ताना की आवाज़ में ज्‍यादा कलात्‍मक है । हां लोकप्रिय किशोर दा वाला संस्‍करण है ।

बहरहाल इस गाने की लेखनी को ही लीजिये । ठेठ गुलज़ारी गीत है ये । मुझे याद है जिन दिनों ये गीत आया था लोग अकसर मज़ाक़ में ही पूछते थे ये हूम हूम क्‍या होता है, क्‍या किसी का दिल हूम हूम करता है । लेकिन अगर ये गीत संवेदनाओं का सरल संप्रेषण ना कर रहा होता तो क्‍या आज चौदह साल बाद हम इसकी महफिल जमाए होते । ‘ओ मोरे चंद्रमा तेरी चांदनी अंग जलाए’ जैसी पंक्ति गुलज़ार की ही कलम से आ सकती है । संगीत-संसार के हम सब सुधी श्रोता आभारी हैं इन तमाम कलाकारों के, जिन्‍होंने इस गीत को रचा । ये रहे इस गाने के बोल ।


दिल हूम हूम करे, घबराए,
घन घम घम करे, गरजाए
एक बूंद कभी पानी की मोरी अंखियों से बरसाए
तेरी झोरी डारूं, सब सूखे पात जो आए
तेरा छूआ लागे, मेरी सूखी डाल हरियाए
दिल हूम हूम करे ।।

जिस तन को छूआ तूने
उस तन को छुपाऊं
जिस मन को लागे नैना,
वो किसको दिखाऊं
ओ मेरे चंद्रमा तेरी चांदनी अंग जलाए
दिल हूम हूम करे ।।

आपको बता दूं कि इस गीत के तीन संस्‍करण नीचे दिये जा रहे हैं । पहला है लता जी वाला संस्‍करण । फिर भूपेन हज़ारिका वाला । और उसके बाद भूपेन हज़ारिका का मूल बांगला संस्‍करण—मेघ घम घम करे । सुनिए और आनंद लीजिये । अगर आप इस गाने का फिल्‍मांकन भी देखना चाहते हैं तो सबसे नीचे यूट्यूब से लिया वीडियो भी लगा दिया गया है ।



dil hum hum kare- lata


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dil hum hum---bhupen


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megh gham gham kare-bangla version.


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दिल हूम हूम करे-वीडियो


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ओ गंगा बहती हो क्यूं

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Sunday, August 12, 2007

ओ गंगा बहती हो क्‍यों—रविवार को संवारने के लिए डॉ0 भूपेन हज़ारिका के कुछ गीत सुने जायें


भूपेन हज़ारिका मेरे बचपन की स्‍मृतियों से जुड़े रहे हैं । दूरदर्शन के ज़माने में शायद हम भाई-बहन मिलकर पढ़ाई कर रहे थे जब भूपेन दा का गाया ‘गंगा बहती हो क्‍यूं’ आया था । हम सभी उसे सुनकर स्‍तब्‍ध रह गये थे । अद्भुत लगा । बाद में फिलिप्‍स के अपने छोटे से रिकॉर्डर पर हमने उसे रिकॉर्ड कर लिया ताकि बार-बार सुन सकें । बार-बार सुनने की इच्‍छा इसलिए होती थी क्‍योंकि भूपेन दा की आवाज़ में एक व्‍यग्रता थी, एक ऐसा आरोह जो आपको आंदोलित कर दे । कुछ दिन पहले दूरदर्शन पर ही अचानक भूपेन दा पर बनी एक डॉक्‍यूमेन्‍ट्री देखकर पता चला कि भूपेन हजारिक जन-आंदोलनों के सूत्रधार रहे हैं । उनकी एक आवाज़ पर जनता खड़ी हो जाती थी ।

बांगलादेश में भी उनके गीतों को बड़ा सम्‍मान मिलता है, वहां भी उनके चाहने वाले हैं । मुझे दो बातें और याद आ रही हैं । जब कल्‍पना लाजमी की फिल्‍म ‘रूदाली’ आई तो हमने अपने जेबखर्च से उसका कैसेट खरीदा था । और वो गाने लगातार हमारे घर में बजते रहे । आज भी जबलपुर में हमारे घर वो कैसेट संभालकर रखा हुआ है । मैं और मेरा छोटा भाई अपने जेबख़र्च को केवल संगीत और पुस्‍तकों पर ख़र्च करते रहे । आज उस संग्रह पर हमें बड़ा नाज़ होता है । दूसरी बात ये याद आ रही है कि कॉलेज में था मैं, जब भूपेन दा का ए‍‍क हिंदी गैर फिल्‍मी एलबम आया था और जिस छोटे से शहर में था, वहां तक वो कैसेट पहुंचा ही नहीं । आज तक मेरे पास वो एलबम नहीं है ।


बहरहाल कल रेडियोवाणी पर बांगला गीत चढ़ाए थे उसी खोजबीन में मिले भूपेन दा के कुछ अनमोल नग़्मे । तो पहले सुनिए वही गी‍त—‘ओ गंगा तुम बहती हो क्‍यों’

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विस्‍तार है अपार, प्रजा दोनपार करे हाहाकार,
निशब्‍द सदा ओ गंगा तुम ओ गंगा बहती हो क्‍यों
इतिहास की पुकार करे हुंकार,
ओ गंगा की धार
निर्बल जन को सबल-संग्रामी
समग्र-गामी बनाती नहीं हो क्‍यों ।।

अनपढ़ जन अक्षरहीन अनगिन-जन खाद्य-विहीन
निद्र-विहीन देखो मौन हो क्‍यों
इतिहास की पुकार करे हुंकार
ओ गंगा की धार
निर्बल जन को सबल संग्रामी,
समग्रगामी बनाती नहीं हो क्‍यों
व्‍यक्ति रहे व्‍यक्ति-चिं‍तित
सकल समाज व्‍यक्तित्‍व रहित
निष्‍प्राण समाज को झिंझोड़ती नहीं हो क्‍यों ।।

गीत की पंक्तियां मैं पूरी नहीं लिख सका, लेकिन इस गीत में जगा देने की ताक़त है । झिंझोड़ने का माद्दा है । और ये भूपेन हजारिका के बोल, गायन और संगीत का कमाल है, ईश्‍वर सबको ये ताक़त नहीं देता है । डॉ0 भूपेन हजारिका की आवाज़ विश्‍व संगीत का एक दुर्लभ और सच्‍चा स्‍वर है ।

इस गाने के बाद एक बांग्‍ला गीत सुनिए । बोल हैं –‘डुग डुग डुग डुग डमरू’
ये भी बहुत जोशीला गीत है ।

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डॉ0 भूपेन हज़ारिका की आवाज़ सुनकर एक तरह से भाग्‍यशाली होने का बोध होता है,
कुछ और गीत हैं जिन पर विस्‍तृत चर्चा करने का मन है । डॉ0 भूपेन हज़ारिका के कुछ और गीत आपको फिर किसी दिन सुनवाये जायेंगे ।

भूपेन हजारिका का ये गीत पॉल रॉब्‍सन के गीत ऑल मेन रिवर पर आधारित है । पॉल रॉब्‍सन का मूल गीत आप यहां
सुन सकते हैं । रियाज़ की इस प्रस्‍तुति में आप भूपेन दा को गाते हुए भी देख सकते हैं ।



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