संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।
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Sunday, August 12, 2007

ओ गंगा बहती हो क्‍यों—रविवार को संवारने के लिए डॉ0 भूपेन हज़ारिका के कुछ गीत सुने जायें


भूपेन हज़ारिका मेरे बचपन की स्‍मृतियों से जुड़े रहे हैं । दूरदर्शन के ज़माने में शायद हम भाई-बहन मिलकर पढ़ाई कर रहे थे जब भूपेन दा का गाया ‘गंगा बहती हो क्‍यूं’ आया था । हम सभी उसे सुनकर स्‍तब्‍ध रह गये थे । अद्भुत लगा । बाद में फिलिप्‍स के अपने छोटे से रिकॉर्डर पर हमने उसे रिकॉर्ड कर लिया ताकि बार-बार सुन सकें । बार-बार सुनने की इच्‍छा इसलिए होती थी क्‍योंकि भूपेन दा की आवाज़ में एक व्‍यग्रता थी, एक ऐसा आरोह जो आपको आंदोलित कर दे । कुछ दिन पहले दूरदर्शन पर ही अचानक भूपेन दा पर बनी एक डॉक्‍यूमेन्‍ट्री देखकर पता चला कि भूपेन हजारिक जन-आंदोलनों के सूत्रधार रहे हैं । उनकी एक आवाज़ पर जनता खड़ी हो जाती थी ।

बांगलादेश में भी उनके गीतों को बड़ा सम्‍मान मिलता है, वहां भी उनके चाहने वाले हैं । मुझे दो बातें और याद आ रही हैं । जब कल्‍पना लाजमी की फिल्‍म ‘रूदाली’ आई तो हमने अपने जेबखर्च से उसका कैसेट खरीदा था । और वो गाने लगातार हमारे घर में बजते रहे । आज भी जबलपुर में हमारे घर वो कैसेट संभालकर रखा हुआ है । मैं और मेरा छोटा भाई अपने जेबख़र्च को केवल संगीत और पुस्‍तकों पर ख़र्च करते रहे । आज उस संग्रह पर हमें बड़ा नाज़ होता है । दूसरी बात ये याद आ रही है कि कॉलेज में था मैं, जब भूपेन दा का ए‍‍क हिंदी गैर फिल्‍मी एलबम आया था और जिस छोटे से शहर में था, वहां तक वो कैसेट पहुंचा ही नहीं । आज तक मेरे पास वो एलबम नहीं है ।


बहरहाल कल रेडियोवाणी पर बांगला गीत चढ़ाए थे उसी खोजबीन में मिले भूपेन दा के कुछ अनमोल नग़्मे । तो पहले सुनिए वही गी‍त—‘ओ गंगा तुम बहती हो क्‍यों’

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विस्‍तार है अपार, प्रजा दोनपार करे हाहाकार,
निशब्‍द सदा ओ गंगा तुम ओ गंगा बहती हो क्‍यों
इतिहास की पुकार करे हुंकार,
ओ गंगा की धार
निर्बल जन को सबल-संग्रामी
समग्र-गामी बनाती नहीं हो क्‍यों ।।

अनपढ़ जन अक्षरहीन अनगिन-जन खाद्य-विहीन
निद्र-विहीन देखो मौन हो क्‍यों
इतिहास की पुकार करे हुंकार
ओ गंगा की धार
निर्बल जन को सबल संग्रामी,
समग्रगामी बनाती नहीं हो क्‍यों
व्‍यक्ति रहे व्‍यक्ति-चिं‍तित
सकल समाज व्‍यक्तित्‍व रहित
निष्‍प्राण समाज को झिंझोड़ती नहीं हो क्‍यों ।।

गीत की पंक्तियां मैं पूरी नहीं लिख सका, लेकिन इस गीत में जगा देने की ताक़त है । झिंझोड़ने का माद्दा है । और ये भूपेन हजारिका के बोल, गायन और संगीत का कमाल है, ईश्‍वर सबको ये ताक़त नहीं देता है । डॉ0 भूपेन हजारिका की आवाज़ विश्‍व संगीत का एक दुर्लभ और सच्‍चा स्‍वर है ।

इस गाने के बाद एक बांग्‍ला गीत सुनिए । बोल हैं –‘डुग डुग डुग डुग डमरू’
ये भी बहुत जोशीला गीत है ।

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डॉ0 भूपेन हज़ारिका की आवाज़ सुनकर एक तरह से भाग्‍यशाली होने का बोध होता है,
कुछ और गीत हैं जिन पर विस्‍तृत चर्चा करने का मन है । डॉ0 भूपेन हज़ारिका के कुछ और गीत आपको फिर किसी दिन सुनवाये जायेंगे ।

भूपेन हजारिका का ये गीत पॉल रॉब्‍सन के गीत ऑल मेन रिवर पर आधारित है । पॉल रॉब्‍सन का मूल गीत आप यहां
सुन सकते हैं । रियाज़ की इस प्रस्‍तुति में आप भूपेन दा को गाते हुए भी देख सकते हैं ।



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