रचनाकार और रेडियोवाणी की जुगलबंदी दूसरा भाग: भूपेन हज़ारिका का गाया प्रतिध्वनि सुनो (बांगला)' किसकी सदा है' (हिंदी)
आजकल रेडियोवाणी और रचनाकार की एक जुगलबंदी चल रही है । जिसके तहत रचनाकार पर आप भूपेन हजारिका की जीवनी पढ़ रहे हैं और रेडियोवाणी पर भूपेन हज़ारिका के गाये गीत । आज इस जुगलबंदी की दूसरी कड़ी है । लेकिन पहले एक बात । पिछली कड़ी में कुछ साथियों को ईस्निप्स से गाने सुनने में दिक्कत आई थी । आजकल ई स्निप्स बे-भरोसे का हो गया है । इसलिए हमने वैकल्पिक व्यवस्था की है । हालांकि इसमें समय लगता है लेकिन हमारे भीतर इतना जुनून बाक़ी है कि हम इस भट्टी में अपना समय झोंकते रहें । तो रचनाकार पर जाते रहिए और वहां भूपेन दा की जीवनी पढ़ते रहिए । मेरी कोशिश ये रहेगी कि जैसे जैसे वहां गीतों का जिक्र आयेगा, इंटरनेटी यायावरी में उन गीतों को खोजकर पेश किया जाता रहेगा ।
भूपेन हजारिका की जीवनी के तीसरे खंड में रचनाकार पर जिस गाने का जिक्र आया है आज वही गीत आपकी नज़र ।
' सन् 1954 में भूपेन कृश्न चन्दर, एम. एम. हुसैन, बालचन्दर, इस्मत चुगताई, मुल्कराज आनन्द के साथ फिनलैण्ड गये। उससे पहले असम के प्रगतिशील कलाकार दिलीप शर्मा चीन गये थे, तब भूपेन ने उनके लिए एक गीत लिखा था - ‘प्रतिध्वनि शुनू, नतून चीनर प्रतिध्वनि शुनू'। इस गीत का बांग्ला अनुवाद हुआ और यह गीत बंगाल में बहुत लोकप्रिय हुआ। '
'प्रतिध्वनि शुनू' भूपेन दा का एक यादगार गीत है । दिलचस्प बात ये है कि इस गाने का हिंदी संस्करण मुझे आवारा बंजारा के सहयोग से प्राप्त हुआ है । इस श्रृंखला के शुरू होते ही मैंने पहली कड़ी में आवारा बंजारा संजीत को उनका एक भूला बिसरा वादा याद दिलाया था, इसे कहते हैं छत्तीसगढि़या मिज़ाज । उसी दिन महाशय ने पूरा अलबम अपलोड करके सभी को उपलब्ध करा दिया । तो आईये पहले बांगला संस्करण में पूरा गीत सुनें---प्रतिध्वनि शुनो ' और उसके बाद उसकी प्रेरणा लेकर बना हिंदी संस्करण सुना जाएगा जिसका मुखड़ा है-' गूंज रही हैं किसकी सदाएं'
कुछ गानों को मैं infections यानी संक्रामक कहता हूं और लंबे समय से कहता रहा हूं । ये गाना भी इसी श्रेणी में आता है । मैं लंबे समय से इस गाने को सुनता रहा हूं और बार-बार दोहराता रहा हूं । एक बात साफ़ कर दूं कि मुझे बांगला ठीक से नहीं आती । लेकिन मुझे बांगला गीत सुनने में आनंद बहुत मिलता है । किसी ज़माने में 'भारतीय भाषा केंद्र मैसूर' से मैंने बांगला सीखनी शुरू की थी । लिखना तो आज तक याद है । जिंदगी के अधूरे छूटे कामों में इस काम का शुमार होता है । बहरहाल आईये अब संजीत के सौजन्य से प्राप्त ये गीत सुनें । जिसमें गुलज़ार की कमेन्ट्री है और फिर भूपेन दा का गाया हिंदी गीत ।
गुलज़ार कहते हैं--ये शायर जिसका नाम भूपेन हज़ारिका है कितनी आसानी से आवाम के दिलों की आहट सुन लेता है । ये रात जो लोगों के दर्द की रात है, आवाम के ग़म की रात है, जब उसके सीने में गूंजती है, तो वो तलाश करने लगता है, ये आवाज़ कहां से आ रही है । इंकलाब किस रास्ते से आ रहा है और दर्द किस रास्ते से आगे बढ़ रहा है । वो कान लगाए सुन रहा है और मुझसे पूछ रहा है ये किसकी सदा है ।
ये किसकी सदा है, किसकी सदा है
गूंज रही है किसकी सदा है
वादी की सीमा पे, पहाड़ के पार से
दर्द आज गहरा है, गूंज रहा है ।
किसकी सदा है ।।
कानों में गूंजती है जाने कौन है
गहरे अंधेरे में कोई भी नहीं
आंखों से सुनता हूं देखता भी हूं
शायद अंधेरा है, गूंज रहा है ।
किसकी सदा है ।।
नानी की कहानी में वो थी महारानी
बिरहा की मारी कोई रोती बेचारी
भूखा है कोई, प्यासा है शायद
जाना सा फसाना है, गूंज रहा है ।
किसकी सदा है ।।
नानी महारानी और बिरहा के बैन
सारे के सारे खामोश हो गये
दर्द को मौत की नींद आ गयी
मौत का सन्नाटा है, गूंज रहा है
किसकी सदा है ।।
धुंआ धुंआ कोहरे वाली चादर जला के
पर्वतों पे सूरज ने ख़ेमा लगाया
वादियों में रोशनी का लावा बहाके
अंधेरे की नींद से लोगों को जगाया
आते इतिहास की चाप सुनी है
भोर का है शोर ये गूंज रहा है ।
किसकी सदा है ।।
इस गाने की ये पंक्तियां मुझे ख़ास तौर पर पंसद हैं जिन्हें मैंने गुलाबी रंग से रंग दिया है । आप बताएं कैसी लग रही है आपको रचनाकार और रेडियोवाणी की ये जुगलबंदी ।
5 comments:
बहुत सुन्दर। सुन कर काफी समय चुपचाप इण्टर्नलाइज करता रहा भूपेन की आवाज और भावों को।
गुलजार की कमेंट्री चाहे इस अलबम मे हो या जगजीत सिंह के किसी अलबम में, और भी मन मोह लेती है और सुनने का मजा बढ़ जाता है।
shukriya yunus ji hamjaise nithalle sangeet premiyo.n ke liye gana uplabdha karane ka...jinhe bas geet achchhe klagte hai.n kaha.n se kaise mile.nge aisa kuchh nahi pata.
yunus ji gulabi vali pahli line hai --
धुंआ धुंआ कोहरे वाली चादर जला के
शुक्रिया परिसर । पोस्ट को सुधार दिया है ।
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