संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Saturday, April 5, 2008

भूपेन हज़ारिका के गीत तीसरा भाग--मैं हूं एक यायावर--अरे यायावार रहेगा याद--आवारा कहीं का ।

रेडियोवाणी पर हम भूपेन हजारिका के गीत एक श्रृंखला के रूप में सुनवा रहे हैं । यूं तो ये सिलसिला रचनाकार और रेडियोवाणी की जुगलबंदी के रूप में शुरू हुआ था । जब रवि रतलामी ने रचनाकार पर भूपेन हज़ारिका की जीवनी का हिंदी अनुवाद छापना शुरू किया था । चूंकि अब ये जीवनी पूरी हो चुकी है इसलिए जुगलबंदी अब वास्‍तविक नहीं रही । लेकिन एक तरह से जुगलबंदी तो है ही । क्‍योंकि यहां रेडियोवाणी पर आप भूपेन दा के गाने सुन सकते हैं और रचनाकार पर जाकर भूपेन हज़ारिका की जिंदगी के अनछुए पहलुओं से परिचित हो सकते हैं ।

आज मैं जो गीत आपको सुनवा रहा हूं वो मुझे बेहद पसंद रहा है ।
लंबे समय से ये गीत मेरे मन की वादियों में गूंज रहा है । मैंने पहले भी अर्ज किया कि मुझे बांगला नहीं आती । लेकिन मैं बांगला साहित्‍य और बांग्‍ला संगीता का शैदाई रहा हूं । भूपेन दा के गीतों में ना जाने कौन सा आकर्षण है कि आप उनकी ओर खिंचे चले आते हैं । चूंकि आपको सुनवाने के लिए इस गाने को कल मैं इंटरनेट पर चढ़ा रहा था और चूंकि चढ़ा रहा था तो बार-बार सुन रहा था इसलिए ज़ेहन पर ये गीत एकदम छा गया है । इस गीत के बोल हैं--'आमी एक जाजाबोर' । अगर सीधा-सीधा अर्थ लें तो इसके
मायने हैं--'मैं हूं एक यायावर' । यायावर शब्‍द जब भी आता है तो दो और लेखक याद आते हैं । एक तो राहुल सांकृत्‍यायन और दूसरे 'अज्ञेय' । दोनों ही यायावर रहे । हालांकि यायावर तो नागार्जुन और त्रिलोचन भी रहे ।

कुछ समय पहले मैंने तरंग पर एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था-
ये अधूरी तमन्‍नाएं हाय हाय । दरअसल मध्‍यवर्गीय-सोच और भीरूपन के तहत शायद हममें से बहुत लोग-- जिनमें मैं भी शामिल हूं--उस तरह से यायावर नहीं बन पाते जैसा कि हम बनना चाहते हैं । इसलिए हम घर बसाते हैं, सामान जमा करते हैं । क़र्ज़ लेते हैं, उसे चुकाते हैं, कमाते हैं, उड़ाते हैं । थोड़े-थोड़े शौक़ पूरे करते हैं और बहुत बहत आहें भरते हैं । यायावरी के लिए जिगर चाहिए । साहस चाहिए । फक्‍कड़पन चाहिए । मस्‍ती चाहिए । बेफिक्री चाहिए । शायद हम सबके भीतर थी ।
पर हमने उसका गला घोंट दिया । बहरहाल....

आज बहुत बहुत मन कर रहा है कि 'अज्ञेय' की कविता - दूर्वांचल आपके सामने रखी जाए, जो उन्‍होंने 22 सितंबर 1947 को मापलांग शिलांग में लिखी थी । ये कविता 'अज्ञेय' के संग्रह 'इंद्रधनुष रौंदे हुए ये' में संकलित है ---

पार्श्‍व-गिरि नम्र, चीड़ों में
डगर चढ़ती उमंगों सी ।

बिछी पैरों में नदी ज्‍यों दर्द की रेखा ।
विहग-शिशु मौन नीड़ों में ।

मैंने आंख भर देखा ।

दिया मन को दिलासा--पुन: आऊंगा ।

( भले ही बरस-दिन--अनगिन युगों के बाद )

क्षितिज ने पलक-सी खोली,
तमक कर दामिनी बोली---
'अरे यायावर ! रहेगा याद'

एक यायावरी तो ये हुई । ये यायावरी की एक अद्भुत कविता लगती है मुझे,
इंटरनेटी यायावरी में मुझे इस कविता का अंग्रेज़ी अनुवाद भी मिला ।
ये अनुवाद अमरीका में कंप्‍यूटर विज्ञान पर रिसर्च कर रही किन्‍हीं वर्तिका भंडारी ने किया है । और बहुत अच्‍छा किया है ।

The quiet mountain background:
amidst the pines, the trail rising exuberantly.
The river spread at my feet, as though the Earth
were lined with pain.
The fledgelings quiet in their nests.I took it all in to
my eyes' content.
Consoled myself--I would come again though it
be days-months--ages hence.
The Horizon seemed to come alivethe Lightning
said derisively:

'Oh wanderer, will you remember?'

भई इस कविता और इसके अनुवाद में आनंद आ गया । तो अब भूपेन दा के इस गीत की ओर भी चलें ज़रा ।भूपेन दा ने ये गीत कब लिखा और कब गाया, पता नहीं । उनकी जीवनी के कुछ अंश अभी मैंने भी नहीं पढ़े हैं,
शायद वहां इसका जिक्र आता हो । बहरहाल...इस गीत में यायावरी के अनूठे विचार पिरोये गये हैं ।

भूपेन दा कहते हैं---मैं एक यायावर हूं । धरती मुझे अपना बेटा मानती है । गंगा से लेकर वोल्‍गा तक, ऑस्ट्रिया से लेकर ओटावा तक, और मिसिसिपी के उद्गम तक मेरे क़दम पड़े । मैंने पेरिस तक की ख़ाक छानी । ताशकंद में गालिब के शेर सुने । मार्क ट्वेन से लेकर बोस और गोर्की तक की समाधि पर गया । जो सड़कों पर मिले वो मेरे 'अपने' हो गये । जो 'अपने' थे वो 'बेगाने' हो गये । मैं एक यायावर हूं ।
दिलचस्‍प बात ये है कि बांग्‍ला में भूपेन दा ने ये गीत बरसों पहले गाया था । बाद में उन्‍होंने इसे हिंदी में भी गाया । अगर मेरी जानकारी सही है तो गुलज़ार ने इसका हिंदी तुरजुमा किया था । और ये गीत भूपेन दा के हिंदी अलबम से लिया गया है ।

और आवारा बंजारा संजीत त्रिपाठी के सौजन्‍य से मुझे प्राप्‍त हुआ है । तो चलिए बांगला में सुनें और
फिर हिंदी में सुनें--आमि एक जाजाबोर यानी आवारा हूं ।
आमि एक जाजाबोर

आमि एक जाजाबोर का हिंदी रूपान्‍तरण-- वो भी गुलज़ार की कमेन्‍ट्री के साथ---- 'आवारा हूं ।

आमि एक जाजाबोर के बांग्‍ला बोल खोजते हुए मैं मुकुल की वेबसाईट पर जा पहुंचा जहां उसने से इस गाने के बोल और अंग्रेजी अनुवाद दोनों चढ़ा रखे हैं ।
Ami ek jajabor,

prithibi amake apon koreche bhulechi nijer ghar...
tai ami jajabor....ami ek jajabor
ami Gangar theke Mississippi hoe Volgar roop dekhechi,
Ottawar theke Austria hoe Pariser dhulo mekhechi...

ami Ellorar theke rong niye dure Chicago shahare diyechi, Galiber sher Taskhonter minarei boshe shunechi....
Mark Twain er shamadhi te bose Gorkir katha bolechi....

bare bare ami pather tanei pathke karechi ghar tai ami jajabor....
Ami ek jajabor.
Bohu jajabor okhkho bihin amar royeche pon.....

ronger khoni jekhane dekhechi rangiye niechi mon...
ami dekhechi anek gogonchumbi attalikar shari.tar chayatei dekhechi anek grihohin nara nari....
ami dekhechi anek golap ,bokul phute ache thore thore...abar dekhechi naphota phuler
kolira jhore geche anadore.....
prem hin bhalobasha deshe deshe bhengeche shukher ghar.

pather manoosh apon hoyeche apon hoyeche por....
tai ami jajabor.......
ami ek jajabor...
इस गीत का ये अंग्रेजी अनुवाद मुकुल ने ही किया है ।

I am a gypsy The Earth has called me her own

and I have forgotten my own home..
From Ganges to Volga to the very starting point of Mississippi
I have seen and then again from Austria to Ottawa
and got the dust of Paris on me..
I took colors from Ellora and gave them to the far Chicago city..
Heard the poems of Ghalib sitting on a minarette in Tashkent...
Told the tales of Gorki sitting on the tomb of Mark Twain..
Called by the road everytime, finally making the road my home,
that's why I am a gypsy, I am a gypsy..
Wherever I found colors I colored my mind with...
I have seen many skyscrapping highrises under whose shadows again I have seen many homeless people...
I have seen many Roses, Lilies blossoming around and again have seen buds,unblossomed flowers withered from neglect...
the happy homes in every country destroyed by the lack of true love...
the ones I met on the road have become my own and my own have become strangers..
thats why I am a gypsy, I am a gypsy.

भूपेन हज़ारिका के अन्‍य गीत रेडियोवाणी पर यहां हैं :

9 comments:

Ashok Pande April 5, 2008 at 9:55 AM  

यूनुस भाई, मेरे संग्रह से ओरिजिनल वाला 'आमी ऐक जाजाबोर' बहुत दिनों से गा़यब था. आज आपने इसे सुनवा कर अहसान किया है. इस के अलावा तमाम जो अनुवाद वगैरह बाक़ी ज़रूरी जानकारियों के साथ उपलब्ध कराए हैं, उन के लिये भी अलग से एक और बार धन्यवाद.

डॉ. अजीत कुमार April 5, 2008 at 1:58 PM  

यूनुस भाई,
अज्ञेय की अति सुंदर भावों में भीगी कविता आपने रेडियोवाणी पर रखी है. पर एक ओर मैं आपका ध्यान दिलाना चाहूंगा की शायद "पार्श्व गिरी" की जगह "पार्श्व गिरि" ( गिरि = पर्वत) होना चाहिए. गिरी ने तो अर्थ ही बदल दिया है. अंतिम पंक्तियों में "पलक सी खोजी" की जगह क्या "पलक सी खोली" नहीं है?
शंका समाधान करेंगे.

Yunus Khan April 5, 2008 at 3:21 PM  

अजीत जी सही कहा आपने । दोनों बातें सही थीं । पोस्‍‍ट को सुधार दिया गया है । धन्यवाद

Gyan Dutt Pandey April 5, 2008 at 5:12 PM  

जाजाबोर : एक नया शब्द मिला और एक हजारिका की आवाज में सुन्दर गीत भी। धन्यवाद।

Manish Kumar April 6, 2008 at 12:57 AM  

अज्ञेय जी की कविता अनुवाद के साथ पहुँचाने के लिए धन्यवाद..

Anonymous,  April 6, 2008 at 3:03 AM  

यायावर संदर्भ में हज़ारिका के दोनो गीत मधुर हैं उस पर अज्ञेय की कविता का तरंगित उदाहरण और मध्यम वर्गीय ज़मीन में ठहरा भीरुपन का सोच ; सबको साथ जोड़ना: आपकी पोस्ट पर चार चाँद लगा जाता है। पाठक आपके विचारों के साथ जुड़ जाते हैं।

Dr Prabhat Tandon April 6, 2008 at 5:31 AM  

भूपेन्द्र हजारिका की आवाज मे एक बहती नदी की शांति का अहसास है । शुक्रिया यूनूस भाई सुनाने के लिये ।

डॉ .अनुराग April 6, 2008 at 10:51 AM  

aapne mere is sunday ki subah bana di....

संदीप October 7, 2008 at 2:58 AM  

यूनुस भाई,
क्‍या इसके हिंदी अनुवाद की, जो गुलज़ार ने किया है, लिरिक्‍स मिल सकती हैं

मुझे वाकई में यह गीत काफी पसंद है, आज भटकते हुए आपके ब्‍लॉग तक पहुंचा तो बांग्‍ला और हिंदी दोनों ही सुनने को मिले, तबियत प्रसन्‍न हो गयी

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