संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Sunday, April 6, 2008

बाबा दीले टिकवा: आईये शारदा सिन्‍हा को सुनें ।

रेडियोवाणी अच्‍छे संगीत के क़द्रदानों का मंच है । और जहां पिछले कुछ दिनों से मैं आपको भूपेन हज़ारिका के गीतों की म‍हफिल सजाए हुए हूं तो इसी बीच आज अचानक शारदा सिन्‍हा की याद आ गयी । शारदा सिन्‍हा की आवाज़ में ग़ज़ब की कशिश है । गांव की सच्‍ची और अच्‍छी आवाज़ हैं शारदा जी । तो आईये आज ईस्निप्‍स से जुगाड़ा हुआ ये गीत सुना जाए । माफ़ी चाहता हूं कि इसके बोल मैं दे नहीं पा रहा हूं ।

ई-स्निप्‍स से उधार लेकर गाना चढ़ाने में खतरे ये होते हैं कि जब तक ई स्निप्‍स पर गाना रहे तब तक रेडियोवाणी पर भी बजता रहेगा । वहां से गया तो यहां से भी चला जाएगा । फिर भी शौक़ के लिए हम ये जोखिम उठा रहे हैं । तो आईये रविवार को रंगीन बनाएं शारदा सिन्‍हा की आवाज़ से । बोल हैं---बाबा दीले टिकवा ।

 

13 comments:

डॉ .अनुराग April 6, 2008 at 10:50 AM  

gar mai galat nahi hun to ye vahi aavaj hai "titli udi....udke chali...haan is aavaj me bhi kuch khas kashish hai..

Ashok Pande April 6, 2008 at 11:25 AM  

यह इत्तेफ़ाक़ ही माना जाए यूनुस भाई कि बस कुछ ही दिन पहले कबाड़ख़ाने पर शारदा जी का एक गाना लगा था और मैं इस वाले गीत को इस क़दर याद कर रहा था ... मुझे केवल 'हमार जिया' और 'छोटी ननदी' की याद थी. आपका एक और अहसान हो गया साहब! बेहतरीन प्रस्तुति है हमेशा की तरह. कहीं से इनके सीडी वगैरह मिलने की जुगत बताएं.

डॉ. अजीत कुमार April 6, 2008 at 12:02 PM  

यूनुस भाई,
आज मेरे पास आपकी शुक्रिया के लिये शब्द नहीं हैं. आप समझ रहे हैं ना. शारदा सिन्हा जी की आवाज़ तो हम सभी लोकधुनों,लोकगीतों को दिल से पसन्द करने वालों के दिल में रची बसी है. जब वो गाती हैं तो मानो गाँव के मिट्टी की खुशबू जेहन में तैरने लगती है, एक nostalgia सा होने लगता है.

डॉ. अजीत कुमार April 6, 2008 at 12:04 PM  

एक बात और , @ dr. Anurag ji, ये वो आवाज़ नहीं है जो आप समझ रहे हैं.

अमिताभ मीत April 6, 2008 at 1:30 PM  

भाई वाह ! यूनुस भाई शारदा सिन्हा बिहार में शायद सब से प्रसिद्ध और पसंद की जाने वाली कलाकार है. मगही और भोजपुरी में इतने कमाल के गीत गाए हैं इन्हों ने कि बयान नहीं किया जा सकता. शुक्रिया आज के इस गीत का.

Gyan Dutt Pandey April 6, 2008 at 2:07 PM  

बहुत मधुर! बहुत सुन्दर!!

पारुल "पुखराज" April 6, 2008 at 2:53 PM  

वाह! निराली पोस्ट---एकदम सरस---वो भी सुनवाइये-- "कहे तोसे सजनी --पग पग लिये जाऊं तोहरी बलैया"

हिंदी ब्लॉगर/Hindi Blogger April 6, 2008 at 3:15 PM  

वाह, क्या बात है! आनंद आ गया. धन्यवाद!

ganand April 6, 2008 at 7:53 PM  

Yunus jee bahut bahut dhanyawad ye pyara sa lokgeet sunwane ke liye. Sarda sinha jee aur anya kalakron ke bhijpuri lokgeet aap yahan sun sakte hain.

Dr Prabhat Tandon April 7, 2008 at 7:23 AM  

बहुत खूब ! आपके जरिये इन लोकप्रिय लोकगीतों को सुनने का सुनने का मौका मिलता है , शुक्रिया !!!

कंचन सिंह चौहान April 7, 2008 at 11:35 AM  

वाह यूनुस जी मजा आ गया....असल में हमारे भोजपुरी लोकगीतों में ननद भौजाई का सौत और सहेली जैसा समान रिश्ता होता है....सौत वो तब तक होती है जब तक पति पास में होता है क्योंकि पति पर एकाधिकार में उसकी बहन कहीं बाधक हो जाती है...लेकिन जब भी पति दूर होता है तो मन की बातें कहने के लिये ननद को ही उपयुक्त पात्र माना जाता है.... शारदा सिन्हा के ऐसे कितने ही गीत जो इन रिश्तों की कहानी बयाँ करते हुए हैं...! कइसे खेलन जाबू सावन में कजरिया, बदरिया घेरि आइल ननदी
और ये आपकी पोस्ट का गीत

बाबा दिहलें टिकवा सेहोरे हम तेजब,
बलमवा कइसे तेजब हे छोटी ननदी

और एक एक कर के सारे आभूषणों को त्याग कर भी बलम को न छोड़ने की बात भरतीय नारी का वह रूप जिसमें हार श्रृंगार सब कुछ प्रियतम है। सुनने के बाद एक अलग ही आनंद आता है इन गानों को

SahityaShilpi April 7, 2008 at 11:24 PM  

शारदा सिन्हा के नाम से शायद हर लोकसंगीत-प्रेमी परिचित होगा विशेषकर यदि वह भोजपुरी या मगही भाषा से थोड़ा भी परिचित हो. उनकी आवाज़ में माटी की सौंधी खुशबू है जो बरबस अपनी ओर खींचती है. आज एक बार फिर आपने उनकी याद ताजा कर दी. आभार!

- अजय यादव
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