सेक्सॉफोन की दुनिया के सरताज मनोहारी दादा को विनम्र श्रद्धांजली।
कल शाम फेसबुक के ज़रिए ख़बर मिली कि मनोहारी दादा का निधन हो गया।
जी धक से रह गया। पिछले कई दिनों से उनकी याद लगातार आ रही थी। टाइम्स ऑफ इंडिया मुंबई के वीक-एंड पन्नों पर अकसर उनका नाम विज्ञापनों में नज़र आता था और पता चलता रहता था कि वो कब कहां परफॉर्म कर रहे हैं। गए हफ्ते उन्होंने बोरीवली में शंकर-जयकिशन पर केंद्रित संगीत-कार्यक्रम में सेक्सोफ़ोन बजाया था।
मनोहारी दादा से हुई मुलाक़ातें याद आ रही हैं। मुझे याद है कि एक बार छाया गांगुली ने मनोहारी दादा को संगीत-सरिता के लिए बुलवाया था। उन्हें पता था कि मैं मनोहारी दादा के हज़ारों दीवानों में से एक हूं। इसलिए जब मनोहारी दादा आए तो उन्होंने ख़ास तौर पर बुलवा लिया। जब मैंने उन्हें बताया कि किस तरह मैंने खोज-खोजकर उनके कैसेट्स जमा किये हैं, तो उनकी आंखें छलक आई थीं। उस दिन विविध-भारती के स्टूडियो में उन्हें सुनना एक दिव्य अनुभव था।
अभी कुछ साल पहले की बात है। विविध-भारती के कार्यक्रम हमारे मेहमान के लिए मनोहारी दादा का इंटरव्यू लेने की बात तय हुई। कुछ दिन उनकी सेहत ठीक नहीं थी तो मामला टलता रहा। फिर एक दिन वो आए। अपनी मेटल फ्लूट और सेक्सोफोन के साथ। उन्होंने खुले दिल से अपनी जिंदगी के बारे में सब कुछ बताया। और मैंने संकोच करते हुए उनसे कहा कि आप ज्यादा सेक्सोफोन ना बजाएं, सेहत ठीक नहीं थी आपकी कुछ दिन पहले। पर यक़ीन मानिए इस कार्यक्रम में मनोहारी दादा ने सेक्सोफोन और मेटल फ्लूट दोनों के खूब जलवे बिखेरे। बात बात पर धुनें बजाकर सुनाईं। पुराने किस्से दोहराए। सलिल चौधरी के। एस.डी. बर्मन के। और ख़ासतौर पर पंचम के। पंचम---जिनके साथ उनका सबसे लंबा जुड़ाव रहा। बासु-मनोहारी की जोड़ी पंचम के मुख्य-सहायकों में से रही। पंचम की आखिरी फिल्म तक वो उनके साथ थे।
कानों में अभी भी मनोहारी दादा का सेक्सोफोन गूंज रहा है। एक दिलचस्प बात आपको बताई जाए। पिछले दिनों एक ख़ास वजह से मैं मनोहारी दादा के दोनों अलबमों की तलाश कर रहा था। missing u और sax appeal. मिसिंग यू--तो किशोर कुमार को दी गयी मनोहारी दादा की श्रद्धांजली है जिसमें उन्होंने किशोर दा के चुने हुए गानों को सेक्सोफोन पर बजाया है। हालांकि अभी कुछ दिनों से इंटरनेट पर एक और अलबम नज़र आ रहा है 'मेलोडियस मैजिक'। बहरहाल...काफी लोगों से संपर्क किया गया। म्यूजिक-शॉप्स पर फ़ोन किए गए। पता चला कि ये अलबम फिल्हाल उपलब्ध नहीं हैं। फिर अचानक मैं अपने ही संग्रह के कैसेट्स को उलट-पुलट रहा था तो दोनों अलबम एक साथ सुरक्षित पाए गए। इतने दिनों में खुद मुझे ही याद नहीं रहा था कि जाने कहां-कहां से मैंने ये दोनों अलबम ख़रीदे थे--वो भी कैसेट्स पर। उन्हें बाक़ायदा डिजिटाइज़ कर लिया गया है। क्वालिटी के मामले में थोड़ा समझौता करना पड़ा है। पर मनोहारी दादा के ये अनमोल अलबम हमेशा हमेशा उनकी यादें ताज़ा करते रहेंगे। (इस तस्वीर में मोहम्मद रफ़ी, बांसुरी वादक सुमन राज, मनोहारी दादा और हरिप्रसाद चौरसिया सबसे दाहिने)
सेक्सोफोन बेहद मुश्किल वाद्य है। इसे बजाने वाले को अपने जिगर को फूंक डालना पड़ता है। तब जाकर वो आवाज़ निकलती है जिससे हम मद-मस्त हो जाते हैं। मैंने लाइव-ऑर्केस्ट्रा में मनोहारी दादा को म्यूजिक कंडक्ट करते देखा है। खासकर मन्ना दा के एक कंसर्ट में। उस समय उनकी तन्मयता देखते ही बनती थी। मुझे हमेशा हैरत होती रही कि मनोहारी दादा इतनी उम्र के बावजूद अपनी सांसों में वो बल कहां से लाते थे जिससे सेक्सोफोन जिंदा हो उठे। उनकी दीवानगी को सिर्फ वही लोग महसूस कर सकते हैं जो उन्हें जानते थे। उनका प्रिय सेक्सोफोन....वो वाद्य जिसे वो कई बरसों से बजा रहे थे...अब ख़ामोश रहेगा। उन्होंने खुद मुझे बताया था कि ये इंस्ट्रमेन्ट उन्होंने विदेश से मंगवाया था।
उन कुछ गानों की फेहरिस्त जिनमें मनोहारी दादा का सेक्सोफोन गूंजता है--
गाता रहे मेरा दिल—गाइड
दिल ढल जाये-गाइड
ये दुनिया उसी की--काश्मीर की कली
बेदर्दी बालमा तुझको--आरजू
हुई शाम उनका ख्याल आ गया--मेरे हमदम मेरे दोस्त
जा रे उड़ जा रे पंछी- माया
शोले का टाइटल म्यूजिक।
गा मेरे मन गया-लाजवंती
मैं आया हूं लेकर जाम हाथों में--अमीर गरीब
तुम्हें याद होगा जब हम मिले थे-सट्टा बाज़ार
ओ हसीना जुल्फों वाली-तीसरी मंजिल
आवाज़ देके हमें तुम-शालीमार
खिलते हैं गुल यहां-शर्मीली
तुम मुझे यूं--पगला कहीं का
आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे-ब्रम्हचारी
शोख नज़र की बिजलियां--वो कौन थी
आओ हुजूर तुमको-किस्मत etc
मनोहारी दादा के इंटरव्यू के कुछ अंश मेरे निजी संग्रहालय में सुरक्षित हैं। लेकिन आज सिर्फ उनके बजाए दो गाने आपको सुनवा रहा हूं। ये उन्हीं अलबमों से हैं जिनका मैंने जिक्र किया।
‘missing u’ अलबम से फिल्म 'चलते चलते' का शीर्षक गीत।
और ये रहा मनोहारी दादा का एक और कमाल। 'सफ़र' फिल्म का गीत। (हो सकता है कि डिवशेयर का ये प्लेयर क्रोम पर ना चले)
ये तो तय है कि फिल्म-संगीत में ओरीजनल म्यूजिक इंस्ट्रमेन्ट्स बजाने वाले लोगों की एक बड़ी जमात जा चुकी है। और उसकी कोई भरपाई नहीं है। सेक्सोफोन के मामले में तो तीन ही नाम याद आते रहे हैं। मनोहारी दादा, श्याम राज और सुरेश यादव। पर मनोहारी दादा का जाना एक बहुत बड़ा नुकसान है।
दादा...जब भी शाम सुरमई और उदास होगी...जब भी हल्की-सी बारिश होगी...कुहासा छायेगा...जब रात का अकेलापन कुछ और गाढ़ा हो जायेगा...तो आपकी याद और गहरी होती चली जाएगी।
विनम्र श्रद्धांजली।
यू-ट्यूब पर मनोहारी दादा
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विविध भारती पर मनोहारी दादा को श्रद्धांजली आज दिन में एक बजे और रात नौ बजे।
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24 comments:
विनम्र श्रद्धांजलि!!
good tribute yunus da
खबर सुनकर बहुत दुख हुआ ।
चिदंबर काकतकर
मंगलूर
अभी दो सप्ताह पहले ही हमने उन्हें इंडियन आयडल में देखा था, सुन कर बहुत दुःख हुआ.
very sad :(
विनम्र श्रद्धांजलि !!
मनोहारी दा को संगीत सरिता की उस श्रंखला में सुना था जिसमें ख्यात रंगकर्मी और गायक श्री शेखर सेन ने उनसे बातचीत की थी. कभी मिला तो नहीं मनोहारी दा से लेकिन इस कार्यक्रम श्रंखला के ज़रिये पता लग गया था कि वे एक शहाना तबियत इंसान थे. एक ख़ास क़िस्म की शराफ़त उस दौर के कलाकारों में होती थी यूनुस भाई जो उनके संगीत में सुरीलेपन को प्रवाहित करती थी. ये हमारा दुर्भाग्य है और न जाने क्या साज़िश सी नज़र आती है इसमें कि हम क्रिएटिव आर्ट के उन हस्ताक्षरों को तब ही सलाम करते हैं जब वे या तो बहुत मुश्किल में होते हैं या फ़िर हमसे बहुत दूर चले जाते हैं. जिस तरह से संगीत मशीनी होता जा रहा है मनोहारी सिंह,किशोर देसाई, बाबला, केर्सी लॉर्ड जैसे लोगों को हम भुलाते ही जा रहे हैं.ये सोच कर हैरत होती है कि किन प्रेशर्स में इन लोगों ने ट्रेक रेकॉर्डिंग से परे दौर में लाइव म्युज़िक गढ़ा और रफ़ी,लता,आशा,मन्ना डे,मुकेश और किशोर जैसे स्वर साधकों और महान संगीतकारों के लिये कालजयी रचनाएँ दीं. एक लम्हा सोच कर तो देखिये कि ये दुनिया उसी की में से सैक्सोफ़ोन का पीस निकाल दिया जाए तो वह गीत कैसा लगेगा...प्रणाम मनोहारी दा की पावन स्मृति को....वे अपने अनोखे पीसेज़ के ज़रिये हमेशा बने रहेंगे हमारे दिलों में और सैकड़ों सुरीले गीतों में....
विविध भारती और रेडियोवाणी तथा मेरे द्वारा रेडियोनामा पर लिख़ी पोस्ट द्वारा ऐसे महान कलाकार को यहाँ बिलकूल सही सन्मान और श्रद्धांजलि है । और युनूसजी का सेक्षोफ़ोन के प्रति लगाव बहोत ही जाना पहचाना है । पर जैसे संजयजीने बताया कई कलाकार तो इस प्रकारका महान काम करते हुए भी यथायोग्य सन्मान से वंचीत रह गये, हाँ, फिल्म संगीतकारो द्वारा वे सन्मान से बजानेके लिये बुलाये जाते थे, पर आम सिने-संगीत रसीको इनके नाम से अनजान ही रहे । जब केरसी मिस्त्री हयात थे, मैं कई बार उनकी जनमतारीख़ के संदर्भमें उनका विविध भारती पर इन्टरव्यू सुनाने के लिये थोडे पहेले से लिख़ता रहता था पर चाहे मेईल हो या पत्र या फेक्स कोई मतलब नहीं रहता था । और आज वे नहीं है । आज भी मेरी कोशिश पियानो और पियानो-एकोर्डियन वादक और वाद्यवृंद संयोजक पूणे स्थित श्री एनोक डेनियेल्स के बारेमें जारी है । पर बिना आश की । क्या मेरी यह बात युनूसजी विविध भारती के उच्च अधिकारीयों को पहोंचायेगे ? उनकी आयु भी 77 साल है । हाँ, वे आज भी पूणे से मुम्बई कार-ड्राईव कर सकते है । जब वर्ड-स्पेस का हिन्दी चेनल रेडियो फरिस्ता उनका इन्टर्व्यू प्रसारित कर सकता है तो विविध भारती क्यों नहीँ । थोडे विषयांतर के लिये युनूसजी और पाठको से क्षमा प्रार्थना । पर यहाँ बात सिर्फ एनोक डेनियेल्स साहबके लिये नहीं पर कई जाने-अनजाने वादक कलाकारों के लिये है । मनोहरीदाने नादूरस्त स्वास्थ्य के साथ भी लम्बी ही नहीं बड़ी जिन्दगी जी ली और करीब अंतीम समय तक कलाकार बने रहे । श्री चिदाम्बरजी को धन्यवाद की रेडियोनामा पर भी टिपणी दी ।
पियुष महेता ।
सुरत-395001.
अन्य दो सेक्षोफोन वादक श्री सुरेशजी और श्यामराजजी को युनूसजीने याद किया उन दोनों से मेरी मुलाकात और जानपहचान हुई है, और श्यामराजजी मनोहरीदा के बहोत ही करीबी रहे है । मनोहरीदा अल्टो सेक्षोफोन बजाते रहे थे, जो सुरेशजी भी बजाते है पर श्यामराजजी टेनर ससेक्षोफोन बजाते है । और सुरेशजी तथा श्यामराजजी सुप्रानो सेक्षोफोन भी बजाते है और सुरेशजी सुप्रानिनो नामके एक नये प्रकारका सेक्षोफोन भी बजाये है । इनके अलावा जो गोम्स, नरेन्द्र सिंह राजपूत (काका), स्व. ज़्होनी रोड्रीग्स (जिनका जिक्र मैनें श्री एनोक डेनियेल्सजी की जनम्दिन की पोस्ट पर रेडियोनामा में फिल्म मेरा नाम जोकर के शिर्षक गीत की धून को प्रस्तूत करते हुए श्री राज कपूरजी की हंसी को सेक्षोफोन में ढालने की बात को करते हुए किया था और ठाकोर सिंह (इलेक्ट्रीक हवाईन गिटार वादक स्व. हज़ारा सिंह के पुत्र) तथा स्व. मनोहरी दा के प्रेरणा स्त्रोत स्व. राम सिंह (जिनकी धोने रेडियो सिलोन के पास आज भी बजाने लायक रही है 78 आरपीएम) वगैरह है ।
पियुष महेता ।
सुरत
विनम्र श्रद्धांजलि
ये तो वाकई दुखद समाचार है.
इतने महान फनकार का चला जाना अखर गया है.
सेक्सोफोन को तो मैं निजी तौर पर बेहद पंसद करता हूं.
क्या आप बता सकते है कि missing u और sax appeal.की सीडी कहां मिल पाएंगी.
कृपया मुझे इसकी एक कापी दे देंगे तो आभारी रहूंगा या फिर नेट से कैसे निकालना है यह भी बता सकेंगे तो कृपा होगी.
very sad.
यह बडे अफ़सॊस की बात है कि फ़िल्मों के टयटलस मे वाहन चालकों तक के नाम होते हैं लेकिन उन साजिंदों का जिक्र तक नहिं होता जो गानों में जान भर देते हैं । न जाने कितने ऐसे गुनी कलाकार होंगे जिन की कला का हम रोज आस्वादन करते हैं और उनका नाम तक नहीं जानते । शुक्र है कि इन्टर्नेट तथा विविधभारती के कारण देर से ही सही पर कुछ लोगों का तो परिचय हो रहा है । कई बरसों से हम रेडियो सिलोन पर मास्टर इब्राहिम और मास्टर अजमेरी का क्लरियोनेट वादन सुनते आये हैं । क्या ये भी फ़िल्मों मे बजाते थे या सिर्फ़ फ़िल्मी धुनें ही बजाते थे ? पीयुष मेहेता जी इस पर कुछ रोशनी डाल सकेंगे?
चिदंबर काकतकर
ओह रुला दिया आपने आख़िरी पंक्तियाँ लिखकर... उन्हें मेरी ओर से भी विनम्र श्रद्धांजलि... पता नहीं उनका कोई उत्तराधिकारी तैयार होगा कि नहीं...
सेक्सॉफोन बजाने में जिगर लगा देना पड़ता है शायद इसीलिये इसकी धुन अंदर तक हिला देती है... मैं मनोहारी दादा के बारे में ज्यादा नहीं जानती थी, आज जाना, पर जब मैं कश्मीर की कली के "ये दुनिया उसी की ज़माना उसी का" गाने में सेक्साफोन की धुन सुनती हूँ तो पागल हो जाती हूँ... अब इस गाने को सुनने पर मनोहारी दादा की याद भी आयेगी.
................................. !
चिदम्बरजी,
मास्टर इब्राहीम और मास्टर अजमेरी हकीकतमें एक ही कलाकार थे और एच एम वी के स्टाफ में ही क्लेरीनेट वादक की हेसीयत से थे । सिर्फ़ रेडियो सिलोन पर ही नहीं पर आज भी विविध भारती के राष्ट्रीय नेटवर्कमें स्थानिय विज्ञापन के लिये दिये जाने वाले अन्तरालमें युनूसजी सहीत कई उद्दधोषको इनकी एक एल पी , जो हक़ीकतमें पूरानी 78 आरपीएम रेकोर्ड्झ में पूर्व-प्रकाशित धूनो को मोनो साउन्ड में सीधा ही प्रस्तूत किया गया है । जैसे तू प्यार का सागर है-फिल्म सीमा और आजा रे परदेशी-फ़िल्म मधूमती की धूने जब भी सुने यह बात याद किजीयेगा । एक दो गीनी चूनी फिल्ममें उन्होंनें संगीत भी दिया था पर इस बक्त उन फिल्मों के नाम मेरे मनमें आ नहीं रहे है । पर वे पाश्च्यात्य सुरावलि से ज्ञात नहीं थे, इस लिये वे फिल्म-संगीतकारों के वाद्यवृंदोमें ज्यादा बजा नहीं पाये थे ।
पियुष महेता
सुरत
चिदम्बरजी,
मास्टर इब्राहीम और मास्टर अजमेरी हकीकतमें एक ही कलाकार थे और एच एम वी के स्टाफ में ही क्लेरीनेट वादक की हेसीयत से थे । सिर्फ़ रेडियो सिलोन पर ही नहीं पर आज भी विविध भारती के राष्ट्रीय नेटवर्कमें स्थानिय विज्ञापन के लिये दिये जाने वाले अन्तरालमें युनूसजी सहीत कई उद्दधोषको इनकी एक एल पी , जो हक़ीकतमें पूरानी 78 आरपीएम रेकोर्ड्झ में पूर्व-प्रकाशित धूनो को मोनो साउन्ड में सीधा ही प्रस्तूत किया गया है । जैसे तू प्यार का सागर है-फिल्म सीमा और आजा रे परदेशी-फ़िल्म मधूमती की धूने जब भी सुने यह बात याद किजीयेगा । एक दो गीनी चूनी फिल्ममें उन्होंनें संगीत भी दिया था पर इस बक्त उन फिल्मों के नाम मेरे मनमें आ नहीं रहे है । पर वे पाश्च्यात्य सुरावलि से ज्ञात नहीं थे, इस लिये वे फिल्म-संगीतकारों के वाद्यवृंदोमें ज्यादा बजा नहीं पाये थे ।
पियुष महेता
सुरत
yeh yuva peedhi ka durbhagya hai ki wo aise fankaron se mahroom ho jayegi, fir bhi dhanya hain aap jo ki unki khoobsoorat kala ko hum tak pahunchate rahte hain.
याद आती है वो शाम जब आपके द्वारा प्रस्तुत मनोहारी दादा के उस साक्षात्कार को सुनने का सौभाग्य मिला था. और अब उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं हम. ज्यादा तो कुछ नही कह पाऊंगा.. पर आपही के शब्दों को दोहरा दूंगा के - " दादा...जब भी शाम सुरमई और उदास होगी...जब भी हल्की-सी बारिश होगी...कुहासा छायेगा...जब रात का अकेलापन कुछ और गाढ़ा हो जायेगा...तो आपकी याद और गहरी होती चली जाएगी।"
मनोहारी दादा का जाना निश्चय ही संगीत जगत के लिए एक आघात है....लेकिन आज की डिजिटल-पीढ़ी इसे क्या समझेगी और क्या महसूस करेगी ! उनके जाने के शोक समाचारको सुन लगा जैसे पंचम दा फिर से हमें छोड़ गए हों ....इतने वर्षों बाद फिर वही दर्द का वैसा सा ही अहसास उभर आया ! मैं हमेशा से ही उन्हें पंचम दा का अभिन्न अंग ही मानते आया हूँ....( हो सकता है कि शायद यह अनुचित हो ... मगर क्या करूँ...) कानों में फिल्म सट्टा बाज़ार का गीत " तुम्हे याद होगा ..." का कभी ना भुलाया जाने वाला दादा का म्यूजिक पीस सुनाई दे रहा है ...)
युनुस भाई , आपकी श्रद्धांजलि ने मन की पहले से ही भीगी हुई ज़मीन को और भी गीला कर दिया !
abhi kuch din pahle idian idiol mai aasha ji ke sath aaye the.....sunkar dukh huaa
meri shraddhaanjlee ...
aur
आवाज़ देके हमें तुम-(शालीमार) . . .??
सचमुच कमल था उनका जादू ........सही कहा आपने ,अगर आप " ये दुनिया उसी की सुने " तो बोलों से ज़्यादा ज़हन में सेक्साफोन की लहराती धुन और रफ़ीसाहब की आवाज़ में गूजती रह जाती है, मनोहारी सिंह ने कई गानों में कमल किया है जैसे , हंसते ज़ख्म’ में ‘तुम जो मिल गए हो’ में जो फ्ल्यूट बजाया है , ज़रा याद कीजिए ‘तुम बिन जाऊं कहाँ, कि दुनिया में आ के ,' में बजा मेंडोलिन ......‘प्रोफ़ेसर’ में ‘आवाज़ दे के हमें तुम बुलाओ, मोहब्बत में इतना न हमको सताओ’ में क्या कमाल का पीस बजाया है।
guide के गीतों में "गाता रहे मेरा दिल"के अंतरों में में सेक्स्फोने क्या कमाल का है आप ज़रा गौर से सुनकर देखें कैसे सेक्साफोन धीमे से ‘मेरे तेरे दिल का, तय था इक दिन मिलना / जैसे बहार आने पर तय है फूल का खिलना’ जैसी पंक्तियों को शब्द की परछाईं बनकर रूह भरता है। या फिर अंतरे में बिना शब्द सारे माहौल को बयान करना। पूरे के पूरे गीत में ही सेक्साफोन आत्मा की तरह प्रवाहित होता है।
मनोहारी सचमुच बहुखी प्रतिभा के धनि थे ,सेक्सोफोन , और flute को छोड़िये , फिल्म ‘कटी पतंग’ के गीत ‘ये शाम मस्तानी, मदहोश किए जाय’ की सीटी याद कीजये वोह भी उन्ही का कमाल है i
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