संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Thursday, March 20, 2008

सेक्‍सोफोन पर मनोहारी सिंह की बजाई धुन-'हम बेवफ़ा हरगिज़ ना थे'

रेडियोवाणी पर हमने फिल्‍मी गीतों के instrumentals की एक अनियमित श्रृंखला शुरू की है । दरअसल इस श्रृंखला को शुरू करने के पीछे कहीं ना कहीं मन में मनोहारी सिंह के बारे में लिखने की तमन्‍ना छिपी थी । मनोहारी सिंह विख्‍यात म्‍यूजि़क अरेन्‍जर, संगीतकार, सेक्‍सोफोन और मेटल फ्लूट वादक हैं । मुझे उनका सेक्‍सोफोन वादक वाला रूप ज्‍यादा पसंद है । आपको बता दूं कि उनसे कई बार मुलाक़ात हो चुकी है । उनकी प्रतिभा को सलाम करते हुए एक बार उन्‍हें विविध भारती में भी बुलाया गया था और मैंने उनसे लंबी बातचीत की थी । उनकी सफ़र और उनके संघर्ष के बारे में सुना था आमने सामने बैठकर । इस दौरान मनोहारी दादा ने काफी कुछ बजाया भी था । पिछले दिनों सुनने में आया था कि मनोहारी दादा की तबियत ठीक नहीं थी । अब वे स्‍वस्‍थ हैं ।


अगर आप मनोहारी सिंह के बारे में और जानना चाहते हैं तो ज़रा अंग्रेज़ी अख़बार DNA की इस लिंक पर जाएं । और मनोहारी दादा का इंटरव्‍यू पढें photo 1। ये तस्‍वीर मैंने इसी वेबसाईट से साभार ली है । ज़रा तस्‍वीर में मौजूद लोगों को पहचानिए । मोहम्‍मद रफ़ी साहब को तो आप पहचान गये होंगे । फिर हैं फिल्‍मों में बांसुरी बजाकर मशहूर हुए सुमन राज, फिर मनोहारी सिंह और सबसे दाहिनी तरफ विख्‍यात बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ।


वैसे आपको बता दें कि अगर आप सेक्‍सोफोन की तरंग को पहचानते हैं तो समझ लीजिए कि हिंदी फिल्‍मी गीतों के interludes में जहां कहीं भी सेक्‍सोफोन बजता सुनाई दे, उसे मनोहारी सिंह से जोड़ लीजिए । पचास के दशक से आज तक वो सेक्‍सोफोन बजाते आ रहे हैं । अब काश्‍मीर की कली फिल्‍म का वो गीत लीजिए--'ये दुनिया उसी की ज़माना उसी का' या फिर आरज़ू फिल्‍म का 'बेदर्दी बालमा तुझको मेरा मन याद करता है' या फिर आराधना का 'रूप तेरा मस्‍ताना' सभी गानों में सेक्‍सोफोन बजाने के लिए मनोहारी दादा ने अपना जिगर फूंका है । आगे चलकर मैं अपने पॉडकास्‍ट के ज़रिए आपको मनोहारी दादा के सेक्‍सोफोन से परिचित कराऊंगा । और ज़रूर कराऊंगा । लेकिन फिलहाल कुछ बातें और फिर एक धुन ।


मनोहारी दादा के फिल्‍म संगीत जगत में जो सम्‍मान प्राप्‍त है वो विरलों को मिलता है । वे बेहद विनम्र हैं, बहुत कद्दावर शख्सियत हैं । दिलचस्‍प ये है कि आज तक लगातार वो कई स्‍टेज शो करते हैं । कुछ वर्ष पहले मन्‍नाडे के एक स्‍टेज शो के लिए जब हम पहुंचे तो पाया कि यहां संगीत की बागडोर तो अपने मनोहारी दादा संभाल रहे हैं । अगर आपको मनोहारी दादा को सेक्‍सोफोन बजाते हुए सुनना है तो यू-ट्यूब पर जाईये और ज़रा सर्च कीजिए । कई वीडियोज़ मिल जाएंगे । फिलहाल आपके लिए वो ट्यून जो मेरे लिए बहुत ख़ास है । किशोर दा के गीतों को लेकर मनोहारी दादा ने सेक्‍सोफोन पर बजाई धुनों का एक अलबम निकाला था 'मिसिंग यू' । concord नामक म्‍यूजि़क कंपनी ने इस कैसेट को रिलीज़ किया था । मेरे संग्रह में ये कैसेट सुरक्षित है । पर ये धुन मैंने जुगाड़ कर कहीं और से प्राप्‍त की है । तो आईये शालीमार फिल्‍म के इस शानदार गाने की बेमिसाल धुन से होकर गुज़रा जाए । और मुमकिन हो तो ज़रा तसल्‍ली से बैठिये । आंखें बंद कीजिए और हौले हौले इस धुन को दिल में उतरने दीजिए । आनंद दोगुना हो जाएगा । मनोहारी दादा-- हम आपके फ़न को सलाम करते हैं ।


9 comments:

Arun Arora March 20, 2008 at 9:49 AM  

"दादा-- हम आपके फ़न को सलाम करते हैं "
और हम आपकी पसंद को

mamta March 20, 2008 at 1:29 PM  

सुनने मे आनंद आ गया। शुक्रिया ऐसी नायब धुन सुनाने का।

Anonymous,  March 20, 2008 at 1:29 PM  

Hello. This post is likeable, and your blog is very interesting, congratulations :-). I will add in my blogroll =). If possible gives a last there on my blog, it is about the Câmera Digital, I hope you enjoy. The address is http://camera-fotografica-digital.blogspot.com. A hug.

Gyan Dutt Pandey March 20, 2008 at 2:55 PM  

आपकी पोस्ट पर आने पर ही ऑडियो की जरूरत पड़ती है और पता चलता है कि तार कहीं निकले हुये हैं!
खैर, पोस्ट पढ़ी और कमेण्ट भी - स्पैम कमेण्ट सहित!

कंचन सिंह चौहान March 21, 2008 at 8:39 PM  

हम अंजानों को ये जानकरी देने का धन्यवाद

Anonymous,  March 21, 2008 at 11:46 PM  

सच कहा आपनें यूनुस यह आँखें बंद करके चैन से सुनने वाली धुन ही तो है। आनंद आया ।

Unknown March 22, 2008 at 12:49 AM  

यूनुस भाई - कल आज छुट्टी में ही पुराने सारे गाने सुने - पिछले दस दिन आराम से बैठ कर सुनना नहीं हुआ था - रात देर हो रही थी - जितने instrumental pieces रहे हैं बहुत ही नायाब रहे हैं - beatles वाले गाने का अफ़साना nostalgic रहा [- वैसे आज तो Heather Mills इस पर प्रकाश डालने की स्थिति में हैं - ] होली + ईद मिलाद-उल-नबी की बहुत शुभ कामनाएं - सस्नेह - मनीष

SahityaShilpi March 22, 2008 at 9:32 AM  

धुन सुनते-सुनते कुछ पल को कहीं खो सा गया. मनोहारी दादा को हमारा सलाम और आपका शुक्रिया ये नायाब धुन सुनवाने के लिये.


- अजय यादव
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http://intermittent-thoughts.blogspot.com/

Atul Sharma August 22, 2010 at 11:43 AM  

यूनुसजी, मनोहारी दादा तो अद्भुत कलाकार थे। आप ऑडेसिटी सॉफ़्टवेयर से कैसेट से MP3 फ़ॉर्मेट रिकॉर्ड कर सकते हैं। सॉफ़्टवेयर यहाँ से डाउनलोड करें:
http://audacity.sourceforge.net/

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