संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Monday, July 30, 2007

कल मो. रफ़ी की पुण्‍यतिथि है, बताईये रफ़ी आपको क्‍यों प्रिय हैं


कल मो. रफी की पुण्‍यतिथि है ।
जब शोर और संगीत का फ़र्क़ मिटता जा रहा है, तो इस दिन हम अपने मेहबूब फ़नकार को सलाम करेंगे और ज़माने के चलन पर सोग़ मनायेंगे ।

31 जुलाई का दिन दो हस्तियों के लिए याद किया जाता है । एक मो0 रफी और दूसरे प्रेमचंद ।

दोनों को हमने याद भी रखा पर प्रकारांतर से भुला भी तो दिया है ।

मो0 रफी पर कल ‘रेडियोवाणी’ पर एक विशेष आयोजन किया जायेगा ।
‘ज्ञान’ जी क्‍या मैं आपसे प्रेमचंद पर लिखने का निवेदन कर सकता हूं ।

लेकिन फिलहाल कल तक आपको बताने हैं रफ़ी के अपने पसंदीदा गीत । नहीं
समीर भाई, ये गुज़ारिश मैं अपने नए पॉडकास्‍ट के लिए नहीं कर रहा । थोड़े दिनों के लिए पॉडकास्‍ट को विराम दिया जा रहा है । कुछ हफ्ते रूकियेगा पॉडकास्‍ट के लिए ।

दरअसल जब हमारा सामूहिक-ब्‍लॉग रेडियोनामा शुरू हो जायेगा तब इस तरह की चर्चाएं उस ब्‍लॉग पर ही की जायेंगी । लेकिन रफ़ी साहब के बहाने हम ये जानना चाहते हैं कि एक कालजयी कलाकार हमारी जिंदगी में किस क़दर दख़ल रखता है । हमारी जिंदगी के वो कौन से लम्‍हे होते हैं जो इनकी वजह से अनमोल बन जाते हैं ।

रफ़ी साहब ने आपकी जिंदगी के किन दिनों को यादगार बनाया है यही जानना चाहता हूं मैं । आपकी बातों को संपादित करके एक पूरी पोस्‍ट में प्रस्‍तुत करने की इच्‍छा है ।

साथ में मैं भी बताऊंगा कि रफ़ी साहब ने मेरी जिंदगी पर क्‍या असर डाला है ।

मैं फिर से स्‍पष्‍ट कर दूं कि केवल गाने मत बताईयेगा बल्कि ये भी बताईये कि जिंदगी के किस मोड़ पर इन गानों ने आपके मन को छुआ । इन गानों का आपकी जिंदगी में क्‍या महत्‍त्‍व है वग़ैरह । ताकि हम गानों से रची एक पूरी दुनिया से वाकिफ़ हो सकें और जान सकें कि कुछ कालजयी कलाकार और कुछ कालजयी गीत केवल रिकॉर्ड पर नहीं होते, वो तो हर सरहद को पार करते हुए हमारे मन की कंदराओं में समा जाते हैं । हमारे लहू में घुल जाते हैं । हमारी ज़ुबां पर चढ़ जाते हैं और हमारे मस्तिष्‍क पर छप जाते हैं । कैसे और
कब । क्‍या पता ।

फिलहाल तो रफ़ी साहब पर तैयार की गयी कुछ पुरानी पोस्‍टों का ब्‍यौरा नीचे दिया गया
है ।

रफी साहब को गाते हुए देखने के लिए
यहां पर क्लिक करें

रफी साहब के
इस गीत को पूरे हुए साठ साल



मुझे आपकी टिप्‍पणियों का इंतज़ार है ।



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11 comments:

Udan Tashtari July 30, 2007 at 7:20 PM  

रफी कोई व्यक्ति न होकर एक पूरा युग थे तो विशेषकर यह कहना कि क्यूँ पसंद थे, संभव नहीं.

-ओ दूर के मुसाफिर, हमको भी साथ ले-मेरा पसंदीदा नगमा रहा है. वो जरुर सुनवाने का प्रयास करियेगा. :)

इन्तजार है.

Shiv July 30, 2007 at 7:43 PM  

Yunus Bhai,

Ab kya jawaab dein aapke sawaal ka..Rafi Sahab ko pasand karne do-chaar kaaran hon to likhein...

Hum sabko phool kyon pasand hain?..Aasmaan kyon pasand hai?...Samundar kyon pasand hai?...Achchhe insaan kyon pasand hain?...Kaun jawaab de sakta hai?..

Rafi sahab kyon pasand hain?...Likh kar jawaab kaun dega?..

mamta July 30, 2007 at 8:19 PM  

रफी साब की आवाज हर कलाकार पर फिट बैठती थी वो चाहे राजेंद्र कुमार हो या शम्मी कपूर हो या राजेश खन्ना हो या धर्मेंद्र । देव आनंद को भला कैसे भूल सकते है।

गाने तो अनगिनत है कहॉ तक गिन्वायें।
१.तू प्यार का सागर है।
२.दीवाना हुआ बादल।
३.खोया-खोया चांद।
४.नैन लड़ जहिये ।
५.चक्के पे चक्का
६.कर चले हम फ़िदा ।

sanjay patel July 30, 2007 at 9:13 PM  

रफ़ी महज़ एक जिस्म या आवाज़ नहीं..हम संगीत प्रेमियों के लिये काशी और क़ाबा हैं.उन्हे सुन लेने से मिलता है तीर्थों का सवाब और जीते जी मोक्ष हमारी इस माटी से भी काची काया को.लगता है वह संसारियों के पाप धोने आए थे.जब वे सदेह रूख़सत हुए तब रमज़ान चल रहे थे..आज आपके ब्लाँग पर पहली बार ये बात सार्वजनिक कर रहा हूं कि 31 जुलाई को उपवास रखता हूं..इसे रोज़ा भी कह लें आप.रफ़ी साहब के चंद गानों की फ़ेहरिस्त बना सकूं ऐसी औक़ात नहीं मेरीक्योंकि रफ़ी घराने में कुछ भी बेसुरा कहाँ.मुझे लगता है उनकी सांस भी तो किसी तरन्नूम से कम नहीं रही होगी.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` July 30, 2007 at 10:56 PM  

Meri shradhdhanjali humare aadarniya Shree Mohammed Rafi sahab ke liye , aaj unki punya tithi per sadar, samarpit hai.

Jab main bachchee thee tub " Man tadpat Hari Darshan ko aaj "
ye " Baiju Bawra " chitra pat ka geet sun ker, main, rone lagee thee aisa meri Amma (smt Susheela Narendra Sharma ji ) ka kehna tha...
aur meri Nani ji (Kapila Ba ) ne mujhe godee mei uthate hue meri amma ko kaha ki "Ye bitiya badee bhavuk hai !"
Aisa zabardast asar Rafi saab ki gayki ka ek bachche ke jahan per pada ho wo kaise dhundhla sakta hai bhala Samay ke dhundh se ?

Fir college ke dino mei "YAHOOO !! Chahe koyee mujhe Junglee kahe " kee bulund aawaz aur Shammi Kapoor aur Saira ji ki jodi Kashmir ki Wadiyon mei dekh ker romanch huaa aur tab tak itna to jaan gayee thee ki ye awaz to Rafi Sahab ki hai !

Suna tha ki humare Khar ke Ghar se, kuch fasle per Bandra mei, bhare poore pariwar ke sath rehte Rafi ji nihayat sharif insaan the aur apnee tabiyat ke bare mei kisise kuch kehte nahee the ..jis ke karan, we humse chotee oomar mei hee , Sangeet ki Duniya ko soona soona chod ker chal base ! :-(

"Suhanee raat dhal chukee, na jane TUM kab aaoge "
Ye teesra geet humare chahete Rafi sahab ki yaad mei ,
unhi ke liye ..

Aise Sureele Insaan baar baar Janam nahee lete aisa Swar samragnee Lata Mangeshker ji ka kehna hai ..
jinki perfect Female voice ke samne perfect voice sirf Rafi sahab ki hai
aisa main maanti hoon ---
"ye 4 th song bajta rahega ...rooh ke sath tadapa tadpa ker..
"Meri aawaz suno, pyar ka raag suno..Naunihaal aate hain.."
Shukriya --

Gyan Dutt Pandey July 31, 2007 at 1:29 AM  

1. कौन होगा जिसे रफ़ी साहब पसन्द न हों!
2. मुंशी प्रेमचन्द पर लिखने के लिये तो कुछ साधना करने पड़ेगी बन्धु. उन्हे पढ़ कर आनन्द लेना सरल है. पर उन पर लिखना तो अध्ययन मांगता है!

अनुराग श्रीवास्तव July 31, 2007 at 6:51 AM  

मोहम्मद रफ़ी क्यों अच्छे लगते हैं? शब्दों में इस सवाल का जवाब देना शायद मुमकिन नहीं है. हाँ, कुछ सवाल पूछ कर शायद जवाब की झलक मिल जाये.

भोर के आसमान पर सूरज की लालिमा क्यों अच्छी लगती है? आम के बौर को छूकर आती हुई बसंती हवा क्यों अच्छी लगती है? रात का धुला आसमान क्यों अच्छा लगता है? गेहूँ के बोरे में हाथ घुसेड़ कर मुट्ठी बांधना क्यों अच्छा लगता है? गहरा शांत सागर क्यों अच्छा लगता है? मंदिर की घंटियों की खनक क्यों अच्छी लगती है? बच्चों का रोना भी क्यों अच्छा लगता है? नदी की कलकल क्यों अच्छी लगती है?

बस, अच्छा लगता है. इसको शब्दों में बांधना ठीक नहीं होगा.

था जुदा सबसे
मेरे इश्क का अंदाज़ सुनो
मेरी आवाज़ सुनो..

(रफ़ी, मदन मोहन, नौनिहाल)

Pramendra Pratap Singh July 31, 2007 at 8:22 AM  

क्‍यों अच्‍छे लगते है इसके लिये तो एक पूरी क‍िताब लिखनी पड़ेगी।

Dr Prabhat Tandon July 31, 2007 at 8:25 AM  

रफ़ी साहब को कुछ शब्दों मे व्यक्त करना बहुत ही मुशिकल काम है । मुझे याद है कि जब मैने उनके देहांत की खबर आकाशावाणी पर सुबह आठ बजे सुनी थी तो पूरा दिन बहुत ही बैचेनी के साथ बीता । तब मेरी उभ्र बहुत ही कम थी लेकिन रफ़ी जी के देहातं को सुनकर ऐसा लगा था कि मेरे परिवार का ही एक इन्सान हम से जुदा हो गया ।

Anonymous,  July 31, 2007 at 11:27 AM  

रफी और प्रेमचंद दोनों एक फिल्म से जुड़े है - ग़बन

गीत है -

ऐहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों

अन्न्पूर्णा

डॉ. अख़लाक़ उस्मानी August 3, 2009 at 6:27 PM  

वजह दिल है और कुछ नहीं, क्या ही कोई करेगा जो रफ़ी साहब ने कर दिया। वे भारत के, इंसानियत के, हिन्दी उर्दू भाषा के, रुमानियत के, जज़्बात के .... लातादाद भावों के रहनुमा हैं... रफ़ी एक दुनिया हैं जिसे जो अहसास चाहिए ढूँढ सकता है। उनकी दुनिया में मेरी भी एक छोटी सी कुटिया है।

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