तेरे ख़ुश्बू में बसे ख़त...जगजीत के जन्मदिन पर।
आज जगजीत सिंह का जन्मदिन है।
उस अज़ीम आवाज़ का जन्मदिन जिसकी उंगली पकड़कर हमने हाई-स्कूल के दिनों में ‘सुनना’ सीखा। क्या दीवानगी थी वो...वो तपती पागल दोपहरों और सुरमई उदास शामों और सितारों से जड़ी रातों के दिन थे। वो रेडियो के दिन थे। वो दिन थे फिलिप्स के बेशक़ीमती सिंगल स्पीकर कैसेट प्लेयर के।
वो इंटरनेट के नहीं पत्रिकाओं और अख़बारों के दिन थे। जगजीत के बारे में एक लाइन भी कहीं लिखी मिल जाती तो मानो ख़ज़ाना मिल जाता। जेबख़र्च उन दिनों जगजीत के कैसेट्स ख़रीदने में जाता। और डायरियों में दर्ज होतीं वो ग़ज़लें--वो फिल्मी गाने जो जगजीत गाते रहे। फिर कठिन अलफ़ाज के मायने खोजे जाते और दोस्तों पर रौब झाड़ा जाता कि हम जगजीत को सुनते हैं।
उन दिनों की एक और बात याद आयी। अचानक ख़बर आयी कि जगजीत के बेटे विवेक का एक सड़क हादसे में निधन हो गया है। और अब चित्रा जी नहीं गायेंगी। हाई-स्कूल के उन दिनों में हमने कहीं से पता खोजकर चित्रा जी के नाम एक चिट्ठी लिखी कि उन्हें गाना चाहिए। पता नहीं हमारी चिट्ठी वहां तक पहुंची और पढ़ी गयी या नहीं। पर चित्रा जी ने उससे आगे गाया नहीं। जगजीत ने गाया। पर फिर पुलों के नीचे से इतना पानी बह गया, पहाड़ों की बर्फ इतनी पिघल गयी और दुनिया इतनी बदल गयी कि हमारी जगजीत भी तरल होते चले गये। और हमने तय किया कि जगजीत की पुरानी आवाज़ को संदूक में सहेज कर रखेंगे। और पुरानी तस्वीरों के तरह बीच-बीच में वहां पनाह लेंगे।
कम नहीं है जगजीत का योगदान हम सब की जिंदगी में। उन्होंने हमारे दिनों को उजला बनाया। हमारी उन उदास शामों को और सुरमई बनाया..जिनमें हम सचमुच और ज्यादा उदास रहना चाहते थे। तारों जड़ी रातें तो कब की खो गयीं, पर समंदर किनारे के इस शहर में--सचमुच समंदर के किनारे हमने जगजीत को ख़ूब सुना। उन्हें देखा। उनसे फ़ोन पर बातें कीं। अब तक अपनी फ़ोन-बुक से हम उनका नाम-नंबर 'इरेज़' नहीं कर पाए। इसलिए कि जगजीत गये नहीं हैं...हैं...बस हम उनसे बात नहीं कर सकते।
इसलिए अपने अज़ीज़ फ़नकार 'मन-जीते-जगजीत' को सालगिरह की मुबारकबाद। और आपकी नज़र उनकी आवाज़ में ये रचना।
Nazm: Tere Khusboo Mein Base Khat
Lyrics: Rajendra Nath Rehbar
Singer: Jagjit Singh
तेरे ख़ुश्बू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे
प्यार में डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे
जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाए रखा
जिनको इक उम्र कलेजे से लगाए रखा
दीन जिनको, जिन्हें ईमान बनाए रखा
तेरे खुश्बू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे
जिनका हर लफ्ज़ मुझे याद था पानी की तरह
याद थे मुझको जो पैग़ाम-ए-जुबानी की तरह
मुझको प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह
तेरे ख़ुश्बू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे
तूने दुनिया की निगाहों से जो बचाकर लिखे
साल-हा-साल मेरे नाम बराबर लिखे
कभी दिन में तो कभी रात को उठकर लिखे
तेरे ख़ुश्बू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे प्यार में डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूं
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूं।
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4 comments:
जगजीत सिंह जैसे ग़ज़ल गायक अब तक कभी इस सदी में हुए हैं, न होंगे.उनको नमन
अहा, सुनते ही मन खो जाता है।
बार- बार सुनने का मन करता है हमेशा हमारे साथ रहेगे अपने गीत और गजलो के.के स्वर मे...
Jab tak zindgi rahegi....unhe youn hi sunte rahenge...
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