हम देखेंगे...लाजिम है कि हम भी देखेंगे--इकबाल बानो की आवाज़.
आज हमारे प्रिय शायर फ़ैज़ की याद का दिन है।
'फ़ैज' एक बीहड़ जिंदगी जीने वाले शायर। कितना बड़ा है उनकी लेखनी का कैनवस। उनकी पैदाइश को एक सौ तीन साल पूरे हुए। इस दौरान दुनिया बहुत बदल गयी। तकनीक जिंदगी और समाज पर हावी हो गयी। सरोकार तरल होते चले गये। और फ़ैज़ की ज़रूरत और सांद्र होती चली गयी। उनके अशआर का वज़न सघन होता गया।
रेडियोवाणी पर हमने 'फ़ैज़' को अकसर याद किया है। एक दिलचस्प बात आपको बतायें। शायद 'ग़ालिब' के बाद 'फ़ैज़' ऐसे शायर रहे हैं जिन्हें ख़ूब गाया गया है। नैयरा नूर, इकबाल बानो, उ. बरक़त अली ख़ां, हरिहरन, मेहदी हसन, टीना सानी, गुलाम अली, आशा भोसले जैसे कितने कितने फ़नकारों ने उन्हें अपनी आवाज़ बख्शी। और तकरीबन सबकी आवाज़ में फ़ैज़ को सुनना अच्छा लगता है। फ़ैज़ की याद में आज उनकी एक सबसे मशहूर नज़्म 'हम देखेंगे'। इक़बाल बानो की आवाज़ में। इसकी इबारत हमने 'कविताकोश' के इस पन्ने से ली है। ललित और उनकी टीम का शुक्रिया।
Nazm: Hum Dekhenge
Shayar: Faiz Ahmed Faiz
Singer: Iqbal Bano
Duration: 11 19
हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लोह-ए-अज़ल[1] में लिखा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां [2]
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महक़ूमों के पाँव तले
ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हक़म के सर ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफ़ा, मरदूद-ए-हरम [3]
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
जो मंज़र भी है नाज़िर[4] भी
उट्ठेगा अन-अल-हक़ का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज़ करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
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'फ़ैज' एक बीहड़ जिंदगी जीने वाले शायर। कितना बड़ा है उनकी लेखनी का कैनवस। उनकी पैदाइश को एक सौ तीन साल पूरे हुए। इस दौरान दुनिया बहुत बदल गयी। तकनीक जिंदगी और समाज पर हावी हो गयी। सरोकार तरल होते चले गये। और फ़ैज़ की ज़रूरत और सांद्र होती चली गयी। उनके अशआर का वज़न सघन होता गया।
रेडियोवाणी पर हमने 'फ़ैज़' को अकसर याद किया है। एक दिलचस्प बात आपको बतायें। शायद 'ग़ालिब' के बाद 'फ़ैज़' ऐसे शायर रहे हैं जिन्हें ख़ूब गाया गया है। नैयरा नूर, इकबाल बानो, उ. बरक़त अली ख़ां, हरिहरन, मेहदी हसन, टीना सानी, गुलाम अली, आशा भोसले जैसे कितने कितने फ़नकारों ने उन्हें अपनी आवाज़ बख्शी। और तकरीबन सबकी आवाज़ में फ़ैज़ को सुनना अच्छा लगता है। फ़ैज़ की याद में आज उनकी एक सबसे मशहूर नज़्म 'हम देखेंगे'। इक़बाल बानो की आवाज़ में। इसकी इबारत हमने 'कविताकोश' के इस पन्ने से ली है। ललित और उनकी टीम का शुक्रिया।
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Shayar: Faiz Ahmed Faiz
Singer: Iqbal Bano
Duration: 11 19
हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लोह-ए-अज़ल[1] में लिखा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां [2]
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महक़ूमों के पाँव तले
ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हक़म के सर ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफ़ा, मरदूद-ए-हरम [3]
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
जो मंज़र भी है नाज़िर[4] भी
उट्ठेगा अन-अल-हक़ का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज़ करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
शब्दार्थ
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1 comments:
धन्यवाद। यह गीत बार-बार सुनने को मन करता है।
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