बड़प्पन की प्रतिमूर्ति थे पं. भरत व्यास: नरहरि पटेल
हिन्दी चित्रपट गीतों में अपने क़लम की बेमिसाल कारीगरी दिखाने वाले शब्द शिल्पि पं.भरत व्यास ने गीतों की ऐसी रसधार बहाई है जिसकी दूसरी मिसाल शायद पं.नरेंद्न शर्मा,शैलेन्द्र,पं.प्रदीप,गोपालसिंह नेपाली,इंदीवर,योगेश बालकवि बैरागी और नीरज के यहाँ ही मिलती है. ये सभी हिन्दी गीतिधारा के सशक्त हस्ताक्षर थे और इनकी शब्द सर्जना का एक अनूठा रंग था.
एक समय ऐसा था जब पं.भरत व्यास क़ामयाबी की ग्यारंटी माने जाने वाले गीतकार के रूप में स्तुत्य थे. आज जब पण्डितजी की बात चल रही है वह उनकी याद का यानी पुण्यतिथि का दिन है.संयोगवश इन्दौर में रहने वाले वरिष्ठ कवि और रंगकर्मी नरहरि पटेल से पिछले दिनों विभिन्न विषयों पर संवाद का सिलसिला बना. सनद रहे पटेल जी आकाशवाणी के जाने माने प्रसारणकर्ता रहे हैं और मालवा के लोक संगीत एक सर्वमान्य प्रवक्ता भी हैं. नरहरि पटेल से ही पं.भरत व्यास से जुड़ा एक रोचक प्रसंग सुनने का अवसर भी बना.चलिये ऐसा करते हैं पटेलजी के शब्दों में उस प्रसंग को जानने की कोशिश करते हैं;
“उन इन्दौर के गुजराती,होल्कर और क्रिश्चियन कॉलेज में स्नेह सम्मेलन के अवसर पर अमूमन कवि-सम्मेलन आयोजित करने की परिपाटी सी चल पड़ी थी.
साल रहा होगा १९५९ से ६१ के बीच का कोई वक़्त और गुजराती कॉलेज में कवि-सम्मेलन का आयोजन था. मंचासीन कवियों में डॉ.शिवमंगल सिंह सुमन,अभिनेता और कवि सज्जन,गीतकारद्वय इंदीवर और पं.भरत व्यास एवं मुझ जैसे कुछ उभरते हुए नये स्वर.मजमा शानदार रहा और देर रात तक चला. वैसे भी तब के इन्दौर जैसे छोटे शहर में फ़िल्मी गीतकारों का आना एक बड़ी ख़बर होती थी. पण्डितजी का काव्यपाठ भी ख़ूब जमा. उन दिनों नवरंग के गीतों की देशव्यापी चर्चा थे. कार्यक्रम समाप्ती के बाद भोजन कक्ष में मैं पं.भरत व्यास को एक कोने में ले गया और कहा पण्डितजी हम तो अभी मंच पर पढ़ना सीख ही रहे हैं लेकिन आपके एक गीत को लेकर मेरे मन बड़ी बेचैनी है. पं.व्यास मुस्कुराते हुए बोलो भाई क्या बात है. मैंने कहा पण्डितजी नवरंग के एक गीत श्यामल श्यामल बरन...में एक पंक्ति है किस पारस से सोना ये टकरा गया....पण्डितजी बोले हाँ ये तो मेरी प्रिय पंक्ति है. मैंने कहा पंण्डितजी यह पंक्ति तकनीकी रूप से ज़रा ग़लत हो गई है. वे बोले कैसे.मैंने कहा लोहे से पारस टकराए तो सोना बन जाता है लेकिन यहाँ पारस के सोने से टकराने की जो बात कही गई है उसके क्या मानी हैं ?
पण्डितजी बोले देखो भाई हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री में ऐसे कई प्रयोग होते रहते हैं और गीतकार को उसे म्युज़िक डायरेक्टर द्वारा दिये गये मीटर में निभाना पड़ता है. आपकी बात में दम है लेकिन क्या करूँ अब तो यह गाना हिट है और आप पहले व्यक्ति हैं जिसने इस ओर इशारा किया है. सो अभी तो इस विषय को यहीं ख़त्म करते हैं.मैं भी इस बात को भूल गया लेकिन सालों तक एक क़सक ज़रूर बनी रही कि फ़िल्म इंडस्ट्री के एक समर्थ कवि को इस तरह के समझौते क्यूँ करने पड़ते हैं. ख़ैर इस नुक्ताचीनी से पं.भरत व्यास जैसे कालजयी कवि का पाया कम नहीं हो जाता और इस बात का यक़ीनी इत्मीनान मन में रहता है कि पं.भरत व्यास जैसे अग्रज गीतकार किस साफ़गोई एक युवा कवि की सही बात को सही क़रार देने में झिझकते नहीं थे.”
आइये फ़िल्म नवरंग के इसी काव्यात्मक गीत को सुन लिया जाए और पं.भरत व्यास के साथ संगीतकार वसंत देसाई,गायक महेन्द्र कपूर को भी याद कर लिया जाए. वक़्त का निज़ाम देखिये आज इसमें से कोई भी हमारे बीच नहीं है.सभी को रेडियोवाणी की हार्दिक श्रध्दांजली.
song: shyamal shyamal baran
film: navrang 1959
singer: mahendra kapoor
duration: 4 10
lyrics: bharat vyas
music: c. ramchandra
श्यामल श्यामल बरन कोमल कोमल चरण
मेरे मुखड़े पे चंदा गगन का जडा
बड़े मन से विधाता ने तुझको घड़ा
तेरे बालों में सिमटी सावन की घटा
तेरे गालों पे छिटकी पूनम की छटा
तीखे तीखे नयन मीठे मीठे बयन
तेरे अंगों पे चंपा का रंग चढ़ा
बड़े मन से विधाता ने तुझको घड़ा
ये उमर ये कमर सौ सौ बल खा रही
तेरी तिरछी नज़र तीर बरसा रही
नाजुक नाजुक बदन धीमे धमे चलन
तेरी बांकी लचक में है जादू भरा
बड़े मन से विधाता ने तुझको घड़ा
किस पारस से सोना ये टकरा गया
तुझे रचकर चितेरा भी चकरा गया
ना इधर जा सका, ना उधर जा सका
रह गया देखता वो खड़ा ही खड़ा
बड़े मन से विधाता ने तुझको घड़ा
श्यामल श्यामल बरन कोमल कोमल चरन।
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7 comments:
एक शिखर पुरुष पंडित भरत व्यास जी के बारे में नरहरि पटेल जी का अनुभव सुनकर उनकी महानता का पता चलता है.
यह गीत तो सोने पे सुहागा है.
पटेलजी के अनुभव में एक सन्देश छिपा है जो हमें समझ आ जाए तो अच्छा हो...गीत मधुर मनभावन
किस पारस से सोना ये टकरा गया ...ॐ
आदरणीय बापूजी की कलम से पण्डित भारत व्यास के सुप्रसिध्ध गीत मे प्रयुक्त
किस पारस से सोना ये टकरा गया - के सन्दर्भ मे पढ़ा तो सोच रही हूँ
बिलकुल सही कहा आदरणीय श्री नरहरी जी ने ...पारस , लोहे से टकराए
तब सोना बनता है - यही जनोक्ति है -- पर यहां गीत मे सोना लिया गया
ये , रचनाकार का फिल्म निर्माता से समझौता , कहलायेगा --
एक और गीत मे भी ऐसा ही हुआ है
गायिका बारबरा स्ट्राईसेंड का गाया ये गीत बहुत प्रसिध्ध हुआ जिस पे
किसी ने प्रश्न किया था के ये क्या मतलब हुआ ?
" people who needs people "
( meaning - > people who need other people all the
time can not be best kind of people )
तब बारबरा ने यही कहा के, ' अब जैसा गा दिया वही प्रसिध्ध हो गया सो अब क्या बदलें ? '
ऐसे ही , पन्ने जुड़ते रहें ये सद आशा है
स स्नेह - सादर ,
- लावण्या
काव्यप्रतिभा के धनी व्यक्तित्वों के परिचय का आभार।
प. भारत व्यास जी के कई गीत मेरे भी प्रिय हैं. इनकी स्मृति साझी करने का आभार. इस महानात्मा को मेरी भी विनम्र श्रद्धांजली.
पंडित भरत व्यास ने फिल्मों में हिंदी गीतों का झंडा लहराया. इतने मधुर, इतने प्यारे गीत कि जिसे भी सुनो वही दिल को छू जाये. यही नहीं भारत व्यास की निर्भीकता का एक सर्न्स्मरण मुझे याद आ रहा है. वर्षों पहले लाल किले के प्रांगण में एक वृहत कवि सम्मलेन का आयोजन था. उसमे तत्कालीन रक्षा मंत्री यशवंत राव चव्हाण भी उपस्थित थे. और सञ्चालन दूसरे व्यासजी पंडित गोपाल प्रसाद व्यास के हाथों में था. भारत व्यास जी जब सुनले बापू ये पैगाम, मेरी चिट्ठी तेरी नाम पढ़ना शुरू किया तो कई उपस्थित जनों के भ्रकुतियाँ चढ़ने लगीं कुछ इशारे भी हुए पर भारत व्यास जी ने अपने निर्भीक स्वर में कविता पढ़ना जारी रखा. जिन्होंने वह कवि सम्मलेन देखा है वे जानते हैं कि कैसे कुछ लोग उसी समय बहिर्गमन कर गए थे. फ़िल्मी गीतों को जिन थोड़े से हिंदी गीतकारों ने साहित्यिक संस्कार दिए उनमे भारत व्यास का स्थान सर्वोपरि है.
पंडित भरत व्यास के लिखे सारे गीत मुझे बहुत पसन्द है। लेकिन आज तक इस लाईन पर कभी ध्यान ही नहीं दिया।
बहुत अच्छी पोस्ट।
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