संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Sunday, March 20, 2011

इस बार की होली पंडित छन्‍नूलाल मिश्रा और रामकैलाश यादव के साथ।







होली हमारे लिए रंगों का त्यौहार तो है पर होली का असली मज़ा इसके सुरों में है...देश के अलग-अलग हिस्‍सों में होली के ऐसे हुड़दंगे गीत हैं कि इन्‍हें सुनकर आप मदहोश हुए बिना नहीं रहते।

हमें होली की जो दो रचनाएं सबसे ज्‍यादा प्रिय हैं उनमें छाया (गांगुली) जी की गाई नज़ीर की रचना 'जब फागुन रंग झमकते हों' तो शामिल है ही...साथ ही पंडित छन्‍नूलाल मिश्रा की गाई शिवजी की होली--'खेलें मसाने में होली दिगंबर'।

छन्‍नूलाल जी के अलबम 'टेसू के फूल' में दो बड़ी ही मधुर रचनाएं हैं  होली की। इन रचनाओं में जहां एक तरफ शास्‍त्रीय-रंग भरपूर है वहीं लोकशैली का रंग भी अपने शबाब पर है। तो रेडियोवाणी पर ये है सुरों की पिचकारी।

song:barjori karo naa mose holi mein.
singer: Pandit Chhannulal Mishra
duration: 7 45






बरजोरी करो ना मोसे होली में
अबीर गुलाल मुखन पर फेंकत


रंग मिलावत रोली में
बरजोरी करो ना मोसे।।


आधी रात पिया कहवां से आए
धर जैहो कहीं चोरी में।


बरजोरी करो ना मोसे।।
कहत छबीले निडर भए चेला
लियो फिरत रंग झोली में
बरजोरी करो ना मोसे।।


होली-गीतों से जुड़ी एक धारणा के बारे में कुछ कहना चाहता हूं। ChhannulaMishrajiफिल्‍मों और होली की हुड़दंगी परंपरा के मद्देनज़र होली-गीतों के बेहद मस्‍ती भरे, तेज़ ताल और लय वाले होने की उम्‍मीद की जाती है। ऐसे में मद्धम-संयत-नशीले गानों को होली पर आजकल 'ठंडा' समझा जा सकता है। हो सकता है कि पहली नज़र में आपको भी पंडित छन्‍नूलाल मिश्रा के गानों के बारे में भी आपकी यही राय बन सकती है। लेकिन होली ऐसी रूमानी और मद्धम भी हो सकती है। ज़रूरी नहीं है कि ढोलक, मजीरे और डफ़ की थाप पर हुरियारों की नाचती टोली के ही होती गीत हों।

पंडित छन्‍नू लाल मिश्रा जी का एक और होली गीत।

song:kanhaiya ghar chalo guiyaan.

singer: Pandit Chhannulal Mishra duration: 12 15



कन्‍हैया घर चलो गुईयां आज खेलैं होरी
आज खेलैं होरी रे।।
कोई गावत कोई मृदंग बजावत
कोई नाचत अंग मोरे
चपल चाल चपला सी चमके
झिझकत बदन मरोरी
गुईयां आज खेलैं होरी।।
बंसी बजावत मन को रिझावत
अएसो मंत्र पढ़ो री
सास-ननद की चोरा-चोरी
निकल चलो सब गोरी
गुईयां खेलैं होरी।


रेडियोवाणी पर होली की इस साल की आखिरी प्रस्‍तुति उस लोक-गायक की जो मुझे बेहद प्रिय हैं। इलाहाबाद के रामकैलाश यादव।


सुनिए इनकी हुड़दंगी होली- 'मोरे हरि के सूरतिया सुघड़ लागे'




song: more hari ke suratiya sughad laage 
singer: ram kailash yadav (allahabad)

























रेडियोवाणी के सभी श्रोताओं को होली मुबारक।

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9 comments:

mukti March 20, 2011 at 11:52 AM  

हमारी होली को शास्त्रीय रंगों से रंगने के लिए धन्यवाद!
आप जहाँ भी रहें आपका जीवन यूँ ही सतरंगी रंगों से रंगा रहे... और भी रंग-बिरंगे फूल भर जाएँ आपके और आपके जीवन में...

Anonymous,  March 20, 2011 at 12:02 PM  

Really nice post. I especially liked kanhaiya ghar chalo guiyaan sung by Pandit Chhannulal Mishra. Thanks

Deepak Sabnis

Amrendra Nath Tripathi March 20, 2011 at 2:52 PM  

वाह !
झुमा तो दिया आपने , उप्पर से पद चाप भी ”चपल चाप चपला सी चमकैं ..”

कई बार सुना !

रामकैलाश जी तो अपने भी प्रिय गायक है! बस उनसे एक बार दूर से बात ही हो पाई । मिल न सका। और अब वे नहीं रहे । कई चीजें इतनी कसकती हैं कि देर तक वही स्थिति बनी रह जाती है।

आपको पूरे परिवार के साथ होरी की शुभकामनाएँ !!

Rahul Singh March 20, 2011 at 7:01 PM  

शानदार, लाजवाब चयन और प्रस्‍तुति.

daanish March 20, 2011 at 8:39 PM  

होली के इस मस्त पावन अवसर पर
आप के द्वारा दी गयी अनमोल सौगात
बहुत मन भावन लगी ...
पंडित छन्नू लाल मिश्रा जी के गीत
एक अलग सा आनंद लिए हुए मालूम पड़े
और
मोरे हरि की सुरतिया सुघड़ लागे
की मस्ती तो जाने कब तक तारी रहेगी

आभार स्वीकारें .

ताऊ रामपुरिया March 20, 2011 at 10:08 PM  

वाह वाह, असली होली पोस्ट तो यहां है, आपको परिवार सहित होली पर्व की घणी रामराम.

Smart Indian March 21, 2011 at 2:26 AM  

मज़ा आ गया, होली सार्थक हुई! धन्यवाद और शुभकामनायें!

Ashok Pandey March 23, 2011 at 8:52 PM  

युनूस भाई का ब्‍लॉग और पं. छन्‍नूलाल मिश्र का गायन.. यह मणिकांचन योग हो तो भला कौन संगीत का दिवाना न बन जाए..

Abhishek Ojha March 29, 2011 at 3:03 AM  

हमने तो पहली बार ही सुना वो भी होली के बाद :) बढ़िया.

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