अम्मा पुछदीं- मोहित चौहान
इन दिनों रेडियोवाणी पर लिखना कम होता गया है। ऐसा नहीं है कि हमारे भीतर लिखने की या संगीत सुनने-सुनाने की 'आग' नहीं रही। दरअसल इन दिनों जेब में ख़ाली लम्हों के सिक्के बहुत कम होते जा रहे हैं। अफ़सोस कि पहली गाज़ ब्लॉग पर ही गिरती है।
पर आज के लिए तो हमने काफ़ी पहले से तैयारियां कर रखी थीं। आज रेडियोवाणी के सफ़र के चार बरस पूरे हुए।
दरअसल सब कुछ ठीक रहता तो शायद ये गीत दो महीने पहले ही आप तक पहुंचता। इन दो महीनों से इस गाने को कुछ ज्यादा सुना जाता रहा।
मोहित चौहान अनेक कारणों से हमारे पसंदीदा गायक हैं। उनकी आवाज़ में अफ़सोस की गहराई इतनी ज़्यादा है कि उन्हें इन दिनों भारत का blue mood वाला सबसे असरदार गायक कहा जा सकता है। सभी जानते हैं कि मोहित नब्बे के दशक में चर्चित हुए पॉप बैन्ड 'सिल्क रूट' से पहचाने गए थे। बाद में मुंबई आकर फिल्मों में उन्होंने ख़ासा नाम कमाया है। 'मसक्कली', 'अभी कुछ दिनों से', 'पी लूं', 'ये दूरियां' जैसे कई गानों ने उन्हें लोकप्रिय बनाया है।
उनके अलबम 'फितूर' में एक पहाड़ी गीत है, जिसे सुनकर यूं लगता है कि बस घटाएं घिर गयी हैं और बादल अब बरस ही जायेंगे। ज़रूरी नहीं है कि आपको इस गाने के हर शब्द के मायने समझ आएं, पर इस गाने का मर्म आपको भभ्भड़ भरी इस दुनिया से काट देता है। आपको सुकून की एक तरल दुनिया में पहुंचा देता है। जहां गिटार और बांसुरी की कोमल ध्वनियां और मोहित की सौम्य-तान आपकी साथी होती हैं। रेडियोवाणी की चौथी सालगिरह पर मुझे यही तोहफ़ा आप सभी के लिए ओर अपने लिए उचित लगा।
खोजते खोजते मुझे इस गाने पर अनूप सेठी का लिखा एक लेख मिला। इसे आप 'यहां' पढ़ सकते हैं।
भाई अशोक पांडे ने कभी इस गाने को कबाड़ख़ाना पर चढ़ाया था।
वहीं से हम इस गाने का पाठ और इसका अनुवाद आप तक पहुंचा रहे हैं।
song: amma puchdi
album:fitoor
singer: mohit chauhan
duration:4 19
अम्मा पुछदी सुन धिये मेरे ए दुबड़ी इतणी तू किया करि होई हो
पारली बणिया मोर जो बोले हो
आमाजी इना मोरे निंदर गंवाई हो
सद लै बन्दूकी जो सद लै शिकारी जो
धिये भला ऐता मोर मार गिराणा हो
मोर नी मारणा मोर नी गवांणा हो
आमाजी ऐता मोर पिंजरे पुवाणा हो
कुथी जांदा चन्द्रमा कुथी जांदे तारे हो
ओ आमाजी कुथी जांदे दिलांदे पियारे हो
छुपी जांदा चन्द्रमा छुपी जांदे तारे हो
ओ धिये भला नईंयो छुपदे दिलांदे पियारे हो
भावानुवाद: मां बेटी से पूछती है कि मेरी प्यारी तू इतनी उदास क्यूं है. बेटी कहती है कि अगले जंगल में मोर पुकारें लगा रहा है वह मेरी नींदें उड़ा ले जा रहा है. मां कहती है : शिकारियों को उनकी बन्दूकों समेत बुलवा लेंगे जो इस मोर को मार डालेंगे. बेटी कहती है : नहीं हम मोर को मारेंगे नहीं. मैं उसे पिंजरे में रख लूंगी.
"मां चांद कहां चला जाता है और कहां चले जाते हैं तारे? ओ मां हमारे दिलों में बसे लोग कहां चले जाते हैं?"
"चांद छिपने चला जाता है और छिपते चले जाते हैं तारे. ओ मेरी प्यारी बेटू, हमारे दिलों में बसे लोग कहीं नहीं जाते. वे रहते हैं हमारे दिलों में"
कुछ और बातें अगर आप मोहित चौहान को लाइव-शो में इस गाने को गाते देखना चाहते हैं तो यहां जाएं।
मुझे इस गाने का एक और बहुत सोंधा संस्करण मिला है। जिसे हम सही मायनों में लोकगीत कह सकते हैं। इसे मशहूर गायक करनैल राणा ने गाया है।
मोहित के कुछ और गाने इन दिनों हमारे दिल की धड़कन बने हुए हैं। मुमकिन है कि अगली पोस्ट जब भी हो तो मोहित चौहान की आवाज़ ही लेकर आए।
रेडियोवाणी पर एक बड़ी 'सीरीज़' की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं। उसे भी हम जल्दी ही शुरू करेंगे। बहरहाल--पूरा हुआ चौथा साल।
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अगर आप चाहते हैं कि 'रेडियोवाणी' की पोस्ट्स आपको नियमित रूप से अपने इनबॉक्स में मिलें, तो दाहिनी तरफ 'रेडियोवाणी की नियमित खुराक' वाले बॉक्स में अपना ईमेल एड्रेस भरें और इनबॉक्स में जाकर वेरीफाई करें।
पर आज के लिए तो हमने काफ़ी पहले से तैयारियां कर रखी थीं। आज रेडियोवाणी के सफ़र के चार बरस पूरे हुए।
दरअसल सब कुछ ठीक रहता तो शायद ये गीत दो महीने पहले ही आप तक पहुंचता। इन दो महीनों से इस गाने को कुछ ज्यादा सुना जाता रहा।
मोहित चौहान अनेक कारणों से हमारे पसंदीदा गायक हैं। उनकी आवाज़ में अफ़सोस की गहराई इतनी ज़्यादा है कि उन्हें इन दिनों भारत का blue mood वाला सबसे असरदार गायक कहा जा सकता है। सभी जानते हैं कि मोहित नब्बे के दशक में चर्चित हुए पॉप बैन्ड 'सिल्क रूट' से पहचाने गए थे। बाद में मुंबई आकर फिल्मों में उन्होंने ख़ासा नाम कमाया है। 'मसक्कली', 'अभी कुछ दिनों से', 'पी लूं', 'ये दूरियां' जैसे कई गानों ने उन्हें लोकप्रिय बनाया है।
उनके अलबम 'फितूर' में एक पहाड़ी गीत है, जिसे सुनकर यूं लगता है कि बस घटाएं घिर गयी हैं और बादल अब बरस ही जायेंगे। ज़रूरी नहीं है कि आपको इस गाने के हर शब्द के मायने समझ आएं, पर इस गाने का मर्म आपको भभ्भड़ भरी इस दुनिया से काट देता है। आपको सुकून की एक तरल दुनिया में पहुंचा देता है। जहां गिटार और बांसुरी की कोमल ध्वनियां और मोहित की सौम्य-तान आपकी साथी होती हैं। रेडियोवाणी की चौथी सालगिरह पर मुझे यही तोहफ़ा आप सभी के लिए ओर अपने लिए उचित लगा।
खोजते खोजते मुझे इस गाने पर अनूप सेठी का लिखा एक लेख मिला। इसे आप 'यहां' पढ़ सकते हैं।
भाई अशोक पांडे ने कभी इस गाने को कबाड़ख़ाना पर चढ़ाया था।
वहीं से हम इस गाने का पाठ और इसका अनुवाद आप तक पहुंचा रहे हैं।
song: amma puchdi
album:fitoor
singer: mohit chauhan
duration:4 19
अम्मा पुछदी सुन धिये मेरे ए दुबड़ी इतणी तू किया करि होई हो
पारली बणिया मोर जो बोले हो
आमाजी इना मोरे निंदर गंवाई हो
सद लै बन्दूकी जो सद लै शिकारी जो
धिये भला ऐता मोर मार गिराणा हो
मोर नी मारणा मोर नी गवांणा हो
आमाजी ऐता मोर पिंजरे पुवाणा हो
कुथी जांदा चन्द्रमा कुथी जांदे तारे हो
ओ आमाजी कुथी जांदे दिलांदे पियारे हो
छुपी जांदा चन्द्रमा छुपी जांदे तारे हो
ओ धिये भला नईंयो छुपदे दिलांदे पियारे हो
भावानुवाद: मां बेटी से पूछती है कि मेरी प्यारी तू इतनी उदास क्यूं है. बेटी कहती है कि अगले जंगल में मोर पुकारें लगा रहा है वह मेरी नींदें उड़ा ले जा रहा है. मां कहती है : शिकारियों को उनकी बन्दूकों समेत बुलवा लेंगे जो इस मोर को मार डालेंगे. बेटी कहती है : नहीं हम मोर को मारेंगे नहीं. मैं उसे पिंजरे में रख लूंगी.
"मां चांद कहां चला जाता है और कहां चले जाते हैं तारे? ओ मां हमारे दिलों में बसे लोग कहां चले जाते हैं?"
"चांद छिपने चला जाता है और छिपते चले जाते हैं तारे. ओ मेरी प्यारी बेटू, हमारे दिलों में बसे लोग कहीं नहीं जाते. वे रहते हैं हमारे दिलों में"
कुछ और बातें अगर आप मोहित चौहान को लाइव-शो में इस गाने को गाते देखना चाहते हैं तो यहां जाएं।
मुझे इस गाने का एक और बहुत सोंधा संस्करण मिला है। जिसे हम सही मायनों में लोकगीत कह सकते हैं। इसे मशहूर गायक करनैल राणा ने गाया है।
मोहित के कुछ और गाने इन दिनों हमारे दिल की धड़कन बने हुए हैं। मुमकिन है कि अगली पोस्ट जब भी हो तो मोहित चौहान की आवाज़ ही लेकर आए।
रेडियोवाणी पर एक बड़ी 'सीरीज़' की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं। उसे भी हम जल्दी ही शुरू करेंगे। बहरहाल--पूरा हुआ चौथा साल।
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अगर आप चाहते हैं कि 'रेडियोवाणी' की पोस्ट्स आपको नियमित रूप से अपने इनबॉक्स में मिलें, तो दाहिनी तरफ 'रेडियोवाणी की नियमित खुराक' वाले बॉक्स में अपना ईमेल एड्रेस भरें और इनबॉक्स में जाकर वेरीफाई करें।
19 comments:
मुबारक हो ...
करनैल राणा के स्वर में ज़्यादा प्रभावी …
चौथा साल पूरा होने की ढेरों बधाइयां...... रेडियोवाणी पर एक बड़ी 'सीरीज़' का इंतज़ार हम भी बेसब्री से कर रहे हैं....कब तक पूरा होगा हमारा ये इंतज़ार.....
बहुत बहुत बधाई हो.... मोहित की आवाज़ ने तो हमें ही नहीं विदेशी लोगो को भी मोहित कर दिया..
सर जी ब्लोगिंग की पांचवी कक्षा में दाखिले पर बधाई.. दोनों की आवाज़ में सुना.. करनैल राणा ने ज्यादा प्रभावित किया, शायद यह लोकगीत के ज्यादा नज़दीक लगा इसलिए..
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Dipak Mashal
यूनुस भाई
गीत के दोनों ही वर्जन बहुत अच्छे लगे। आनन्द आ गया।
चार साल पूरे करने पर बहुत बहुत बधाई।
लाजवाब गीत, भावपूर्ण शब्द, धन्यवाद!
बधाई युनुस जी!
बढि़या गीत और करनैल राणा का सोंधापन लाजवाब.
बहुत अच्छा लगा ये गीत सुनकर, किन्तु मोहित वाला गीत सुनकर लोक गीत कम व सूफी गीत ज्यादा लगा.
एक पहाड़ी होने के कारण मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने मेरे पहाड़ों कि याद ताज़ा करवा दी ! धन्यवाद युनुस भाई.
पूरा हुआ चौथा साल- बधाईयाँ...शुभकामनाएँ...ऐसे ही चलता रहे सफर.
मोहित चौहान का गया हुआ ये पहाड़ी गीत
पहली बार सुना ... अच्छा लगा
लेकिन करनैल राणा की आवाज़ में
अदायगी की ख़ूबसूरती ज्यादा महसूस हुई
और ....
चार साल पूरे कर लेने पर
ढेरों मुबारकबाद .
'गुन्छा कोई' से मोहित चौहान को सुनना शुरू हुआ था. गजब की आवाज है.
सीरीज के लिए हम ताक रहे हैं.
चौथा साल पूरा होने की ढेरों बधाइयां !!
बधाई. पहाड़ी गीत चाहे हिमाचल के हों या उत्तर पूर्व के मन के तारों को यूँ खींचते हैं जैसे हमारे ही मायके के पक्षी चहचहा कर हमें बुला रहे हों. नराई / nostalgia इसे ही कहते हैं. सुनवाने के लिए आभार.
दरअसल इन दिनों जेब में ख़ाली लम्हों के सिक्के बहुत कम होते जा रहे हैं।
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मैं भी ऐसा ही सोचता हूं/था। पर समय का एक ऑडिट बता देता है कि सवाल समय की कमी का कम ऊब का ज्यादा है!
भाई युनुस खान जी बहुत सुंदर पोस्ट बधाई |आप पिछले दिनों इलाहाबाद आये और चले गये मुझे न मिलने का मलाल रहेगा |अब ब्लॉग पर मिलता रहूँगा |
जनाब यूनुस साहब, कुछ सर्च करते हुए आपके ब्लॉग तक आ पहुंचे, और खज़ाना हासिल हो गया. इंशा अल्लाह आगे भी ये सिलसिला ज़ारी रहेगा.
रेडियोवाणी के चार साल पूरे होने की मुबारकबाद.
ये 'फितूर' album का है ? 'फितूर' तो 2009 में आया था . जबकि मेरे पास ये गीत सन 2000 से है ,मोहित के बैंड 'सिल्क रूट' के एल्बम 'पहचान ' से .
जो भी है , ये गीत और मोहित, मुझे दोनों ही बेहद पसंद हैं ! :-)
"दरअसल इन दिनों जेब में ख़ाली लम्हों के सिक्के
बहुत कम होते जा रहे हैं।" वाह!
गीत बहुत पसंद आया, ४ वर्ष पूरे करने पर बधाई।
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http://www.google.com/transliterate/indic/