रघुवर तुमको मेरी लाज--पंडित भीमसेन जोशी को नमन।
ये तो याद नहीं कि पंडित भीमसेन जोशी को 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' से पहले कब सुना था। स्कूल जाने वाले उन कच्चे-कच्चे दिनों में संगीत में दिलचस्पी के अंकुर शायद फूट ही रहे थे। शास्त्रीय संगीत को समझने का ना कोई ठौर था ना ठिकाना। पर चीज़ें कहीं-कहीं से मिल जाती थीं, तो सुन लिया करते थे।
पंडित भीमसेन जोशी के भजन निश्चित रूप से हम बेचैनों के भीतर एक ठहराव पैदा करते थे। उन्होंने कबीर ख़ूब गाया था। म.प्र. के नन्हे से छिंदवाड़ा आकाशवाणी केंद्र में 'संझवाती' नामक कार्यक्रम होता था। तब आवारागर्दी के दिन थे। 'युववाणी' की ड्यूटी होती तो आकाशवाणी में पाए जाते। ना होती तो भी कॉलेज 'बंक' करके डेरा डाले रहते। लोगों को काम करते देखते। लाइब्रेरी की ख़ाक छानते। सीनियर्स की सिर खाते। दोस्तों पर रौब जमाते कि आज कुमार गंधर्व की रचना सुनी। आज भीमसेन जोशी के स्वर में
'कबीर' सुना।
भीमसेन जोशी की शास्त्रीयता से हमारा नाता-रिश्ता ज़रा कम था। हमें तो उनकी आवाज़ एक इसलिए पसंद थी कि उन्हें सुनकर हमारे भीतर का तूफान ज़रा ठहर जाता था। थोड़ा भला-भला सा लगता था। ऐसा हमेशा होता रहा। जसराज जी, भीमसेन जोशी, कुमार गंधर्व और पंडित छन्नू लाल मिश्रा....इन चार विभूतियों को सुनना हमेशा अच्छा लगता रहा।
आज 'दद्दा' चले गए। पर उनका 'सुनो सुनो साधो जी' या 'बीत गए दिन भजन बिना रे' या 'नैहर छूटो जाए' या फिर 'माझे माहरे पंढरी' सुनकर अच्छा लगता था। मराठी रचनाएं तो समझ भी कम आती हैं। पर फिर भी भली-भली सी लगती हैं। नौकरी के शुरूआती दिनों में जब लोकल-ट्रेनों का सफर करना होता था तब ट्रेनों की भजन-मंडलियां अकसर भीमसेन जोशी की रचनाएं तन्मयता से गातीं नज़र आतीं। ये लगता कि इन रचनाओं को गाने से इन लोगों का ट्रेन के नारकीय सफ़र का दुख कम हो जाता होगा। और शायद वो अपनी जिंदगी का सामना ज्यादा साहस के साथ कर पाते होंगे।
दिलचस्प तथ्य ये है कि पंडित जी ने कुछ फिल्मों में भजन भी गाए। या यूं कहें कि उनके गाए कुछ भजन फिल्मों में लिए गए। 'संत तुलसीदास' और 'अनकही' फिल्मों के नाम याद आते हैं। 'अनकही' अमोल पालेकर की फिल्म थी। बॉबी ने अपनी साइट पर 'अनकही' पर यहां लिखा है। इस फिल्म का संगीत जयदेव का था।
आईये गोस्वामी तुलसीदास की ये रचना सुनें पंडित जी के स्वर में।
bhajan: raghuvar tumko meri laaj
singer: pt bheemsen joshi
film: ankahee
year: 1985
music: jaidev
duration: 5 34
डाउनलोड लिंक- ये रही
रघुवर तुम को मेरी लाज
सदा सदा मैं शरण तिहारी
तुमहो गरीब निवाज
रघुवर तुम को मेरी लाज
पतित उद्धारण विरद तिहारो श्रवनन सुनी आवाज
हूँ तो पतित पुरातन करिए
पार उतारो जहाज
रघुवर पार उतारो जहाज
रघुवर तुम को मेरी लाज
अघ खंडन दुःख भंजन जन के
यही तिहारो काज
रघुवर यही तिहारो काज
तुलसीदास पर किरपा कीजे भक्ति दान देहु आज
रघुवर भक्ति दान देहु आज
रघुवर तुम को मेरी लाज
सदा सदा मैं शरण तिहारी
तुम हो गरीब निवाज
रघुवर तुमहो गरीब निवाज
रघुवर तुम को मेरी लाज
यू-ट्यूब पर इस रचना का ग़ैर-फिल्मी संस्करण है। जिसकी रफ्तार में थोड़ा परिवर्तन है।
भीमसेन जी को हमारी विनम्र श्रद्धांजली।
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पंडित भीमसेन जोशी के भजन निश्चित रूप से हम बेचैनों के भीतर एक ठहराव पैदा करते थे। उन्होंने कबीर ख़ूब गाया था। म.प्र. के नन्हे से छिंदवाड़ा आकाशवाणी केंद्र में 'संझवाती' नामक कार्यक्रम होता था। तब आवारागर्दी के दिन थे। 'युववाणी' की ड्यूटी होती तो आकाशवाणी में पाए जाते। ना होती तो भी कॉलेज 'बंक' करके डेरा डाले रहते। लोगों को काम करते देखते। लाइब्रेरी की ख़ाक छानते। सीनियर्स की सिर खाते। दोस्तों पर रौब जमाते कि आज कुमार गंधर्व की रचना सुनी। आज भीमसेन जोशी के स्वर में
'कबीर' सुना।
भीमसेन जोशी की शास्त्रीयता से हमारा नाता-रिश्ता ज़रा कम था। हमें तो उनकी आवाज़ एक इसलिए पसंद थी कि उन्हें सुनकर हमारे भीतर का तूफान ज़रा ठहर जाता था। थोड़ा भला-भला सा लगता था। ऐसा हमेशा होता रहा। जसराज जी, भीमसेन जोशी, कुमार गंधर्व और पंडित छन्नू लाल मिश्रा....इन चार विभूतियों को सुनना हमेशा अच्छा लगता रहा।
आज 'दद्दा' चले गए। पर उनका 'सुनो सुनो साधो जी' या 'बीत गए दिन भजन बिना रे' या 'नैहर छूटो जाए' या फिर 'माझे माहरे पंढरी' सुनकर अच्छा लगता था। मराठी रचनाएं तो समझ भी कम आती हैं। पर फिर भी भली-भली सी लगती हैं। नौकरी के शुरूआती दिनों में जब लोकल-ट्रेनों का सफर करना होता था तब ट्रेनों की भजन-मंडलियां अकसर भीमसेन जोशी की रचनाएं तन्मयता से गातीं नज़र आतीं। ये लगता कि इन रचनाओं को गाने से इन लोगों का ट्रेन के नारकीय सफ़र का दुख कम हो जाता होगा। और शायद वो अपनी जिंदगी का सामना ज्यादा साहस के साथ कर पाते होंगे।
दिलचस्प तथ्य ये है कि पंडित जी ने कुछ फिल्मों में भजन भी गाए। या यूं कहें कि उनके गाए कुछ भजन फिल्मों में लिए गए। 'संत तुलसीदास' और 'अनकही' फिल्मों के नाम याद आते हैं। 'अनकही' अमोल पालेकर की फिल्म थी। बॉबी ने अपनी साइट पर 'अनकही' पर यहां लिखा है। इस फिल्म का संगीत जयदेव का था।
आईये गोस्वामी तुलसीदास की ये रचना सुनें पंडित जी के स्वर में।
bhajan: raghuvar tumko meri laaj
singer: pt bheemsen joshi
film: ankahee
year: 1985
music: jaidev
duration: 5 34
डाउनलोड लिंक- ये रही
रघुवर तुम को मेरी लाज
सदा सदा मैं शरण तिहारी
तुमहो गरीब निवाज
रघुवर तुम को मेरी लाज
पतित उद्धारण विरद तिहारो श्रवनन सुनी आवाज
हूँ तो पतित पुरातन करिए
पार उतारो जहाज
रघुवर पार उतारो जहाज
रघुवर तुम को मेरी लाज
अघ खंडन दुःख भंजन जन के
यही तिहारो काज
रघुवर यही तिहारो काज
तुलसीदास पर किरपा कीजे भक्ति दान देहु आज
रघुवर भक्ति दान देहु आज
रघुवर तुम को मेरी लाज
सदा सदा मैं शरण तिहारी
तुम हो गरीब निवाज
रघुवर तुमहो गरीब निवाज
रघुवर तुम को मेरी लाज
यू-ट्यूब पर इस रचना का ग़ैर-फिल्मी संस्करण है। जिसकी रफ्तार में थोड़ा परिवर्तन है।
भीमसेन जी को हमारी विनम्र श्रद्धांजली।
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10 comments:
आज 'दद्दा' चले गए....
यह पढ़ते ही मन में दर्द की टीस उठ गयी
समाचार तो थे ही कि उनकी हालत बहुत
खराब चल रही है ...
मेरी विनम्र श्रद्धांजली .
भारतीय क्लासिक गायिकी के एक नक्षत्र के अवसान पर मन खिन्न है -नमन!
आज सुबह-सुबह ही यह दुखद समाचार सुना और मन बहुत उदास है. लग रहा है जैसे वास्तव में एक युग का अंत हो रहा है. ये हमारी खुशनसीबी है कि हम इन महान हस्तियों के युग में पैदा हुए.
इस संगीत के मूर्तिमान स्वरूप को नमन और श्रद्धांजलि !
सोने से पहले ये समाचार पढा और सुबह से मन दुखी है, रातों रात आसमानों को भी खबर हो गयी और कल रात से वो भी गमगीन से लग रहे हैं।
bhari man se shrdhanjali!
अभी अभी सुबह यह भजन सुना . आज भी मिले सुर मेरा तुम्हारा गाता हुआ पं जी का चेहरा नज़र आ रहा है .
उन्हे हार्दिक श्रधांजली
पंडित जी का गायन एक दूसरी ही दुनिया में ले जाता है.
स्वर के सम्राट को विनम्र श्रधांजलि
पंडितजी को भावभीनी श्रधांजलि.
उस दिन बहुत मन खिन्न था बन्धु! लगता था, घर के बुजुर्ग चले गये हों।
Superbly written about a voice who is no longer amidst us.May he rest in peace.
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