'रेडियोवाणी' के तीन साल पूरे हुए.
तीन साल......ब्लॉगिंग के तीन साल पूरे हुए आज। 'ब्लॉगिंग' किसी 'ऐजेन्डे' या किसी 'नारे' के तहत शुरू नहीं की थी। ये समझ लीजिए कि अपना निजी स्वार्थ था..संगीत की दुनिया में कुछ और गहरा ग़ोता लगाने का। और इन तीन सालों में ये ग़ोता सचमुच गहरा होता चला गया है। मैं हमेशा कहता हूं कि संगीत से जुड़ाव और उस पर लिखने का जो पहलू रेडियो के दायरे में रहकर पूरा नहीं हो सकता था, उसे पूरा करने के लिए मैंने 'रेडियोवाणी' को शुरू किया है।
'वर्चुअल-स्पेस' में तमाम तरह के शग़ल पूरे किए जा सकते हैं। तमाम तरह के संदर्भ मौजूद हैं। और तमाम विषयों में डूबे खरे-तपे लोग भी। आप जिसे चुनें..उसी की अतल गहराईयों तक पहुंच सकते हैं। 'रेडियोवाणी' को शुरू करने का पूरा श्रेय भाई रवि रतलामी को जाता है। 'मरफी के नियमों' के दिलचस्प किस्से खोजते हुए हम उनके ब्लॉग पर पहुंचे थे। सईद क़ादरी के बारे में खोजते हुए मनीष के ब्लॉग पर पहुंचे। और पहले उनसे फिर मनीष से 'ई-मेल-व्यवहार' शुरू हुआ था।
ब्लॉगिंग ने कई मित्र बनाए। कई संपर्क कायम किए। श्रोता और पाठक दिए। रेडियो के ज़रिए आवाज़ को जानने वालों ने 'ब्लॉग' पर आकर 'अलफ़ाज़' को भी जाना। संगीत के क़द्रदानों ने ना सिर्फ रेडियोवाणी के लिए समय-समय पर content उपलब्ध करवाया, विषय सुझाए बल्कि शोध में मदद भी की। कुल मिलाकर 'रेडियोवाणी' के ज़रिए संगीत की हमारी 'समझ' का अप्रत्याशित विस्तार ही हुआ है।
कुछ दिनों पहले मनीष ने अपने ब्लॉग के चार साल पूरे होने के उपलक्ष्य में बड़ी पते-की बात कही--'जैसे जैसे आप अपनी विषय-वस्तु का विस्तार करते चले जाते हैं, कुल पाठकों की संख्या में वृद्धि होती है, पर उसमें एग्रीगेटर से आने वाले पाठकों का हिस्सा कम होता चला जाता है। इसलिए सनसनी या बिना मतलब के पचड़ों में पड़ने के बजाए अपने मन की बात कहें और पूरी मेहनत से कहें।
रेडियोवाणी के ज़रिए कोशिश यही रही है कि 'पॉपुलर' संगीत की बजाए 'क्लासिक' और 'अद्वितीय' चीज़ों को आपके सामने रखा जाए। शोध और संदर्भ पक्के और प्रचुर रखे जाएं। और जो प्रस्तुत किया जा रहा है, उसके और उससे जुड़ी चीज़ों के कई आयाम खोलने की कोशिश की जाए। पता नहीं कितनी कामयाबी मिली। पर यहां तक आकर अच्छा तो लग ही रहा है। पिछले दिनों एक सुझाव ये भी था कि ज़रूरी नहीं कि हर 'पोस्ट' पर कोई 'गीत' हो..एक प्लेयर टंगा हो...कई बार बिना गाना सुनाए भी संगीत की बातें हो सकती हैं। हालांकि मैं ऐसा करने से पहले बचता रहा हूं। पर आगे हम कुछ ऐसी पोस्टें भी सामने लायेंगे, जिनमें संगीत के बारे में पढ़ने मिलेगा...बिना प्लेयर के।
हां...कुछ पुरानी पोस्टों के प्लेयर बंद पड़े हैं..और ये काम जारी है...अगर कोई पोस्ट बिना प्लेयर के आपको बहुत परेशान कर रही हो तो कृपया सूचित करें..उसे प्राथमिकता के आधार पर सुधार दिया जाएगा। कई लोगों से संगीत के कई वादे कर रखे हैं..जिनमें से कुछ विस्मृत हो गए हों तो बताएं......
रेडियोवाणी के तमाम पाठकों और श्रोताओं का धन्यवाद और बधाई।
-----
अगर आप चाहते हैं कि 'रेडियोवाणी' की पोस्ट्स आपको नियमित रूप से अपने इनबॉक्स में मिलें, तो दाहिनी तरफ 'रेडियोवाणी की नियमित खुराक' वाले बॉक्स में अपना ईमेल एड्रेस भरें और इनबॉक्स में जाकर वेरीफाई करें।
'वर्चुअल-स्पेस' में तमाम तरह के शग़ल पूरे किए जा सकते हैं। तमाम तरह के संदर्भ मौजूद हैं। और तमाम विषयों में डूबे खरे-तपे लोग भी। आप जिसे चुनें..उसी की अतल गहराईयों तक पहुंच सकते हैं। 'रेडियोवाणी' को शुरू करने का पूरा श्रेय भाई रवि रतलामी को जाता है। 'मरफी के नियमों' के दिलचस्प किस्से खोजते हुए हम उनके ब्लॉग पर पहुंचे थे। सईद क़ादरी के बारे में खोजते हुए मनीष के ब्लॉग पर पहुंचे। और पहले उनसे फिर मनीष से 'ई-मेल-व्यवहार' शुरू हुआ था।
ब्लॉगिंग ने कई मित्र बनाए। कई संपर्क कायम किए। श्रोता और पाठक दिए। रेडियो के ज़रिए आवाज़ को जानने वालों ने 'ब्लॉग' पर आकर 'अलफ़ाज़' को भी जाना। संगीत के क़द्रदानों ने ना सिर्फ रेडियोवाणी के लिए समय-समय पर content उपलब्ध करवाया, विषय सुझाए बल्कि शोध में मदद भी की। कुल मिलाकर 'रेडियोवाणी' के ज़रिए संगीत की हमारी 'समझ' का अप्रत्याशित विस्तार ही हुआ है।
कुछ दिनों पहले मनीष ने अपने ब्लॉग के चार साल पूरे होने के उपलक्ष्य में बड़ी पते-की बात कही--'जैसे जैसे आप अपनी विषय-वस्तु का विस्तार करते चले जाते हैं, कुल पाठकों की संख्या में वृद्धि होती है, पर उसमें एग्रीगेटर से आने वाले पाठकों का हिस्सा कम होता चला जाता है। इसलिए सनसनी या बिना मतलब के पचड़ों में पड़ने के बजाए अपने मन की बात कहें और पूरी मेहनत से कहें।
रेडियोवाणी के ज़रिए कोशिश यही रही है कि 'पॉपुलर' संगीत की बजाए 'क्लासिक' और 'अद्वितीय' चीज़ों को आपके सामने रखा जाए। शोध और संदर्भ पक्के और प्रचुर रखे जाएं। और जो प्रस्तुत किया जा रहा है, उसके और उससे जुड़ी चीज़ों के कई आयाम खोलने की कोशिश की जाए। पता नहीं कितनी कामयाबी मिली। पर यहां तक आकर अच्छा तो लग ही रहा है। पिछले दिनों एक सुझाव ये भी था कि ज़रूरी नहीं कि हर 'पोस्ट' पर कोई 'गीत' हो..एक प्लेयर टंगा हो...कई बार बिना गाना सुनाए भी संगीत की बातें हो सकती हैं। हालांकि मैं ऐसा करने से पहले बचता रहा हूं। पर आगे हम कुछ ऐसी पोस्टें भी सामने लायेंगे, जिनमें संगीत के बारे में पढ़ने मिलेगा...बिना प्लेयर के।
हां...कुछ पुरानी पोस्टों के प्लेयर बंद पड़े हैं..और ये काम जारी है...अगर कोई पोस्ट बिना प्लेयर के आपको बहुत परेशान कर रही हो तो कृपया सूचित करें..उसे प्राथमिकता के आधार पर सुधार दिया जाएगा। कई लोगों से संगीत के कई वादे कर रखे हैं..जिनमें से कुछ विस्मृत हो गए हों तो बताएं......
रेडियोवाणी के तमाम पाठकों और श्रोताओं का धन्यवाद और बधाई।
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अगर आप चाहते हैं कि 'रेडियोवाणी' की पोस्ट्स आपको नियमित रूप से अपने इनबॉक्स में मिलें, तो दाहिनी तरफ 'रेडियोवाणी की नियमित खुराक' वाले बॉक्स में अपना ईमेल एड्रेस भरें और इनबॉक्स में जाकर वेरीफाई करें।
46 comments:
युनुसभाई आपको व तमाम साथियों को ढेर सारी बधाई व शुभकामनाएं.
आपके हिन्दी-गीतों पर लेख तो हम गुजराती में भी पढ़ते है.
बहुत बहुत बधाई हो आपको युनूस भाई।
ब्लोगिंग के तीन सफल वर्षों की बहुत बधाई व शुभकामनायें ....!!
इतनी देर टिके रहने के लिए बधाई...टेस्ट प्लयेर हो गए अब आप.....
mubarak ho !
lekin Radionama se doorii rakhane ke lie hum aapko maaf nahii kar sakate.
radiovani ke lie shubhakamanae !
Ssneh
annapurna
पिछले दिनो जब टाटा फूटान से १० जीबी फ्री का डॉउनलोडिंग का आफर मिला तो पहला काम ये किया कि आपकी पोस्ट पर जा कर डॉउनलोड करने लायक गीतों को डॉउनलोड किया और जो नही हो सके उनका अता पता ले कर जो हो सके उन्हे डॉउनलोड किया।
इस के अतर्गत मम्मो फिल्म भी देखी गई।
जो मनीष जी को कहा वही कहूँगी कि तीन सालों तक मेहनती और ईमानदार ब्लॉगिंग की बधाई।
बहुत बहुत बधाईयां यूनुस भाई! बने रहें.
badhaiyannn
sangeet ko badi nazaakat ke saath hamaare bich rakhne ke liye pichale tin saal se ....... kin shabdon me aabhaar byakt karun .... badhaayee is salaana mukaddas mauke par ..
arsh
बकिया सब ने यहाँ जो कुछ भी कहा और बधाई-वधाई दी,सो तो सब ठीक; हम तो सुबह नौ बज कर नौ मिनट से यही सोच-सोच कर परेशान हैं कि आज के दिन "रेडियोवाणी" के तीन साल पूरे हो गये - यह बात भला याद कैसे रही आपको ?
बहुत बहुत बधाई आपको युसूफ जी. हमारी शुभकामना है की आप आगे भी इसी तरह हमें नए नए पोस्ट लिखकर ज्ञान और मनोरंजन देते रहें.
सुरीलेपन यह सफर जारी रहे ...
दुआएँ
सुरीलेपन यह सफर जारी रहे ...
दुआएँ
जे सच भी ना 'डाक-साब' सबके सामने बताना ही होगा, परसों नीहारिका ने लखनऊ से मेल करके याद दिलाया था।
बहुत बहुत शुभकामनाएं। सुरों का सफर चलता रहे चलता रहे....
वाह वाह युनुस भाई। मज़ा आ गया।
हमाई तरपी सै सोई बधाई लै लेओ बड्डे। अगली चानस रिसा कै दमोय आओ तो बता दैओ आर। मिल लैबी। हा हा।
बहुत बधाई युनुस -यह उत्कर्ष पर बना रहे यही अभिलाषा है !
ब्लागिंग के तीन साल पूरा करने की बधाई। ब्लागिंग के इस नए वर्ष में आप पहले की तरह नियमित रहें ऐसी अपेक्षा है। रही बार क़ादरी साहब की तो आपकी वो ई मेल अभी तक मेंने सँजो रखी है। मुंबई में आपसे और विमल जी से हुई मुलाकात को भी ब्लागिंग की सुखद स्मृतियों में एक मानता हूँ।
आपने जो लिंक मेरी पोस्ट का दिया है वो दो दो बार पेस्ट हो जाने की वज़ह से गलत हो गया है। उसे देख लें।
युनुसभाई...रेडियोवाणी के तीन सफल वर्षों के लिए मेरी ओर से हार्दिक बधाई ....यह सिलसिला यूँ ही अनवरत चलता रहे ...यही तमन्ना भी है और यही शुभकामना भी !
रेडियो वाणी, जिन्दाबाद!
बधाई!
बहुत बहुत बधाई युनुस जी
शुक्रिया मनीष। लिंक को सुधार दिया है।
हम तो आपको FB पर पहले ही बधाई दे चुके हैं और अभी तक पार्टी नहीं मिली, सो यहाँ बधाई पहली पार्टी मिलने के बाद ही देंगे.. :)
वैसे आपने मनीष कि बहुत पते कि बात कोट की है, "जैसे जैसे आप अपनी विषय-वस्तु का विस्तार करते चले जाते हैं, कुल पाठकों की संख्या में वृद्धि होती है, पर उसमें एग्रीगेटर से आने वाले पाठकों का हिस्सा कम होता चला जाता है। इसलिए सनसनी या बिना मतलब के पचड़ों में पड़ने के बजाए अपने मन की बात कहें और पूरी मेहनत से कहें।"
पिछले ५-६ महीनो से मैंने भी इसे मानना शुरू कर दिया है, चाहे कुछ भी हो मगर हिंदी ब्लॉग के ऊपर कुछ भी नहीं लिखूंगा.. जो मन कि बात है उत्ता ही काफी है मेरे ब्लॉग के लिए.. :)
सुरीला सुनें
सुरीला सुनाएं
बहुत शुभकामनाएं
ढेरों बधाइयां यूनुस भाई ....
अभी तो ये आगाज़ है युनुस भाई.. ३ से १३ भी होंगे और ३० भी और ना आपको पता चलेगा ना हमें खोंकी आपके लेखन में जो रवानी है वो उस नदी की तरह है जो हिमालय की गोद से निकल सागर की बाँहों में बिना किसी राह के रोड़े के, बिना किसी बाँध के समां जाए और ना हिमालय को पता चले ना सागर को और ना ही नदी को.
तह-ए-दिल से बधाई.
यूनुस जी, जैसा कि मैं पहले भी कह चुकी हूँ कि मैं आपकी और ममता जी की फ़ैन अपने टीनएज से ही हूँ. मैं और मेरी दीदी टी.वी. धारावाहिक छोड़कर छायागीत देखते थे और दूसरे दिन स्कूल में सहेलियों से उसकी चर्चा करते थे.
रेडियोवाणी को मैं तब से फॉलो कर रही हूँ, जब पिछले साल मैंने ब्लॉगिंग शुरू की थी. आपका यह प्रयास हम जैसे शास्त्रीय और पुराने फ़िल्मी गानों के शौकीन लोगों के लिये किसी उपहार से कम नहीं है. आपको बहुत बधाइयाँ, शुभकामनाएँ और धन्यवाद हमारे भारतीय संगीत की धरोहर को हम तक पहुँचाने के लिये.
हुर्रे आपका ब्लॉग तीन साल का हो गया
हेप्पी बड्डे :)
सर,
मैंने ५ साल पहले इक लोक गीत सूना था
नैनीताल में
बोल कुछ यूं थे
टपके पसिंनवा (.............)मेरे वीरना
जिन जीहा केहू के दुआर मेरे विराना
अगर आप सूना सकें या कोइ लिंक दे सकें जहाँ पूरा गीत मिल जाए तो आपका अहसानमंद होऊगा
वीनस
वाह जी!
बधाई व शुभकामनाएँ इस अवसर पर
भोत भोत बधाई!
Yunus Ji Is Sangeetmay yaatra ki badhaiyan.
Ashish
http://ashishcogitations.blogspot.com/
"जे सच भी ना 'डाक-साब' सबके सामने बताना ही होगा, परसों नीहारिका ने लखनऊ से मेल करके याद दिलाया था।"-यूनुस
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वही तो! हम भी सोचें कि हमारी भेजी याददाश्त बढ़ाने वाली "दवा" भला इस बार काम कैसे कर गयी ?
बधाई!!!
बहुत बहुत बधाई।
बहुत बधाई और शुभकामनायें यूनुस!
बहुत बहुत बधाई युनुस जी
वाह भाई, बधाई हो बधाई! परन्तु यह क्या बात हुई मिले भी पर हमें मिठाई भी नहीं खिलाई? अब सूद सहित खिलानी होगी।
घुघूती बासूती
बहुत बहुत बधाई हो... ऐसे ही लगे रहो। हमारी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं...
- आनंद
बहुत बहुत बधाईयां स्वीका करें, यूनुसभाई!!
सर जी ब्लॉग के तीन साल पूरे होने पर हार्दिक बधाई.
रेडियो वाणी ने हमारा मनोरंजन तो किया ही साथ में संगीत की दुनिया के कुछ बेहतरीन नगमों से रू-ब-रू कराया . सबसे खास यह रहा की इन गानों का source भी हमें बताया गया, जिसके कारण हमारे संग्रह की ये गीत शोभा बढ़ा रहें हैं. इसमें रफ़ी साहेब का गैर फ़िल्मी गीत 'मैंने सोचा था' सबसे प्रमुख हैं.
एक बार फिर हार्दिक बधाई.
खूब सारी शुभकामनायें. संगीत के ये सुर बस ऐसे ही चलते रहे
और सबको थोड़ी सी शांति सुख और चैन दे
आपको धन्यवाद...
युनुस भाई किसी भी काम को शुरू करना आसन होता है और उसे इस तरह बनाये रखना और सम्हालना तो सबसे मुश्किल काम होता है.हम सभी ज़िन्दगी को कई-कई स्तरों पर जी रहे हैं.यह ब्लॉग तो हमारे तंत्रिकातंत्र का एक हिस्सा भर है और इसे हमने अपनी भावनाओं के सहारे बुना है,कबीर की तरह......"धीरे-धीरे रे बिनी चदरिया जैसा.......".मैं जानता हूँकि ब्लॉग बनाकर उस पर टिके रहना कितना मुश्किल काम है,इसीलिए आप और वह सभी महारथी जो आज ब्लॉग की दुनिया में टिके हुए हैं और शानदार तरीके से टिके हुए हैं,प्रभावित भी करते हैं और प्रेरित भी करते हैं.मेरा साधुवाद स्वीकार करें.
ब्लोगिंग के तीन वर्षों की बहुत बधाई.
अब जल्दी से आप खिलाओ मिठाई.
_______________
'पाखी की दुनिया' में आज मेरी ड्राइंग देखें...
Finally I got to read your blog. Thanks for dropping by my blog.
Congratulations!!! Hope we get to celebrate many more such anniversaries.
All the best!
अब अगली पोस्ट चार साल पूरे होने पर ही आयेगी क्या ?
माल-मसाला न हो,तो हम फिर से भेजें कुछ ?
आपके माल-मसाला भेजने को मना नहीं कर रहे। माल तो हमारे पास भी है। पर जाने क्या हुआ था कि इधर कुछ लिखने का संयोग/हौसला/मन जो भी कह लें...हुआ नहीं था। आज ही नई पोस्ट डाली है।
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if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/