पंचम और होमी मुल्लां दो अद्भुत कलाकार । castenets और resso resso दो अद्भुत वाद्य ।
रेडियोवाणी पर पिछली पहेली क्या पूछी, यूं लगा कि हमारे सुधि-पाठकों की बत्ती गुल हो
गई है । इस बार तो सूरत के भाई पियूष मेहता भी कन्फ्यूज़ से हो गए लगते हैं । दअरसल बत्ती तो हमारी भी गुल हो गई थी जब हमसे ये पहेली पूछी गई थी । हमारे मित्र डाक-साब की इस गुगली ने हमें धराशाई कर दिया था । क्योंकि इन वाद्यों को समझना थोड़ा-सा मुश्किल है ।
बहरहाल हमने आपको एक धुन सुनवाई थी और आपसे पूछा था कि इसमें मौजूद वाद्यों को पहचानिये । शर्त ये थी कि गिटार को छोड़ दीजिए बाक़ी वाद्य पहचानिये । फिर से सुनने के लिए आप ऊपर दिये लिंक पर जाकर पहेली का बाक़ायदा पूरा हिस्सा सुन सकते हैं ।
दरअसल इन वाद्यों की आवाज़ हमने फिल्मी-गानों में इतनी सुनी है और अभय की बात सही है कि फिल्मी-गानों के इतर ट्रेन में गाने वाले गवैये- भिखारी या गांवों में मिलने वाले लोक गायक इसी तरह की ध्वनि पत्थरों को आपस में बजाकर निकालते हैं....इसलिए ध्वनि तो जानी-पहचानी लगती है पर हम इन वाद्यों को नहीं पहचानते ।
आपको बता दें कि ये ध्वनियां थीं -कैस्टेनेट्स (castenets) और रेसो-रेसो (Resso Resso) की । और जो अंश हमने आपको सुनवाया था वो सन 1961 में आई फिल्म 'छोटे-नवाब' के गाने का था । ये संगीतकार राहुल देव बर्मन यानी पंचम की पहली फिल्म थी । और इसका गाना 'घर आ जा' बेहद मकबूल हुआ था । थोड़ा-सा विषयांतर कर दूं--लेकिन देखिए कि इस गाने का कितना सुंदर विश्लेषण 'पंचम-मैजिक' पर अंकुश चिंचालकर ने किया है । इसे मैंने रेडियोवाणी के दूसरे पन्ने पर भी चढ़ा दिया है स्थाई रिफरेन्स के लिए ।
जिन लोगों को प्लेयर नहीं दिख रहा है उन्हें बता दें कि वो इस लिंक को क्लिक करके इसे सुन भी सकते हैं और डाउनलोड भी कर सकते हैं ।
अगर ये गाना आपको देखना है तो यहां क्लिक करें और यू-ट्यूब पर देखें ।
बहरहाल...बात हो रही थी 'छोटे नवाब' के गाने 'मतवाली आंखों वाले' की ।
जी हां इसी गाने की शुरूआत में है कैस्टेनेट्स और रेसो-रेसो की ये तरंगें । अब आपको ये भी बता दें कि इसे बजाया है होमी मुल्लां ने । मुल्लां 1970 से लेकर आखिर तक राहुल देव बर्मन की टोली का हिस्सा रहे हैं । और मुख्य-रूप से इन वाद्यों के अलावा डुग्गी, afro harp, metallic plate और डफली जैसे वाद्य बजाते रहे हैं ।
तस्वीर-साभार-पंचम-मैजिक ।
अब कैसा रहे अगर आपको पंचम की संगीत-टोली का अनन्य-हिस्सा रहे होमी मुल्ला का वो वीडियो दिखाया जाए जिसमें होमी ख़ुद ये वाद्य बजा रहे हैं । लीजिए देखिए । यू-ट्यूब पर ग़ोता लगाकर हम इसे लाए हैं ।
पंचम के संगीत में रेसो-रेसो और कैस्टेनेट्स का प्रयोग अन्य गानों में भी हुआ है । ये रही कुछ गानों की लिंकित फेहरिस्त ।
1. करवटें बदलते रहे रात भर हम (फिल्म 'आपकी क़सम') यहां देखिए । रेसो-रेसो 2. मेरे सामने वाली खिड़की में ( फिल्म 'पड़ोसन' ) यहां देखिए । कैस्टेनेट्स 3. जब हम जवां होंगे (बेताब) यहां देखिए । कैस्टेनेट्स 4. गुलाबी आंखें (दि ट्रेन) यहां देखें । अफ्रीकी रेसो रेसो 5. हवा के साथ-साथ (सीता और गीता) यहां देखिए । रेसो रेसो ।
ये फेहरस्ति और लंबी है । पर फिलहाल इसे इतना ही छोड़ा जा रहा है । क्योंकि हम आपको castenets और Resso resso के बारे में ज्यादा बताना चाहते हैं ।
विकिपीडिया के मुताबिक़ कैस्टेनेट्स का प्रयोग प्राचीन रोमन, इतालवी, पुर्तगाली और
स्पेनिश संगीत में किया जाता था । ये एक परकशन इन्स्ट्रमेन्ट यानी ताल-वाद्य है । इनमें दो कटोरीनुमा रचनाएं एक डोरी के ज़रिए आपस में बंधी रहती हैं और बजाने वाला इन्हें आपस में टकराकर आवाज़ें निकालता है । इसके एक हिस्से को hembra (मादा) और दूसरे को macho (नर) कहते हैं । दोनों की pitch में अंतर होता है ।
स्पेन के Flamenco नृत्य में नर्तक इन्हें बजाते हुए नाचते हैं । हालांकि इस नृत्य में कैस्टेनेट्स का प्रयोग बहुत आम नहीं है । भारत में राजस्थान के लोकगायन में इनका बहुत प्रयोग होता है । इस वीडियो में देखिए । इस वीडियो में कैस्टेनेट्स के साथ-साथ मोरचंग भी सुनाई देगा । जो राजस्थान के अलावा देश में कई इलाक़ों के लोक-संगीत में भी सुनाई देता है । पर राजस्थानी संगीत में इसका खूब प्रयोग होता है । इस वाद्य का प्रयोग भी आर.डी.बर्मन ने किया था । पड़ोसन फिल्म के गाने में । वीडियो में बाईं ओर से पहला वादक कैस्टेनेट्स बजा रहा है । दूसरा और चौथा वादक मोरचंग बजा रहा है । 'सोलो' मोरचंग का अच्छा-सा वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें ।
चीन की कुछ नर्तकियों को कैस्टेनट्स लेकर फ्लेमेन्को नृत्य करते देखने के लिए यहां क्लिक करें । रही बात रेसो-रेसो की....तो इसके बारे में ज्यादा जानकारियां तलाश की जा रही हैं । इंतज़ार कीजिएगा ।
हमें समय-समय पर अपनी पहेलियों से चारों ख़ाने चित्त कराने वाले डाक-साब फिर किसी बुझौवल में फंसाएंगे । और हम भी मज़े-मज़े में पहेली के साथ यहां हाजि़र हो जायेंगे । लेकिन पहेली का ताल्लुक संगीत की दुनिया के किसी अनछुए पहलू से ही होगा, ये पक्का है ।
-----
अगर आप चाहते हैं कि 'रेडियोवाणी' की पोस्ट्स आपको नियमित रूप से अपने इनबॉक्स में मिलें, तो दाहिनी तरफ 'रेडियोवाणी की नियमित खुराक' वाले बॉक्स में अपना ईमेल एड्रेस भरें और इनबॉक्स में जाकर वेरीफाई करें।
गई है । इस बार तो सूरत के भाई पियूष मेहता भी कन्फ्यूज़ से हो गए लगते हैं । दअरसल बत्ती तो हमारी भी गुल हो गई थी जब हमसे ये पहेली पूछी गई थी । हमारे मित्र डाक-साब की इस गुगली ने हमें धराशाई कर दिया था । क्योंकि इन वाद्यों को समझना थोड़ा-सा मुश्किल है ।
बहरहाल हमने आपको एक धुन सुनवाई थी और आपसे पूछा था कि इसमें मौजूद वाद्यों को पहचानिये । शर्त ये थी कि गिटार को छोड़ दीजिए बाक़ी वाद्य पहचानिये । फिर से सुनने के लिए आप ऊपर दिये लिंक पर जाकर पहेली का बाक़ायदा पूरा हिस्सा सुन सकते हैं ।
दरअसल इन वाद्यों की आवाज़ हमने फिल्मी-गानों में इतनी सुनी है और अभय की बात सही है कि फिल्मी-गानों के इतर ट्रेन में गाने वाले गवैये- भिखारी या गांवों में मिलने वाले लोक गायक इसी तरह की ध्वनि पत्थरों को आपस में बजाकर निकालते हैं....इसलिए ध्वनि तो जानी-पहचानी लगती है पर हम इन वाद्यों को नहीं पहचानते ।
आपको बता दें कि ये ध्वनियां थीं -कैस्टेनेट्स (castenets) और रेसो-रेसो (Resso Resso) की । और जो अंश हमने आपको सुनवाया था वो सन 1961 में आई फिल्म 'छोटे-नवाब' के गाने का था । ये संगीतकार राहुल देव बर्मन यानी पंचम की पहली फिल्म थी । और इसका गाना 'घर आ जा' बेहद मकबूल हुआ था । थोड़ा-सा विषयांतर कर दूं--लेकिन देखिए कि इस गाने का कितना सुंदर विश्लेषण 'पंचम-मैजिक' पर अंकुश चिंचालकर ने किया है । इसे मैंने रेडियोवाणी के दूसरे पन्ने पर भी चढ़ा दिया है स्थाई रिफरेन्स के लिए ।
जिन लोगों को प्लेयर नहीं दिख रहा है उन्हें बता दें कि वो इस लिंक को क्लिक करके इसे सुन भी सकते हैं और डाउनलोड भी कर सकते हैं ।
अगर ये गाना आपको देखना है तो यहां क्लिक करें और यू-ट्यूब पर देखें ।
बहरहाल...बात हो रही थी 'छोटे नवाब' के गाने 'मतवाली आंखों वाले' की ।
जी हां इसी गाने की शुरूआत में है कैस्टेनेट्स और रेसो-रेसो की ये तरंगें । अब आपको ये भी बता दें कि इसे बजाया है होमी मुल्लां ने । मुल्लां 1970 से लेकर आखिर तक राहुल देव बर्मन की टोली का हिस्सा रहे हैं । और मुख्य-रूप से इन वाद्यों के अलावा डुग्गी, afro harp, metallic plate और डफली जैसे वाद्य बजाते रहे हैं ।
तस्वीर-साभार-पंचम-मैजिक ।
अब कैसा रहे अगर आपको पंचम की संगीत-टोली का अनन्य-हिस्सा रहे होमी मुल्ला का वो वीडियो दिखाया जाए जिसमें होमी ख़ुद ये वाद्य बजा रहे हैं । लीजिए देखिए । यू-ट्यूब पर ग़ोता लगाकर हम इसे लाए हैं ।
पंचम के संगीत में रेसो-रेसो और कैस्टेनेट्स का प्रयोग अन्य गानों में भी हुआ है । ये रही कुछ गानों की लिंकित फेहरिस्त ।
1. करवटें बदलते रहे रात भर हम (फिल्म 'आपकी क़सम') यहां देखिए । रेसो-रेसो 2. मेरे सामने वाली खिड़की में ( फिल्म 'पड़ोसन' ) यहां देखिए । कैस्टेनेट्स 3. जब हम जवां होंगे (बेताब) यहां देखिए । कैस्टेनेट्स 4. गुलाबी आंखें (दि ट्रेन) यहां देखें । अफ्रीकी रेसो रेसो 5. हवा के साथ-साथ (सीता और गीता) यहां देखिए । रेसो रेसो ।
ये फेहरस्ति और लंबी है । पर फिलहाल इसे इतना ही छोड़ा जा रहा है । क्योंकि हम आपको castenets और Resso resso के बारे में ज्यादा बताना चाहते हैं ।
विकिपीडिया के मुताबिक़ कैस्टेनेट्स का प्रयोग प्राचीन रोमन, इतालवी, पुर्तगाली और
स्पेनिश संगीत में किया जाता था । ये एक परकशन इन्स्ट्रमेन्ट यानी ताल-वाद्य है । इनमें दो कटोरीनुमा रचनाएं एक डोरी के ज़रिए आपस में बंधी रहती हैं और बजाने वाला इन्हें आपस में टकराकर आवाज़ें निकालता है । इसके एक हिस्से को hembra (मादा) और दूसरे को macho (नर) कहते हैं । दोनों की pitch में अंतर होता है ।
स्पेन के Flamenco नृत्य में नर्तक इन्हें बजाते हुए नाचते हैं । हालांकि इस नृत्य में कैस्टेनेट्स का प्रयोग बहुत आम नहीं है । भारत में राजस्थान के लोकगायन में इनका बहुत प्रयोग होता है । इस वीडियो में देखिए । इस वीडियो में कैस्टेनेट्स के साथ-साथ मोरचंग भी सुनाई देगा । जो राजस्थान के अलावा देश में कई इलाक़ों के लोक-संगीत में भी सुनाई देता है । पर राजस्थानी संगीत में इसका खूब प्रयोग होता है । इस वाद्य का प्रयोग भी आर.डी.बर्मन ने किया था । पड़ोसन फिल्म के गाने में । वीडियो में बाईं ओर से पहला वादक कैस्टेनेट्स बजा रहा है । दूसरा और चौथा वादक मोरचंग बजा रहा है । 'सोलो' मोरचंग का अच्छा-सा वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें ।
चीन की कुछ नर्तकियों को कैस्टेनट्स लेकर फ्लेमेन्को नृत्य करते देखने के लिए यहां क्लिक करें । रही बात रेसो-रेसो की....तो इसके बारे में ज्यादा जानकारियां तलाश की जा रही हैं । इंतज़ार कीजिएगा ।
हमें समय-समय पर अपनी पहेलियों से चारों ख़ाने चित्त कराने वाले डाक-साब फिर किसी बुझौवल में फंसाएंगे । और हम भी मज़े-मज़े में पहेली के साथ यहां हाजि़र हो जायेंगे । लेकिन पहेली का ताल्लुक संगीत की दुनिया के किसी अनछुए पहलू से ही होगा, ये पक्का है ।
-----
अगर आप चाहते हैं कि 'रेडियोवाणी' की पोस्ट्स आपको नियमित रूप से अपने इनबॉक्स में मिलें, तो दाहिनी तरफ 'रेडियोवाणी की नियमित खुराक' वाले बॉक्स में अपना ईमेल एड्रेस भरें और इनबॉक्स में जाकर वेरीफाई करें।
12 comments:
शुक्रिया !!! पूरे दो घंटे झक मारा यू-ट्यूब और सर्च इन्जन पर कि कहीं कोई सुराग मिल जाये, पर जब नाम ही न मालूम हो तो कैसे पता लगाया जाये? फिर तबसे इन्तज़ार कर रहे थे कि आप बतायेंगे इन वाद्यों के नाम. बहुत अच्छा लगा वाद्यों और उन्हें बजाने वालों के बारे में जानकर. बड़ी मेहनत की है आपने इस जानकारी को जुटाने में, पर सच में गहरे सागर जाकर मोती ढूँढ़ लाये हैं. बहुत-बहुत आभार आपका इतनी कीमती जानकारी के लिये.
और हाँ डाक साहब को भी धन्यवाद !!!
सुधि-पाठकों की बत्ती तो पहेली से ज़्यादा उसका जवाब आने के बाद गुल हो गई लगती है।
यूनुस जी को "पहेली कुछ ज्यादा ही भारी हो गयी लगती है" ,लेकिन हमें तो लगता है कि पहेली का जवाब ख़ुद उससे भी ज़्यादा भारी हो गया है । तभी तो इतना सन्नाटा !
(सोचते हैं कि अब आगे से इस तरह की और पहेलियाँ न पूछें)
हमने ठीक कहा न, मुक्ति जी ?
:-))
अरे डाक साहिब
पूछते रहिये और मजा लेते रहिये ज्यादा सवाल जवाब में मामला उलझ सकता है
आनंद आ रहा है और आनंद ही जीवन है
सोचते हैं कि सुधि-पाठकों को इतनी सारी जानकारी देने की वाहवाही अकेले यूनुस जी ही क्यों ले जाएँ!
सबकी जानकारी में थोड़ा-सा इजाफ़ा हम भी क्यों न कर दें ?
जिस वीडियो में होमी मुल्लां जी स्टेज पर दोनों वाद्य बजा रहे हैं,उसमें उनके बगल में हाथ में माइक पकड़े, दाढ़ी वाले जो सज्जन खड़े हैं,वही हैं - "पंचम-मैजिक" वाले अंकुश चिंचालकर,जिनका ज़िक्र यूनुस जी ने अपनी इस पोस्ट में ऊपर किया है ।
सही बताया न, यूनुस जी ?
वाह!! आनन्द आ गया!
ab jakat chain mila.
ab jakat chain mila.
बहुत अच्छा । बहुत सुंदर प्रयास है। जारी रखिये ।
आपका लेख अच्छा लगा।
अगर आप हिंदी साहित्य की दुर्लभ पुस्तकें जैसे उपन्यास, कहानी-संग्रह, कविता-संग्रह, निबंध इत्यादि डाउनलोड करना चाहते है तो कृपया 'अपनी हिंदी' पर पधारें । इसका पता है :
www.apnihindi.com
सही मायनेमें अत्यंत उपयुक्त और नयी जानकारी... आभार युनुसजी...आभार डाकसा'ब...
वाह ! इस बारे में तो बिल्कुल जानकारी नहीं थी।
श्री युनूसजी और डाक साहब,
श्री ओमी मुल्लाजी, श्री एनोक डेनियेल्स, श्री जयराम आचार्य जैसे कई कलाकारोंको अहमदाबाद के ग्रामोफोन क्लबने सन्मानित किया था इस में श्री ओमी मुल्लाजीने अपने इस फन का परिचय दिया था और अपने गुरू के नाम श्री कावसजी लोड (एकोर्डियन वादक केरसी लॉड के पिता) को भी आदरसे बताया था । इस गाने की एल पी उस ज़मानेमें नहीं आयी थी इस लिये इस गाने का शुरू का पहेली वाला हिस्सा 78 आर पी एम में नहीं था । और ये शुरू के ताल का मेल जो पहेलीमें था मुल गाने के साथ नहीं है । हाँ आर डी बर्मन को तो मैं पहचान ही गया था और मेरे सुरत वासी मित्र श्री जोय क्रिश्च्यन नें फिल्म छोटे नवाब का जिक्र इस संगीत को सुनकर किया था पर फिर भी इस गाने पर मैं आ नहीं सका था । बढिया पोस्ट ।
पियुष महेता ।
सुरत ।
Hatprabh hoon yahan aake..
Post a Comment
if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/