क्यूं प्याला छलकता है--मन्नाडे का एक अनमोल गीत
आज रेडियोवाणी पर जो गीत आ रहा है उसे सुनवाने का वादा मैंने कुछ दिन पहले किया था । पर व्यस्तताओं की वजह से नहीं सुनवा सका ।
ये कई मायनों में एक दुर्लभ गीत है ।
मुझे याद है कि मैंने black and white टी वी के ज़माने में शिवेंद्र सिन्हा की ये फिल्म दूरदर्शन पर देखी थी । उन दिनों हमने मन्नाडे के गीत खोज-खोजकर सुनने शुरू कर दिये थे । इस गीत को मैं कई सालों से खोज रहा था पर अब जाकर हाथ लगा है । इस गाने में एक सादगी है और शब्दों में है लालित्य ।
पंडित नरेंद्र शर्मा के बोल हैं और संगीत रघुनाथ सेठ का है । सुनिए और बताईये कि कैसा लगा ये गीत
क्यूं प्याला छलकता है क्यूं दीपक जलता है
दोनों के मन में कहीं अनहोनी विकलता है ।।
पत्थर में एक फूल खिला, दिल को एक ख्वाब मिला
क्यूं टूट गये दोनों, इस का ना जवाब मिला
दिल नींद से उठ उठकर क्यूं आंखें मलता है ।।
हैं राख की रेखाएं लिखती हैं चिंगारी
हैं कहते मौत जिसे जीने की तैयारी
जीवन फिर भी जीवन जीने को मचलता है ।।
क्यूं प्याला छलकता है ।।
मन्ना दा का ये गीत यहां बज नहीं रहा।
नई पोस्ट का लिंक ये रहा
http://radiovani.blogspot.in/2012/05/blog-post.html
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5 comments:
यह सुनना बहुत भाया, यूनुस।
यूनुसजी,
मन्नाजी का हिन्दी शब्दों का उच्चारण सभी गायकों में सबसे उत्कृष्ट है | इस मामले में उन्होंने कभी निराश नहीं किया | गजल के क्षेत्र में यही बात मेहदी हसन साहब पर लागू होती है |
इस मधुर गीत को सुनवाने के लिए धन्यवाद |
मन्नाडॆजी के गाये फिल्मी और गैर फिल्मी गीत, दोनोही बडे मधुर है. ये गीत भी बढिया रहा.
बहुत खूब यूनुस भाई पहली बार सुना इसे..
युनुस भाई,
मन्ना बाबू का गाया, मेरे पापा जी का लिखा ये गीत आज अंतर्जाल के आपके पन्ने पे सुनकर बहुत खुशी हुई - सुनवाने का शुक्रिया -
स्नेह - लावण्या
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