आई आई टी की एक रंगीन सुरीली शाम- मनीष के नाम
जैसा कि आप जानते हैं कि एक शाम मेरे नाम वाले मनीष मुंबई प्रवास पर आए थे और उनका ठिकाना था IIT campus पवई । उनसे पहली मुलाक़ात का ब्यौरा अनीताजी , अभय और विमल जी की पोस्टों को पढ़कर जाना जा सकता है । बहरहाल शुक्रवार की शाम फिर से ब्लॉगर-मंडली जमी और खूब आनंद आया । लेकिन शुक्रवार तक पहुंचने से पहले ज़रा बुधवार की मुलाक़ात के आखिरी छोर को एक बार दोहरा लिया जाये ।
दरअसल जिस शाम का ब्यौरा अनीता जी दे चुकी हैं, उसमें हम सब इकट्ठा हुए और फिर बातें जाने किन-किन मुद्दों पर घूमती हुई कहां से कहां जा पहुंची । फिर जब रंग जमने लगा तो अनीता जी को घर लौटने में देर होने लगी । वो मुंबई के एक दूरस्थ हिस्से से आती हैं । जब हम उन्हें छोड़ने नीचे आए तो गीत-संगीत का रंग जम गया । इससे पहले जब अभय जी के घर जमा होने के बाद हम सभी यानी मैं, अभय जी और विमल जी आई आई टी जा रहे थे तो रास्ते में विमल जी के थियेटर वाले दिनों की चर्चा शुरू हो गयी । और तब विमल जी ने गाया था ब्रेख्त का गीत--गर आपकी प्लेट ख़ाली हो । ये इतना सुंदर और संक्रामक गीत है कि दिमाग़ पर बस चढ़ ही गया था । इसलिए जब हमारे नीचे आने पर गीत-संगीत का रंग जमा तो पहले फ़रमाईश की गयी मनीष से कि वो छठ पूजा वाला वो गीत गाएं जिसे उन्होंने अपने ब्लॉग पर चढ़ाया था । मनीष थोड़े सकुचाए और थोड़ी देर ज़ोर डालने के बाद उन्हें छोड़ दिया गया । अब विमल जी की बारी थी । ज़रा इस दृश्य की कल्पना कीजिए--विमल, अभय, अनिल रघुराज और प्रमोद जी एक साथ खड़े हैं और हाथ उठा उठाकर गा रहे हैं जब आपकी प्लेट ख़ाली हो । जोश में आकर मैं और मनीष इस गीत को दोहरा रहे हैं और अनीता जी असमंजस में हैं, आनंद भी आ रहा है और अकेले गाड़ी चलाकर घर लौटने में देर भी हो रही है । आखिरकार गीत खत्म हुआ और फिर 'बाय बाय' की औपचारिकता के बाद अनीता जी रवाना हो गयीं । पर महफिल का रंग तो अब जमना शुरू हुआ था, इसलिए मनीष के कहने पर हम सब लेक की तरफ निकल पड़े । जिसका ब्यौरा अभय ने दिया ही है ।
उस दिन निकलते निकलते ये लग रहा था कि अभी मन नहीं भरा है । इसलिए शुक्रवार या शनिवार के कार्यक्रम पर विचार होता रहा । फिर मुलाक़ात की गुंजाईश रखकर हम सभी निकल पड़े ।
गुरूवार की शाम विकास का संदेश आया--'मनीष जी पूछ रहे हैं क्या कार्यक्रम है' ।
मैंने फोन किया तो तय हुआ कि शुक्रवार की शाम मिला जा सकता है । विकास को इस पूरे आयोजन को co-ordinate करने की जिम्मेदारी सौंप दी गयी ।
शुक्रवार की शाम को विमल जी से तय हुआ कि वे कहीं मिल जायेंगे और फिर साथ चला जायेगा । इस तरह अपन विमल जी के साथ गप्पें मारते हुए आई आई टी पहुंचे । सबसे पहले । और फिर बातों का दौर शुरू हुआ । विकास, मनीष, विमल जी और मैं । विमल जी ने टेलीविजन की दुनिया के कुछ दिलचस्प किस्से सुनाए और फिर अचानक गानों का दौर शुरू हो गया । विमल जी ने थियेटर के ज़माने के कई जनगीत गुनगुनाए-- जिसमें वो गीत भी शामिल था---' पहले दाल में काला था अब काले में दाल है ।' इतना तरंगित गीत था कि हम सभी उसे गुनगुनाए बिना नहीं रह सके । फिर कुछ और गीत हुए । और अचानक अज़दक महोदय ने विमल जी का फोन घनघनाया ।
अज़दक यानी प्रमोद जी के आते ही माहौल थोड़ा गंभीर हो गया । प्रमोद जी को पटाख़े फोड़ने की आदत जो है । ट्रैफिक से खीझे और परेशान प्रमोद जी ने आते ही अनीता जी के सामने सवाल दाग़ दिया--जिस तरह की आबादी है इस शहर की और जैसा मूलभूत ढांचा है, क्या ये शहर survive कर पाएगा । ग्लोबल वॉर्मिंग मुंबई शहर को आप्लावित कर देगी, इस भयावह नतीजे की चर्चा के दौरान ही अनिल जी आ गये और उनको 'हॉट सीट' पर बैठा दिया गया । ये वो कुर्सी थी जिस पर बैठकर विमल जी गीत गा रहे थे । और सभी अपने अपने कैमेरों से तस्वीरें खींच रहे थे । अनिल जी से गाने की फरमाईश की गई तो उन्होंने कहा कि भई हम तो शामिल बाजा हैं । दूसरों का साथ देते हैं । पर फिर विमल के अनुरोध पर उन्होंने ये गीत गाया, जिसे हमने वीडियो पर क़ैद कर लिया । ये रहा देखिए ।
आज जब कंप्यूटर पर इस गीत को ट्रांस्फर करके आवाज़ चेक की तो लगा कि ये तो ठीकठाक बन पड़ा है । अफ़सोस हुआ कि कल विमल जी के गीतों को भी क्यों कै़द नहीं किया अपने वीडियो में ।
चूंकि हम सब अनीता जी के बुलावे पर शनिवार को उनके घर नहीं जा सकते थे इसलिए अनीता जी खाना बनाकर साथ ले आईं थीं । गाने की महफिल रूकी और फिर शुरू हुई खाने की महफिल । अनीता जी का धन्यवाद कि उन्होंने हम सभी को इत्ता बढि़या भोजन करवाया ।
बहरहाल इस पूरे ब्लॉगर-मिलन में कई रोचक मोड़ आए ।
जिनका पूरा ब्यौरा देना मुमकिन नहीं । लेकिन अनीता जी को विदा करने के बाद फिर से महफिल जमी और फिर से गप्पें हुईं । विकास लड़कियों के हॉस्टल से पहले दौर में चाय बनवाकर शीतल पेय की बोतलों में भरकर ले आया था । बिस्किट और वेफर्स भी । इस तरह उसने अपनी उद्यमिता को साबित कर दिया था । हां ये बताना तो भूल ही गया कि विकास ने भी अपने पुराने और नए नाटकों के कुछ गीत सुनाए । बहुत बढि़या गाया विकास ने । गीत संगीत की इस पूरी महफिल में विकास ट्रे बजाकर रिदम देता रहा । और विमल जी टेबल बजाकर । विमल जी ने भूपेन हज़ारिका के गीत भी गाए । मनीष पर भी रंग चढ़ा और उन्होंने भी कुछ ग़ज़लें और गीत सुनाये । इस दौरान जमकर चर्चा हुई । ये रहीं कुछ चुनिंदा तस्वीरें ।
विमल जी तल्लीन होकर गाते हुए
विमल, मैं और मनीष
विकास की उद्यमितापूर्ण चाय
प्रमोद जी की चुस्कियां
अनीता जी और उनका कैमेरा
विकास का तबला वादन
विमल जी का गाना, प्रमोद जी का यादों में डूबना और मनीष का सुनना
मैं भी तो तस्वीरें ले लूं--मनीष
कमरे के बाहर जमी बैठक
अनिल जी का गीत splash cast पर उन लोगों के लिए जिन्हें लाईफलॉगर ठीक से सुनाई नहीं दे रहा है ।
20 comments:
वाह ,अनिल जी का गीत बहुत सरस लगा…सबके चित्र बहुत अच्छे आये हैं
मजा आगया जी वर्णन पढ़ देख सुन के.
चित्र और प्रस्तुति दोनों स्तरीय है , मजा आ गया पढ़कर !
बाकी के विडीयो अ्निता जी और मनीष जी की कृपा से देखने को मिल ही जायेंगे. गाना सुन के एक बार फिर से कल रात की याद ताजा हो आयी.
युनुस जी आप ने बहुत ही सजीव वर्णन किया और अनिल जी का गाना एक दम साफ़ सुनाई दे रहा है। हमारे पास विमल जी और विकास की रिकार्डिंग है पर कैसे ब्लोग पर डालें ये जानकारी नहीं। आप सब से मिल कर बहुत अच्छा लगा।
अनीता जी विकास ब्लॉग बुद्धि बांट रहा है ना, उसके कान खींचिए और कहिए सिखाए आपको । वैसे करना कुछ नहीं है । लाईफलॉगर पर जाईये । रजिस्टर कीजिए और अपलोड कर दीजिए । फिर कोड लीजिए और पब्लिश कर दीजिए । कोई दिक्कत हो तो बताईये ।
सब इतने मस्त और भले मानस लग रहे हैं। बस लिखते कभी कभी टेढ़ा-टेढ़ा हैं! :-)
और हां - अनिल जी ने गाया बहुत अच्छा है।
क्या बात है!! गाना और तस्वीर दोनो ही अच्छे हैं, विवरण तो बढ़िया ही दिया है आपने!!
गीत चित्र विवरण .... सब सरस
यूनुस जी मज़ा आ गया पूरा विवरण पढ़ कर, वैसे एक बात कहूँ मनीष भाईसाब जहाँ भी जाते हैं महफ़िल जमा ही लेते हैं, वैसे आपने उनसे गाना भी गवा दिया ये तो कमल हो गया
कैमरे की नज़र से लिखा है आपने, कोई भी चीज़ छोड़ी नही आपने, वाकई कह सकते हैं कि बड़ा मगन होके लिखा है आपने,पर कुछ लोगों के गाने की कुछ ज़्यादा तारीफ़ हो गई नही लगता आपको ?हां इसमें कोई शक नहीं की यादगार शाम ज़रूर थी,सबसे मिलकर बहुत अच्छा लगा,आप्सब से मिलने का तहे दिल से शुक्रिया.
इन महफिलों को देख कर इलाहबाद के वो पुराने दिन याद आ गये. जिंदगी की इस लड़ाई में जाने क्या क्या चीजें हाथ से निकल गई. आपलोग बधाई के पात्र हो कि मुम्बई जैसी जगह में भी इसके लिए समय चुरा लेते है. भाई अच्छा लगा.
भाई सच दूसरी मुलाकात पहले से भी बेहद आनंददायक रही, विमल भाई और विकास ने दिल खुश कर दिया।। सब बातें पढ़ रहा था और रिकार्डींग री रन कर रहा था तो एक कमी खली कि आपको उस हॉट सीट पर बैठाकर कुछ हमलोगों ने कुछ क्यूँ ना रिकार्ड करवाया। हम सब के लिए वो वीडियो भी उतना ही यादगार होता। बहरहाल राँची सकुशल पहुँच गया हूँ और कल रात की अपनी बकबक के बाद गला और बैठ गया है और अब मुश्किल ये है कि आप लोगों ने पूरा वृत्तांत इतना बेहतरीन बयाँ किया है कि अपन मुश्किल में पड़ गए हैं कि क्या लिखें :)
अनिल जी ने बहुत अच्छा गाया है। सजीव चित्रण किया आपने दूर दर्राज़, से, आये आप सभी, मिल बैठकर सँगीत व गपशप का आनँद उठाते हुए, "हिन्दी -ब्लोग जगत के धुरँधरोँ की इस ब्लोग -मिलन की वार्ता " रसप्रद रही -
आप सभी को स स्नेह, नमस्ते -
- लावण्या
बड़े मियां, भौत सई लिख दिया है हाल.....एकदम सई सई। समां बांध दिया। अनिताजी और अभयजी से कहीं कमतर नहीं। अलबत्ता पढ़े की ही तारीफ करेंगे गो कि सुन तो कुछ पाए नहीं।
शानदार विवरण है जी। अनिलजी की आवाज में लोकगीत सुनकर बहुत अच्छा लगा। कभी लिखुंगा इस बारे में विस्तार से। बेहतरीन पोस्ट।
बहुत शानदार। मुझे पहली बार मुंबई छोड़ने का दुख हो रहा है। ये सब 10 महीने पहले नहीं हो सकता था।
अहा! हमारी अवधी भाषा मे सोहर की धुन पर गाया गया अनिल जी का मार्मिक गीत हृदय को कहाँ तक छू गया क्या बताएं? माँ यहाँ होती तो खुश हो गई होतीं कि बिटिया के ब्लॉग पर उनके मन का भी बहुत कुछ होता है।
और सारी फोटो देख कर हम भी उस शाम के प्रत्यक्षदर्शियों की श्रणी में आ जाते हैं।अ
आप सबों का ब्लौग पढ कर तो ऐसा बिलकुल भी नहीं लग रहा है कि हमलोग वहां उपस्थित नहीं थे.. ऐसा लग रहा है जैसे हम भी वहीं खिड़की के किसी कोने से झांक कर आप सबों की महफ़िल में शामिल हैं..
और हां यूनुस जी, मैं आपके पत्र के इंतजार में हूं.. आपने कहा था कि आप अपने हिंदी श्रोता का नं देंगे.. वैसे आप मुझसे भी इस नं पर संपर्क कर सकते हैं.. 09940648140
:)
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