फिल्म Bandit Queen का गीत-मोरे सैंया तो हैं परदेस. नुसरत फतेह अली खां की आवाज़ ।
कल दिन में निर्मल-आनंद वाले अभय जी से बात हो रही थी । उन्होंने कहा कि क्या मेरे पास bandit queen के गीत होंगे । मुझे फौरन उस कैसेट की याद आ गयी जो मैंने जबलपुर में छोड़ रखा है, इस बार भी उसे निकालने की याद नहीं आई । वो दौर तो याद आ ही गया जब हम अपने जेबखर्च को कैसेट खरीदने में लगाते थे । इस गाने के लिए मुझे ज्यादा खोजबीन नहीं करनी पड़ी । और जब सुना तो दिल गदगद हो गया ।
जब शेखर कपूर की फिल्म bandit queen आई थी तो इस फिल्म के संगीत की काफी चर्चा हुई थी । इसमें कुछ गीत नुसरत फतेह अली खां की आवाज़ में थे और इसी कैसेट में बैकग्राउंड म्यूजिक के कुछ कट भी दिये गये थे । खोजबीन करके उन सबको जुटा लिया जायेगा पर आज वो गीत सुनते हैं जिसका मुखड़ा है--मोरे सैंया तो हैं परदेस ।
ये बाक़ायदा एक लोकगीत है और इसे आप शानदार संगीत संयोजन और बेजोड़ गायकी के लिए जरूर सुन सकते हैं । गाना नुसरत के आलाप से शुरू होता है और फौरन दिल में अजीब सी कैफियत आ जाती है । फिर जो रिदम है उसकी रवानी कमाल की है । इसके बाद कोरस ऐसा अहसास देता है जैसे गांव में किसी घने पेड़ के नीचे औरतें सावन का गीत गा रही हैं । फिर नुसरत की गझिन सी आवाज आती है । इस गाने में एक दर्द है, पीड़ा है, सैंया परदेस हैं और गोरी को विरह परेशान कर रहा है । मुझे आज याद नहीं आ रहा है कि इस गाने की फिल्म में क्या जगह बनती है । पक्का नुसरत शैली का गीत है । जो खत्म हो जाए तो खालीपन का अहसास होता है और हम बरबस ही इसे दोबारा सुनने को मजबूर हो जाते हैं ।
सावन आया रिमझिम सांवरे
आये बादल कारे कारे मतवारे
प्यारे प्यारे मोरे अंगना झूम के
घिर घिर आई ऊदी ऊदी देखो मस्त घटाएं
फुरफर आज उड़ाएं आंचल मोरा सर्द हवाएं
डारी डारी पे भंवरा घूम के आये कलियों के मुखड़े चूम के
जिया मोरा जलाए हाय प्यारी प्यारी रूत सांवली ।।
मेरे सैंयां तो हैं परदेस मैं क्या करूं सावन को
सूना लगे सजन बिन देस ।
मैं ढूंढूं साजन को ।।
देखूं राहें, चढ़के अटरिया
जाने कब जाएं सांवरिया
जब से गए मोरी ली ना खबरिया
छूटा पनघट फूटी डगरिया
सूना लागे सजन बिन देस, मैं ढूंढूं साजन को ।।
क्यूं पहनूं मैं पग में पायल
मन तो है मुझ बिरहन का घायल
नींद से खाली मोरी अंखियां बोझल
रोते रोते बह गया काजल ।
सूना लागे सजन बिन देस मैं ढूंढूं साजन को ।।
बैंडिट क्वीन के गानों और संगीत का ये सिलसिला जारी रहेगा ।
12 comments:
वाह यूनुस जी बहुत मजा आया गाना सुनकर । पहले कभी इतने ध्यान से नही सुना था ये गीत ।
बहुत शुक्रिया ।
प्यारा गाना सुनकर आनंद आ गया युनूस भाई इसी तरह क्रम को आगे बढ़ाते रहे. धन्यवाद
युनुस भाई मज़ा आ गया मैंने निर्मल आनंद जी से तीन चार दिन पहले ही इसका जिक्र किया था और पुरी उम्मीद थी कि आपके पिटारे से यह बाहर निकले गा. धन्यवाद आपको. इसी फिल्म में एक और गीत है जो कि एक छोटे बच्चे कि आवाज में, बुंदेलखंड का पारम्परिक गीत है, कही मिले तो उपलब्ध कराइये गा. धन्यवाद
खूबसूरत गीत है । गाना सुनते हुए फिल्म याद आ गयी।
बहुत शुक्रिया युनुस.. मज़ा आ गया। वैसे मूल फ़रमाइश यह मयंक की ही है.. जिन्होने यहाँ ऊपर आप को धन्यवाद भी किया है।
विरह की परम्परा की कविता आदिकाल से हिट है - कालिदास के जमाने से। और यहां गंगा के मैदान में तो पिछली दो शताब्दियों से जब लोग कलकत्ता/रंगून/बम्बई जाने लगे हैं, इस प्रकार के गीतों का माधुर्य और भी सार्थक लगता रहा है।
इस गीत का ऊदी ऊदी कहीं उड़ी उड़ी तो नहीं है,जो कोरस के गायकों ने udi udi को पढ़ कर गा दिया हो.स्पष्ट करें.
अजय जी ऊदी ऊदी सही शब्द है । मैं आपको बताऊं कि हिंदुस्तानी यानी हिंदी और उर्दू के मिश्रण में गीतों में घटाओं के लिए ऊदी ऊदी शब्द का प्रयोग किया जाता है । ये शब्द केवल घटाओं के लिए इस्तेमाल होता है । शकील बदायूंनी का भी एक गीत है ऊदी ऊदी घटाएं छाईं । एक मुकेश का गाया गीत याद आ रहा है जिसमें ऊदी घटाओं का जिक्र आता है ।
ऊदी का अर्थ?
फूली फूली मस्त घटाएं ।
thanks 4 this song
मेरे सैंयां तो हैं परदेस मैं क्या करूं सावन को --- जितनी बार सुनो , उतना ही और आनन्द...बहुत बहुत धन्यवाद...
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