सजना तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे- bandit queen फिल्म का गीत ।
रेडियोवाणी पर मैंने बैंडिट क्वीन के गानों का सिलसिला शुरू किया था । इस बीच तीन दिन के लिए मैं एक मीडिया सेमीनार में हिस्सा लेने के लिए इंदौर गया तो ये सिलसिला ज़रा-सा थम गया । उस छूटे हुए सिरे को पकड़ते हुए आज से फिर bandit queen के गीत सुनवाए जायेंगे, पर बीच बीच में रेडियोवाणी पर कुछ दूसरे जिक्र भी होते रहेंगे । बहुत जल्दी रेडियोवाणी पर आपके लिए प्रस्तुत किया जाएगा इंदौर के 'ब्लॉगर मिलन' का ब्यौरा मय तस्वीरों के । लेकिन उसके लिए मुझे मुंबई की दूसरी व्यस्तताओं से फुरसत तो हो जाने दीजिए ।
बहरहाल शेखर कपूर की फिल्म बैंडिट क्वीन के गाने सचमुच अनमोल हैं । शुक्र है कि आप लोगों ने याद दिलाए । ये गीत कई मायनों में अजीब-सा है । जब आप इसे पढ़ेंगे तो पाएंगे कि अंतरों की कोई तयशुदा लंबाई या मीटर जैसा नहीं है । पहला अंतरा अंतरे जैसा नहीं है । दो ही पंक्तियों में खत्म हो जाता है । हां बाकी के दो अंतरे जरूर बाकायदा जायज़ अंतरे हैं । गीत किसने रचा है, मुझे नहीं मालूम और मैंने फिलहाल इसकी तफ्तीश भी नहीं की । पर गीत में लालित्य है । सुंदर सा लिखा है ये गीत जिसने भी लिखा है । मुझे इस गीत के कुछ जुमले वाक़ई बहुत पसंद आए । जैसे कि 'पलकों में बिरहा का गहना पहना' या फिर 'बूंदों की पायल' वाला पूरा अंतरा......इतनी बारीक भावनाओं को शब्दों में बांधा गया है कि क्या कहें ।
हां इस गाने के संगीत-संयोजन की चर्चा जरूर करना चाहूंगा । बहुत ही प्रयोगधर्मी किस्म का संगीत संयोजन है ये । जब इस तरह के देसी बोल हों तो गाने को लोकगीत का जामा पहनाने में देर नहीं लगती । लेकिन नुसरत फतेह अली ( nusrat fateh ali khan) ने इसमें वैसे साज़ रखे हैं जैसे ग़ज़लों में हुआ करते हैं । तेज़ हवाओं के इफेक्ट से गाना शुरू होता है । इसके बाद गिटार और फिर सितार । रिदम बहुत ही हल्का-सा है । अगरबत्ती की हल्की महक जैसा । और फिर आती है नुसरत की विकल पुकार.....सजना..... जिसके बाद गिटार की हल्की स्वरलहरी भली भली सी लगती है ।
अगर आप पहले interlude से गाने को सुनें तो आप समझेंगे कि ये जगजीत सिंह या भूपेंद्र की कोई गजल है । बिल्कुल गजल जैसा संयोजन है । और जैसा गिटार इस गाने में है, वैसा जहां भी हो मुझे बहुत मीठा और मनमोहक लगता है । तो पढि़ये और सुनिए इस गीत को ।
सजना, सजना तेरे, तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे ।
काटूं कैसे तेरे बिना बड़ी रैना, तेरे बिना जिया नाहीं लागे ।
पलकों में बिरहा का गहना पहना
निंदिया काहे ऐसी अंखियों में आए
तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे ।।
बूंदों की पायल बजी, सुनी किसी ने भी नहीं
खुद से कही जो कही, कही किसी से भी नहीं
भीगने को मन तरसेगा कब तक
चांदनी में आंसू चमकेगा कब तक
सावन आया ना ही बरसे और ना ही जाए
हो निंदिया काहे ऐसी अंखियों में आए
तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे ।।
सरगम खिली प्यार की, खिलने लगी धुन कई
खुश्बू से 'पर' मांगकर उड़ चली हूं पी की गली
आंच घोले मेरी सांसों में पुरवा
डोल डोल जाए पल पल मनवा
रब जाने के ये सपने हैं या हैं साए
हो निंदिया काहे ऐसी अंखियों में आए
तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे ।।
इस गाने को सारेगामापा के मुसर्रत की आवाज में आप देख भी सकते हैं ।
रेडियोवाणी पर bandit queen के गीतों का सिलसिला जारी रहेगा ।
जल्दी ही इंदौर वाली ब्लॉगर मीट का ब्यौरा भी ।
बैन्डिट क्वीन श्रृंखला का पहला गीत सुनने के लिए नीचे शीर्षक पर क्लिक करें ।
7 comments:
नुसरत साहब का ये गीत मुसर्रत की आवाज़ मे ,मेरा पसंदीदा गीत है। बहुत आभार आपका सुनवाने के लिये…।"सांवरे तोरे बिना जीया जाये न" गीत का बेसब्री इसी कड़ी मे इंतज़ार रहेगा। शुक्रिया
बहुत आभार आपका सुनवाने के लिये शुक्रिया
यूनुस भाई शयद वो गीत भी इस फ़िल्म का है ," अखियाँ नु चैन न आवे " श्याद सुनने को मिले, इसी कड़ी में
"गीत किसने रचा है, मुझे नहीं मालूम और मैंने फिलहाल इसकी तफ्तीश भी नहीं की...." - यूनुस
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मैंने तो खुद शेखर कपूर जी से ही पूछा है; देखिये बताते हैं या नहीं!
फ़िलहाल आपमें से जो असली शेख्रर कपूर से रूबरू होना चाहें,वे यहाँ तशरीफ़ ले जाएँ :
http://www.shekharkapur.com/blog/
- वही
बहुत बढिया काम किया है आपने.. क्या आप बैंडिट क्विन का "अंखिया नु चैन ना आवे.." सुना सकते हैं?
मुझे एक और जानकारी चाहिये, मेरे पास इस सिनेमा का कैसेट था जो कि ABCL पर आया था.. पर आज ABCL बंद हो चुका है.. मैं इस सिनेमा की आडियो CD खरीदना चाहता हूं, मैं ये ओनलाईन कहां से खरीद सकता हूं??
सूफियाना गीत वैशे भी मेरी पसंद। पहले कभी सोचा ही नही था कि बैंडिट क्वीन में भी इतने अच्छे गीत हो सकते हें, मुसर्रत की आवाज़ में सुनने के बाद ही ध्यान गया।
जब आप इसे पढ़ेंगे तो पाएंगे कि अंतरों की कोई तयशुदा लंबाई या मीटर जैसा नहीं है । पहला अंतरा अंतरे जैसा नहीं है । दो ही पंक्तियों में खत्म हो जाता है । हां बाकी के दो अंतरे जरूर बाकायदा जायज़ अंतरे हैं ।
ये जो आपने लिखा है ये फिर से दख लें एक बार क्योंकि वास्तव में जिसको आपने पहला अंतरा कहा है वो तो मुखड़े का ही हिस्सा है
पलकों में बिरहा का गहना पहना
निंदिया काहे ऐसी अंखियों में आए
तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे ।।
की पंक्ति निंदिया काहे ऐसी अंखियों में आए बाद के अंतरों में दोहराया भी गया है
और बद के अंतरे भी पुरी तरह से गीत की परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं ये पांच पांच लाइनों वाले अंतरे हैं जिनमें पांचवी लाइन तुक का मिलान करती है
सजना, सजना तेरे, तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे ।
काटूं कैसे तेरे बिना बड़ी रैना, तेरे बिना जिया नाहीं लागे ।
पलकों में बिरहा का गहना पहना
निंदिया काहे ऐसी अंखियों में आए
तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे ।।
ये तो पूरा कापूरा ही मुखड़ा है अंतरा नहीं है । परंतु आपको साधुवाद एक सुंदर गीत सुनवाने के लिये । मैं स्वयं गीतकार हूं इसलिये रह ना पाया और अपनी कह दी ।
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