daughters day और हमारे घरों की बेटियों के नाम दो नग्मे
आज है डॉटर्स डे । बेटी दिवस ।
हमारे देश में बेटियों के साथ जैसा बर्ताव किया जाता रहा है उसके परिप्रेक्ष्य में 'बेटी दिवस' महत्त्वपूर्ण हो जाता है । महत्त्वपूर्ण इस संदर्भ में कि कम से कम माता पिता को अहसास तो हो कि वो बेटी के साथ भेदभाव कर रहे हैं । हम आधुनिकता का चाहे जितना डंका पीट लें, अर्थव्यवस्था की तरक्की के परचम लहरा लें लेकिन इतना तो तय है कि
जब बेटी की उच्च शिक्षा की बात आती है तो आज भी मध्यवर्गीय परिवारों में बेटे की कीमत पर बेटी को बड़े शहर में होस्टल में रहकर पढ़ने नहीं भेजा जाता । आज भी विदेश पढ़ने जाने के लिए बेटे का नंबर तो आ सकता है पर बेटी.... नहीं नहीं । ऐसा कैसे हो सकता है । आज भी बेटा अपनी मर्जी से शादी कर ले तो थोड़ी नाराज़गी के बाद उसे माफ किया जा सकता है । लेकिन बेटी को कभी माफ नहीं किया जाता । ये माना जाता है कि उसने हमारी नाक कटा दी ।
हम दोहरी मानसिकता के किस क़दर शिकार हैं ।
डॉटर्स डे भले ग्रीटिंग कार्ड कंपनियों या उपभोक्तावादी समाज रचने वाले बाज़ार का शोशा हो पर किसी ना किसी तरह ये अहसास दिला रहा है कि घर में बेटी भी है । उसकी अपनी खुशियां और ग़म हैं । उसका एक नाज़ुक सा मन है । उसके अपने सपने हैं । उसकी अपनी उड़ान है । वो लोकगीतों वाली पिंजरे की मैना नहीं है । आज जरूरत पड़े तो बेटी पहले मां बाप के काम आती है । उस समय बेटे अपनी पेशेवर मजबूरियों का बहाना बनाकर कन्नी काट लेते हैं ।
रेडियोवाणी पर उसी बेटी के नाम दो प्यारे से नग्मे ।
हालांकि नग्मे क्रांति नहीं लाते । लेकिन शायद नग्मे अपराधबोध का अहसास करा सकते हैं । इन गानों के ज़रिये मैं अपनी छोटी बहन को भी याद कर रहा हूं ।
हालांकि मुझे खुशी है कि हमारे परिवार ने उसकी सपनों और उसकी उम्मीदों को कुचला नहीं । पर ये उन तमाम बहनों के नाम जिन्हें पिंजरे वाली मैना समझा गया और समझा जा रहा है ।
ये गीत फिल्म सीमा का है । जो सन 1955 में आई थी । बोल हसरत जयपुरी के संगीत शंकर जयकिशन का ।
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और ये सन 1964 में आई फिल्म दोस्ती का गीत है । लक्ष्मी प्यारे की जोड़ी की ये पहली रिलीज़ फिल्म थी । इस फिल्म से ही उन्होंने अपने आप को संभावनाशील संगीतकार साबित कर दिया था । अफसोस कि मैं इन गीतों के संगीत का विश्लेषण व्यस्तताओं के रहते नहीं कर पा रहा हूं । ये गीत मजरूह का है ।
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10 comments:
युनूसभाई,
आपने जो मुद्दा उठाया है वो पूर्णसत्य है. महाभारत की तरह पाच पतियोंकी एक द्रौपदी यह समय अब दूर नही. जिस क्रूरता की तरह बेटियोंको जन्म लेनेका और जीनेका हक नकारा जा रहा है, वो देखकर शर्मसे सिर झुक जाता है. क्या ये वही भारतीय लोग है जो 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता' ऐसी डींगे हांकते थकते नही?
गीत तो सचमुच ही बडे मीठे है. बस एक बात कहनी थी. लक्ष्मी प्यारे जी की पहली फिल्म पारसमणी है जो १९६३ में आयी थी. बादमे आयी हरिष्चंद्र तारामती. बादमे १९६४ में दोस्ती बनी.
यह तो आज पता चला कि आज बिटिया का दिन है. मेरी बिटिया कल शाम ही हमारे पास आयी है. मैं उससे पूछता हूं कि उसे यह मालुम था या यह अपने आप सुखद संयोग है!
यह जानकारी देने के लिये धन्यवाद, यूनुस.
यूनुस भाई, राखी भी तो बहनो का त्योहार है उसे सब जानते है. पर इससे अलग भी डॉटर्स डे भी होता है इस जानकारी के लिये शुक्रिया.. दोनो गाने तब भी दमदार थे तो आज भी हैं शुक्रिया
वाह वाह ,मज़ा आ गया ,बहुत ही उम्दा लिखा है आपने ,इस छोटी सी कड़ी में काफी अच्छी बात कह गए ..अच्छा लगा आपको पढ़ के ,ये डॉटर्स ड कि जानकारी मिली ..जारी रखें ,जल्दी ही आपके ब्लोग पे फिर आना होगा ...और हां आप का हमारे ब्लोग पर भी स्वागत है .
अरे ये तो हमे पता ही नही था .ये तो पहली बार सुना. यूनुस भाई आपका बहुत-बहुत शुक्रिया इस दिन के बारे मे बताने का.
अच्छा लगा ये गाने सुनकर!
प्रिय मित्रो आपको ये बताना ज़रूरी लग रहा है कि इस साल पहली बार डॉटर्स डे मनाने की परंपरा शुरू की गयी है ।
अब ज्यादा जानकारियां हासिल करनी जरूरी हैं । जल्दी ही इस बारे में फिर जानकारी दूंगा ।
जानकारी देती पोस्ट के साथ दोनों गीत अच्छे लगे. और लाईये इस विषय पर जानकारी.
आनन्द आ गया इन गानों को बहुत दिनों बाद फिर सुन कर
ज़िन्दगी के सबसे कोमल,मासूम और पवित्र रिश्ते को जिन दो गीतों से आपने याद किया युनूस भाई वह अप्रतिम है. सुनो छोटी सी गुड़िया की लम्बी कहानी में बजा सरोद उस्ताद अली अकबर ख़ाँ साहब की कारीगरी है. फ़िल्म वाले भी कितनी ख़ूबसूरती से चीज़ों को अवेर लेते थे और इतिहार रच देते थे. लताजी अस्सी के अनक़रीब हैं ; देश की इस सबसे सुमधुर बेटी के हर वक़्त ज़िन्दा रहने वाली गुड़िया को हम सब का स्नेह.
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