बाग़ों में बहार आई और मैं ढूंढ रहा था सपनों में--आनंद बख्शी के 'गाये' दो गीत
लंबे अरसे से मैं आनंद बख्शी के गीत रेडियोवाणी पर प्रस्तुत करना चाहता था ।
लेकिन मुमकिन नहीं हो पा रहा था । पर दो एक दिन पहले कुछ 'ऐसा' पढ़ लिया कि लगा अब बख्शी साहब की बातें रेडियोवाणी पर करनी ही होंगी ।
आनंद बख्शी मुंबईया फिल्म-जगत में आने से पहले फौज में थे । दो बार उन्होंने गीतकारी के लिए जद्दोजेहद की और हारकर वापस लौट गये । लेकिन तीसरी बार आखि़रकार बख्शी साहब को मौक़ा मिल ही गया और मुंबईया फिल्म-जगत को एक बाक़यादा गीतकार मिला ।
बाक़ायदा गीतकार से मेरा आशय है फुलटाईम गीतकार से ।
मुंबईया फिल्म-जगत में ज्यादातर शायर और कवियों से गाने लिखवाये जाते रहे हैं ।
मजरूह सुल्तानपुरी से लेकर साहिर लुधियानवी और नीरज से लेकर इंदीवर तक ज्यादातर गीतकार पहले शायर या कवि थे और बाद में बने गीतकार । लेकिन आनंद बख्शी गीतकारी की दुनिया में फुलफ्लेज आये थे । लिखने का शौक़ था, उससे भी ज्यादा था गाने का शौक़ । आनंद बख्शी ने ज्यादातर गानों की धुनें तक संगीतकारों ने दीं और संगीतकारों ने उन धुनों को स्वीकार भी किया ।
आनंद बख्शी का सबसे बड़ा योगदान ये रहा है कि उन्होंने जनता की भाषा को कविता की शक्ल दी । बख्शी साहब पर केंद्रित इस अनियमित-श्रृंखला में हम उनके कुछ गानों का विश्लेषण करते हुए पता लगायेंगे कि वो क्या चीज़ थी जो बख्शी को दूसरे गीतकारों से अलग और ख़ास बनाती थी । बख्शी ने गीतकारी की दुनिया को क्या दिया । उनका गीतकारी में क्या योगदान है ।
मुझे लगता है कि बख्शी ने युगल-गीतों का बेहतरीन ग्रामर दिया है फिल्म-उद्योग को । उनके ज्यादातर युगल-गीतों में कमाल का संयोजन है । सवाल-जवाब वाली लोक-परंपरा को उन्होंने फिल्मों की गीतकारी में शामिल किया । 'अच्छा तो हम चलते हैं, 'सावन का महीना,पवन करे शोर,'कोरा काग़ज़ था ये मन मेरा','बाग़ों में बहार है, कल सोमवार है' जैसे अनगिनत युगल-गीत हैं उनके । जो एक नज़र में तो सादा लगते हैं, लेकिन इनका शिल्प कमाल का है । बहरहाल इन मुद्दों पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे ।
गीतकार आनंद बख्शी के गीतों पर केंद्रित इस अनियमित श्रृंखला की पहली कड़ी में आपको उनके लिखे और उन्हीं के गाये दो अनमोल गीत सुनवाये जा रहे हैं । फिल्म है -मोम की गुडि़या । 1972 में आई इस फिल्म निर्माता निर्देशक थे मोहन कुमार ।
इस फिल्म की नायिका तनूजा थीं और नायक कोई रतन चोपड़ा थे । फिल्म की गुमनामी से समझा जा सकता है कि इसका हश्र क्या हुआ होगा । लेकिन इसके गीत काफी चले । इस फिल्म में लक्ष्मी-प्यारे ने संगीत दिया था ।
बख्शी साहब ने 'मोम की गुडि़या' में दो गीत गाए थे । एक था-बाग़ों में बहार आई । और दूसरा-मैं ढूंढ रहा था सपनों में ।
मुझे दूसरा गीत ज्यादा पसंद है । इसलिए पहले हम इसकी चर्चा करेंगे ।
'मैं ढूंढ रहा था सपनों में'काफी नाटकीय ढंग से बहुत ऊंचे सुर वाले ग्रुप वायलिन से शुरू होता है । वायलिन की ये वैसी तान है जैसी मुगलिया सल्तनत की कहानियां दिखाने वाली फिल्मों में होती थी । लेकिन इसके बाद संगीत मद्धम होता है । फिर रबाब की तान आती है और फिर बख्शी साहब की आवाज़ । इस आवाज़ में मुझे एक अलग सी खनक सुनाई देती है ।
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मैं ढूंढ रहा था सपनों में
तुमको अनजाने अपनों में
रस्ते में मुझे फूल मिला तो
मैंने कहा मैंने कहा
ऐ फूल तू कितना सुंदर है
लेकिन तू राख है मौज नहीं
जा मुझको तेरी खोज नहीं ।। मैं ढूंढ रहा था ।।
इस गाने के इंटरल्यूड में रबाब का शानदार उपयोग है । वैसे तो कल्याण जी आनंद जी ने रबाब का उपयोग अपने संगीत में कई बार किया है । पर इस गाने में लक्ष्मी प्यारे ने रबाब से बेहतरीन इंटरल्यूड सजाया है । साथ में गिटार का बेहद सुंदर इस्तेमाल । लक्ष्मी-प्यारे के ऑरकेस्ट्रा में झांककर देखो तो अकसर चौंकाने वाले प्रयोग मिलते हैं । इस सपनीले और फंतासी गाने में रबाब ने जो समां बांधा है वो शायद किसी और प्रयोग से नहीं बंध सकता था । ऊपर से आनंद बख्शी की अनयूजुअल आवाज़ । दिल अश अश करने लगता है ।
मैं दीवाना अनजाने में
जा पहुंचा फिर मैखाने में
रस्ते में मुझे एक जाम मिला
तो मैंने कहा मैंने कहा
ऐ जाम तू कितना दिलकश है
लेकिन तू हार है जीत नहीं
जा तेरी मेरी प्रीत नहीं ।। मैं ढूंढ रहा था ।।
इसके बाद जो अंतरे आते हैं, वो हम जैसे आनंद बख्शी के दीवानों को मोहित करने के लिए काफी है । इस कविता में कोई चमत्कार नहीं है । इस गीत में कोई कलाबाज़ी नहीं है । कोई बौद्धिकता नहीं है ।
कोई नारेबाज़ी नहीं है । लेकिन इसमें सच्चाई है । सादगी है । एक दर्शन है ।
मैं बढ़कर अपनी हस्ती से
गुज़रा तारों की बस्ती से
रस्ते में मुझे फिर चांद मिला
तो मैंने कहा मैंने कहा
ऐ चांद तू कितना रोशन है
पर दिलबर तेरा नाम नहीं
जा तेरे बस का काम नहीं
दीपक की तरह जलते जलते
जीवन पथ पर चलते चलते
रस्ते में मुझे संसार मिला
तो मैंने कहा मैंने कहा
संसार तू कितना अच्छा है
लेकिन ज़ंजीर है डोर नहीं
जा तू मेरा चितचोर नहीं ।। मैं ढूंढ रहा था ।।
कुछ और चला मैं बंजारा
तो देखा मंदिर का
मंदिर में मुझे भगवान मिला
तो मैंने कहा मैंने कहा
भगवान तेरा घर सब कुछ है
लेकिन साजन का द्वार नहीं
पूजा पूजा है प्यार नहीं
जी था बेचैन अकेले में
पहुंचा सावन के मेले में
मेले में तुम्हें जब देख लिया
तो मैंने कहा मैंने कहा
तुम्हीं तो हो तुम्हीं तो हो
चितचोर मेरे मनमीत मेरे
तुम बिन प्यासे थे गीत मेरे ।। मैं ढूंढ रहा था ।।
यहां आकर गीत अपने अंजाम तक पहुंचता है और बख्शी साहब अपनी प्यारी हमिंग करते हैं । और दिल पर एक खलिश सी तारी हो जाती है । मैंने पहले भी कहा कि इस गाने में कितनी सादगी से बख्शी साहब ने प्रेम का दर्शन उतार दिया है । ज़रा इन पंक्तियों पर ग़ौर कीजिए--
रस्ते में मुझे संसार मिला
तो मैंने कहा मैंने कहा
संसार तू कितना अच्छा है
लेकिन ज़ंजीर है डोर नहीं
जा तू मेरा चितचोर नहीं ।।
मंदिर में मुझे भगवान मिला
तो मैंने कहा मैंने कहा
भगवान तेरा घर सब कुछ है
लेकिन साजन का द्वार नहीं
पूजा पूजा है प्यार नहीं
मेले में तुम्हें जब देख लिया
तो मैंने कहा मैंने कहा
तुम्हीं तो हो तुम्हीं तो हो
चितचोर मेरे मनमीत मेरे
तुम बिन प्यासे थे गीत मेरे ।।
ये तीनों जुमले या कह लीजिये कि अंतरे के तीनो टुकड़े कमाल के हैं । जिस बात को कबीर ने कहा, मीरा ने कहा, सूफियों ने कहा--कि प्रेम दुनिया की हर चीज़ से बढ़कर है, भगवान से बढ़कर है उसे आनंद बख्शी ने भी कहा । लेकिन एक फिल्मी गीत में गुंजाईश निकालकर कहा । और इसीलिए वो दूसरों से अलग खड़े नज़र आते हैं ।
दूसरा गीत है 'बाग़ों में बहार आई' । इस गाने को मैं बहुत ही संक्रामक गीत मानता हूं । इंफैक्शस सॉन्ग । इसे सुनकर बिना गुनगुनाए आप रह ही नहीं सकते । गाने की शुरूआत लताजी और आनंद बख्शी के आलाप से होती है । साथ में है बांसुरी और रिदम का कुशल संयोजन । जो इस गाने की पहचान बन गया है । इस गाने में लंबी लंबी पंक्तियां हैं और लक्ष्मी-प्यारे ने बड़ी अदा के साथ इनकी धुन तैयार की है ।
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बाग़ों में बहार आई, होठों पे पुकार आई
आजा आजा आजा मेरी रानी
रूत बेक़रार आई,डोली में सवार आई
आजा आजा आजा मेरे राजा ।।
फूलों की गली में आईं भंवरों की टोलियां
दिये से पतंगा खेले आंखमिचौलियां
बोले ऐसे बोलियां के प्यार जागा जग सो गया ।।
रूत बेक़रार आई डोली में सवार आई
आजा आजा आजा मेरे राजा ।।
सपना तो सपनों की बात है प्यार में
नींद नहीं आती सैंयां तेरे इंतज़ार में
होके बेक़रार तुझे ढूंढूं मैं तू कहां खो गया ।।
बाग़ों में बहार आई, होठों पे पुकार आई
आजा आजा आजा मेरी रानी ।।
लंबी लंबी बातें छेड़ें, छोटी सी रात में
सारी बातें कैसे होंगी, इक मुलाकात में
एक ही बात में लो देख लो सबेरा हो गया ।।
बाग़ों में बहार आई, होठों पे पुकार आई
आजा आजा आजा मेरी रानी ।।
आनंद बख्शी की आवाज़ नेज़ल है, वो कुछ कुछ नाक से गाते हैं । लेकिन कुछ नया और आकर्षक तो है ही उनकी आवाज़
में । मैं आपको ये भी बताना चाहूंगा कि फिल्म-संसार को आनंद बख्शी के गाये ज्यादा गीत क्यों नहीं मिले । मोम की गुडि़या और चरस जैसी फिल्मों में आनंद बख्शी के गाने गाने के बाद पता नहीं कैसे फिल्म संसार में ये बात फैल गयी कि बख्शी साहब जिस फिल्म में गीत गाएं वो फ्लॉप हो जाती है । यही वजह थी कि आगे चलकर रमेश सिप्पी ने शोले में जो क़व्वाली किशोर कुमार, मन्नाडे और भूपेन्द्र की आवाज़ में रिकॉर्ड की थी उसे फिल्म से निकाल दिया गया । ये क़व्वाली फिल्म के रिकॉर्ड पर तो है लेकिन परदे पर कभी नहीं आ सकी । फिल्मी दुनिया में कैसे कैसे अंधविश्वास प्रचलित हो जाते हैं । अगर ये बात ना फैली होती तो हमें बख्शी साहब के गाये कई और गीत मिल सकते थे । पर अब बख्शी साहब नहीं हैं, और हमें इन्हीं गानों से तसल्ली करनी होगी ।
आनंद बख्शी के अनमोल गीतों पर केंद्रित ये अनियमित श्रृंखला जारी रहेगी ।
रेडियोवाणी पर बाईं ओर फरमाईशों और संदेसों का नया विजेट लगाया गया है । इसे आज़माकर देखिएगा ।
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9 comments:
युनूस भाई आप भी कमाल के हो..इधर ये सोचा और उधर ब्लॉग पर चढ़ा दिया.. भाई वाह..मोम की गुडिया का ये दोनो गाना सुने सदियां बीत गई थीं. सुनकर मन शीतल हो गया.. आप धन्य हैं.धन्यवाद.
बहुत अच्छा लगा ये लेख..आनंद बख्शी के इन दुर्लभ गीतों को सुनवाने का शुक्रिया !
हमे तो पहले वाला गाना ज्यादा पसंद है और आपका शुक्रिया इन्हें सुनवाने का।
युनुसजी,
क्या खूब गीत खोजकर लायें हैं, मजा आ गया | कितनी देर से बार-बार "बागों में बहार आयी" को ही सुने जा रहे हैं |
ुउनका लिखा मिलन फिल्म का एक दर्दीला गीत मुझे बेहद पसंद है, "आज दिल पर कोई जोर चलता नहीं, मुस्कुराने लगे थे मगर रो पडे"
आगे की कडी का इन्तजार रहेगा |
यूनुस भाई!
अब तक सिर्फ ’बागों में बहार आई’ ही सुना था और वो भी सुने अर्सा हुआ. आज इन दोनों गीतों को सुनकर बहुत अच्छा लगा. शुक्रिया!
वाह, गीत क्या है - एक यात्रा है. स्वप्न में की गयी लम्बी यात्रा.
आनंद बख्शी साहब के बारे में इतनी बेहतरीन जानकारी पाकर मजा आ गया। युनूस भाई आप समझ सकते हैं मजा शब्द वो है जब आनंद को शब्दों में पिरोने की बात आती है तो यही शब्द निकलता है। आपको सुनकर और पढ़कर भी ऐसा ही मजा आता है।
आनन्द बख़्शी के गीत रोमांटिक गीतों के रूप में ही अच्छे लगते है।
एक बार कहीं पढा था उनकी गायकी के बारे में कि उनका मोम की गुड़िया का गाया गीत सुन कर लगता है -
बाग़ो में बहार आई
साथ में बुख़ार लाई
आजा आजा
आजा मेरी नानी आ जा
अन्नपूर्णा
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