संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Wednesday, September 19, 2007

नानी की नाव चली--दादामुनि अशोक कुमार का ये गीत सुनिए । साथ में सुनिए उनके गाये कुछ और अनमोल गीत ।




दादा मुनि अशोक कुमार से मेरी मुलाक़ात उनकी मृत्‍यु से संभवत:साल भर पहले हुई थी । विविध भारती के एक कार्यक्रम के लिए हम उनसे बातें करने गये थे । दादामुनि चेम्‍बूर में यूनियन पार्क में रहते थे । यूनियन पार्क वाले इस बंगले में बाहर भीमकाय दरवाज़ा था, जिसके पार शायद किसी को कुछ नहीं दिखता होगा । भीतर दादा मुनि का साम्राज्‍य था । दादामुनि की कहानी एक छोटे से शहर से बड़े बड़े सपनों को लेकर आए एक व्‍यक्ति की कहानी है जो अपने सपनों को पूरा करते हुए शिखर पर पहुंचता है, लेकिन वहां पहुंचने के बाद उसे पता चलता है कि शिखर पर कितना अकेलापन होता है । सब कुछ हासिल कर लेने के बाद भी जिंदगी में कितना खालीपन होता है । हम दिन भर दादामुनि के घर में थे । उनकी पुरानी तस्‍वीरें, ट्रॉफियां और यादें । कितना कुछ देखा हमने ।

अशोक कुमार ने बताया कि वे कई बरसों से अपने घर की पहली मंजिल से नीचे नहीं उतरे हैं । व्‍हील चेयर पर हैं । यहीं अच्‍छा लगता है । कहने लगे कि सामने जो गोल्‍फ का मैदान दिख रहा है, बस उसे देखकर समय कट जाता है । कभी मैं भी वहां पर गोल्‍फ़ खेलता था । दादमुनि ने अपने छोटे भाई किशोर कुमार को भी भीगी आंखों से याद किया । उनकी शरारतों के बारे में बताया । अपने बचपन के बारे में बताया । अपनी शादी के बारे में बताया । ये भी बताया कि एक ज़माने में इसी घर में परिवार के क़हक़हे गूंजते थे । आज यहां कोई नहीं ।

बहरहाल,जब भी दादमुनि की याद आये तो वो दिन आंखों में तैर जाता है । आज मैं आपको दादामुनि के कुछ गीत सुनावाऊंगा । और शुरूआत उस गीत से करूंगा जो मुझे बेहद पसंद है और मैं इसे बच्‍चों के लिए लिखा गया बेहतरीन गीत मानता हूं । गुलज़ार ने इसे ऋषि दा की फिल्‍म आर्शीवाद के लिए लिखा था । अगर आपने अब तक आर्शीवाद फिल्‍म नहीं देखी तो फौरन इसे खोजकर देखिए । इस गीत की याद भी मुझे कैसे आई बताता हूं ।



परसों मैं चर्चगेट में उपहारों के एक डिपार्टमेन्‍टल स्‍टोर में टहल रहा था । म्‍यूजिक सेक्‍शन में गया तो पाया कि कुछ फिल्‍में रखी हुई हैं । वहां मुझे आर्शीवाद की डी वी डी भी दिखी और अचानक याद आया, अरे इस फिल्‍म को तो मैं भूल ही गया था । बाद में दादामुनि के गीतों को खोजा और अब आपके लिए इन्‍हें रेडियोवाणी की इस पोस्‍ट में पेश किया जा रहा है । दादामुनि को बच्‍चों से बहुत प्रेम था । और आर्शीवाद के इन गानों में वो प्रेम छलक छलक पड़ा है । आपने ज्‍यादातर 'रेलगाड़ी' वाला गीत सुना होगा । पर ये उससे बेहतर गीत है । सुनिए । बड़ी मुश्किल से इसकी इबारत भी पेश कर रहा हूं । जब गाना सुनेंगे तो आपको अहसास होगा कि इसकी इबारत लिखनी कितनी कठिन है ।



नाव चली
नानी की नाव चली
नीना की नानी की नाव चली
लम्बे सफ़र पे ।

सामान घर से निकाले गये
नानी के घर से निकाले गये
इधर से उधर से निकाले गये
और नानी की नाव में डाले गये
(क्या क्या डाले गये)
एक छड़ी एक घड़ी
एक झाडु एक लाडू
एक संदूक एक बंदूक
एक तलवार एक सलवार
एक घोड़े की जीन
एक रोले की जीन
एक घोड़े की नाल
एक धीवर का जाल
एक लहसुन एक आलु
एक तोता एक भालू
एक डोरा एक डोरी
एक गोरा एक गोरी

एक डंडा एक झंडा
एक हंडा एक अंडा ।
एक केला एक आम एक पक्का एक कच्चा
और ...
टोकरी में एक बिल्ली का बच्चा
(म्याऊँ म्याऊँ)

फिर एक मगर ने पीछा किया
नानी की नाव का पीछा किया
नीना के नानी की नाव का पीछा किया
(फिर क्या हुआ)
चुपके से पीछे से
उपर से नीचे से
एक एक सामान खींच लिया
एक बिल्ली का बच्चा
एक केला एक आम
एक पक्का एक कच्चा
एक अंडा एक डंडा
एक बोरी एक बोरा
एक डोरी एक डोरा
एक तोता एक भालू
एक लह्सुन एक आलु
एक धीवर का जाल
एक घोड़े की नाल
एक ढोलक एक बीन
एक घोड़े की जीन
एक अंडा एक डंडा
एक तलवार एक सलवार
एक बंदूक एक संदूक
एक लाडू एक झाडू
एक छड़ी एक घड़ी

(मगर नानी क्या कर रही थी)
नानी थी बिचारी बुड्ढी बहरी
नानी की नींद थी इतनी गहरी
इतनी गहरी (कित्ती गहरी)
नदिया से गहरी
दिन दोपहरी
रात की रानी
ठंडा पानी
गरम मसाला
पेट में डाला
साड़े सोला

पंद्रह एकम पंद्रह दूना तीस तिया पैंतालीस
चौके साठ पन्‍ना पचहत्‍तर छक्‍के नब्‍बे
साती पचौकड़ आठी तीसड़ नमा पतीसड़
गले में रस्सा आ आ ..


ये रहा फिल्‍म झूला का गीत, जिसे ई स्निप्‍स पर हैदराबाद के भाई सागरचंद नाहर ने चढ़ाया है ।

और दादामुनि के गाये गीतों में से एक अनमोल गाना ये भी है । फिल्‍म शौकीन का ये गीत बड़ा मज़ेदार और मीठा है ।


ये है अशोक कुमार का गाया आर्शीवाद फिल्‍म का मशहूर रेलगाड़ी गीत



इसके अलावा अशोक कुमार ने अन्‍य कई फिल्‍मों में गाया है । जिनकी चर्चा हम फिर कभी करेंगे ।



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चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: अशोक-कुमार, आर्शीवाद, झूला, शौकीन, दादमुनि, नानी-की-नाव-चली, रेलगाड़ी, चलो-हसीन-गीत-इक-बनाएं, मैं-तो-दिल्‍ली-से-दुल्‍हन-लाया-रे,

10 comments:

Gyan Dutt Pandey September 19, 2007 at 11:09 AM  

नाव चली - बहुत अच्छा लगता है. अशोक कुमार के रेलगाड़ी वाले गीत की तरह. बच्चों के गीत ऐसे ही होने चाहियें. बाल-गीतों में कुछ बाल साहित्यकार उपदेश छाप ठूंसते हैं तो बोझिल लगता है!

Sagar Chand Nahar September 19, 2007 at 12:44 PM  

सारे गाने सुन लिये यूनुस भाई, मजा आ गया।
पंद्रह एकम पंद्रह दूना तीस तिया पैंतालीस
चौके साठ पन्‍ना पचहत्‍तर छक्‍के नब्‍बे
साती पचौकड़ आठी तीसड़ नमा पतीसड़

बचपन में पन्द्रह का पहाड़ा मैने भी इसी तरह सीखा है और आज भी याद है ।
मजा आता है इस पहाड़े को मन ही मन दुहराने पर।
धन्यवाद, मजेदार गाने सुनवाने के लिये।

Manish Kumar September 19, 2007 at 9:17 PM  

क्या बात है...क्या बात है आनंद आ गया हुजूर..
बहुत बहुत शुक्रिया नानी की इस नाव में यात्रा कराने का !

Udan Tashtari September 19, 2007 at 9:50 PM  

टहल लिये नानी की नाव में, मजा आया भाई!!

PIYUSH MEHTA-SURAT September 19, 2007 at 10:07 PM  

इ़सी फ़िल्म से मैं स्व. श्री रिषीकेष मुखरजीका फेन बना था और आज भी हूँ । आपको मन्थन का कोमेडी फ़िल्मवाला एपिसोड़ याद होगा, जिसमें मैनें हिस्सा लिया था । इस फ़िल्ममें जहाँ तक मूझे याद है, अशोक कूमारजी का चरित्र अभिनेता से मुख्य अभिनेता के रूपमें यू-टर्न हुआ था, चाहे सिर्फ़ एक यही फ़िल्म के लिये ही सही । हाँ एक नहीं पर करीब आधी फ़िल्म के लिये । पर उनके किरदार को आधी फ़िल्म के बाद बुढा़ करने पर भी फ़िल्म के केन्द्रबिंदू तो फ़िल्म के अन्त तक़ वे ही रहे थे । इस फ़िल्म के गीत झिर झिर बरसे में संगीत कार श्री वसंत देसाईने फ़िल्म की जरुरत के हिसाबसे (सुस्मिता सन्याल बजती रेकोर्ड के साथ गाना गुनगुना रही है ऐसा दिखाने के लिये) लताजी की डबल आवाझ एक साथ सुनाई पडे ऐसा प्रयोग किया है, पर यह इफ़ेक्ट सिर्फ़ फ़िल्म में ही है । रिकार्ड पर नहीं ।
पियुष महेता
नान्पूरा, सुरत-३९५००१.
फोन नं : (०२६१) २४६२७८९
मोबाईल : ०९८९८०७६६०६

Anonymous,  September 20, 2007 at 4:39 AM  

बचपन में १ कैसेट सुनी थी उसमें बहुत सारे गाने थे बच्चों के लिए, शायद एच ऍम वी ने निकली थी. अशोक कुमार के गाये हुए ये दोनों गीत और किताब का "मास्टरजी की आ गयी चिठ्ठी" और ऐसे तमाम गीत. बाद में काफी खोजने पर भी वो कैसेट नहीं मिली.

आनंद September 20, 2007 at 9:02 AM  

यूनुस भाई,

मेरे कंप्‍यूटर में ''संदेसे और फरमाईशें'' वाले बॉक्‍स पर क्लिक नहीं हो रहा है। क्‍या कारण हो सकता है। यदि यह मेरे ही कंप्‍यूटर की कमी है, तो बताइए इसे कैसे दूर करना है। - आनंद

annapurna September 20, 2007 at 10:21 AM  

ये हम सब सहेलियों का पसंदीदा गीत है क्योंकि हमारी एक सहेली का नाम नीना है।

देविका रानी के साथ एक अच्छा युगल गीत है जो शायद अछूत कन्या का है

मैं बन की चिड़िया
बन बन में डोलूं रे

अन्नपूर्णा

Anonymous,  September 20, 2007 at 4:08 PM  

दादा मुनि के गाये गाने सुनकर बचपन की यादें ताजा हो आयीं। उनसे अपनी मुलाकात के ज़िक्र मे जिन बातों की आपने चर्चा की है,वे सभी बहुत पहले कहीं सुनी हुई हैं ; शायद रेडियो पर ही कभी; आपसे ही; या शायद कहीं पढा़ रहा हो। नाव और रेलगाडी़ वाले गाने बचपन में आकाशवाणी,इलाहाबाद से प्रसारित बच्चों के कार्यक्रम "बालसंघ" में बहुत सुने हैं और आज भी मेरे संग्रह में हैं।भले ही तब शायद यह न पता रहा हो कि आवाज़ किसकी है।

फ़िल्म "आशीर्वाद" का ज़िक्र जब हुआ है,तब उसके एक और गाने की चर्चा किये बिना नहीं रह सकता - " एक था बचपन;बचपन के एक बाबूजी थे"। यह गाना जब भी सुनता हूँ, अपने स्वर्गीय पिताजी की याद में आँखें नम हो जाती हैं।लगता है जैसे इस गाने की एक-एक पंक्ति मेरे पिताजी के लिये ही लिखी गयी हो।जिसने भी यह गाना कभी न सुना हो,एक बार जरूर सुने।

-वही
(गंगा किनारे वाला)

Anonymous,  August 13, 2012 at 6:14 PM  

ye film mere dil ke sabse jyada qareeb hai.. 10 saal ki umra me dekhi gayi,,,, kachche man par bahut gahare se ankit hai. sabhi gaane lajawab hain.....karuna

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