पहने कुरता पर पतलून, आधा फागुन आधा जून—आईये सुना जाए उत्तरप्रदेश का ये लोकगीत
बहुत दिनों से बहुत सारे लोकगीत सुनवाने की तमन्ना दिल में हिलोरें ले रही थी । और लग रहा था कि अपने ख़ज़ाने के उन अनमोल लोकगीतों को आप तक पहुंचवाया जाये, जो हैं तो कमाल के, लेकिन आजकल कहीं मिलते नहीं । कोशिश है कि आगे भी ये सिलसिला जारी रहे । पर आज मैं आपको उत्तरप्रदेश का वो लोकगीत सुनवा रहा हूं जो काफी लोकप्रिय रहा है । इसकी पंक्तियां जुमले के तौर पर इस्तेमाल की जाती रही हैं । जहां तक मुझे याद आता है ये नियामत अली की आवाज़ है । लेकिन पक्की तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल है । अगर आप इस गायक को पहचानते हैं तो कृपया बताएं । तो सुनिए उत्तरप्रदेश का लोकगीत--
पहने कुरता पर पतलून आधा फागुन आधा जून
लुंगी आई अपने देस, कितनऊ धरे फकीरी भेस
धोती पहुंच गई रंगून, आधा फागुन आधा जून ।।
बाहर फैशन खूब बनावें, हरदम फिल्मी राग सुनावें
मन में बजे गिरामोफून, आधा फागुन आधा जून ।।
घर में चादर है ना लोई, बाबा ना देखे हरदोई
बेटवा चले हैं देहरादून, आधा फागुन आधा जून ।।
बाबा सूखी रोटी खावें, बेटवा अंडा खूब उड़ायें
अम्मां खायें आलू भून,आधा फागुन आधा जून ।।
पहने कुरता पर पतलून आधा फागुन आधा जून ।।
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अंजन की सीटी में म्हारे मन डोले
18 comments:
यह बहुत ही अच्छा काम किया आपने. इस गीत में बदलते फ़ैशन और अटपटे रहन सहन के प्रति रोचक ढंग से चिंताएं ज़ाहिर की गयी हैं.यही वो संगीत है जो मेरे बचपन की लगभग आधी स्मृतियो का हिस्सा है. बधाई.
यह बहुत ही अच्छा काम किया आपने. इस गीत में बदलते फ़ैशन और अटपटे रहन सहन के प्रति रोचक ढंग से चिंताएं ज़ाहिर की गयी हैं.यही वो संगीत है जो मेरे बचपन की लगभग आधी स्मृतियो का हिस्सा है. बधाई.
Mazaa aa gaya. Gayak ki awaaz bahut mithe hai.
गजबै है भइया
जितना सुनवाइए उतना कम है, फिल्मी गानों के अलावा भी संगीत है, यह तो करोड़ों लोगों को पता तक नहीं है. सुनने को लोगों को मिलता ही नहीं, हम तो खोजते फिरते हैं, हो सकता है कि जिन्होंने न सुना हो, यही सुनकर इसकी सुंदरता और सहजता पर रीझ जाएँ.
लोकगीत से भोड़ापन हटा दिया जाए तो रस बरसरता है जैसे इस गीत में.
मन में बजै है गरामोफून....वाह
जियो रजा।॥।॥।।
सुनिके तबियतवै मस्त होए गई ।
अवजवा चाहे जेकर होए,मुला है एकदम चकाचक और बहुतै सुनी भई(बचपनवा मां)!पता करै के कोसिस करित हई के केकर बा। जे बूझि परी त तुरतै बताउब । तब लग एक दुई ठे और सुनवाय देतै ।
यूनुस अइसेन रोज सुनावैं,फोकट मां जियरा बहरावैं
हरदी लगै न लागै चून , आधा फागुन आधा जून ।
- उहै
डक्टरवा गंगा किनारे वाला
इलाहाबाद
हम तो अपनी टिप्पणी झूम कर बनाने वाले थे पर यह देखा कि हमारा काम तो ऊपर "उहै,डक्टरवा गंगा किनारे वाला, इलाहाबाद" जी ने पूरा कर दिया है! और पंक्ति भी क्या बनाई है - हरदी लगै न लागै चून, आधा फागुन आधा जून ।
बहुत अच्छा रहा यह लोक गीत - शायद 40-50 के दशक का. रंगून का नाम तभी आता था!
पहली बार पढा ये गीत ।
वैसे मुझे सभी लोक गीत अच्छे लगते है ।
मजेदार रहा ये लोक गीत सुनवाने का शुक्रिया.
मस्त है भाई.. कितने सालों बाद सुना..
शुक्रिया यूनूस भाई , शहर की भीड से कुछ देर के लिये शांत और निर्मल ग्रामीण परिवेश मे आपने पहुँचा दिया ।
lok geet aur dada muni ki info gazab hai. me regular listner hun vividh bharti ka. i like your programmes
bachpan me hamre dada gava kart rahai. Humka eeke rachaita kyar naam bhulai gava hai. koik yaad hoi tav batao bhaiyya
जय हो मजा आ गया इसे सुनकर!
पता नहीं कब से ढूँढ़ रहे थे ये गाना, आ पा गये, आभार।
YUNUS JEE
THIS FOLK SONG IS AS SMART AS UR VOICE
yunush jee
this folk song is as nice as ur voice
I am not able to find the link to audio or video of "Aadha Fagun Adha June". It I will be nice if someone can restore that. Thanks.
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