सचिन देव बर्मन की पत्नी मीरा देव बर्मन की दुर्दशा
रेडियो के एक प्रेमी हैं सुजॉय । बड़ी मशक्कत से याहू के विविध-भारती नामक गुप्स पर रेडियो के कुछ कार्यक्रमों को ट्रान्सक्रिप्ट करते हैं । इसके अलावा सुजॉय रेडियो और संगीत से जुड़े विमर्श के लिए भी तत्पर हैं । तकनीकी-दुनिया में व्यस्त होने के बावजूद सुजॉय की तत्परता कमाल की है । एक दो दिन पहले सुजॉय का ये संदेस मेल मुझे ऑरकुट पर मिला --
Her lineage belies the secluded life she is leading now.
Octogenarian Meera Deb Burman, the wife of legendary Bollywood music
maestro Sachin Deb Burman, is passing unhappy days at an old-age home
in Mumbai.
Once an accomplished singer and dancer herself, Meera was shifted by
S D Burman's daughter-in-law Asha Bhosle to 'Sharan', an old-age home
for the rehabilitation of paraplegics in Mumbai's Vashi area, about
seven months ago, knowledgeable sources say.
"I shall die in the old-age home. I will not go anywhere, although I
am not happy here," Meera, 84, was quoted as saying by her relative
Shukla Dasgupta who recently visited her.
पढ़कर मन खिन्न हो गया । फिर आज मुंबई के नवभारत टाईम्स में मीरा जैन की ये रिपोर्ट छपी दिखी ।
सुरों के जादूगर और संगीत के कुशल चितेरे एस डी बर्मन की भूली-बिसरी पत्नी मीरा देव बर्मन को आज सम्मान तलाश रहा है । वह भी ऐसे समय जब वो नवी मुंबई के एक वृद्धाश्रम में अपनी पुरानी यादों के सहारे दिन बिताने को मजबूर हैं । त्रिपुरा सरकार के प्रतिनिधि इसी सप्ताह उनका सम्मान करने और उन्हें एक लाख रूपये का चेक भेंट करने के लिए खासतौर पर मुंबई पहुंच रहे हैं ।
सफल संगीतकार राहुलदेव बर्मन की मां मीरा देव बर्मन को भी संगीत में महारत हासलि थी, ये बात बहुत कम लोग जानते हैं । 1970 तक आते आते बर्मन दा की सेहत जवाब दे गयी थी और वे बिस्तर से ही संगीत निर्देशन देते थे । इस समय बेटे को मां की प्रतिभा याद आई और पंचम ने ही अपनी मां को एस डी बर्मन की मुख्य सहायक संगीत निर्देशक बनाया ।
1971 से 1975 तक हिंदी फिल्मों को मीरा देव बर्मन के संगीत की जानकारी का लाभ मिला । 1971 में 'तेरे मेरे सपने' से शुरू हुआ मीरा देव बर्मन का संगीत सफर अभिमान,मिली,चुपके चुपके तक लोकप्रियता के पायदान चढ़ता गया । अभिमान के कर्णप्रिय संगीत और सार्थक शब्दों से सजे गीतों ने जनता को मोह लिया । मीत ना मिला रे मन का,नदिया किनारे हिराय आई कंगना,तेरे मेरे मिलन की ये बेला जैसे गीत उस समय बेहद कामयाब रहे थे । दूसरी तरफ मिली का गीत 'बड़ी सूनी सूनी है ये जिंदगी' ने भी अपना असर कायम किया । गायक संगीतकार और नर्तकी मीरा के साथ सचिन दादा का विवाह 1938 में हुआ था । इसके एक साल बाद ही राहुल देव बर्मन यानी पंचम का जन्म हुआ । मात्र नौ साल की उम्र में राहुल ने इस बात का अहसास सचिन दा को करा दिया था कि वे उनके सही उत्तराधिकारी हैं । उन्हत्तर साल की उम्र में पंचम दुनिया को छोड़ गये और उनकी मां मीरा का सूनापन गहरा कर गए ।
कुछ दिनों पहले मीरा की बहू और जानी मानी गायिका आशा भोसले ने नवी मुंबई के एक वृद्धाश्रम 'शरण' को उनका बसेरा बना दिया । जीवन की इस सूनी शाम में उनके गृह-प्रदेश त्रिपुरा की सरकार ने ना केवल 95 वर्षीय इस वृद्धा की सुध ली बल्कि उनका सम्मान करने का भी फैसला किया है । इसी इरादे के से त्रिपुरा के सांस्कृतिक और पर्यटन मंत्री अनिल सरकार और विभागीय निदेशक सुभाष दास चौदह तारीख को मुंबई पहुंचेगे ।
फिल्म-संसार की जानी-मानी हस्तियों का बुढ़ापा किस क़दर त्रासद हो जाता है । इसकी एक बानगी ये खबर पेश करती है ।
कुछ दिनों पहले मैंने रेडियोवाणी पर संगीतकार रामलाल और संगीतकार इक़बाल कुरैशी के बारे में आपको बताया था
कि कैसे वो मुफलिसी के दौर से गुजरते हुए इस दुनिया से चले गये । मुबारक बेगम और शमशाद बेगम जैसी गायिकाएं आज गुमनाम जिंदगी बिता रही हैं ।
क्या संगीत के प्रशंसकों का फ़र्ज़ नहीं बनता कि संगीत की दुनिया की इन नामी हस्तियों के बुढ़ापे को सुधारने के लिए कुछ किया जाये । बस इस छोटे से लेकिन अहम सवाल को आप तक पहुंचाना था ।
और अंत में एस डी बर्मन का वो गीत जो कई महीनों पहले इसी ब्लॉग पर चढ़ाया गया था ।
एक बार फिर--जीवन दर्शन देखिए इस गीत का ।
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जिंदगी ऐ जिंदगी तेरे हैं दो रूप
बीती हुई रातों की बातों की तू छाया
छाया वो जो बनेगी धूप ।। जिंदगी ऐ जिंदगी तेरे हैं दो रूप ।।
कभी तेरी किरणें थीं ठंडी ठंडी हाय रे
अब तू ही मेरे जी में आग लगाये
चांदनी ऐ चांदनी तेरे हैं दो रूप ।। जिंदगी ऐ जिंदगी तेरे हैं दो रूप ।।
आते जाते पल क्या हैं समय के ये झूले हैं
बिछड़े साथी कभी याद आये कभी भूले हैं
आदमी ऐ आदमी तेरे हैं दो रूप ।।
कोई भूली हुई बात मुझे याद आई है
खुशी भी तू लाई थी और आंसू भी तू लाई है
दिल्लगी ऐ दिल्लगी तेरे हैं दो रूप
कैसे कैसे वादों की तू यादों की तू छाया
छाया वो जो बनेगी धूप ।। जिंदगी ऐ जिंदगी तेरे हैं दो रूप ।।
ये गीत आनंद बख्शी ने लिखा है । सन 1972 में आई फिल्म जिंदगी जिंदगी के लिए ।
8 comments:
बिडम्बना है यूनुस, कलाकार को पैसे की समझ नहीं होती और वही उसके परिवार में भी विचारधारा का अंग हो जाता है. इस समझ के न होने से जवानी तो कट जाती है; बुढ़ापा नहीं कटता.
भारत भूषण जैसे स्टार ने भी तो अंतिम दिनों में बहुत ही छोटे-छोटे रोल कर दिन बिताए थे।
भगवान दादा जैसे कलाकार ने तो अपने अंतिम दिन चाल में रह कर बिताए।
मान और धन मिलते रहने पर ही जीवन की व्यव्स्था कर लेनी चाहिए ।
अन्नपूर्णा
यूनुस भाई!
मीरा देब बर्मन जी की वर्तमान हालत जानकर दुख और क्षोभ दोनों का अहसास हुआ. शुक्र है कि अब कम से कम त्रिपुरा सरकार ने उनकी कुछ सुध ली है.
मन दुखी हो जाता है ऐसी सब बातें देखकर.
आशा भोसले जैसी सफल और पैसे वाली गायिका को घर पर ही नर्सिंग का इन्तजाम करने में क्या लगता. कम से कम वृद्धाश्रम में तो अंतिम दिन न गुजारने पड़ेते.
युनूसभाई और उडनतश्तरीजी,
इस मामलेमें आशाजीसे ये उम्मीद रखना कि उन्होंने मीराजी को अपने घरमेंही रखकर उनका खयाल रखना चाहिये था, उनके लिये अन्यायकारक हो सकता है. पता नही मीराजी ने आशाजी को अपनी बहू के रूपमे स्वीकृत किया था कि नही. आशाजी और पंचमजी तो एकसाथ रहते भी नहीं थे. वो अपने अपने घरोंमेंही रहते थे. मैने पढा था, पुरानी अभिनेत्री लीला चिटणिस अमरिकामें ओल्ड एज होम मे रहती थी. वो सब कुछ भूल चुकी थी और अपने महमूद मियां वहां पहुचे थे. वे खुद भी व्हील चेयर पे थे. लेकिन वहा जाकर उन्होने लीला जी को खूब सारी पुरानी बाते सुनायी और उन्हे कुछ कुछ याद भी आया था. कहनेकी बात ये है कि लीलाजी के उनके अपने रिश्तेदारोंने भी उन्हे घरमें नही वृद्धाश्रममें ही रखा था. मगर ये गलत था या सही इसका निर्णय देनेवाले हम कौन होते है?
दरअसल ये बातें पैसे से ज्यादा पारिवारिक स्नेह से जुड़ीं हैं। इसमें किसकी गलती है ये तो घरवाले ही बता सकते हैं।
मेरा मानना है कि हम मीरा दी से सहानुभूति तो रख सकते हैं लेकिन इन हालातों के लिये कौन सी पारिवारिक परिस्थितियाँ ज़िम्मेदार होती हैं इसका पता नहीं चला सकते. ग्लैमर की दुनिया बाहर से बहुत पाक साफ़ नज़र आती है लेकिन उसमें उतनी ही कटुताएँ होती हैं जो एक सामान्य व्यक्ति के जीवन में होती हैं.ख़ास कर मुम्बई की फ़िल्मी दुनिया ऐसी है जिसमें सगा बाप भी बाप नहीं होता और बहन और मौसी या चाचा जैसे रिश्ते भी बहुत औपचारिक होते हैं क्योंकि हर आदमी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. हम बतियाने वाले और लिखने पढ़ने वाले लोग तक़रीबन भूल ही जाते हैं कि सितारों को भी अपनी निजी ज़िन्दगी होती है और उसमें होतीं हैं तल्ख़िया,ईर्ष्याएँ,तमस,तनाव और ज़माने भर के क्लेश.जिस पर बीतती है वही जानता है कि सचाई क्या है. हम तो यही कह सकते हैं...कुछ तो मजबूरियाँ रहीं होंगी.फ़िज़ूल दिल दुखाने से कोई फ़ायदा नहीं.बुरा मत मानियेगा युनूस भाई लेकिन ये हक़ीकत है (और सुनी सुनाई बात नहीं है ...अपने उपर गुज़री है)कि जितनी सार-सम्हाल ,इज़्ज़्त,प्यार और आदर हम फ़िल्म प्रेमी, संगीत प्रेमी और फ़ैन्स इन कलाकारों का करते हैं उसका दस फ़ी सदी ख़याल भी ये कलाकार हमारे लिये नहीं करते.सारा क़िस्सा रूपये तक महदूद रहता है.इन लोगों का सितारा जब बुलंदी पर रहता है तब ये अपने फ़ैन्स की परवाह नहीं करते और सितारा अस्त होने लगता है,जीवन की शाम आ जाती है,नैराश्य घेर लेता है तब ये कहते फ़िरते हैं ..हमने ज़माने के लिये इतना किया...हमें ज़माने ने क्या दिया. तब ये लगभग भूल ही जाते हैं कि इसी सामान्य फ़ैन की वजह से इनका सारा तामझाम जगमगाता है.
वेब पर हिन्दी देख कर अच्छा लगता है
हिन्दी वेबसाइट की संख्या भी बढती जा रही है
आज कल काफी कम्पनियाँ भी हिन्दी टूल्स लॉन्च कर रही है
गूगल के समाचार तोह हम सबको पता ही होगा , हिन्दी मे सर्च कर सकते है
गोस्ताट्स नमक कंपनी ने भी एक ट्राफिक परिसंख्यान टूल हिन्दी मे लॉन्च किया है
http://gostats.in
इससे जाना जा सकता है की हिन्दी का भविष्य इन्टरनेट पे बहुत अच्छा है
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