साल भर पहले आज ही हुए थे धमाके मुंबई की ट्रेनों में
आज से ठीक एक साल पहले ग्यारह जुलाई को मुंबई की लोकल ट्रेनों में एक के बाद एक कई धमाके हुए, जिनमें कई मासूम लोगों की असमय मृत्यु हो गयी ।
रेडियोवाणी पर उन लोगों को श्रद्धांजली दे रहे हैं, जिनकी मौत उस काले दिन हुई थी ।
हम मुंबई के उस जज़्बे को भी सलाम करते हैं, जिसकी बिना पर इस शहर ने सब कुछ भुला कर नई शुरूआत की ।
आज भी लोकल ट्रेनों में उतनी ही भीड़ है । हालांकि ये जनता की मजबूरी है । उसके सामने कोई और रास्ता नहीं ।
विनम्र श्रद्धांजली ।
ये उन धमाकों के बाद की दिल दहला देने वाली तस्वीरें हैं ।
इस चिट्ठे के धीनगाना प्लेयर पर आज कुछ प्रार्थनाएं एवं भजन लगाये गये हैं ।
9 comments:
भारत को एक बात पाकिस्तान से सीखनी चाहिये - आतंक से कैसे निपटा जाय।
Tasveere dekh kar hi dil ghabaraa gayaa.
Mritako ko meri Vinamra Shradhaanjali
Annapurna
मृतकों को हमारी श्रधान्जली।
Yunusbhai,
Dhingana Player pe prarthana ke geet badhiya lagaye hain. Lekin usme Tauba Tauba is gane ka prayojan meri samajh me nahi aaya. Ek to uske shabd samajh me nahi aate. Aur music bhi bahut loud hain.
यूनुस भाई,
मैं भी आपके साथ मृतकों को शृद्धांजलि अर्पित करता हूँ। आपका चिटठा बहुत अच्छा लगा।
विकास ये मेहबूब का लिखा और रहमान का स्वरबद्ध किया गीत है । जिसमें इंसान के हैवान होने पर शायर अफ़सोस कर रहा है । मैं निजी तौर पर यही मानता हूं कि एक अच्छे गीत का ख़राब संगीत संयोजन किया है रहमान ने । पर कविता के स्तर पर अच्छा होने की वजह से इसे यहां रखा है । अगर रहमान इसे सॉफ्ट बनाते तो इसकी बात ही और होती ।
युनूस भाई...जिन पर बीती वे ही जानते हैं उस स्याह शाम का दर्द.मेरे अज़ीज़ मित्र,हास्य कवि और लाँफ़्टर चैलेंज से देश भर में शोहरत पा चुके श्री गौरव शर्मा के कवि पिता श्री श्याम ज्वालामुखी भी इस नृशंस घटनाक्रम के शिकार हुए थे.जीवन की इस त्रासदी को युवावस्था में गौरव ने कैसे झेला है वह खु़द ही जानता है...ऐसे कई गौरव होंगे जिनको हम नहीं जानते और आज वे सब उस शाम के मंज़र को याद कर कितने दु:खी होंगे ...भगवान ही जानता है.पूरे देश की ओर से मुंबई की हिम्मत और और इसके बाशिंदों को भीगी आँखों से सलाम !
यूनूस भाई, आज पहली बार आपका चिट्ठा देखा तो बड्री खुशी हुई. यों तो रेडियोवाणी का जिक्र यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ पढता सुनता रहता था लेकिन ये क्या पता था कि ये अपने युनूस भाई का ही ब्लॉग है. आज हम मिले भी हैं तो उस दिन जब कई मित्र हमसे बम विस्फोट में बिछड गये थे. अपने हास्यकवि श्याम ज्वालामुखी जी की तो बडी याद आ रही है. और याद है पिछली होली में आपने क्या अच्छा हास्यकवि जमावडा किया था. सखी सहेली की फुलवाडी में कैसे हम युथ एक्सप्रेश लेकर घुस गये थे.
आपका बसंत आर्य
संजय भाई, श्याम ज्वालामुखी को मैं जानता था । पहली बार 1996 में उनसे विविध भारती में ही मिला था । फिर यहां वहां मुलाक़ात हो जाती थी । आप जानते हैं, उस दिन उस ट्रेन में वो अनायास ही चढ़ गये थे । और हवा खाने के लिए विन्डो सीट पर बैठे थे । मुंबई की लोकल ट्रेनों में विन्डो सीट यानी जन्नत । आगे क्या कहूं । बस यही लगता है कि व्यक्ति भविष्य के क्या क्या सपने बुनता है, पर ये भी नहीं जानता कि उसके खाते में सांसों का कितना कोटा है कितना नहीं ।
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