यह कदंब का पेड़ अगर मां होता जमना तीरे—सुभद्राकुमारी चौहान की बाल-कविता
जहां तक मुझे याद आता है ये सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता है । बचपन में बाल भारती में ये कविता पढ़ी थी, बाल-भारती म.प्र. के स्कूलों में हिंदी की किताब को कहते हैं । उसके बाद सालों-साल ‘यह कदंब का पेड़ अगर मां होता धीरे धीरे, मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे’ इससे आगे की पंक्तियां याद करता रहा, पर याद ना आईं । कुछ साल पहले मेरे छोटे भाई ने ये कविता कहीं से जुटाकर मुझे दी थी । अपनी कविताई और सादगी में अद्भुत है ये कविता । सुभद्रा कुमारी चौहान का ताल्लुक जबलपुर से था । वही उनका कर्मक्षेत्र रहा । वैसे उन्होंने बच्चों के लिए बहुत सारी कविताएं लिखी थीं । मुझे एक और कविता की पंक्तियां याद आती हैं ‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी’ ये कविता मेरे पास नहीं है । इसे भी खोज रहा हूं । बताईये इस कविता से आपको क्या याद आया ।
यह कदंब का पेड़ अगर मां होता जमना तीरे
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे
ले देती यदि मुझे तुम बांसुरी दो पैसे वाली
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली
तुम्हें नहीं कुछ कहता, पर मैं चुपके चुपके आता
उस नीची डाली से अम्मां ऊंचे पर चढ़ जाता
वहीं बैठ फिर बड़े मज़े से मैं बांसुरी बजाता
अम्मां-अम्मां कह बंसी के स्वरों में तुम्हें बुलाता
सुन मेरी बंसी मां, तुम कितना खुश हो जातीं
मुझे देखने काम छोड़कर, तुम बाहर तक आतीं
तुमको आती देख, बांसुरी रख मैं चुप हो जाता
एक बार मां कह, पत्तों में धीरे से छिप जाता
तुम हो चकित देखती, चारों ओर ना मुझको पातीं
व्याकुल सी हो तब, कदंब के नीचे तक आ जातीं
पत्तों का मरमर स्वर सुनकर,जब ऊपर आंख उठातीं
मुझे देख ऊपर डाली पर, कितनी घबरा जातीं
ग़ुस्सा होकर मुझे डांटतीं, कहतीं नीचे आ जा
पर जब मैं ना उतरता, हंसकर कहतीं मुन्ना राजा
नीचे उतरो मेरे भैया, तुम्हें मिठाई दूंगी
नये खिलौने-माखन-मिश्री-दूध-मलाई दूंगी
मैं हंसकर सबसे ऊपर की डाली पर चढ़ जाता
वहीं कहीं पत्तों में छिपकर, फिर बांसुरी बजाता
बुलाने पर भी जब मैं ना उतरकर आता
मां, तब मां का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता
तुम आंचल फैलाकर अम्मां, वहीं पेड़ के नीचे
ईश्वर से विनती करतीं, बैठी आंखें मीचे
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं, धीरे धीरे आता
और तुम्हारे आंचल के नीचे छिप जाता
तुम घबराकर आंख खोलतीं, और मां खुश हो जातीं
इसी तरह खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
यह कदंब का पेड़ अगर मां होता जमना तीरे ।।
10 comments:
Webdunia ke purane roop main sahitya ke sabhi mahaan kaviyon ki rachnaayen thi. Naye roop main nahi hai.
Maine pahale hi bahut si rachnaaye print-out le kar rakhi hai jaise -
Subhadra Kumari Chauhaan ka jeevan parichay aur onki kaveetaye -
1. Mera naya bachpan
2. Godi ki Abhilasha
3. Ek phool ki chaah
4. Veeron ka kaisa ho Basanth
5. Jhaansi ki rani
Yahaan mujhe Hindi main likhanaa samajh main nahi aa rahaa.
Ek baar Aphlatoon jee ne bataaya tha, link bhi bheje the, lekin main nahi kar pai.
Aap kahe tho main roman main yahaan bheju yaa aapko personal e-mail kar doo.
Annapurna
यूनूस भाई, क्या बात है अचानक बचपन की बहुत याद आ रही है. सुभद्राजी की कविता तो अच्छी है ही. क्या विविध भारती की लाईव्रेरी में उनकी कोई रेकार्डिंग है. सुन कर बड़ा मजा आता.
आपका बसंत आर्य
बचपन की याद दिला दी!
सुभद्रा कुमारी चौहान जी बचपन से ही मुझे बहुत बहुत अधिक पसंद आती है। pl इस बात को मारे चौहान होने से न जोड़ा जाए। बल्कि बात बात ये है कि बचपन मे या तो वात्सल्य रस समझ में आता था, या वीर रस और सुभद्रा जी की रचनाएं दोनो ही रसों का अच्छा प्रतिनिधित्व करती है।
उनकी एक कविता कुछ धुधली सी याद आ रही है जो बच्चों और माँओं को समान रूप से आकर्षित करती है...
मैं बचपन को बुला थी, बोल उठी बिटिया मेरी,
नंदक वन सी फूल उठी, ये छोटी सी कुटिया मेरी
इस कविता को शेयर कर सुभद्रा जी को श्रद्धांजलि देने का अवसर प्रदान करने हेतु धन्यवाद
युनूसभाई,
यह कविता बहुतही खूबसूरत है. जहा तक मुझे याद है, इस कविता पर गुरूदेव रविंद्र नाथ टैगोर की एक कविताका बडा गहरा असर है. शायद ये भी हो सकता है, जिस तरह कुसुमाग्रज ने वह कविता मराठी मे अपने ढंगसे लायी है उसी प्रकार सुभद्राकुमारीजी ने उनके अपने ढंगसे हिंदीमें लायी होगी. हां, लेकिन यह कदंब का पेड और जमनाका किनारा यह उनका अपना ऍडिशन है. जैसेही मुझे मूल कविता या उसका अनुवाद प्राप्त होता है, मै आपके लिये प्रस्तुत करूंगा.
Veeron ka kaisa ho basanth geet bahut acchhi composition ke saath VividhBharathi ke pas hai.
Maine subah Vandanvaar ke baad desh bhakthi geet main bahut baar suna hai.
Shayaad Jhaansi ki rani geet bhi suna lagatha hai.
Aap please check kar ho sake tho link deejeeye.
Annapurna
कहाँ बचपन में ले गये ?
बडे सालों बाद ये कविता पढी ।
यूनुस जी, सुभद्राकुमारी चौहान की "खूब लड़ी मर्दानी" कविता और इसके अलावा कवियत्री की और भी बहुत सी रचनाएँ आपको कविता कोश में मिल जाएँगी। www.kavitakosh.org
अरे वाह यूनुस भाई, बिल्कुल बचपन तक दौडा गये. स्कूल, वो साथी, सारा कुछ घूम गया नजरों के सामने. साधुवाद इस कविता को पढ़वाने के लिये. आभार.
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