संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Friday, May 11, 2007

तेरे मंदिर का हूं दीपक जल रहा—तीन अनमोल गैर फिल्‍मी भजन


इस चिट्ठे को पढ़ने से पहले आपसे यही अनुरोध है कि कृपया समय निकालकर इन तीनों भजनों को ध्‍यान से सुनें, इसे एक आलेख की तरह ना पढ़ें ।

प्रिय मित्रो, हम सब इंसान हैं, मोह तो होता ही है । मुझे अपनी लता जी वाली तस्‍वीरों से बड़ा मोह हो गया है । और इसे मोह को अपनी अगली पोस्‍ट में स्‍वीकार भी रहा हूं । इसलिये क्‍योंकि हर अगली पोस्‍ट उन तस्‍वीरों को नीचे खिसकाते खिसकाते आरकाईव में ले जायेगी । बहरहाल; पिछले कई सप्‍ताह से मन हो रहा था कुछ बहुत ही उल्‍लेखनीय भक्ति-रचनाओं का जिक्र करने का । चूंकि रेडियो वाला हूं इसलिये केवल जिक्र करके मन मानता नहीं है । मन करता है कि उन्‍हें आपको सुनवाया जाये । ज़ाहिर है कि आप इन भक्ति-रचनाओं को सुनेंगे भी और पढ़ेंगे भी ।

जो सबसे पहला भजन मैंने चुना है वो मधुकर राजस्‍थानी का है, इसे रफी साहब ने अपने गैर फिल्‍मी अलबम के लिए गाया था, खैयाम के निर्देशन में । मेरे चिट्ठे के नियमित पाठकों को मधुकर राजस्‍थानी के वो गीत तो याद होंगे ही जो मन्‍ना डे ने गाये हैं और जिन पर मैं पहले भी लिख चुका हूं । उन गीतों से साबित हो गया है कि अच्‍छे गीतों के लिए केवल स्‍थापित नामों को तलाशने की ही जरूरत नहीं है । कुछ गुमनाम गीतकारों, संगीतकारों और गायकों ने भी ऐसा काम किया है कि आप आहें भरते रह जायें ।

पहले इस भजन के बोल पढिये और साथ साथ विन्‍डोज़ मीडिया प्‍लेयर पर
यहां सुनिए

तेरे भरोसे हे नंदलाला, कोई रो रो बाट निहारे

तेरे भरोसे हे नंदलाला ।।

मीत बनाके तुम तो भूले, अंखियां करें ठिठोली

लोक लाज से डरें, ना बोलें, मन में जलती होली हो ।

तेरे भरोसे हे नंदलाला ।

बिंध जाए सो मोती कान्‍हा, बाकी कंकर होए

प्रीत दीवानी आस ना छोड़े, चाहे जीवन खोए
हो


तेरे भरोसे हे नंदलाला ।।

ले कान्‍हा ले, नैना मोरे, देख अगर तू पाए

जोगन के अंसुअन में पल पल मथुरा डूबी जाए

तेरे भरोसे हे नंदलाला कोई रो रो बाट निहारे ।।


भक्ति की दीनता और विनम्रता तो इस भजन में है ही, लेकिन दुहाईयां भी हैं, ये दुहाईयां उसी को दी जाती हैं जिससे आप टूटकर प्‍यार करते हैं, ये समर्पण की दुहाईयां हैं, जिनके तहत दुहाई दी गयी है —‘लोक लाज से डरें, ना बोलें, मन में जलती होली रे’ या फिर ‘जोगन के अंसुअन में पल-पल मथुरा डूबी जाए’ । खास बात ये है कि इस भजन के किसी महिला स्‍वर में होना चाहिये था, पर रफी साहब ने गाया । और उफ अदायगी तो देखिये, कितने कितने भाव इस भजन में उतर आये हैं । अगर आप वाकई संगीत के अनुरागी हैं तो इसे कई कई बार सुनेंगे और आनंद के सहभागी बनेंगे ।


अब जो दूसरा भजन मैं आपके लिए लाया हूं उसे पंकज मल्लिक ने गाया है ।
ये गैर फिल्‍मी भजन आसानी से उपलब्‍ध नहीं होता । आपको याद होगा नब्‍बे के दशक में जब लता मंगेशकर ने हिंदी फिल्‍म संगीत के कालजयी गायकों और संगीतकारों को श्रद्धां‍जलि देते हुए अपनी श्रृंखला ‘श्रद्धांजलि’ का पहला बहु-चर्चित अंक रिलीज़ किया था तो उसमें उन्‍होंने पंकज मलिक के इसी भजन को गाया था । और कहा था कि ये लंबे समय से उनका फेवरेट रहा है । इसे शायद ‘दीपक’ ने लिखा है । इस भजन की गायकी और बोलों के कहने ही क्‍या ।


विन्‍डोज़ मीडिया प्‍लेयर पर
यहां सुनिए, और सुनते सुनते इसके बोल भी पढिये ।


तेरे मंदिर का हूं दीपक, जल रहा

आग जीवन में मैं भर कर जल रहा ।

क्‍या तू मेरे दर्द से अनजान है

तेरी मेरी क्‍या नई पहचान है

जो बिना पानी बताशा डल रहा

आग जीवन में मैं भरकर जल रहा ।

इक झलक मुझ को दिखा दे सांवरे, सांवरे

मुझ को ले चल तू कदम्‍ब की छांह रे, सांवरे

ओ रे छलिया क्‍यों मुझे तू छल रहा

आग जीवन में मैं भरकर जल रहा

मैं तो किस्‍मत बांसुरी की बांचता

एक धुन से सौ तरह से नाचता

आंख से जमुना का पानी ढल रहा ।।

इस गीत की गीतकारी, गायकी और धुन तीनों में बांगला स्‍पर्श है । हिंदी व्‍याकरण या गीतकारी की कसौटी पर ये कच्‍चा साबित हो सकता है पर अपनी विनम्र भावनाओं और विकलता में ये काफी ऊंचा भजन है । खासकर मुझे ये पंक्तियां पसंद हैं जिनमें कहा गया है कि हे कान्‍हा मैं तो तुम्‍हारी बांसुरी बनना चाहता था, ताकि प्रेम की धुन पर सौ तरह से नाचता । ये पंक्तियां हैं ‘मैं तो किस्‍मत बांसुरी की बांचता, एक धुन से सौ तरह से नाचता’ लेकिन मेरी किस्‍मत ऐसी कहां, इसलिये ‘आंख से जमुना का पानी ढल रहा।‘ पंकज मलिक की आवाज़ में किसी साधु की वाणी जैसी शीतलता है, जैसे मंदिर में धूप-अगरबत्‍ती की गंध फैली हो और घंटियों के दिव्‍य स्‍वर गूंज कर माहौल को भक्तिमय बना रहे हों । पंकज मलिक के बाद अगर ऐसा असर किसी और बांग्‍ला स्‍वर में था तो वो हेमंत कुमार थे । मैं जल्‍दी ही हेमंत दा के कुछ ऐसे गीत लेकर आने वाला हूं, जो आपने उस तरह से नहीं सुने होंगे, जैसे मैं आपको सुनवाना चाहता हूं । प्रतीक्षा कीजियेगा उन गीतों के बारे में मेरे आलेख की ।

आज का तीसरा और आखिरी दिव्‍य भजन भी ‘दीपक’ का ही लिखा हुआ है । इसे मुकेश ने गाया है । संगीत के सुधि श्रोताओं को पता होगा कि मुकेश ‘रामचरित मानस’ का नियमित पाठ ही नहीं करते थे बल्कि उन्‍होंने अपनी और अपनी मंडली के स्‍वरों में पूरे रामचरित को रिकॉर्ड भी किया था, ये बड़ा सा एलबम आज भी आपको बाजार में मिल सकता है, थोड़ी बहुत मशक्‍कत के बाद । और अगर फौरन सुनना हो, इंटरनेट पर तो कृपया बतायें, मैं आपको लिंक भेज दूंगा, इसमें मुझे सबसे ज्‍यादा पसंद है ‘सुंदरकान्‍ड’ का गायन । मुरली मनोहर स्‍वरूप ने इसकी संगीत रचना की है । बहरहाल थोड़ा विषयांतर हो गया । मुकेश के जिस भजन की चर्चा मैं आज कर रहा हूं, वो ‘त्‍वमेव माता च पिता त्‍वमेव’ से शुरू होता है ।

मीडिया प्‍लेयर पर इस भजन को
यहां सुनिए । और सुनते सुनते पढिये ।


त्‍वमेव माता च पिता त्‍वमेव

त्‍वमेव बंधुश्‍च सखा त्‍वामेव

त्‍वमेव विद्या च द्रविणा त्‍वमेव

त्‍वमेव सर्वर मम देव देव ।।

जिनके हिरदय श्रीराम बसे,

उन और को नाम लिये ना लियो

जिनके हिरदय श्रीराम बसे ।।

कोई मांगे कंचन सी काया,

कोई मांग रहा प्रभु से माया

कोई पुण्‍य करे, कोई दान करे, जिन कन्‍याधन का दान कियो तिन और को दान कियो ना कियो ।। कोई घर में बैठा नमन करे कोई हरि-मंदिर में भजन करे कोई गंगा जमना स्‍नान करे कोई काशी जाकर ध्‍यान धरे जिन मात-पिता की सेवा कीऊ तिन तीरथ स्‍नान कियो ना कियो ।। जिनके हिरदय श्रीराम बसे उन और को नाम लियो ना लियो ।।

मुकेश की आवाज़ में भी आपको एक दीनता और विनम्रता का अहसास होगा । और मुझे विश्‍वास है कि इन तीनों भजनों को सुनकर इस भागदौड़ भरे जीवन के तनाव और दबावों में आपको मन की शांति हासिल होगी । बताईयेगा कैसा रहा आपका अनुभव ।

13 comments:

अभिनव May 11, 2007 at 10:38 AM  

बहुत सुन्दर, इतने सुन्दर भजन सुनाने के लिए धन्यवाद।

अभय तिवारी May 11, 2007 at 11:11 AM  

मधुर..
अपने लिंक को ऐसा बनायें कि वो एक अलग खिड़की में खुले.. ताकि आदमी आपको पढ़ता रहे और गीत सुनता भी रहे.. परिचर्चा में जाकर तक्नीक मसले पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.. या अगर आप कर सकें तो..
edit html में जाकर लिंक के पहले target="_blank" लिखें..
हल हो जायेगा..

azdak May 11, 2007 at 11:16 AM  

अच्‍छा है, बंधु..

Anonymous,  May 11, 2007 at 12:41 PM  

इतनी सारी मधुरता!

Anonymous,  May 11, 2007 at 1:42 PM  

Bachapan se hi roz hamare ghar main din ki shuruvat Vividh Bharathi ke Bhajano se hoti hai. Yeh mahol hamare liye mere Pitaji ne taiyaar kiya tha.

Vividh Bharathi ko is sambandh main pahale hi likh chuki hun.

Such bataoo Yunus khan jee Aaj kaa aapka chitta dil ko chu gaya.

Main yaha charcha karnaa chaahungi Raskhan ke bhajno ki.

Raskhan ka ek bhajan Alha Chand main hai jise do Male gayako ne gaya hai. Bahut samay se Vividh Bharthi par nahi suna aur aap tho janate hai aisi recording bazar main milna mushkil hai. bahut koshish ke baat bhi bhajan ke mukhade ke bol yaad nahi aa rahe tune yaad hai. yeh do lines har antare ke saath hai -
Taahi Aahir ki chohariya chahiya bhar chaanch pe naach nachaave.
Ek aur krishna bhakti geet hai Male solo -
pahali line phir bhool rahi hun
aage hai -
Aapna Maan tale tal jaaye bhakt kaa maa a talthe dekha
Antara hai -
Jiski ek bhrukuti ke bhaya se sakal vishwa ko kapte dekha
oosi ko Maa Yashoda ke bhay se Ashru bindu drig dalte dekha.
Please dono bhajano ko dhoond kar apne chitte main aur Vividh Bharathi par subah bhi sunvaane ki koshish kare.

Annapurna

बोधिसत्व May 11, 2007 at 5:13 PM  

यूलुस भाई
लगता है आप से आकर मिलना पड़ेगा. मुझे मधुकर राजस्थानी के मन्ना दा वाले गीत सुनने हैं.
रेडियो वाणी से रस-वर्षा जारी रहे. आपकी जय हो

Yunus Khan May 12, 2007 at 5:17 PM  

अभिनव, प्रमोद जी, धुरविरोधी जी बहुत बहुत शुक्रिया । अभय आपका सुझाव बहुत अच्‍छा है, अगली बार शायद ऐसा कर पाऊंगा । वैसे इंटरनेट एक्‍सप्‍लोरर के नये संस्‍करण का इस्‍तेमाल करने वालों के लिए ओपन इन न्‍यू टैब वाली सुविधा तो है ही, अन्‍नपूर्णा जी आपने जिन भजनों का जिक्र किया है उनमें से रसखान वाला तो मिल जायेगा, रही बात दूसरे वाले की तो कृपया आप गायक कलाकार याद कर सकें, तो अच्‍छा होगा । रसखान वाला भजन मिलते ही सूचना दूंगा ।

Anonymous,  May 12, 2007 at 6:31 PM  

हमेशा की तरह बेहतरीन आलेख यूनुस भाई

अन्नपूर्णा..

जिन दो पदों का उल्लेख आप कर रही हैं, उन में से एक के बोल शायद ये हैं

प्रबक प्रेम के पाले पड कर प्रभु को नियम बदलते देखा ।
उनका मान टले टल जाये, भक्त का मान टलते देखा ॥

जिनकी केवल कृपा दृष्टि से सकल सृष्टि को पलते देखा ।
उनको गोकुल के गौरस पर सौ सौ बार मचलते देखा ॥

जिनके चरण कमल कमला के करतल से न निकलते देखा ।
उनको बृज करील कुंजों में कण्टक पतह पर चलते देखा ॥

जिनका ध्यान विरंचि शंभु सनकादिक से न संभलते देखा ।
उनको ग्वाल सखा मंडल में लेकर गेंद उछालते देखा ॥

जिनकी बंक भृकुटी के भय से सागर सप्त उबलते देखा ।
उनको ही यशुमति के भय से अश्रु बिंदु दृग ढलते देखा ॥

Yunus Khan May 13, 2007 at 9:54 AM  

नितिन जी शुक्रिया । अन्‍नपूर्णा जी के प्रिय रसखान भजन की पंक्तियां याद दिलाके आपने बहुत अच्‍छा काम किया है । अभी तो मैं इंदौर जा रहा हूं, पर बुधवार को लौटते ही मैं इस भजन की तलाश शुरू कर दूंगा । संभव हुआ तो ब्‍लॉग पर प्रस्‍तुत करूंगा ।

Sagar Chand Nahar May 13, 2007 at 8:52 PM  

यूनुस जी
पंकज मल्लिक का गाये सारे गाने बहु मधुर हैं , मै उनका बहु बड़ा प्रशंषक हूँ।
इस गाने की तरज बहुत पहले एक गाना सुना था शायद राजेन्द्र- नीना गुप्ता की आवाज में रहा हो, बोल कुछ यूं थे- कृष्ण की बांसुरी कृष्ण से शिकायत करते हुए कहती है

मुझको अपने होठों से लगा कर तूने
राधा का ही नाम लिया
फिर भी तुम्हारी राधा ने मुझे
सौतन कहा बदनाम किया।


कभी सुनाईयेगा अगर मिल जाये तो।

Anonymous,  May 14, 2007 at 12:01 PM  

Nitin jee Bahut-bahut Dhanyavaad poora Bhajan Bhejane ke liye

Annapurna

Ramesh Ramnani May 27, 2007 at 9:22 PM  

यूनुस भाई आपके ब्लाग ने मुझे आपका फैन बना दिया है। सच में बहुत खूब है आपका ब्लाग। आपकी पसन्दगी की दाद देनी पड़ेगी। दोस्त बनना चाहता हूँ आपका। तेरे मन्दिर का हूँ दीपक जल रहा यह गीत मैं ना जाने कितने समय से ढूंढ रहा था आज सुना मन गद् गद् हो गया। एसे ही पुराने गीतों को और लाइये।

रमेश

Anonymous,  August 31, 2010 at 2:51 PM  

युनुसजी! अपनी पसंद के भजन मिल गए पर सुन् नही पा रही. 'एरर' शो कर रहा है प्लेयर. क्या करूँ अब? बताइयेगा.

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