संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Thursday, May 31, 2007

बरसो रे मेघा मेघा, बरसो रे—मुंबई की पहली बारिश का गीत



प्रिय मित्रो ।
इकतीस मई की रात है ।
मुंबई झिलमिला रही है रोशनियों में ।
सागर की लहरें किनारे से टकरा कर लौट रही हैं ।
लोकल ट्रेनें ठसाठस भरी हैं और रोज़ के मुसाफिर घर लौट रहे हैं ।
सड़क पर बिकने वाली खाने पीने की चीज़ों वाले धंधे के आखिरी छोर पर हैं ।
सरकार ने स्‍ट्रीट फूड पर पाबंदी लगा दी है, जो जल्‍दी ही लागू हो रही है ।

गृहिणियां टी0वी0 पर एकता कपूर के सीरियल देख रही हैं ।
ब्‍लॉगिए नेट पर टिपिया रहे हैं ।
कॉलसेन्‍टर में काम करने वाले छोरा छोरी लगे पड़े हैं ग्राहकों को पटाने में ।
रेडियो स्‍टेशन अपना राग अलाप रहे हैं ।
हॉकर शाम के अखबार मिड डे की बची प्रतियां खपाने के लिए मशक्‍कत कर रहे हैं ।
नो टोबेको डे को धता बताते हुए पान बिड़ी की दुकानें मस्‍त हैं ।

और अचानक इंद्र देव ने मुंबई शहर को हैलो कहा है ।

जी हां इस मौसम की पहली बारिश है ये ।
और मुझे वो गीत याद आ रहा है जो इस साल पहली बार हम सब बारिश में गुनगुनायेंगे ।

याद रखना मुश्किल है इसलिये पेश कर रहा हूं आपके लिए । चलिये गुनगुनाईये, बारशि हुई हो या ना हुई हो आपके शहर में पर गुनगुनाईये ज़रूर । इतनी मेहनत जो की है मैंने इस गीत को उतारने में ।

बरसो रे मेघा मेघा, बरसो रे मेघा मेघा, बरसो रे मेघा बरसो

मीठा है कोसा है, बारिश का बोसा है ।

कोसा है कोसा है बारिश का बोसा है ।

जल जल जल जल जल जल थल, जल थल, जल थल, जल थल ।

नन्‍ना रे नन्‍ना रे नाना रे नाना रे ।

गीली गीली गीली हां । हां हां हां । हां हां हां ।

गीली गीली माटी । गीली माटी की चल घरौंदे बनायेंगे रे ।

हरी हरी अंबी । अंबी की डाली लेके, झूले झुलायेंगे रे ।

धन, बैजू, गजनी, हल जोते सबने ।

बैलों की घंटी बजी और ताल लगे भरने ।

मैं तैर के चली मैं तो पार चली ।

पार वाले परले किनार चले । रे मेघा । नन्‍ना रे नन्‍ना रे । नाना रे नाना रे ।

काली काली घाटी, काली रातों में ये बदरवा बरस जायेगा ।

गली गली मुझको ढूंढेगा और गरज के पलट जायेगा ।

घर आंगन अंगना और पानी का झरना ।

भूल ना जाना मुझे, सब पूछेंगे वरना ।।

रे बह के चली मैं तो बहके चली, कहके चली मैं तो कह के चली ।

रे मेघा । नन्‍ना रे नन्‍ना रे नन्‍ना रे । नाना रे ।

तो दोस्‍तो गुलज़ार का गुलज़ारी व्‍याकरण वाला ये गीत तो हो गया । अब आप भी बारिश भर नन्‍ना रे नाना रे नन्‍ना रे नाना रे करिए । अगर किसी किसी को ये गीत पसंद नहीं तो कोई बात नहीं । रेडियोवाणी पर आपका ये दोस्‍त बारिश भर बारिश के गानों की पूरी सीरीज़ पेश करेगा, बंबईया भाषा में बोलूं तो भीडू फिकर नहीं करने का । बोले तो, अपुन के पास बारिश के डेढ़ सौ गानों का स्‍टॉक है ।

अच्‍छा मैं तो चला मुंबई की पहली बारिश में भीगने ।
आप क्‍या कर रहे हैं ।
बाय बाय ।
नन्‍ना रे नन्‍ना रे नाना रे नाना रे । बरसो से मेघा मेघा । बरसो रे मेघा मेघा । बरसो रे मेघा बरसो ।




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7 comments:

sootradhaar June 1, 2007 at 10:13 AM  

Yunus ji...aapki baarish ki post padhi...achi lagee..:) such mein baarish mein bhigne ka apni hi mazaa hai.
Aapke blog par kuch din se aa raha hoon...agar yeh kahoon ki aapka lekhan evam shabdon ko banndhne ke kala ka kaayal ho gaya hoon..to atishayokti nahin hogi.
Choonki aap videos ke bhinn-bhinn sites se apne blog par link samaahit karte hain. to meri ek guzaarish hai ki maine apne blog http://bombaytalkies.vox.com par kuch puraane geeton ke videos post karein hain, agar aap dekhenein aur apni pratikriya vyakt kerin to bahut aabhaar hoga.

Dhanyavaad...:)

Shubhkaamnaaon sahit,

Sootradhaar

विशाल सिंह June 1, 2007 at 10:33 AM  

चलिये भाई, मुम्बई वालों की वल्ले-वल्ले हो गयी. ईधर तो गर्मी हाल-बेहाल किये हुए है.

Anonymous,  June 1, 2007 at 1:08 PM  

Pahali Baarish ka mazaa hi kuch aur hota hai. Lekh padh kar mazaa aa gayaa.

Zabardasthi sa geet bhi padh dala.

Third photo par nazar padi. Mujhe apne college days yaad aa gaye. Laga main Zoology Lab main hun aur saamne disection ke liye Frog rakha hai. Bura math maananaa pleeeeeeeeeeeese.........

Annapurna

mamta June 1, 2007 at 1:18 PM  

पहली बारिश की बधाई यहाँ तो अच्छी खासी गरमी पड़ रही है।

Manish Kumar June 2, 2007 at 9:58 PM  

बारिश पर तो सदाबहार गीतों की भरमार है । गुलजार के इस गीत में गाँव गवई मिट्टी की सोंधी सुगंध भी है और सावन की मदमस्त बयार भी ! पेश करने का शुक्रिया !

Anonymous,  June 2, 2007 at 11:13 PM  

यूनुस जी,

आप ने जिस तरहा से मुंबई की पेहली बारिश का विवरण किया ऐसा लगा मानो हम उस वक़्त मुंबई में ही थे..और मज़े की बात तो यह है की आपके इस विवरण ने स्कूल की हिंदी की अध्यापिका की बड़ी याद दिलाई.. वो भी बिल्कुल इसी तरहा शब्दों से बड़ा अच्छा समा बाँधती थी| अब तो लगता है आपके साइट पर बार बार आना पड़ेगा...

हितेश कुमार
ये संदेश Quillpad.in के प्रयोग से लिक्खा गया है

अतुल श्रीवास्तव June 5, 2007 at 10:12 PM  

मेरा प्रिय बारिश गीत:

रिम झिम गिरे सावन (लता वाला) - पिक्चराईज़ेशन बहुत ही अच्छा है - मुंबई की बारिश का सही चित्रण.

वैसे सुनने में मुझे किशोर वाला "रिम झिम गिरे.." अधिक पसंद है.

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http://www.google.com/transliterate/indic/

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