तुम हमारेे लिए चांद हो जगजीत
प्रिय जगजीत
अस्सी का दशक रीत रहा था। नब्बे का दशक शुरू होने को था।
हमने अदब और मौसिकी की दुनिया में हौले-हौले दाखिल होना शुरू किया था।
तुम्हें नहीं पता होगा कि तुम्हारे कैसेट्स हमारे लिए कितना बड़ा ख़ज़ाना थे। लड़कों के स्कूल में पढ़ने वाले हम, लड़कियों से उतनी ही दूर थे जितने धरती से चाँद। और तुम्हारी कैसेट से रूमानियत छलक-छलक पड़ती थी!
‘सरकती जाए है रूख़ से नकाब आहिस्ता-आहिस्ता’......
‘बहुत पहले से इन क़दमों की आहट जान लेते हैं’।
वो पहली कैसेट थी- जिससे हमने जगजीत-चित्रा आवाज़ की दुनिया को टटोला था।
इसके बाद हमने तुम्हारी आवाज़ के ख़ज़ाने में प्रवेश किया...‘काग़ज़ की कश्ती और बारिश के पानी’ वाली दुनिया में….उस दुनिया में जहां ‘पत्थर के ख़ुदा, पत्थर के सनम और पत्थर के ही इंसां थे’....हमें चित्रा का गाया ‘मेरे दुःख की कोई दवा ना करो’ या ‘यूं जिंदगी की राह में मजबूर हो गये’ भी उतना ही पसंद था जितना तुम्हारा ‘तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो’ या ‘तेरे खुश्बू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे’।
तुम्हें नहीं पता कि उन दिनों में जब शामों को बेवजह उदासी तैर आती थी, तो तुम्हारी आवाज़ में कुछ भी अच्छा लगता था। जब चित्रा जी ने गाना बंद कर दिया तो हमने एक चिट्ठी भी लिखी थी कि उन्हें गाना चाहिए। तुम्हारा पता हमारी डायरी में किसी आयत की तरह दर्ज था। फिर जब हम उसी शहर में आ गये, जिसकी एक इमारत तुम्हारा पता था, तो जाने क्यों हम कभी वहां रूके नहीं। यही नहीं इसी शहर में तुम्हारे कंसर्ट होते थे, हम टिकिट ख़रीदकर जा सकते थे। हम रिकॉर्डिंग के बहाने तुम्हारे घर धमक सकते थे। मोबाइल नंबर तो मिल ही गया था, तुमने खुद ही दिया था लैंड-लाइन पर बात करने के दौरान....पर हम ना गये कंसर्ट में। ना घर आए। क्यों।
हम उस लुत्फ को कम नहीं करना चाहते थे...जो हाई-स्कूल से कॉलेज के रूमानी दिनों में तुमने हमें दिया था, कैसेट्स पर। हमारे लिए तुम चाँद थे जगजीत। पर हमने उस चाँद को कभी छूना नहीं चाहा। बस इसलिए हम नहीं आए तुम्हारे पास, मौक़ों के रहते हुए भी।
फिर तुम चले गये, ये ख़बर जब हम मिली, तो बेसाख्ता बहुत रोए हम।
रेडियो पर प्रोग्राम करना था...हमने किया। जो हमें जानते-समझते हैं, या जिन्हें प्रोग्राम याद रहते हैं, उन्हें याद होगा, कैसी कांपती आवाज़ में हम विविध भारती पर तुम्हें अंतिम विदाई दे रहे थे।
ऐसा नहीं था कि हम तुम्हारे पक्के भक्त थे। बहुत चीजें हमें पसंद नहीं थीं। पर जगजीत, तुम्हारी पूरी यात्रा, तुम्हारी आवाज़ वो ईमानदारी, उसका सच्चा दुःख हमें पसंद था। इसलिए हमने तुम्हें कभी विदाई नहीं थी। तुम्हारा नंबर आज भी हमारे फोनबुक में चमकता है।
गए बरस तुम्हारे जन्मदिन के दिन ही हमारे प्यारे शायर निदा भी हमारे बीच से चले गये। उन्होंने
कितना सही कहा था--
मुँह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में, ख़ामोशी
पहचाने कौन।
7 comments:
उम्दा .... ! (y)
कहाँ tum चले गए.... ����
खूबसूरत यादें.खूबसूरत कलम.
बेहद भावुक लिखा युनूस जी। हमारे भी पसंद के गायक रहें जगजीत जी। आज भी जब खाली समय रहता तो कभी कभी उनके गीत सून लेते हैं, अपनी लायब्ररी सें।
बेहद भावुक लिखा युनूस जी। हमारे भी पसंद के गायक रहें जगजीत जी। आज भी जब खाली समय रहता तो कभी कभी उनके गीत सून लेते हैं, अपनी लायब्ररी सें।
अपने शब्दों में हमें भी शामिल मानिये-एक बात ने लूट लिया -भाई "चाहते तो रिकॉर्डिंग के बहाने घर पर भी धमक सकते थे"
बेहतरीन आलेख।
चिट्ठी न कोई सन्देश जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गए।
Post a Comment
if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/