'हम चीज़ हैं बड़े काम की यारम' : गुलज़ार
इसमें कोई शक नहीं कि हम गुलज़ार के शैदाई हैं। हम उन लोगों से रात भर शास्त्रार्थ कर सकते हैं जिन्हें ''आंखों की महकती खुश्बू'' पर शक है। या जिनकी भौंहें ''बिरहा की सीली सीली रात'' के जलने पर तन जाती हैं। हमें उन लोगों को देखकर 'इब्ने-बतूता' गाने में बड़ा आनंद मिलता है। हम तो 'जाड़ों की नर्म धूप में आंगन में लेटकर'' गुनगुनाने वाले और 'बर्फीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर/ वादी में गूंजती हुई खामोशियां'' सुनने वाले लोग हैं।
वक्त बदल रहा है। पर हम अपनी धुन पर कायम हैं। और इसकी वजह है।
बड़ी अजीब-सी बात है। इतने तो हम अपने अज़ीज़ फ़नकार जगजीत सिंह की राहों पर नहीं टिके रहे। तकरीबन नब्बे के दशक के बाद के उनके काम से हमने मुंह फेर लिया था। लेकिन बाबा...बाबा गुलज़ार तो अलफ़ाज़ की दुनिया के औलिया हैं। उनकी कलम से उतरते हैं लोभान के खुश्बूदार साए। और हम सब किसी और ही दुनिया में होते हैं उसके बाद।
जी हम गुलज़ार के शैदाई हैं।
बीतते हुए इस बरस गुलज़ार के इस साल के काम की एक झलक।
फिल्म थी 'एक थी डायन'। ऐसा नहीं कि इस फिल्म का यही एक गीत हमें पसंद हो।
पर सबसे ज्यादा पसंद ज़रूर है।
देखिए वक्त के साथ गुलज़ार के अलफ़ाज़ और अहसास किस तरह बदल रहे हैं।
इस गाने में वो क्या लिखते हैं इसकी एक झलक।
पीछे पीछे दिन भर, घर दफ्तर में लेके चलेंगे हम
तुम्हारी फाइलें, तुम्हारी डायरी
गाडी की चाबियां, तुम्हारी ऐनकें
तुम्हारा लैपटॉप, तुम्हारी कैप
और अपना दिल, कुंवारा दिल
प्यार में हारा, बेचारा दिल
और अपना दिल, कुंवारा दिल
प्यार में हारा, बेचारा दिल
यारम।
अगर आप मानते हैं कि ये गानों में अलफ़ाज़ के गहरी खाई में गिर जाने का युग है-- तो हमारी गुज़ारिश ये है कि इतनी निराशा अच्छी नहीं। ज़रा ध्यान से कुछ गाने सुनिएगा इस साल के। अच्छा ठीक है... हम ही कुछ बेहतरीन गाने यहां रेडियोवाणी पर सुनवाए देते हैं अगले कुछ दिनों में...। फिलहाल गुलज़ार गुलज़ार। यारम। यारम।
नीचे गाने के बोल हमने कविता-कोश के इस पन्ने से लिए हैं। शुक्रिया ललित।
Song: Yaaram
Singer: Sunidhi, Clinton
Lyrics: Gulzar
Music: Vishal
Film: Ek thi daayan
हम चीज़ हैं बड़े काम की, यारम
हमें काम पे रख लो कभी, यारम
हम चीज़ हैं बड़े काम की, यारम
हो सूरज से पहले जगायेंगे
और अखबार की सब सुर्खियाँ हम
गुनगुनाएँगे
पेश करेंगे गरम चाय फिर
कोई खबर आई न पसंद तो एंड बदल देंगे
हो मुंह खुली जम्हाई पर
हम बजाएं चुटकियाँ
धूप न तुमको लगे
खोल देंगे छतरियां
पीछे पीछे दिन भर
घर दफ्तर में लेके चलेंगे हम
तुम्हारी फाइलें, तुम्हारी डायरी
गाडी की चाबियां, तुम्हारी ऐनकें
तुम्हारा लैपटॉप, तुम्हारी कैप
और अपना दिल, कुंवारा दिल
प्यार में हारा, बेचारा दिल
और अपना दिल, कुंवारा दिल
प्यार में हारा, बेचारा दिल
यह कहने में कुछ रिस्क है, यारम
नाराज़ न हो, इश्क है, यारम
हो रात सवेरे, शाम या दोपहरी
बंद आँखों में लेके तुम्हें ऊंघा करेंगे हम
तकिये चादर महके रहते हैं
जो तुम गए
तुम्हारी खुशबू सूंघा करेंगे हम
ज़ुल्फ़ में फँसी हुई खोल देंगे बालियाँ
कान खिंच जाए अगर
खा लें मीठी गालियाँ
चुनते चलें पैरों के निशाँ
कि उन पर और न पाँव पड़ें
तुम्हारी धडकनें, तुम्हारा दिल सुनें
तुम्हारी सांस सुनें, लगी कंपकंपी
न गजरे बुनें, जूही मोगरा तो कभी दिल
हमारा दिल, प्यार में हारा, बेचारा दिल
हमारा दिल, हमारा दिल
प्यारा में हारा, बेचारा दिल
फिल्म - एक थी डायन(2013)
अब चलते हैं यारम। रेडियोवाणी पर गीतों का कारवां जारी यारम।
अगर आप चाहते हैं कि 'रेडियोवाणी' की पोस्ट्स आपको नियमित रूप से अपने इनबॉक्स में मिलें, तो दाहिनी तरफ 'रेडियोवाणी की नियमित खुराक' वाले बॉक्स में अपना ईमेल एड्रेस भरें और इनबॉक्स में जाकर वेरीफाई करें।
वक्त बदल रहा है। पर हम अपनी धुन पर कायम हैं। और इसकी वजह है।
बड़ी अजीब-सी बात है। इतने तो हम अपने अज़ीज़ फ़नकार जगजीत सिंह की राहों पर नहीं टिके रहे। तकरीबन नब्बे के दशक के बाद के उनके काम से हमने मुंह फेर लिया था। लेकिन बाबा...बाबा गुलज़ार तो अलफ़ाज़ की दुनिया के औलिया हैं। उनकी कलम से उतरते हैं लोभान के खुश्बूदार साए। और हम सब किसी और ही दुनिया में होते हैं उसके बाद।
जी हम गुलज़ार के शैदाई हैं।
बीतते हुए इस बरस गुलज़ार के इस साल के काम की एक झलक।
फिल्म थी 'एक थी डायन'। ऐसा नहीं कि इस फिल्म का यही एक गीत हमें पसंद हो।
पर सबसे ज्यादा पसंद ज़रूर है।
देखिए वक्त के साथ गुलज़ार के अलफ़ाज़ और अहसास किस तरह बदल रहे हैं।
इस गाने में वो क्या लिखते हैं इसकी एक झलक।
पीछे पीछे दिन भर, घर दफ्तर में लेके चलेंगे हम
तुम्हारी फाइलें, तुम्हारी डायरी
गाडी की चाबियां, तुम्हारी ऐनकें
तुम्हारा लैपटॉप, तुम्हारी कैप
और अपना दिल, कुंवारा दिल
प्यार में हारा, बेचारा दिल
और अपना दिल, कुंवारा दिल
प्यार में हारा, बेचारा दिल
यारम।
अगर आप मानते हैं कि ये गानों में अलफ़ाज़ के गहरी खाई में गिर जाने का युग है-- तो हमारी गुज़ारिश ये है कि इतनी निराशा अच्छी नहीं। ज़रा ध्यान से कुछ गाने सुनिएगा इस साल के। अच्छा ठीक है... हम ही कुछ बेहतरीन गाने यहां रेडियोवाणी पर सुनवाए देते हैं अगले कुछ दिनों में...। फिलहाल गुलज़ार गुलज़ार। यारम। यारम।
नीचे गाने के बोल हमने कविता-कोश के इस पन्ने से लिए हैं। शुक्रिया ललित।
Song: Yaaram
Singer: Sunidhi, Clinton
Lyrics: Gulzar
Music: Vishal
Film: Ek thi daayan
हम चीज़ हैं बड़े काम की, यारम
हमें काम पे रख लो कभी, यारम
हम चीज़ हैं बड़े काम की, यारम
हो सूरज से पहले जगायेंगे
और अखबार की सब सुर्खियाँ हम
गुनगुनाएँगे
पेश करेंगे गरम चाय फिर
कोई खबर आई न पसंद तो एंड बदल देंगे
हो मुंह खुली जम्हाई पर
हम बजाएं चुटकियाँ
धूप न तुमको लगे
खोल देंगे छतरियां
पीछे पीछे दिन भर
घर दफ्तर में लेके चलेंगे हम
तुम्हारी फाइलें, तुम्हारी डायरी
गाडी की चाबियां, तुम्हारी ऐनकें
तुम्हारा लैपटॉप, तुम्हारी कैप
और अपना दिल, कुंवारा दिल
प्यार में हारा, बेचारा दिल
और अपना दिल, कुंवारा दिल
प्यार में हारा, बेचारा दिल
यह कहने में कुछ रिस्क है, यारम
नाराज़ न हो, इश्क है, यारम
हो रात सवेरे, शाम या दोपहरी
बंद आँखों में लेके तुम्हें ऊंघा करेंगे हम
तकिये चादर महके रहते हैं
जो तुम गए
तुम्हारी खुशबू सूंघा करेंगे हम
ज़ुल्फ़ में फँसी हुई खोल देंगे बालियाँ
कान खिंच जाए अगर
खा लें मीठी गालियाँ
चुनते चलें पैरों के निशाँ
कि उन पर और न पाँव पड़ें
तुम्हारी धडकनें, तुम्हारा दिल सुनें
तुम्हारी सांस सुनें, लगी कंपकंपी
न गजरे बुनें, जूही मोगरा तो कभी दिल
हमारा दिल, प्यार में हारा, बेचारा दिल
हमारा दिल, हमारा दिल
प्यारा में हारा, बेचारा दिल
फिल्म - एक थी डायन(2013)
अब चलते हैं यारम। रेडियोवाणी पर गीतों का कारवां जारी यारम।
अगर आप चाहते हैं कि 'रेडियोवाणी' की पोस्ट्स आपको नियमित रूप से अपने इनबॉक्स में मिलें, तो दाहिनी तरफ 'रेडियोवाणी की नियमित खुराक' वाले बॉक्स में अपना ईमेल एड्रेस भरें और इनबॉक्स में जाकर वेरीफाई करें।
3 comments:
बहुत खूब। मज़ा आ गया गाना सुनकर और पढ़कर। बहुत अच्छा resume है।
हार्दिक बधाईयां !
आपको जानकर प्रसन्न्ता होगी कि आपके ब्लॉग ने हिन्दी के सर्वाधिक गूगल पेज रैंक वाले ब्लॉगों में जगह बनाई है। निश्चय ही यह आपकी अटूट लगन और अनवरत हिंदी सेवा का परिणाम है।
एक बार पुन: बधाई।
आपकी इस पोस्ट को आज के शुभ दिन ब्लॉग बुलेटिन के साथ गुलज़ार से गुल्ज़ारियत तक पर शामिल किया गया है....
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