'वे मैं चोरी चोरी तेरे नाल ला लईयां अख्खां वे' यानी 'यारा सीली सीली बिरहा की रात का जलना' : अलविदा रेशमा।
दीपावली के दिन 'रेडियोवाणी' पर हम एक बड़ी ही अद्भुत रचना लेकर आने की तैयारी कर रहे थे कि तभी मशहूर गायिका रेशमा के इंतकाल की ख़बर आ गयी। एक अजीब-सा रिश्ता था.. है.. हमारा रेशमा की आवाज़ के साथ। हालांकि बाक़ी बहुत सारे लोगों की तरह ये रिश्ता शुरू हुआ फिल्म 'हीरो' के उस गाने के बाद से ही...'लंबी जुदाई'।
चूंकि तब उम्र वैसी नहीं थी--ना माहौल कि हमें रेशमा के बारे में बहुत कुछ पता चलता। या उनके बाक़ी गाने सुनने को मिलते... पर वक्त का बहाव हमें ले आया रेशमा की आवाज़ के क़रीब। ये तब हुआ...जब हमारे क़दम रेडियो के स्टूडियोज़ की तरफ़ मुड़ गये। वहां रेशमा की आवाज़ वाला एक पंजाबी लोकगीतों का एल.पी. मिला.. और बस कई कई दिनों तक हम उसके तिलस्म की गिरफ्त में रहे। 'दमादम मस्त क़लंदर', 'साडा चिडियों दा चंबा', 'सांझा चूल्हा' जैसी रचनाएं कई दिन तक ज़ेहन में गूंजती रहीं।
रेशमा से एक ताल्लुक़ और है। रेडियो वाला ताल्लुक़। सूफ़ी और लोक गायकी की इस पंछी को असल में रेडियो ने ही दुनिया तक पहुंचाया। रेशमा को सेहवान, सिंध पाकिस्तान में मौजूद लाल शाहबाज़ क़लंदर की दरग़ाह पर गाया करती थीं। 'दमा-दम मस्त क़लंदर' नामक जो मशहूर रचना आपने कई कलाकारों के स्वर में अकसर सुनी है-- वो इन्हीं सूफी फ़क़ीर की शान में गायी जाती है। रेशमा ने रेडियो पर सबसे पहले यही गाया।
ये रिकॉर्डिंग रेशमा जी के भारत दौरे के दौरान किसी महफिल में गाने की है। ज़रा सुनिए कितने प्यार से वो अपने दिल की बात कह रही हैं। गुड मॉर्निंग भी कह रही हैं। दुनिया के अलग अलग देशों को 'पिंड' कह रही हैं। दोनों देशों की एकता की बात कर रही हैं। बता रही हैं कि वो बीकानेर में पैदा हुई हैं। अदभुत है ये।
रेशमा की आवाज़ जितनी अच्छी लगती है-- अपनी रचनाओं के पहले कही गयी उनकी बातें उससे भी प्यारी लगती हैं। इसके बाद तो रेशमा की आवाज़ सारी दुनिया में पहुंचीं।
वो क्या है रेशमा के कंठ में जो हमें उनसे जोड़ता है। रेशमा के कंठ में गहरा दर्द है। सच्चाई है। वो बेचैनी है...जिसके अपने भीतर होने का छद्म करते हैं हमारे समय के कई गायक। पर सच्ची आवाज़ों को ज़माना पहचानता भी है और अमूमन अपने सिर-माथे पर भी लेता है।
आज हम आपके लिए वो गाना लेकर आये हैं... जिसे रेशमा ने बरसों बरस पहले गाया था। बाद में गुलज़ार ने इसी धुन पर एक नग़्मा रचा और हृदयनाथ मंगेशकर ने इसकी धुन बनायी फिल्म लेकिन के लिए। रेशमा का पूरा मूल गीत बात में...पहले सुनिए कि किस तरह रेशमा ने एक शो के दौरान लता जी वाला संस्करण गाया--'यारा सीली सीली बिरहा की रात का जलना'। इस ऑडियो में वो आगे--'वे मैं चोरी चोरी' का एक अंश भी गा रही हैं। एक तरह से ये 'डेमो' भी है दोनों धुनों का।
Song: Yara Sili Sili
Singer: Reshma.
अब सुनते हैं रेशमा की आवाज़ में वही रचना। 'वे मैं चोरी चोरी'
Song: Ve main chori chori
Singer: Reshma
Duration: 8:11
इस गाने के बोल हमने 'रेडियोवाणी' के दूसरे पन्ने पर यहां लिखे हैं। साथ में अंग्रेज़ी तजुर्मा भी है।
वरिष्ठ कवि मानिक बच्छावत की कविता भी पढिए- जो उन्होंने रेशमा के बारे में लिखी थी। इसे हमने भाई प्रेमचंद गांधी की फेसबुक वॉल से लिया है। रेशमा को विनम्र श्रद्धांजलि।
रेशमा चली गई
सरहद पार
एक दर्द छोड़ गई
एक दर्द ले गई
जब आई यहां तो
उसका गला अवरुद्ध था
सिसकियों से भरा था
उसकी नासिका में
उसकी जड़ों में
उसके शरीर में
इस माटी की गंध
कूट-कूट कर भरी थी
वह कौन-सा प्रहर था
न जाने कौन-सा कहर था
जो बरपा था
जिसके चलते उसे
अपनी ज़मीन छोड़नी पड़ी
वह अब यहां नहीं रहती
उस वतन में बस गई है
पर यहां की हवाओं का साया
उस पर अब भी मंडराता है
यहां की सुनहली यादें
उसका पीछा छोड़ने का
नाम नहीं लेतीं
अब भी जब वह गाती है
उसके आंसू नहीं थमते
उसे पुराने दिन याद आते हैं
वह अपनी सरज़मीं के लिए
छटपटाती है बार-बार
यहां आने का मन बनाती है
सपने देखती है अपने परिजनों
और चाहने वालों को याद करती है
शायद उसकी गायिकी में
वह दर्द बस गया है
जो अलग नहीं हो सकता
वह अपनी जन्मभूमि में
लौट नहीं सकती
पर उसे सपने में देख सकती है
हम उसे भूल नहीं सकते
उसकी ग़ज़लें हमें
झकझोरती हैं आलोडि़त करती हैं
मर्माहत करती हैं सुकून देती हैं
आज भी उसकी ग़ज़लों की खु़श्बू
हवा में तैरती है।
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चूंकि तब उम्र वैसी नहीं थी--ना माहौल कि हमें रेशमा के बारे में बहुत कुछ पता चलता। या उनके बाक़ी गाने सुनने को मिलते... पर वक्त का बहाव हमें ले आया रेशमा की आवाज़ के क़रीब। ये तब हुआ...जब हमारे क़दम रेडियो के स्टूडियोज़ की तरफ़ मुड़ गये। वहां रेशमा की आवाज़ वाला एक पंजाबी लोकगीतों का एल.पी. मिला.. और बस कई कई दिनों तक हम उसके तिलस्म की गिरफ्त में रहे। 'दमादम मस्त क़लंदर', 'साडा चिडियों दा चंबा', 'सांझा चूल्हा' जैसी रचनाएं कई दिन तक ज़ेहन में गूंजती रहीं।
रेशमा से एक ताल्लुक़ और है। रेडियो वाला ताल्लुक़। सूफ़ी और लोक गायकी की इस पंछी को असल में रेडियो ने ही दुनिया तक पहुंचाया। रेशमा को सेहवान, सिंध पाकिस्तान में मौजूद लाल शाहबाज़ क़लंदर की दरग़ाह पर गाया करती थीं। 'दमा-दम मस्त क़लंदर' नामक जो मशहूर रचना आपने कई कलाकारों के स्वर में अकसर सुनी है-- वो इन्हीं सूफी फ़क़ीर की शान में गायी जाती है। रेशमा ने रेडियो पर सबसे पहले यही गाया।
ये रिकॉर्डिंग रेशमा जी के भारत दौरे के दौरान किसी महफिल में गाने की है। ज़रा सुनिए कितने प्यार से वो अपने दिल की बात कह रही हैं। गुड मॉर्निंग भी कह रही हैं। दुनिया के अलग अलग देशों को 'पिंड' कह रही हैं। दोनों देशों की एकता की बात कर रही हैं। बता रही हैं कि वो बीकानेर में पैदा हुई हैं। अदभुत है ये।
रेशमा की आवाज़ जितनी अच्छी लगती है-- अपनी रचनाओं के पहले कही गयी उनकी बातें उससे भी प्यारी लगती हैं। इसके बाद तो रेशमा की आवाज़ सारी दुनिया में पहुंचीं।
वो क्या है रेशमा के कंठ में जो हमें उनसे जोड़ता है। रेशमा के कंठ में गहरा दर्द है। सच्चाई है। वो बेचैनी है...जिसके अपने भीतर होने का छद्म करते हैं हमारे समय के कई गायक। पर सच्ची आवाज़ों को ज़माना पहचानता भी है और अमूमन अपने सिर-माथे पर भी लेता है।
आज हम आपके लिए वो गाना लेकर आये हैं... जिसे रेशमा ने बरसों बरस पहले गाया था। बाद में गुलज़ार ने इसी धुन पर एक नग़्मा रचा और हृदयनाथ मंगेशकर ने इसकी धुन बनायी फिल्म लेकिन के लिए। रेशमा का पूरा मूल गीत बात में...पहले सुनिए कि किस तरह रेशमा ने एक शो के दौरान लता जी वाला संस्करण गाया--'यारा सीली सीली बिरहा की रात का जलना'। इस ऑडियो में वो आगे--'वे मैं चोरी चोरी' का एक अंश भी गा रही हैं। एक तरह से ये 'डेमो' भी है दोनों धुनों का।
Song: Yara Sili Sili
Singer: Reshma.
अब सुनते हैं रेशमा की आवाज़ में वही रचना। 'वे मैं चोरी चोरी'
Song: Ve main chori chori
Singer: Reshma
Duration: 8:11
इस गाने के बोल हमने 'रेडियोवाणी' के दूसरे पन्ने पर यहां लिखे हैं। साथ में अंग्रेज़ी तजुर्मा भी है।
वरिष्ठ कवि मानिक बच्छावत की कविता भी पढिए- जो उन्होंने रेशमा के बारे में लिखी थी। इसे हमने भाई प्रेमचंद गांधी की फेसबुक वॉल से लिया है। रेशमा को विनम्र श्रद्धांजलि।
रेशमा चली गई
सरहद पार
एक दर्द छोड़ गई
एक दर्द ले गई
जब आई यहां तो
उसका गला अवरुद्ध था
सिसकियों से भरा था
उसकी नासिका में
उसकी जड़ों में
उसके शरीर में
इस माटी की गंध
कूट-कूट कर भरी थी
वह कौन-सा प्रहर था
न जाने कौन-सा कहर था
जो बरपा था
जिसके चलते उसे
अपनी ज़मीन छोड़नी पड़ी
वह अब यहां नहीं रहती
उस वतन में बस गई है
पर यहां की हवाओं का साया
उस पर अब भी मंडराता है
यहां की सुनहली यादें
उसका पीछा छोड़ने का
नाम नहीं लेतीं
अब भी जब वह गाती है
उसके आंसू नहीं थमते
उसे पुराने दिन याद आते हैं
वह अपनी सरज़मीं के लिए
छटपटाती है बार-बार
यहां आने का मन बनाती है
सपने देखती है अपने परिजनों
और चाहने वालों को याद करती है
शायद उसकी गायिकी में
वह दर्द बस गया है
जो अलग नहीं हो सकता
वह अपनी जन्मभूमि में
लौट नहीं सकती
पर उसे सपने में देख सकती है
हम उसे भूल नहीं सकते
उसकी ग़ज़लें हमें
झकझोरती हैं आलोडि़त करती हैं
मर्माहत करती हैं सुकून देती हैं
आज भी उसकी ग़ज़लों की खु़श्बू
हवा में तैरती है।
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4 comments:
अपने क़िस्म की इकलौती आवाज़ की स्वामिनी को विनम्र श्रद्धांजलि.
शत शत नमन !
अद्भुत
Heart Felt Condolences To Great Singer With Soft Voice as the Name suggests
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