सावन की रिमझिम में थिरक-थिरक नाचे रे... मन्ना दा के ग़ैर-फिल्मी गीत (पहला भाग)
रेडियोवाणी पर हमने मन्ना दा के बारे में कई बार लिखा। उनके कई गीत सुनवाए। हमने ये भी बताया है कि किस तरह स्कूल के ज़माने में मित्रों के साथ पुराने फिल्म-संगीत का शौक़ लगा और हम मन्ना दा के शैदाई होते चले गए। इस बीच जिंदगी की राहें हमें विविध-भारती ले आयीं और फिर मन्ना दा से संयोगवश मुलाक़ात भी हुई। बहुत थोड़ी देर की। यक़ीन ही नहीं हुआ कि हम मन्ना दा के समक्ष हैं। उनके घर पर।
अद्भुत था वो अहसास। फिर एक बार मन्ना दा का 'लाइव कंसर्ट' देखा। मुंबई में ही। जहां कविता कृष्णमूर्ति उनके साथ गा रही थीं। मन्ना दा तकरीबन ढाई घंटे तक लोगों की फ़रमाईशों को पूरा करते रहे थे। बहराहल...मन्ना दा अब हमारे बीच नहीं हैं। उनके लिए क़सीदे पढ़े जाने का दौर भी ख़त्म होने को है। और लोग अपने काम-धंधों में लग रहे हैं। पर शुभ्रा जी (मशहूर समाचार-वाचिका शुभ्रा शर्मा, जिन्हें हम जिज्जी कहते हैं) ने फ़ेसबुक पर कितनी बढिया बात लिखी है--
'मैं नहीं मानती कि मन्ना युग का अंत हो गया है, हो ही नहीं सकता। उनके गीतों की धारा ऐसे ही अविरल, अजस्र बहती रहेगी ....
संगीत मन को पंख लगाये, गीतों से रिमझिम रस बरसाये ....
इतना रस बहाने वाली सरिता सूख कैसे सकती है, बस सरस्वती की तरह आँखों से ओझल हो गयी है। लेकिन संगम पर सरस्वती आज भी पूजी जाती है कि नहीं?'
इसे ही हमारे मन की बात भी समझा जाए। हम ये कहेंगे कि मन्ना दा ने देह-त्याग किया है। पर वे कहीं नहीं गए। वे तो 'रेडियोवाणी' पर भी हैं। मन्ना दा को नमन करते हुए आज से एक श्रृंखला रेडियोवाणी पर शुरू की जा रही है। सोचा यही है कि इस श्रृंखला में उनके गाए ग़ैर-फिल्मी गाने सुनवायेंगे। पर अभी से बताये दे रहे हैं कि आगे चलकर मुमकिन है हमारा मन बदल जाए और हम उनके कुछ कम सुने गीत भी यहां प्रस्तुत करें। तो शुरूआत करते हैं उस गाने से...जिसे सुनकर हम मदहोश ही हो गये थे। आपको बतायें कि इंटरनेट-विहीन उस ज़माने में गानों के लिए कैसेट खोजने पड़ते थे। और जाने कितनी मेहनत के बाद हमें मिला था वो दो कैसेट अलबम--'मन्ना डे: हिज़ ग्रेटेस्ट नॉन फिल्म हिट्स'। ये तस्वीर नेट से हासिल की गयी है पर है उसी अलबम की। उन दिनों ये हमारे संग्रह का अनमोल नगीना होता था। आज भी है। इस अलबम में जो अनमोल गाने थे उनकी फेहरिस्त आपको दिखला दी जाए।
1- सावन की रिमझिम में थिरक थिरक नाचे रे मयूरपंखी रे सपने
2- नथली से टूटा मोती रे
3- शाम हो जाम हो सुबू भी हो
4- कुछ ऐसे भी पल होते हैं जब रात के गहरे सन्नाटे गहरी नींद में सोते हैं
5- चंद्रमा की चांदनी से भी नरम और उषा के भाल से ज्यादा गरम, है नहीं कुछ और केवल प्यार है
6. याद फिर आयी आंख भर आयी
7. तुम जाने तुमको ग़ैर से जो रस्मो-राह हो
8. ये आवारा रातें.. वग़ैरह
और इस फ़ेहरिस्त का पहला ही गीत हमने आज के लिए चुना है। इस वेबसाइट के मुताबिक़ गाना सन 1974 में रिकॉर्ड किया गया था। गीतकार अंजान और संगीतकार भी एक गीतकार ही हैं। प्रेम धवन।
Song: Sawan ki rimjhim mein thirak thirak nache re
Singer: Manna dey
Lyrics: Anjaan
Music: Prem Dhavan
Year: 1974
Duration: 4 32
ये रहे इस गाने के बोल:
खुले गगन पे झुक गयी, किसी की सुरमई पलक
किसी की लट बिखर गयी, घिरी घटा जहां तलक
धुली हवा में घुल गयी, किसी की सांस की महक
किसी का प्यार आज बूंद-बूंद से गया छलक
सावन की रिमझिम में थिरक-थिरक नाचे रे मयूर पंखी रे सपने
कजरारी पलक झुकी रे, घिर गयी घटायें
चूडियां बजाने लगीं रे, सावनी हवाएं
माथे की बिंदिया, जो घुंघटा से झांके
चमके बिजुरिया, कहीं झिलमिलाके
बूंदों के घुंघरू झनका के रे।
सावन की रिमझिम में।।
छलक गयीं नीलगगन से रसभरी फुहारें
महक उठीं तेरे बदन सी भीगती बहारें
रिमझिम फुहारों के रस में नहाके
सिमटी है फिर मेरी बांहों में आके
सपनों की दुलहन शर्मा के हो।
सावन की रिमझिम में।।
रेडियोवाणी पर मन्ना दा के ग़ैर-फिल्मी गीतों का सिलसिला जारी रहेगा।
अगर आप चाहते हैं कि 'रेडियोवाणी' की पोस्ट्स आपको नियमित रूप से अपने इनबॉक्स में मिलें, तो दाहिनी तरफ 'रेडियोवाणी की नियमित खुराक' वाले बॉक्स में अपना ईमेल एड्रेस भरें और इनबॉक्स में जाकर वेरीफाई करें।
अद्भुत था वो अहसास। फिर एक बार मन्ना दा का 'लाइव कंसर्ट' देखा। मुंबई में ही। जहां कविता कृष्णमूर्ति उनके साथ गा रही थीं। मन्ना दा तकरीबन ढाई घंटे तक लोगों की फ़रमाईशों को पूरा करते रहे थे। बहराहल...मन्ना दा अब हमारे बीच नहीं हैं। उनके लिए क़सीदे पढ़े जाने का दौर भी ख़त्म होने को है। और लोग अपने काम-धंधों में लग रहे हैं। पर शुभ्रा जी (मशहूर समाचार-वाचिका शुभ्रा शर्मा, जिन्हें हम जिज्जी कहते हैं) ने फ़ेसबुक पर कितनी बढिया बात लिखी है--
'मैं नहीं मानती कि मन्ना युग का अंत हो गया है, हो ही नहीं सकता। उनके गीतों की धारा ऐसे ही अविरल, अजस्र बहती रहेगी ....
संगीत मन को पंख लगाये, गीतों से रिमझिम रस बरसाये ....
इतना रस बहाने वाली सरिता सूख कैसे सकती है, बस सरस्वती की तरह आँखों से ओझल हो गयी है। लेकिन संगम पर सरस्वती आज भी पूजी जाती है कि नहीं?'
इसे ही हमारे मन की बात भी समझा जाए। हम ये कहेंगे कि मन्ना दा ने देह-त्याग किया है। पर वे कहीं नहीं गए। वे तो 'रेडियोवाणी' पर भी हैं। मन्ना दा को नमन करते हुए आज से एक श्रृंखला रेडियोवाणी पर शुरू की जा रही है। सोचा यही है कि इस श्रृंखला में उनके गाए ग़ैर-फिल्मी गाने सुनवायेंगे। पर अभी से बताये दे रहे हैं कि आगे चलकर मुमकिन है हमारा मन बदल जाए और हम उनके कुछ कम सुने गीत भी यहां प्रस्तुत करें। तो शुरूआत करते हैं उस गाने से...जिसे सुनकर हम मदहोश ही हो गये थे। आपको बतायें कि इंटरनेट-विहीन उस ज़माने में गानों के लिए कैसेट खोजने पड़ते थे। और जाने कितनी मेहनत के बाद हमें मिला था वो दो कैसेट अलबम--'मन्ना डे: हिज़ ग्रेटेस्ट नॉन फिल्म हिट्स'। ये तस्वीर नेट से हासिल की गयी है पर है उसी अलबम की। उन दिनों ये हमारे संग्रह का अनमोल नगीना होता था। आज भी है। इस अलबम में जो अनमोल गाने थे उनकी फेहरिस्त आपको दिखला दी जाए।
1- सावन की रिमझिम में थिरक थिरक नाचे रे मयूरपंखी रे सपने
2- नथली से टूटा मोती रे
3- शाम हो जाम हो सुबू भी हो
4- कुछ ऐसे भी पल होते हैं जब रात के गहरे सन्नाटे गहरी नींद में सोते हैं
5- चंद्रमा की चांदनी से भी नरम और उषा के भाल से ज्यादा गरम, है नहीं कुछ और केवल प्यार है
6. याद फिर आयी आंख भर आयी
7. तुम जाने तुमको ग़ैर से जो रस्मो-राह हो
8. ये आवारा रातें.. वग़ैरह
और इस फ़ेहरिस्त का पहला ही गीत हमने आज के लिए चुना है। इस वेबसाइट के मुताबिक़ गाना सन 1974 में रिकॉर्ड किया गया था। गीतकार अंजान और संगीतकार भी एक गीतकार ही हैं। प्रेम धवन।
Song: Sawan ki rimjhim mein thirak thirak nache re
Singer: Manna dey
Lyrics: Anjaan
Music: Prem Dhavan
Year: 1974
Duration: 4 32
ये रहे इस गाने के बोल:
खुले गगन पे झुक गयी, किसी की सुरमई पलक
किसी की लट बिखर गयी, घिरी घटा जहां तलक
धुली हवा में घुल गयी, किसी की सांस की महक
किसी का प्यार आज बूंद-बूंद से गया छलक
सावन की रिमझिम में थिरक-थिरक नाचे रे मयूर पंखी रे सपने
कजरारी पलक झुकी रे, घिर गयी घटायें
चूडियां बजाने लगीं रे, सावनी हवाएं
माथे की बिंदिया, जो घुंघटा से झांके
चमके बिजुरिया, कहीं झिलमिलाके
बूंदों के घुंघरू झनका के रे।
सावन की रिमझिम में।।
छलक गयीं नीलगगन से रसभरी फुहारें
महक उठीं तेरे बदन सी भीगती बहारें
रिमझिम फुहारों के रस में नहाके
सिमटी है फिर मेरी बांहों में आके
सपनों की दुलहन शर्मा के हो।
सावन की रिमझिम में।।
रेडियोवाणी पर मन्ना दा के ग़ैर-फिल्मी गीतों का सिलसिला जारी रहेगा।
अगर आप चाहते हैं कि 'रेडियोवाणी' की पोस्ट्स आपको नियमित रूप से अपने इनबॉक्स में मिलें, तो दाहिनी तरफ 'रेडियोवाणी की नियमित खुराक' वाले बॉक्स में अपना ईमेल एड्रेस भरें और इनबॉक्स में जाकर वेरीफाई करें।
5 comments:
एक महाअध्याय की समाप्ति हो गयी, अनसुने गीत भी उतने ही आकर्षित करते हैं।
इंतज़ार रहेगा गीतों का . शुभ्रा जी ने बहुत सच्ची बात कही .
अतिसुन्दर युनुस जी,
बहुत बहुत धन्यवाद,
हम इसे अपने कंप्यूटर पर डाउनलोड करना चाहते हैं
क्या आप हमे इसका तरीका बता सकते हैं
श्याम जी
आपकी इस प्रस्तुति को आज की गणेश शंकर विद्यार्थी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।
वैसे तो इस फ़ेरहिस्त के सभी गाने मधुर हैं ..मगर ..कुछ ऐसे भी पल होते हैं ...एक विलक्षण रचना है ...मन्ना दा के बारे में कुछ भी कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा ही होगा..सचमुच एक महान कलाकार ..
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