संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Wednesday, January 9, 2013

नये घड़े के पानी से जब मीठी ख़ुश्‍बू आती है...चंदन दास

एक वक्‍त होता था ग़ज़लें सुनने का। बिल्‍कुल वैसे ही जैसे एक वक्त होता था दादी-नानी की कहानियों का, रविवार को दूरदर्शन पर फिल्‍म के इंतज़ार का...या एक वक्‍त होता था चंपक-नंदन, पराग और प्रेमचंद का। सारिका और धर्मयुग का। मीडियम-वेव पर विविध-भारती और शॉर्टवेव पर रेडियो सीलोन का। बिल्‍कुल वही...वही वक्‍त होता था नये घड़े के ठंडे पानी का।

ग़ज़लों के वक्‍त और नये घड़े के ठंडे पानी का जिक्र...हमें गुज़रे वक्‍त की एक नायाब चीज़ की तरफ ले जाता है। वो वक्‍त जिसका हम जिक्र कर रहे हैं, वो तमाम मशहूर कलाकारों के साथ चंदन दास का भी वक्‍त होता था। Chandan Dasऔर उन्‍हें दूरदर्शन पर गाते देखकर जो सुकून मिलता था, वो यू-ट्यूब से चुराने से नहीं मिलता। तब चंदन दास गाते थे--'खुश्‍बू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में/ मांगा था जिसे हमने दिन-रात दुआओं में' (बशीर बद्र).... या फिर 'खेलने के वास्‍ते अब दिल किसी का चाहिए/ उम्र ऐसी है कि तुमको इक खिलौना चाहिए' (मुराद लखनवी)...और 'ना जी भरके देखा, ना कुछ बात की/ बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की' (बशीर बद्र)। अहा..क्‍या वक्‍त था वो। चलिए उसी नॉस्‍टेलजिया के नाम चंदन दास की गायी ये ग़ज़ल।

ghazal: naye ghade ke paani se
singer: chandan das
lyrics: naseem ajmeri
album: Aitbaar-E- Wafaa
duration: 7:10






कहता है कौन मेरी तबियत उदास है
समझेगा कौन उसकी जुदाई भी रास है
आंखों में शक्‍ल सांसों में ज़ुल्फों की है महक
वो दूर जा चुका है मगर मेरे पास है

नये घड़े के पानी से जब मीठी खुश्‍बू आती है
यूं लगता है जैसे मुझको तेरी खुश्‍बू आती है
कितने ही युग बीत गये हैं उसको अपने गांव गये
आज भी मेरे कमरे से, मेंहदी की खुश्‍बू आती है
लोग जिसे पत्‍थर कहते हैं, मैंने उसको फूल कहा
जिसने जैसा उसको वैसी खुश्‍बू आती है
वो बचपन, वो सावन के दिन, वो झूले, वो आम के पेड़
भूली-बिसरी उन यादों की आज भी खुश्‍बू आती है
बारिश का मौसम जब आये, दिल में आग लगाये 'नसीम'
मुझको हर भीगे झोंके से, उसकी खुश्‍बू आती है
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3 comments:

Rekha January 11, 2013 at 2:23 AM  

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प्रवीण पाण्डेय January 11, 2013 at 4:42 PM  

आप ऐसे ही नायाब ग़ज़ल निकाल कर लाते हैं, आभार

Unknown February 28, 2013 at 4:38 PM  

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