संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Saturday, December 29, 2012

मैं थी..मैं हूं...मैं रहूंगी....फिल्‍म अस्तित्‍व

अफसोस का रंग काला नहीं होता--अफसोस का रंग लाल होता है। लाल गुस्‍से का भी रंग होता है। और क्रांति का भी। पिछले तकरीबन दो हफ्तों से वो अस्‍पताल में संघर्ष कर रही थी। वो जिसे रौंदा गया, जिसकी धज्जियां उड़ाने की कोशिश की गयी। और फिर उसके भीतर की रोशनी बुझ गयी।

ये मोमबत्तियां जाने का वक्‍त नहीं है। मशालें जलाने का वक्‍त है। 
हम सब शर्मिंदा हैं।




ऐसे पलों में अमूमन फिल्‍मी-गीत सहारा नहीं देते। वो अभिव्‍यक्ति का माध्‍यम नहीं बनते। पर 220px-TabuSDVD124
साल 2000 में फिल्‍म 'अस्तित्‍व' के लिए श्रीरंग गोडबोले ने एक ऐसा गीत रचा था--जो आज और आज के बाद इस स्‍मृति के कौंध जाने पर हर बार याद आयेगा।

राष्‍ट्रीय शर्म के इस दिन रेडियोवाणी पर ये गीत सुनिए।

song: main thee main hoon main rahoongi
singer: kavita krishnamurthi
lyrics: shrirang godbole
music: rahul ranade
duration: 4:28






ना कटूंगी, ना जलूंगी, ना मिटूंगी, ना मरूंगी
मैं थी, मैं हूं, मैं रहूंगी
जब तक दरिया में है पानी और आसमां नीला है
जब तक सूरज तेज़ से चमके और अंधेरा काला है
तब तक इस जहां का बनके प्राण रहूंगी
मैं थी मैं हूं रहूंगी।।

जिस पे टूट पड़ी सदियों से अरबों लहरें साग़र की
मैं वो अविचल-शिला हूं हर आफत है जिसने झेली
जीने की अविनाशी-चाह अंश बनूंगी 
मैं थी, मैं हूं, मैं रहूंगी


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4 comments:

प्रवीण पाण्डेय December 29, 2012 at 8:53 AM  

सदा जियेगी दामिनी की जिजीविषा..

Anonymous,  December 30, 2012 at 8:47 PM  

"भई, बेशर्म हो तो हमारे नेताओं जैसा हो,
नहीं तो ना हो !"

Unknown January 2, 2013 at 5:52 PM  

Haal ki awastha par Satik geet...

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