संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Monday, April 9, 2012

'तेरे मंदिर का हूं दीपक' : रेडियोवाणी की पांचवीं सालगिरह पर विशेष






संगीत हमारी दुनिया का एक ज़रूरी हिस्‍सा है। और उसकी एक अंतर्धारा लगातार चलती रहती है। संगीत के प्रति इसी जुनून ने 'रेडियोवाणी' का आग़ाज़ करवाया था। आज जब रेडियोवाणी की पांचवीं सालगिरह है तो हैरत होती है कि ये सफर कितनी तेज़ी-से कट गया।
'रेडियोवाणी' के ज़रिये नए दोस्‍त, नए पाठक और सफर के नए साथी मिले हैं। एक जैसी रूचियों वाले लोगों का एक कारवां तैयार हुआ है। डिजिटल दुनिया के हमारी आत्‍मीय दुनिया में हस्‍तक्षेप और उसे बिगाड़ने के बारे में हम तमाम बुरी बातें सुनते रहे हैं। पर हमारी डिजिटल दुनिया ने हमारी आत्‍मीय और असली दुनिया को अब तक तो संवारा ही है और आगे भी संवारती रहेगी।
ये सच है कि रेडियोवाणी की पोस्‍टें पिछले कुछ वर्षों में घटी हैं। जब जनवरी 2012 आया था तो सोचा था कि सप्‍ताह में एक पोस्‍ट या मोटे तौर पर महीने में तीन-चार पोस्‍टों का औसत बनाकर फिर से रेडियोवाणी को गति दी जायेगी। पर पहली तिमाही बीतते बीतते हम उसे निभा नहीं पा रहे हैं। और इसके अनेक कारण हैं। 
पर ये वादा तो कर ही सकते हैं कि रेडियोवाणी पर हम लगातार बेहतर संगीत से आपको रू-ब-रू करवाते रहेंगे।

पांचवीं सालगिरह पर जो गीत चुना गया है--वो हमारे अंतर्मन को रोशनी से भर देता है।pankaj-at-late-601


पंकज मल्लिक का स्‍वर हमारे लिए ज़रूरी स्‍वरों में से एक है। आज के युग की सबसे बड़ी समस्‍या ये हो गयी है कि जहां नये-जवान एफ.एम.चैनलों के लिए पुराने संगीत का मतलब है राहुल देव बर्मन या बहुत हो गया तो शंकर जयकिशन के ज़माने का संगीत। वहीं दूसरी तरफ सचमुच लगभग सभी रेडियो-चैनल विन्‍टेज संगीत के प्रति बेरूख़ी अपना रहे हैं। हमारी घबड़ाहट इस बार तो लेकर है कि क्‍या आने वाले दिनों में..जब विन्‍टेज संगीत की दीवानी पीढी समय के चक्र में कहीं बिला जायेगी...तब...क्‍या विन्‍टेज म्यूजिक भी भुला दिया जायेगा। या फिर नई पीढ़ी में से कुछेक बच्‍चे उठेंगे--जो इस संगीत को गले लगायेंगे।

लगातार टेक्‍नो होती इस दुनिया में चंद आत्‍मीय-क्षण बटोरने के प्रयास रेडियोवाणी पर जारी रहेंगे। इस सफर पर अब तक साथ चले पाठकों, श्रोताओं, मित्रों, सहयोगियों और साथियों का शुक्रिया।

चलिए पंकज मलिक के स्‍वर में सुनें ये गीत

song: tere mandir ka hoon deepak
lyrics: pandit madhur
music: pankaj mallik
Recorded in 1940
duration 3 19








तेरे मंदिर का हूं दीपक, जल रहा
आग जीवन में मैं भर कर जल रहा ।
क्‍या तू मेरे दर्द से अनजान है
तेरी मेरी क्‍या नई पहचान है
जो बिना पानी बताशा डल रहा
आग जीवन में मैं भरकर जल रहा ।
इक झलक मुझ को दिखा दे सांवरे, सांवरे
मुझ को ले चल तू कदम्‍ब की छांह रे, सांवरे
ओ रे छलिया क्‍यों मुझे तू छल रहा
आग जीवन में मैं भरकर जल रहा
मैं तो किस्‍मत बांसुरी की बांचता
एक धुन पे सौ तरह से नाचता
आंख से जमुना का पानी ढल रहा ।।


लता मंगेशकर ने इस गाने को अपने अलबम श्रद्धांजलि में शामिल किया था।
आईये ये संस्‍करण सुनें।




पंकज मल्लिक का रेडियो कलकत्‍ता से गहरा जुड़ाव रहा था। उनके बारे में कुछ और जानकारियों, तस्‍वीरों, documntory और बाक़ी सामग्री के लिए रेडियोवाणी के दूसरे पन्‍ने पर यहां आएं।

















चलते-चलते इसी भी दर्ज कर लिया जाए...कि हम रेडियोवाणी की सालगिरह को भूल गये थे।  सचमुच।  कल दोपहर के बाद से लगभग धक्‍का देकर जिन्‍होंने हमें जगाया और बताया...उनका हृदय से आभार।

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8 comments:

Ganesh S Plaiwal April 9, 2012 at 9:29 AM  

नमस्कार युनूस जी, मेरा नाम गणेश है। सबसे पहले तो आपको और सभी पाठकों को बधाई, रेडियो वाणी ने ब्लॉगिस्तान में अपने पाँच वर्ष सफलतापूर्वक पूरे कर लिए हैं। मैं एक विद्यार्थी हूँ और विविध भारती का एक श्रोता भी रहा हूँ। आज से लगभग चार साल पहले जब मैं 10 वीं कक्षा में पढ़ता था तो नियमित रूप से विविध भारती के सांयकालीन प्रोग्राम सुना करता था, लेकिन फिर समय ने पलटी खाई और सुबह से शाम तक व्यस्त रहने के कारण रेडियो से दूरियाँ बढ़ती चली गईं। जयमाला, जिज्ञासा और वह प्रोग्राम जिसमें लिसनर्स के पत्रों का जवाब दिया जाता था, मुझे बेहद प्रिय थे। आपकी और मोदी जी की आवाज़ का मैं फ़ैन था, सायानी जी उस समय रेडियो पर नहीं आते थे, हालांकि मुझे याद है एक बार नववर्ष के अवसर पर उन्होने विशेष प्रोग्राम किया था। पुरानी बातों को छोड़कर वर्तमान पर आता हूँ।
मैंने ब्लॉगिस्तान में अभी हाल ही में पदार्पण किया है और इसी कारण रेडियो वाणी का पाठक भी अभी बन पाया हूँ। विविध भारती से भले ही दूर हूँ, परंतु आपसे निकटता के कारण इसका आभास नहीं हो रहा है। काफी समय से सोच रहा था कमेन्ट करने कि लेकिन आज हिम्मत कर पाया हूँ, यदि मेरी बातें थोड़ी अलग दिशा में जाती हुई प्रतीत हो तो क्षमा करें, अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर सका।

प्रवीण पाण्डेय April 9, 2012 at 9:05 PM  

पाँचवी सालगिरह की ढेरों बधाईयाँ, महीने में जितनी भी पोस्टें आयें, पढ़ने की लालसा सदा ही बनी रहती हैं।

उन्मुक्त April 10, 2012 at 7:20 PM  

पांचवीं सालगिरह पर बधाई।

Ashish April 15, 2012 at 12:24 AM  

Paanchvi varshgaanth mubarak ho.
sachmuch vintage music ke liye uthaya gaya prashn sochne layak hai.
Halanki main maanta hoon ki ab janata thodi thodi RD sahab ke aage bhi soch rahi hai. You tube main ab bahutere purane music videos mil jaate hain jo ki kuch waqt pehle nahi they.

"डाक साब",  April 16, 2012 at 1:59 AM  

"चलते-चलते इसी भी दर्ज कर लिया जाए...कि हम रेडियोवाणी की सालगिरह को भूल गये थे। सचमुच। कल दोपहर के बाद से लगभग धक्‍का देकर जिन्‍होंने हमें जगाया और बताया...उनका हृदय से आभार।" - यूनुस खान
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भई, भुलक्कड़ हो तो यूनुस खान जी जैसा हो,
नहीं तो ना हो !
-"डाक साब"

Uday Singh Tundele May 1, 2012 at 8:20 PM  

युनुस जी, पंकज मलिक के 'तेरे मंदिर का हूँ दीपक , जल रहा ...' के बोल ध्यानाकर्षण कराने पर भी ठीक नहीं हुए हैं ... क्या बात है ...क्या मैं गलत हूँ....?

Smart Indian May 6, 2012 at 7:34 AM  

पाँचवीं वर्षगांठ की बधाई!

hindi shayari June 11, 2012 at 10:09 AM  

पांचवीं सालगिरह पर बधाई।
sangeet ke baren me kahana chahunga ki ek shahitykar ne kaha hai eek din bina sangeet ke ek saal barish ke jaisa hai .

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