संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Tuesday, May 1, 2012

'क्‍यूं प्‍याला छलकता है': मन्‍ना दा के जन्‍मदिन पर विशेष























आज हमारे प्रिय मन्‍ना दा का जन्‍मदिन है। मज़दूर दिवस के दिन सन 1919 में पैदा हुए थे वो। हमने प्रबोधचंद्र मन्‍ना डे की आवाज़ को हाइ-स्‍कूल के अन्‍वेषक दिनों में पहचाना था। ये दूरदर्शन और विविध-भारती से सराबोर दिन हुआ करते थे। दूरदर्शन ने दोपहर का प्रसारण शुरू किया था और तब ब्‍लैक-एंड-व्‍हाइट फिल्‍मों के गानों का एक कार्यक्रम दिखाया जाता था। और उसमें अकसर मन्ना दा के ऐसे गाने आते जो पहले हमने सुने नहीं होते थे।




कैसेट्स के उस दौर में मन्‍नादा के गाने खोज-खोजकर सुने। और धीरे-धीरे मन्‍ना दा की आवाज़ हमारी आवाज़ बन गयी। मन्‍ना दा हमारे पूज्‍य बन गये। मन्‍ना दा के बारे में हर जानकारी हमें आनंद देती। दिलचस्‍प बात ये है कि विविध-भारती में आने के बाद एक दिन जब महेंद्र मोदी जी ने कहा, मन्‍ना दा के घर चलोगे। मना करने का सवाल ही कहां उठता था। उन्‍हें किसी शो के सिलसिले में मुलाक़ात करनी थी। तब पहली बार मन्‍ना दा को देखा और हम अवाक रह गये। मुंह से शब्‍द ना फूटे। बस देखते रह गये।

  



मन्‍ना दा के ग़ैर-फिल्‍मी गीतों का एक डबल-कैसेट अलबम एच.एम.वी. ने रिलीज़ किया था। शायद नाम ‘His greatest Non-film hits”. हमारी पॉकेट-मनी इतनी तो थी कि उसे इसaf महंगे अलबम पर ख़ाली किया जा सके। आज डिजिटल युग में वो सभी गीत एम.पी.3 के रूप में उपलब्‍ध हैं। पर उन
कैसेट्स को देखकर हम 'छपाक'' से पुराने दिनों में छलांग लगा लेते हैं। अगर आप मन्‍ना दा के भक्‍त हैं तो ये अलबम नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। इस अलबम की रचनाओं की एक फेहरिस्‍त लगाकर मुझे उतना ही आनंद मिल रहा है, जितना इन गानों को अब तक अनगिनत बार सुनकर मिला है।


1. मेरी भी एक मुमताज थी
2. कुछ ऐसे भी पल होते हैं


  


3. सावन की रिमझिम में
थिरक-थिरक नाचे रे
4. ओ रंगरेजवा रंग दे ऐसी चुनरिया
5. चंद्रमा की चांदनी से भी नरम
6. चांद होगा ज़मीं की बात करो
7. शाम हो जाम हो सुबू भी हो


8. याद फिर आई
9. ये आवारा रातें
10. पल भर की पहचान आपसे

11. हैरा हूं ऐ सनम

12. दर्द उठा फिर हल्‍का हल्‍का


13. नथली से टूटा मोती रे

14. तुम जानो तुमको ग़ैर से


15. नज़ारों में हो तुम वगैरह।


16. पल भर की पहचान आपसे

17. रूक जा के सुबह तक ना हो


18. तुम्‍हारी जफाएं हमारी वफाएं

19. दो पंछी बेचैन

20. मुझे समझाने मेरे पास ना आए कोई


अफसोस कि HMV ने इस अलबम को अपने सी.डी. रूप में छोटा करके रिलीज़ किया है। यानी ये सारे गाने उसका हिस्‍सा नहीं हैं। लगे हाथों ये रहा लिंक सारेगामा से इसे हासिल करने का। इसके अलावा मन्‍ना दा की गाई बच्‍चन जी की 'मधुशाला' का कैसेट बचपन के उन दिनों में सबसे पहले स्‍कूली-दोस्‍त श्रवण ने दिया था। मन्‍ना दा की रचनाओं का संग्रह उसके बाद से लगातार बढ़ता गया है। मन्‍ना दा को एक बार मुंबई में लाइव-कंसर्ट में सुनने का अवसर मिला। सबसे ज्‍यादा खु़शी की बात ये थी कि उन्‍होंने मेरी एक फ़रमाईश भी पूरी की। मन्‍ना दा के चाहने वालों को उनकी आत्‍मकथा memories come alive ज़रूर पढ़नी चाहिए। इसका एक अंश 'यहां' पढ़ा जा सकता है। ये पुस्‍तक हिंदी में भी उपलब्‍ध है। नाम है--'यादें जी उठीं'। इसे पेंग्विन ने छापा है।

मन्‍ना दा अब बैंगलोर में हैं और कभी-कभी उनसे बात होती है। हर बार फोन करते हुए संकोच होता है। लगता है पता नहीं आराम कर रहे होंगे। बात करने का मन होगा या नहीं। पर फिर भी मन मानता नहीं। मन्‍ना दा दीर्घायु हों। यही शुभकामनाएं।




मन्‍ना दा के जन्‍मदिन पर फिल्‍म 'फिर  भी' का ये गीत।


song: kyon pyala chalakta hai
singer: manna dey
lyrics: Pt. narendra sharma
music: raghunath seth
Film: Phir Bhi  (1971)
Duration: 3 04



क्‍यूं प्‍याला छलकता है क्‍यूं दीपक जलता है दोनों के मन में कहीं अनहोनी विकलता है ।।
पत्‍थर में एक फूल खिला, दिल को एक ख्‍वाब मिला
क्‍यूं टूट गये दोनों, इस का ना जवाब मिला
दिल नींद से उठ उठकर क्‍यूं आंखें मलता है ।।
हैं राख की रेखाएं लिखती हैं चिंगारी
हैं कहते मौत जिसे जीने की तैयारी
जीवन फिर भी जीवन जीने को मचलता है ।।
क्‍यूं प्‍याला छलकता है ।।

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7 comments:

प्रवीण पाण्डेय May 1, 2012 at 9:15 AM  

बंगलोर में हैं पर अब तक दर्शन नहीं कर पाये हैं, आपका आलेख पढ़ इच्छा बढ़ गयी।

Yunus Khan May 1, 2012 at 9:31 AM  

प्रवीण जी नंबर भेजूं क्‍या मन्‍ना दा का।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' May 1, 2012 at 10:04 PM  

इस गीत को सुनवाने ले लिये बहुत बहुत बधाई...

Anonymous,  May 2, 2012 at 10:45 AM  

युनुसजी शुक्रिया, मन्नादा के गाने बहोत अच्छे लगते है...इस बार "क्यु प्याला छलकता है.." को दूसरी बार नए अंदाज़ में सुनके बहोत अच्चा लगा..करीब चार साल पहले इसी "रेडिओवाणी" पर यही गाना फास्ट रिधम में सुना था...दोनो गाने में मन्नादा की क्लास का पता चलता है...युनुसजी,ऐसे ही गाने सुनवाते रहेना .. -Malay,Bharuch,Gujarat.

Ashish May 5, 2012 at 11:51 PM  

Yunus ji - kaafi achchi post hai.
:)

Mayur Malhar May 24, 2012 at 10:23 PM  

मन्ना डे का जवाब नहीं. शानदार पोस्ट, कुछ दुर्लभ गानों के जानकारी देने लिए धन्यवाद्

hindi shayari June 11, 2012 at 10:02 AM  

यूनुस भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया , जो आप ने इस महान कवी के बारे में लिखा

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