संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Saturday, May 21, 2011

बड़ी धीरे जली रैना: फिल्‍म इश्किया। रेखा भारद्वाज को नेशनल अवॉर्ड के बहाने








58 वें राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कारों की घोषणा हुई तो इस बार ज़्यादा सुर्खियां नहीं आईं।


हमारी बेक़रारी हमेशा संगीत से जुड़े पुरस्‍कारों में ज्यादा होती है। अफ़सोस कि इस बार सर्वश्रेष्‍ठ गीतकार का पुरस्‍कार किसी हिंदी गीतकार को नहीं मिला। ना ही सर्वश्रेष्‍ठ गायक का पुरस्‍कार हासिल हुआ। सर्वश्रेष्‍ठ गीतकार का पुरस्‍कार एक तमिल गीतकार की झोली में गया। जबकि सर्वश्रेष्‍ठ गायक बने सुरेश वाडकर।




जाने हमें क्‍यों लगा कि लोगों ने इस बात पर ज़्यादा ग़ौर नहीं किया कि इस 50272_12220116194_164_n बार सर्वश्रेष्‍ठ गायिका का अवॉर्ड रेखा भारद्वाज को मिला फिल्‍म 'इश्किया' के एक गाने के लिए। रेखा हिंदी फिल्‍म संगीत संसार की एक विलक्षण गायिका हैं। पहली बरसात के बाद उठने वाली गीली मिट्टी की महक है उनकी आवाज़ में। उनके गानों का हमने एक अलग अलबम कंपाइल किया है अपने सुनने के लिए। ये गाना पिछले कई महीनों से अमूमन कहीं आते-जाते सुनते आए हैं।

आज रेडियोवाणी के श्रोताओं के लिए ये गाना 'बीवी और मकान' फिल्‍म के गानों पर चल रही श्रृंखला के बीच पेश किया जा रहा है। विशाल भारद्वाज ने फिल्‍म  'इश्कि़या' में कमाल का संगीत‍ दिया था। कहीं-कहीं वे राहुल देव बर्मन की परंपरा के संगीतकार लगते हैं। पर पूरे नहीं। उनकी अपनी अलग धारा है। 'बड़ी धीरे जली रैना' असल में राग ललित पर आधारित रचना है। अंतरों में विशाल ने सितार का इस्‍तेमाल किया है। जो आजकल के फिल्‍मी-गानों में सुनाई नहीं देता। बड़ा सुकून मिलता है इस गाने के सितार को सुनकर। हम गुलज़ार के शैदाई हैं। गाने का मुखड़ा ही दिल चुरा कर ले जाता है। और नैना 'धुंआं धुंआ' हो जाते हैं।

कुल मिलाकर गाना देर तक और दूर तक साथ रहता है।
song: badi dheere jali raina
singer:rekha bharadwaj
lyrics:gulzar
music:vishal



बड़ी धीरे जली रैना, धुआँ-धुआँ नैना
रातों से हौले-हौले खोली है किनारी
अंखियों ने तागा-तागा भोर उतारी
खाली अंखियों से धुआँ जाए ना
बड़ी धीरे जली रैना, धुआँ-धुआँ नैना।।

पलकों पे सपनों की अग्नि उठाये
हमने दो अंखियों के आलने जलाये
दर्द ने कभी लोरियाँ सुनायीं तो
दर्द ने कभी नींद से जगाया रे
बैरी अंखियों से न जाए, धुआँ जाए ना
बड़ी धीरे जली रैना, धुआँ-धुआँ नैना।।


जलते चरागों में नींद सुखाये
फूंकों से हमने सब तारे बुझाए
जाने क्या खोली रात की पिटारी से
खोली तो खुली भोर की किनारी रे
सूजी अंखियों से ना जाए धुआँ जाए ना
बड़ी धीरे जली रैना, धुआँ-धुआँ नैना।।

रेखा भारद्वाज के कुछ और बेमिसाल गानों की फ़ेहरिस्‍त।
1. ससुराल गेंदा फूल-दिल्‍ली 6
2. नमक इश्‍क़ का- ओंकारा
3. राणाजी- गुलाल
4. रांझा रांझा-रावण




5. तेरे इश्‍क़ में- इश्‍क़ा इश्‍क़ा (अलबम)
6. येशू-सात ख़ून माफ़

-----

अगर आप चाहते  हैं कि 'रेडियोवाणी' की पोस्ट्स आपको नियमित रूप से अपने इनबॉक्स में मिलें, तो दाहिनी तरफ 'रेडियोवाणी की नियमित खुराक' वाले बॉक्स में अपना ईमेल एड्रेस भरें और इनबॉक्स में जाकर वेरीफाई करें।

14 comments:

Pratibha Katiyar May 21, 2011 at 3:06 PM  

Rekha Bhardwaj ki aawaj men 'tere ishq me' sunte hue kai baar to laga ham kahin gum ho gaye...badi dheere jali raina bhi kamaal ka hai...

sanjay patel May 21, 2011 at 4:51 PM  

युनूस भाई,वाक़ई बड़ा विलक्षण गीत है. ज़िन्दगी की रफ़्तार जैसी हो चली है उसमें ऐसे गीतों को सुनने की तरबियत गुम सी है. निर्विवाद रूप से यह विशाल भारद्वाज का ही कलेजा है कि वे रेखाजी और गुलज़ार साहब के साथ एक अनोखी कैमिस्ट्री को इस गीत के सुरीलेपन में ढाल चुके हैं. इन रचनाओं को सुनकर यह अफ़सोस भी सालता है कि हमारे हिन्दी पट्टी की गीतिधारा में इन अनमोल रचनाओं का मूल्यांकन कब होगा.

रेखाजी के स्वर का नैज़ल एक करामाती आघात है जो उनके गायन को विशिष्ट बनाता है. आलाप के नैपथ्य में तार शहनाई ( जो अब कितनी सुनाई देगी कह नहीं सकता ) और मुखड़े-अंतरे को बाँटता इंटरल्यूड इलेक्ट्रिक गिटार का आना ग़ज़ब का है. धूप में तप रहे मालवे में ये गीत रूहानी ठंडक बख्श गया है.

अभिषेक मिश्र May 21, 2011 at 9:06 PM  

हिंदी सिनेमा को ज्यादा हाइलाइट नहीं करने का कारण शायद ज्यादा ध्यान नहीं खिंच पाया यह समारोह. आभार इस गीत को हमसे साझा करने का.

राजेश उत्‍साही May 22, 2011 at 12:04 AM  

इस मौके पर यह याद करना भी अच्‍छा होगा कि रेखा भारद्वाज को ' गेंदा फूल' के लिए 2009 का फिल्‍मफेयर अवार्ड मिला था। निश्‍चित ही राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार उनकी आवाज में और खनक पैदा करेगा।
*
युनूस भाई हिन्‍दी गीत को पुरस्‍कार नहीं मिला, इस पर अफसोस की बात कुछ हजम नहीं हुई। इससे कुछ और ही ध्‍वनि निकलती है।

Anonymous,  May 22, 2011 at 8:47 AM  

yunus bhai,
ishquia me ek gaana aur hai, ab mujhe koi intezar kaha'. kabhi suniyega...bahut afsosh hai ki aise gaano ko log highlight hi nahi karte....mai gulzar sahab ka die hard fan hu. gullu bhai ka shukriya..aise gaane likhane ke liye aise chand logo ke karan hi gaane aaj bhi sunane laayak hote hai

sanjay May 22, 2011 at 8:47 AM  

yunus bhai,
ishquia me ek gaana aur hai, ab mujhe koi intezar kaha'. kabhi suniyega...bahut afsosh hai ki aise gaano ko log highlight hi nahi karte....mai gulzar sahab ka die hard fan hu. gullu bhai ka shukriya..aise gaane likhane ke liye aise chand logo ke karan hi gaane aaj bhi sunane laayak hote hai

daanish May 22, 2011 at 4:06 PM  

रेखा भारद्वाज का गाया हुआ
एक अच्छा गीत सुनने को मिला आज...वाह !
विशाल द्वारा रची गयी धुन
गीत में कहीं भी, किसी भी तरह की
गहराई के कम होने को
महसूस नहीं होने देती
और interludes तो मानो गीत की जान ही हैं... !!
आभार .

Mayur Malhar May 22, 2011 at 7:40 PM  

रेखाजी की आवाज़ में कशिश है. एकदम खालिस देसी आवाज़. कोई लाग लपेट नहीं. घुंघुरू की तरह

Satish Chandra Satyarthi May 24, 2011 at 5:54 PM  

इसमें कोई शक नहीं कि रेखा जि एक बेहतरीन गायिका हैं.. उनमें बड़ी संभावनाएं छुपी हैं..

प्रवीण पाण्डेय May 24, 2011 at 7:40 PM  

यह गीत एकान्त में बैठकर सुनने में बहुत अच्छा लगता है।

Alpana Verma May 25, 2011 at 5:27 PM  

फिल्म में यह गाना नहीं देखा .
पहली बार आज ही सुना.अच्छा लगा. गीत के बोल भी यहीं मिल गए.आभार.

डॉ .अनुराग May 27, 2011 at 11:13 AM  

मोहल्ला ओर दूसरी जगह इन अवार्डो पर बड़ी बहसे हुई पर सन्दर्भ दूसरा था ...वहां मैंने यही कहा था ..दूसरे कई पुरुस्कारों को नज़रन्दाज न कीजिये ...उसमे दो पुरूस्कार काबिले तारीफ है एक रेखा को मिलने वाला पुरूस्कार दूसरा आज पंद्रह अगस्त दूकान बंद रहेगी .जैसी डोक्यु मेंट री को .रेखा विशाल मेरे फेवरेट है ...विशाल ने किसी इंटर व्यू में एक्सेप्ट किया है कोलेज में लोग रेखा को उनसे प्रतिभाशाली मानते थे ....वे तो क्रिकेट खेलते थे ..प्यार की वजह से रखा को इम्प्रेस करने के लिए संगीत की तरह मुड गए ...उनके साथ के दो प्लेयरों ने नेशनल टीम में खेला है .गुलज़ार साहब को जो वेक्यूम आर दी के जान एके बाद मिला था ....उसे विशाल ने भरा है .वे नज़्म समझते है .इसकी रूह को भी .सबसे बड़ी बात वे गुलज़ार से रिलेट करते है ..मसलन" बेकराँ" सुनिए .रेखा बेजोड़ है ...उनकी आवाज में एक अजीब नशा है ..वे वाकई इस पुरूस्कार की हक़दार है .

Ashish May 29, 2011 at 8:28 PM  

wakai main gaan abahut achcha hai - likha bhi achcha gaya hai aur gaaya bhi.

Neha May 30, 2011 at 6:29 PM  

रेखा भारद्वाज के गाये गानों का एक अलग ही स्थान है...वो बस सुनने वालों को बांधकर रख लेते हैं...अपने से लगते हैं..

Post a Comment

if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/

Blog Widget by LinkWithin
.

  © Blogger templates Psi by Ourblogtemplates.com 2008 यूनुस ख़ान द्वारा संशोधित और परिवर्तित

Back to TOP