संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Wednesday, December 2, 2009

हरियाणा की लोकरंग में रंगा--'तू राजा की राजदुलारी मैं सिर्फ़ लंगोटे वाला सूं' : मास्‍टर राजबीर की आवाज़

'रेडियोवाणी' पर 'नीरज' का जिक्र बार-बार होता रहा है । लेकिन आज एक फिल्‍मी-गीत के बहाने हो रहा है । मज़े की बात ये है कि ये गीत नीरज जी ने नहीं लिखा है । 

तकरीबन एक साल हुआ हमने
दिबाकर बैनर्जी की फिल्‍म 'ओए लकी ओए' देखी थी 13815कांदीवली के एक थियेटर में । फिल्‍म के बारे में चर्चा फिर कभी और फिर कहीं की जाएगी....दिबाकर अलग तरह के फिल्‍मकार हैं, और कहानियां कहने का उनका अपना ही ढंग है । अपनी फिल्‍म के संगीत के प्रति उनकी अपनी एक सोच होती है । अपनी पहली फिल्‍म 'खोसला का घोंसला' में भी उन्‍होंने बिल्‍कुल लीक से हटकर संगीत तैयार करवाया था । बापी-तुतुल और ध्रुव इसके संगीतकार थे । लेकिन फिलहाल तो आपको ये बता दिया जाए कि फिल्‍म 'ओए लकी ओए' के ज़रिए एक बेहद नई और प्रतिभाशाली संगीतकार ने फिल्‍म-परिदृश्‍य पर क़दम रखा है । इंदौर से तकरीबन नौ बरस पहले मुंबई में अपना करियर बनाने आई ये लड़की हैं--स्‍नेहा खानवलकर । उम्र के महज़ बीस पड़ाव पार कर चुकी स्‍नेहा का एक इंटरव्‍यू आप यहां पढ़ सकते हैं । 
eaa7f687856befe471976aa7809c46ea                               चित्र-साभार-www.radioandmusic.com
                      
'ओए लकी ओए' चूंकि दिल्‍ली के पंजाबी परिदृश्‍य के इर्द-गिर्द बुनी कहानी थी इसलिए इस फिल्‍म के संगीत में स्‍थानीयता का एक अलग ही रंग रखा गया है । दिल्‍ली, पंजाब और हरियाणा के लोक-संगीत का रंग है ये । 'ओए लकी ओए' का एक गीत मुझे लंबे समय से विस्मित करता रहा है । दरअसल ये गीत हरियाणवी बोली में है, और सी.डी. पर गायक का नाम लिखा गया है--मास्‍टर राजबीर । खोजने पर पता चला कि ये मास्‍टर राजबीर हैं केवल ग्‍यारह बरस के । स्‍नेहा ने अपने इंटरव्‍यू में बताया है कि ये हरियाणवी लोक-संगीत की एक 'रागिनी' है । हरियाणा के छोटे-छोटे गांवों में इस तरह की 'रागिनियों' के मुकाबले होते हैं । जिन्हें केवल पुरूष ही सुनते हैं ।

मास्‍टर राजबीर ने जो गीत गाया है, उसके बोल हैं--'तू राजा की राजदुलारी मैं सिर्फ लंगोटे वाळा सूं' । गाना सचमुच मार्मिक है । पर पता नहीं क्‍यों मुझे इस गाने को सुनकर एकदम शुरूआत से ही नीरज की ये रचना याद आती रही है--



मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ, तुम शहजादी रूपनगर की 
हो भी गया प्रेम हम में तो, बोलो मिलन कहाँ पर होगा..?

मेरा कुर्ता सिला दुखों ने,बदनामी ने काज निकाले,
तुम जो आँचल ओढ़े उसमें,अम्बर ने खुद जड़े सितारे
मैं केवल पानी ही पानी, तुम केवल मदिरा ही मदिरा
मिट भी गया भेद तन का तो, मन का हवन कहाँ पर होगा




इस रचना को आप रेडियोवाणी के दूसरे पन्‍ने पर पूरा पढ़ सकते हैं ।
तो आईये सुनें फिल्‍म 'ओए लकी ओए' का ये गीत--
song-tu raja ki raj dulari


singer-master rajbir
film-oye lucky oye
music-sneha khanwalkar
duration:5-15



एक और प्‍लेयर ताकि सनद रहे ।





इसके बोल ये रहे । चूंकि देवनागरी में इन्‍हें लिखने में उच्‍चारण-संबंधी-ग़लतियों की अपार- संभावनाएं हैं इसलिए इंटरनेट के किसी ठिकाने से उड़ाकर इन्‍हें यूं ही रोमन में दिया जा रहा है ।


Tu Raja Ki Raj Dulari, Main Sirf Langote.., Aala Su
Baandh Ragad Ke Piya Karu Main, Kundi Sote Aala Su
Tu Raja Ki Raj Dulari, Main Sirf Langote, Aala Su
Baandh Ragad Ke Piya Karu Main, ( Kundi Sote Aala Su ) 
Tu Raja Ki Chhori Se, Mere Ek Bhi Daasi Dost Nahi

Chal Tu Sole Odhan Aali, Maare Kambal Tak Bhi Paas Nahi
Tu Batakh Ki Koyal Se Odhe, Par Tode Hari Ghaas Nahi
Kitri Yaad Re Laga Tera, Satran Chaul Prakash Nahi
Kise Saahukar Ke Pyaa Kar Vaale, Saahukaar Ke Pyaa Kar Vaale
Main Khaali Strot Ke Aala Su
Baandh Ragad Ke Piya Karu Main, Kundi Sote Aala Su

Tu Raja Ki Raj Dulari, Main Sirf Langote, Aala Su
Baandh Ragad Ke Piya Karu Main, ( Kundi Sote Aala Su ) - 2
Pag Dhoole Main To Kai Karu Tu, Aur Dekhe Dar Jaagi
Raat Ko Leke Piyaa Karu Mera, Baagh Dekh Ke Dar Jaagi
Sau Sau Saap Bane Re Din Mein, Naag Dekh Ke Dar Jaagi
Tane Julfo Vaala Chhora Chaiye, Julfo Vaala Chhora Chaiye
Main Lambe Chote Vaala Su
Baandh Ragad Ke Piya Karu Main, Kundi Sote Aala Su
(tu Raja Ki Raj Dulari, Main Sirf Langote, Aala Su
Baandh Ragad Ke Piya Karu Main, Kundi Sote, Aala Su )


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12 comments:

अनिल कान्त December 2, 2009 at 3:44 PM  

ये गाना तो मुझे बहुत पसंद है
वाह दोबारा सुनकर मज़ा आ गया

सुशील छौक्कर December 2, 2009 at 4:05 PM  

यूनुस जी वाह मजा आ गया। हम ठहरे हरियाणा के। कई बार सोचा कि आपसे फरमाईश करे किसी रागिनी बगैरा की। पर भी बोला नही। हो सके तो एक आध रागिनी मिले तो जरुर सुनाए। अपन की फरमाईश है जी। प्लीज गौर करना। अगर इसे भेज सके तो जरुर भेज दे जब भी समय मिले। शाम को जरुर सुनेगे।

Ashok Kumar pandey December 2, 2009 at 7:22 PM  

अभी शमसुलभाई से मुलाक़ात हुई तो उन्होंने रागिनी पर विस्तार से जानकारी दी थी साथ ही इसी पर आधारित कुछ क्रांतिकारी गाने भी जो उनकी टीम ने बनाये थे।

यहां सुन के आनन्द आ गया।

mukti December 4, 2009 at 1:05 AM  

धन्यवाद युनुस जी,
मैं भी इस गाने के बारे में जानने के लिये उत्सुक थी और सुनने के लिये भी.

Urmi December 4, 2009 at 6:06 AM  

मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत सुंदर गाना है और ये मेरा पसंदीदार गाना है!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

Rahul Gaur December 5, 2009 at 12:03 AM  

युनुस भाई
नमस्कार
आपके ब्लॉग को काफी समय से follow कर रहा हूँ - एक शानदार ब्लॉग के लिए बधाई स्वीकार करें.
मेरी समझ के मुताबिक, यह रागिनी शिव पार्वती विवाह के सन्दर्भ में है, जो कि हरियाणा में काफी प्रचलित है और धार्मिक से ज्यादा सामाजिक और आंचलिक परिपेक्ष्य में देखि जानी चाहिए.
पार्वती के विवाह के आग्रह पर शिव उसे विभिन्न तर्क दे कर विवाह से उन्मुख कर रहे हैं, पंक्तियाँ थोड़ी ठीक कर देने से स्पष्ट होगा -
तू राजा की राज-दुलारी, मैं सिर्फ लंगोटे वाला सूं (हूँ का हरियाणवी बोल)
भांग रगड़ के पिया करूं मैं, उंडी (कटोरा) - सोटे (दंड) वाला सूं
(शिव की वेश भूषा ध्यान कीजिये)...

तू राजा की छोरी सै, मेरे एक भी दासी दोस्त नहीं
शाल दुशाले ओढ़न वाली, म्हारे कम्बल तक भी पास नहीं...
तू बागां की कोयल सै (है) अढे (यहाँ) बर्फ पड़े, हरी घास नहीं
किस तरयाँ (तरह) दिल लागेगा तेरा, सतरा चौ प्रकाश नहीं
किसी साहूकार के (यहाँ 'से' के अर्थ में प्रयुक्त) ब्याह करवाले, मैं खाली सोटे वाला सूं.
भांग-----
मैं धूनी तपा करूँ, तू आग देख के डर जायगी,
रंग घोल के पिया करूं, मेरा राग देख के डर जायगी
सौ सौ साल पड़े रहे जल में, तू नाग देख के डर जाएगी.
तांडव नाच करे बन में, रंग राग देख के डर जायगी
तने (तुझे) जुल्फां (ज़ुल्फ़) वाला छोरा चाहिए (यानी मोडर्न),
मैं लाम्बे (लम्बे) चोटे (जटा) वाला सूं.
भांग----

आशा है इस सन्दर्भ के साथ इस रागनी के पूरे लुत्फ़ उठा पाएंगे आप और आप के अतिथि.

योगेन्द्र मौदगिल December 5, 2009 at 8:54 PM  

राहुल जी ने सही कहा है.... बहरहाल बढ़िया प्रस्तुति...

दिलीप कवठेकर December 6, 2009 at 11:11 AM  

प्रस्तुत गीत को सुनाने के लिये धन्यवाद.

आजकल के गाने अधिकतर रिदम/परकशन वाद्यों की खिचडी लिये होते हैं, मगर ये गीत पारंपरिक वाद्यों के साथ आधुनिक वाद्यों का हलका सा फ़्युज़न लिये हुए है, जो बेहत सुहाता है.

साथ ही , लोक गीत की सुगंध लिये इस गीत में स्नेहा नें सुरों में हलका सा कनसुरापन और लय में ओव्हररन किया हुआ बरकरार रखा है, जिससे यह गीत अपनी मूल पहचान रखने में कायम रहा है. वर्ना , आजकल के गीतों में मेट्रोनोम की वजह से लय बंध जाती है, और असहजता मेहसूस होती है.गायक कट पेस्ट से अपना गाना भले ही लय में ले आता है, मगर सांस लेने की जगह भी कहीं कहीं दिखती नहीं.

गीत के बोलों के बारे में कुछ भी कहना बचा ही नहीं है. ठेठ बोल, मन की किवडिया खोल कर दिल में उतर जाते हैं.

स्नेहा का रिदम पर पकड अविश्वसनीय है. बचपन से देखते आ रहे हैं उसे, लगता नहीं था यह इतनी गुणी निकलेगी. उसके लिये शततः शुभकामनायें....

निर्मला कपिला December 20, 2009 at 11:31 AM  

युनुस भाई जन्मदिन की बहुत बहुत मुबारक ।

अनूप शुक्ल December 20, 2009 at 6:33 PM  

जन्मदिन मुबारक!

Anonymous,  December 24, 2009 at 1:14 PM  

lovely !!

Yunus bhai are u on facebook ??Can we create a group there..with a name radiovani ??

Anonymous,  December 24, 2009 at 1:16 PM  

Lovely blog.

Yunus bhai can we have a facebook group with a name radiovani ??

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